25 सूरह अल फु़रकान हिंदी में पेज 1

25 अल फु़रकान | Surah Al-Furqan

सूरह अल फु़रकान में 77 आयतें और 6 रुकु हैं। यह सूरह पारा 18, पारा 19 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम सूरह की पहली ही आयत “बहुत ही बरकत वाला है वह जिसने यह फुरकान (कसौटी) अवतरित किया,” से लिया गया है।

सूरह अल फु़रकान हिंदी में | Surat Al-Furqan in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. त बा-र कल्लजी नज़्ज़ लल् फुरक़ा-न अला अब्दिही लि- यकू-न लिल्आ़लमीन नज़ीरा
    (अल्लाह) बहुत बाबरकत है जिसने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर कु़रआन नाज़िल किया ताकि सारे जहान के लिए (अल्लाह के अज़ाब से) डराने वाला हो।
  2. अल्लजी लहू मुल्कुस् – समावाति वलअर्जि व लम् यत्तखिज् व लदंव् – व लम् यकुल्लहू शरीकुन् फिल् – मुल्कि व ख़ – ल – क कुल – ल शेइन् फ़-क़द्द रहू तक़दीरा
    वह अल्लाह कि सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत उसी की है और उसने (किसी को) न अपना लड़का बनाया और न सल्तनत में उसका कोई शरीक है और हर चीज़ को (उसी ने पैदा किया) फिर उस अन्दाज़े से दुरुस्त किया।
  3. वत्त – ख़जू मिन् दूनिही आलि – हतल् – ला यख़्लुकू – न शैअंव् व हुम् युख़्लकू – न व ला यम्लिकू – न लिअन्फुसिहिम् ज़र्रव् – व ला नफ्अंव् – व ला यम्लिकू न मौतंव् – व ला हयातंव् – व ला नुशूरा
    और लोगों ने उसके सिवा दूसरे दूसरे माबूद बना रखें हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह खुद दूसरे के पैदा किए हुए हैं और वह खुद अपने लिए भी न नुक़सान पर क़ाबू रखते हैं न नफ़ा पर और न मौत ही पर इख्तियार रखते हैं और न जि़न्दगी पर और न मरने के बाद जी उठने पर।
  4. व क़ालल्लज़ी न क फ़रू इन् हाज़ा इल्ला इफ़्कु निफ़्तराहु व अ- आनहू अ़लैहि कौमुन् आ खरू – नफ़ कद् जाऊ जुल्मंव् – वजूरा
    और जो लोग काफ़िर हो गए बोल उठे कि ये (क़ुरआन) तो निरा झूठ है जिसे उस शख़्स (रसूल) ने अपने जी से गढ़ लिया और कुछ और लोगों ने इस इफतिरा परवाज़ी में उसकी मदद भी की है।
  5. व कालू असातीरुल अव्वलीनक्त त बहा फ़हि – य तुम्ला अ़लैहि बुक्र – तंव् – व असीला
    तो यक़ीनन ख़ुद उन ही लोगों ने ज़ुल्म व फ़रेब किया है और (ये भी) कहा कि (ये तो) अगले लोगों के ढकोसले हैं जिसे उसने किसी से लिखवा लिया है पस वही सुबह व शाम उसके सामने पढ़ा जाता है।
  6. कुल् अन्ज़ – लहुल्लजी यअ्लमुस्सिर् – र फ़िस्समावाति वल्अर्जि, इन्नहू का – न ग़फूरर्रहीमा
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि इसको उस शख़्स ने नाजि़ल किया है जो सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों को ख़ूब जानता है बेशक वह बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है।
  7. व क़ालू मालि – हाज़र्रसूलि यअ्कुलुत्तआ़ – म व यम्शी फिल् अस्वाकि लौ ला उन्ज़ि ल इलैहि म लकुन फ़- यकून म अ़हू नज़ीरा
    और उन लोगों ने (ये भी) कहा कि ये कैसा रसूल है जो खाना खाता है और बाज़ारों में चलता है फिरता है उसके पास कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं नाजि़ल होता कि वह भी उसके साथ (अल्लाह के अज़ाब से) डराने वाला होता।
  8. औ युल्का इलैहि कन्जुन् औ तकूनु लहू जन्नतुंय् – यअकुलु मिन्हा, व कालज़्ज़ालिमू न इन् तत्तबिअू न इल्ला रजुलम् – मस्हूरा
    (कम से कम) इसके पास ख़ज़ाना ही ख़ज़ाना ही (आसमान से) गिरा दिया जाता या (और नहीं तो) उसके पास कोई बाग़ ही होता कि उससे खाता (पीता) और ये ज़ालिम (कुफ़्फ़ार मोमिनों से) कहते हैं कि तुम लोग तो बस ऐसे आदमी की पैरवी करते हो जिस पर जादू कर दिया गया है।
  9. उन्जुर कै-फ़ ज़-रबू ल कल्- अम्सा-ल फ़-ज़ल्लू फ़ला यस्ततीअू-न सबीला *  
    (ऐ रसूल!) ज़रा देखो तो कि इन लोगों ने तुम्हारे वास्ते कैसी कैसी फबत्तियाँ गढ़ी हैं और गुमराह हो गए तो अब ये लोग किसी तरह राह पर आ ही नहीं सकते।
  10. तबा – रकल्लज़ी इन् शा – अ ज – अ़-ल ल – क ख़ैरम् – मिन् ज़ालि- क जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारू व यज् अल् ल – क कुसूरा
    अल्लाह तो ऐसा बारबरकत है कि अगर चाहे तो (एक बाग़ क्या चीज़ है) इससे बेहतर बहुतेरे ऐसे बाग़ात तुम्हारे वास्ते पैदा करे जिन के नीचे नहरें जारी हों और (बाग़ात के अलावा उनमें) तुम्हारे वास्ते महल बना दे।
  11. बल् कज़्ज़बू बिस्सा – अ़ति व अअ्तद्ना लिमन् कज़्ज़ – ब बिस्सा – अ़ति सईरा
    (ये सब कुछ नहीं) बल्कि (सच यूँ है कि) उन लोगों ने क़यामत ही को झूठ समझा है और जिस शख़्स ने क़यामत को झूठ समझा उसके लिए हमने जहन्नुम को (दहका के) तैयार कर रखा है।
  12. इज़ा र-अत्हुम् मिम्-मकानिम् – बईदिन समिअू लहा त- ग़य्युजंव् – व ज़फ़ीरा
    जब जहन्नुम इन लोगों को दूर से दखेगी तो (जोश खाएगी और) ये लोग उसके जोश व ख़रोश की आवाज़ सुनेंगें।
  13. व इज़ा उल्कू मिन्हा मकानन् ज़य्यिकम् – मुक़र्रनी-न दऔ़ हुनालि-क सुबूरा
    और जब ये लोग जंजीरों से जकड़कर उसकी किसी तंग जगह मे झोंक दिए जाएँगे तो उस वक़्त मौत को पुकारेंगे।
  14. ला तद्अुल्यौ – म सुबूरंव् – वाहिदंव् – वद्अू सुबूरन् कसीरा
    (उस वक़्त उनसे कहा जाएगा कि) आज एक मौत को न पुकारो बल्कि बहुतेरी मौतों को पुकारो (मगर इससे भी कुछ होने वाला नहीं)।
  15. कुल् अ – ज़ालि – क ख़ैरुन् अम् जन्नतुल् – खुल्दिल्लती वुअिदल् मुत्तकू – न, कानत् लहुम् जज़ा – अंव् व मसीरा
    (ऐ रसूल!) तुम पूछो तो कि जहन्नुम बेहतर है या हमेशा रहने का बाग़ (बेहष्त) जिसका परहेज़गारों से वायदा किया गया है कि वह उन (के आमाल) का सिला होगा और आखि़री ठिकाना।
  16. लहुम फ़ीहा मा यशाऊ-न ख़ालिदी-न का-न अ़ला रब्बि-क वअ्दम् मस्ऊला
    जिस चीज़ की ख़्वाहिश करेंगें उनके लिए वहाँ मौजूद होगी (और) वह हमेशा (उसी हाल में) रहेंगें ये तुम्हारे परवरदिगार पर एक लाजि़मी और माँगा हुआ वायदा है।
  17. व यौ-म यह्शुरुहुम् व मा यअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि फ़ – यकूलु अ – अन्तुम् अज़्लल्तुम् अिबादी हाउला-इ अम् हुम् ज़ल्लुस्सबील
    और जिस दिन अल्लाह उन लोगों को और जिनकी ये लोग अल्लाह को छोड़कर परसतिश किया करते हैं (उनको) जमा करेगा और पूछेगा क्या तुम ही ने हमारे उन बन्दों को गुमराह कर दिया था या ये लोग खुद राहे रास्त से भटक गए थे।
  18. कालू सुब्हान – क मा का-न यम्बग़ी लना अन नत्तख़ि-ज़ मिन् दुनि-क मिन् औ लिया-अ व लाकिम् मत्तअ् – तहुम् व आबा -अहुम् हत्ता नसुज़्ज़िक्-र व कानू क़ौमम् बूरा
    (उनके माबूद) अर्ज़ करेंगें- सुबहान अल्लाह (हम तो ख़ुद तेरे बन्दे थे) हमें ये किसी तरह ज़ेबा न था कि हम तुझे छोड़कर दूसरे को अपना सरपरस्त बनाते (फिर अपने को क्यों कर माबूद बनाते) मगर बात तो ये है कि तू ही ने इनको बाप दादाओं को चैन दिया-यहाँ तक कि इन लोगों ने (तेरी) याद भुला दी और ये ख़ुद हलाक होने वाले लोग थे।
  19. फ़ – क़द् कज़्ज़बूकुम् बिमा तकूलू – न फ़मा तस्ततीअू – न सरफंव् व ला नसरन व मंय्यज्लिम् मिन्कुम् नुज़िक़्हु अ़ज़ाबन् कबीरा
    तब (काफि़रों से कहा जाएगा कि) तुम जो कुछ कह रहे हो उसमें तो तुम्हारे माबूदों ने तुम्हें झूठला दिया तो अब तुम न (हमारे अज़ाब के) टाल देने की सकत रखते हो न किसी से मदद ले सकते हो और (याद रखो) तुममें से जो ज़ुल्म करेगा हम उसको बड़े (सख़्त) अज़ाब का (मज़ा) चखाएगें।
  20. व मा अरसल्ना क़ब्ल-क मिनल्-मुरसली-न इल्ला इन्नहुम् ल-यअ्कुलूनत्तआ़-म व यमशू-न फ़िल् – अस्वाकि, व जअ़ल्ना बअ् -ज़कुम् लिबअ्ज़िन फ़ित-नतन् अ-तस्बिरू-न व का-न रब्बु-क बसीरा *
    और (ऐ रसूल!) हमने तुम से पहले जितने पैग़म्बर भेजे वह सब के सब यक़ीनन बिला शक खाना खाते थे और बाज़ारों में चलते फिरते थे और हमने तुम में से एक को एक का (ज़रिया) आज़माइश बना दिया (मुसलमानों) क्या तुम अब भी सब्र करते हो (या नहीं) और तुम्हारा परवरदिगार (सब की) देख भाल कर रहा है। (पारा 18 समाप्त)

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