57 सूरह अल-हदीद हिंदी में

57 सूरह अल-हदीद | Surah Al Hadid(Al-Hadeed)​

सूरह अल-हदीद में 29 आयतें और 4 रुकू है। यह सूरह मदनी है। यह सूरह पारा 27 में है। इस सूरह का नाम आयत 25 के वाक्यांश, “और लोहा (अल-हदीद) उतारा” से लिया गया है।

सूरह अल-हदीद हिंदी में | Surah Al Hadid in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. सब्ब-ह लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि व हुवल् अज़ीज़ुल् – हकीम
    जो भी चीज़ सारे आसमान व ज़मीन मे है सब अल्लाह की पवित्रता का गान करती है और वही प्रबल, गुणी है।
  2. लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि युह्यी व युमीतु व हु-व अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
    सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही उसी की है। वही जीवन देता है वही मारता है और वह जो चाहे, कर सकता है।
  3. हुवल्-अव्वलु वल्-आख़िरु वज़्ज़ाहिरु वल्-बातिनु व हु-व बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
    वही सबसे पहले और अन्तिम है। और (अपनी क़ूवतों से) सब पर ज़ाहिर और (निगाहों से) अदृश्य है और वही सब चीज़ों को जानता है।
  4. हुवल्लज़ी ख़-लक़स्सावाति वल्अर्-ज़ फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अ़ललू-अर्शि, यअ्लमु मा यलिजु फ़िल्अर्ज़ि व मा यख़्रुजु मिन्हा व मा यन्ज़िलु मिनस्समा-इ व मा यअ्-रुजु फ़ीहा, व हु-व म-अ़कुम् ऐनमा कुन्तुम्, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीर
    वह वही तो है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को छह दिन में पैदा किए। फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ जो चीज़ ज़मीन में दाखिल होती है और जो उससे निकलती है और जो चीज़ आसमान से उतरती है और जो उसकी तरफ़ चढ़ती है, (सब) उसको मालूम है।और तुम (चाहे) जहाँ कहीं रहो वह तुम्हारे साथ है। और जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है।
  5. लहू मुल्कु स्समावाति वल्अर्ज़ि, व इलल्लाहि तुर्ज उल्-उमूर
    सारे आसमान व ज़मीन की बादशाही ख़ास उसी की है और अल्लाह ही की ओर सारे मामले (निर्णय के लिए) पलटते हैं।
  6. यूलिजुल्लै-ल फ़िन्नहारि व यूलिजुन् नहा – र फ़िल्लैलि, व हु-व अ़लीमुम् बिज़ातिस्-सुदूर
    वही रात को (घटा कर) दिन में दाखिल करता है तो दिन बढ़ जाता है और दिन (घटाकर) रात में दाखिल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और दिलों के भेदों तक से ख़ूब अवगत है।
  7. आमिनू बिल्लाहि व रसूलिही व अन्फ़िक़ू मिम्मा ज-अ़-लकुम् मुस्तख़-लफ़ी-न फ़ीहि, फ़ल्लज़ी – न आमनू मिन्कुम् व अन्फ़क़ू लहुम् अज्रून कबीर
    (लोगों) अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और जिस (माल) में उसने तुमको अपना नायब बनाया है उसमें से से कुछ (अल्लाह की राह में) ख़र्च करो। तो तुम में से जो लोग ईमान लाए और (राहे अल्लाह में) दान करते रहें उनके लिए बड़ा प्रतिफल है।
  8. व मा लकुम् ला तु अ्मिनू-न बिल्लाहि वर्रसूलु यद्अूकुम् लितुअ्मिनू बि-रब्बिकुम् व क़द् अ-ख़-ज़ मीसा-क़कुम् इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    और तुम्हें क्या हो गया है कि अल्लाह पर ईमान नहीं लाते हो हालाँकि रसूल तुम्हें बुला रहें हैं कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ। और अगर तुमको आस्था हो तो (यक़ीन करो कि) अल्लाह तुम से (इसका) वचन ले चुका।
  9. हुवल्लज़ी युनज़्ज़िलु अ़ला अ़ब्दिही आयातिम् बय्यिनातिल्-लियुख़रि- जकुम् मिनज़्ज़ुलुमाति इलन्नूरि, व इन्नल्लाह बिकुम् ल-रऊफ़ुर्रहीम
    वही तो है जो अपने बन्दे (मोहम्मद) पर खुली व रौशन आयतें उतारता है ताकि तुम लोगों को (कुफ्र की) अंधेरों से निकाल कर (ईमान की) रौशनी में ले जाए। और बेशक अल्लाह तुम पर बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है।
  10. व मा लकुम् अल्-ला तुन्फ़िक़ू फ़ी सबीलिल्लाहि व लिल्लाहि मीरासुस्समावाति वल्अर्ज़ि, ला यस्तवी मिन्कुम् मन् अन्फ़-क़ मिन् कब्लिल्-फ़त्हि व कात-ल, उलाइ-क अअ्-ज़मु द-र-जतम् – मिनल्लज़ी-न अ न्फ़क़ू मिम्बअ्दु व क़ातलू, व कुल्लंव्-व- अ़दल्लाहुल्-हुस्ना, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीर
    और तुमको क्या हो गया कि (अपना माल) अल्लाह की राह में ख़र्च नहीं करते हालाँकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व उत्तराधिकार अल्लाह ही है। तुममें से जिस शख़्स ने फ़तेह (मक्का) से पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया। (और जिसने बाद में किया) वह बराबर नहीं उनका दर्जा उन लोगों से कहीं बढ़ कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया। और धर्मयुद्ध किया और (यूँ तो) अल्लाह ने भलाई और पुण्य का वायदा तो सबसे किया है। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे पूर्णतः सूचित है।
  11. मन् ज़ल्लज़ी युक़िरज़ुल्ला-ह क़र्ज़न् ह-सनन् फ़-युज़ाअि-फ़हू लहू व लहू अजरुन् करीम
    कौन ऐसा है जो अल्लाह को शुद्ध नियत से अच्छा ऋण दे तो अल्लाह उसके लिए (अज्र को) दूना कर दे। और उसके लिए बहुत अच्छा प्रतिदान (जन्नत) तो है ही। (ऋण से अभिप्राय अल्लाह की राह में धन दान करना है।)
  12. यौ – म तरल् – मुअ्मिनी-न वल्मुअ्मिनाति यस्आ नूरुहुम् बै-न ऐदीहिम् व बि-ऐमानिहिम् बुश्राकुमुल्-यौ-म जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा, ज़ालि-क हुवल् फ़ौजुल्-अ़ज़ीम
    जिस दिन तुम ईमान वालों और ईमान वालियों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर उनके आगे आगे और दाहिने तरफ़ चल रहा होगा। तो उनसे कहा (जाएगा) तुम्हें शुभ सूचना है कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है। जिनके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है। (यह प्रलय के दिन होगा जब वह अपने ईमान के प्रकाश में स्वर्ग तक पहुँचेंगे।)
  13. यौ म यक़ूलुल्-मुनाफ़िक़ू-न वल्- मुनाफ़िक़ातु लिल्लज़ी-न आमनुन्ज़ुरूना नक़्तबिस् मिन्- नूरिकुम् कीलर्जिऊ वरा-अकुम् फ़ल्तमिसू नूरन्, फ़जुरि-ब बैनहुम् बिसूरिल्-लहू बाबुन्, बातिनुहू फ़ीहिर्रह्मतु व ज़ाहिरुहू मिन् क़ि-बलिहिल्-अ़ज़ाब
    उस दिन कपटाचारी मर्द और कपटाचारी औरतें ईमानदारों से कहेंगे तनिक हमारी प्रतीक्षा करो। कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल करें। तो (उनसे) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वही) किसी और नूर की तलाश करो ।फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो दया है और बाहर की तरफ़ यातना। तो मुनाफिक़ीन मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे।
  14. युनादूनहुम् अलम् नकुम् म-अ़कुम्, क़ालू बला व लाकिन्नकुम् फ़तन्तुम् अन्फ़ु-सकुम् व तरब्बस्तुम् वर्तब्तुम् व ग़र्रत्कुमुल् – अमानिय्यु हत्ता जा अ अम्-रुल्लाहि व ग़र्र कुम् बिल्लाहिल्-ग़रूर
    वे उन्हें पुकारेंगेः क्या हम (संसार में) तुम्हारे साथ नहीं थे? (वे कहेंगेः) परन्तु तुमने उपद्रव में डाल दिया अपने आपको और प्रतीक्षा में रहे तथा संदेह किया और धोखे में रखा तुम्हें तुम्हारी कामनाओं ने। यहाँ तक कि अल्लाह का आदेश आ पहुँचा और एक बड़े दग़ाबाज़ (शैतान) ने अल्लाह के बारे में तुमको धोखा दिया।
  15. फ़ल्यौ – म ला युअ् – ख़ज़ु मिन्कुम् फ़िद्-यतुंव्-व ला मिनल्लज़ी-न क- फ़रू, मअ्वाकुमुन्नारु, हि-य मौलाकुम्, व बिअ्सल्-मसीर
    तो आज न तो तुमसे कोई अर्थदण्ड लिया जाएगा और न काफ़िरों से। तुम सबका ठिकाना (बस) नरक है। वही तुम्हारे वास्ते योग्य है और (क्या) बुरी जगह है।
  16. अलम् यअ्नि लिल्लज़ी-न आमनू अन् तख़्श-अ़ क़ुलूबुहुम् लिज़िक्रिल्लाहि व मा न-ज़-ल मिनल्-हक़्क़ि व ला यकूनू कल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लु फ़ता-ल अ़लैहिमुल्-अ-मदु फ़-क़सत् क़ुलूबुहुम्, व कसीरुम्-मिन्हुम् फ़ासिक़ून
    क्या ईमानदारों के लिए अभी तक इसका वक़्त नहीं आया कि अल्लाह की याद और क़ुरान  के लिए जो (अल्लाह की तरफ़ से) उतरा है उनके दिल नरम हों। और वह उन लोगों के से न हो जाएँ जिनको उन से पहले किताब (तौरात, इन्जील) दी गयी थी। तो (जब) एक लम्बी अवधि व्यतीत हो गयी तो उनके दिल कठोर हो गए। और इनमें से अधिकतर अवज्ञाकारी हैं।
  17. इअ्-लमू अन्नल्ला-ह युह्यिल्-अर्ज़ बअ्-द मौतिहा, क़द् बय्यन्ना लकुमुल्-आयाति लअ़ल्लकुम् तअ्क़िलून
    जान रखो कि अल्लाह ही ज़मीन को उसके मरने के बाद ज़िन्दा करता है। हमने तुमसे अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ खोल खोल कर उजागर कर दी हैं, ताकि तुम समझो।
  18. इन्नल्-मुस्सद्दिक़ी-न वल्-मुस्सद्दिक़ाति व अक़्रज़ुल्ला-ह क़र्ज़न् ह-सनंय् – युज़ा – अ़फु लहुम् व लहुम् अज्-रून् करीम
    वस्तुतः, दान देने वाले मर्द और दान देने वाली औरतें और (जो लोग) अल्लाह की नीयत से ख़ालिस क़र्ज़ देते हैं उनको दोगुना (अज्र) दिया जाएगा। और उनका बहुत प्रतिदान (जन्नत) तो है ही।
  19. वल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रुसुलिही उलाइ-क हुमुस्-सिद्दीक़ू-न वश्शु-हदा-उ अिन्-द रब्बिहिम्, लहुम् अज्-रूहुम् व नूरुहुम्, वल्लज़ी-न क-फ़रू व कज़्ज़बू बिआयातिना उलाइ-क अस्हाबुल्-जहीम
    और जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाए यही लोग अपने परवरदिगार के नज़दीक सिद्दीक़ों(बड़ा सच्चा) और शहीदों के दरजे में होंगे। उनके लिए उन्ही (सिद्दीकों और शहीदों) का अज्र और उन्हीं का नूर होगा। और जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया वही लोग नारकीय हैं।
  20. इअ्-लमू अन्नमल्-हयातुद्-दुन्या लअिबुंव्-व लह्वुंव्-व ज़ी-नतुंव्-व तफ़ाख़ुरुम् – बैनकुम् व तकासुरुन् फिल्- अम्वालि वल्-औलादि, क-म-सलि ग़ैसिन् अअ्-जबल्-कुफ़्फ़ा-र नबातुहू सुम्- म यहीजु फ़-तराहु मुस्फ़र्रन् सुम्-म यकूनु हुतामनू, व फ़िल्-आख़िरति अ़ज़ाबुन् शदीदुंव्-व मग़्फ़ि-रतुम् – मिनल्लाहि व रिज़्वानुन्, व मल्-हयातुद्- दुन्या इल्ला मताअुल्- ग़ुरूर
    जान लो, सांसारिक जीवन तो बस एक खेल और तमाशा है और एक साज-सज्जा, और तुम्हारा आपस में एक-दूसरे पर बड़ाई जताना, और धन और सन्तान में परस्पर एक-दूसरे से बढ़ा हुआ प्रदर्शित करना। जिस (की वजह) से किसानों की खेती (लहलहाती और) उनको ख़ुश कर देती थी फिर सूख जाती है। तो तू उसको देखता है कि पीली हो जाती है फिर चूर चूर हो जाती है। और परलोक में (कुफ्फ़ार के लिए) कड़ी यातना है। और (मोमिनों के लिए) अल्लाह की तरफ़ से क्षमा और प्रसन्नता और सांसारिक जीवन तो बस धोखे का संसाधन है।
  21. साबिक़ू इला मग़्फ़ि-रतिम्-मिर्रब्बिकुम् व जन्नतिन् अ़र्जुहा क-अ़र्जिस्समा – इ वल्अ़र्ज़ि उइद्दित् लिल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रुसुलिही, ज़ालि-क फ़ज़्लुल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु ज़ुल् – फ़ज़्लिल् – अ़ज़ीम
    तुम अपने परवरदिगार के (सबब) क्षमा की और स्वर्ग की तरफ़ लपक के आगे बढ़ जाओ। जिसका विस्तार आसमान और ज़मीन के विस्तार के बराबर है। जो उन लोगों के लिए तैयार की गयी है जो अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाए हैं। ये अल्लाह का अनुग्रह है जिसे चाहे अता करे। और अल्लाह का फज़ल (व क़रम) तो बहुत बड़ा है।
  22. मा असा-ब मिम्-मुसी-बतिन् फ़िल्अर्ज़ि व ला फ़ी अऩ्फ़ुसिकुम् इल्ला फ़ी किताबिम् – मिन् क़ब्लि अन्- नब्र-अहा, इन्-न ज़ालि क अ़लल्लाहि यसीर
    जितनी मुसीबतें रूए ज़मीन पर और ख़ुद तुम लोगों पर पहुँचती होती हैं (वह सब) इससे पूर्व कि हम उन्हें पैदा करें किताब (लौह महफूज़) में (लिखी हुयी) हैं। बेशक ये अल्लाह पर आसान है।
  23. लिकैला तअसौ अ़ला मा फ़ातकुम् व ला तफ़्रहू बिमा आताकुम्, वल्लाहु ला युहिब्बु कुल्-ल मुख़्तालिन् फ़ख़ूर
    ताकि जब कोई चीज़ तुमसे जाती रहे तो तुम उसका शोक न किया करो। और जब कोई चीज़ अल्लाह तुमको दे तो उस पर न इतराया करो। और अल्लाह किसी इतराने वाले गर्व करने वाले को दोस्त नहीं रखता।
  24. अल्लज़ी-न यब्ख़लू-न व यअ्मुरुनन्ना – स बिल्बुख़्लि, व मंय्य – तवल्-ल फ़-इन्नल्ला -ह हुवल् ग़निय्युल्-हमीद
    जो ख़ुद भी कंजूसी करते हैं और दूसरे लोगों को भी कंजूसी करना सिखाते हैं। और जो शख़्स (इन बातों से)  विमुख होगा तो अल्लाह भी इच्छारहित सराहनीय है।
  25. ल-क़द् अर्सल्ना रुसु-लना बिल्बय्यिनाति व अन्ज़ल्ना म- अ़हुमुल्- किता-ब वल्मीज़ा-न लि-यक़ूमन्नासु बिल् क़िस्ति व अन्ज़ल्नल् – हदी- द फ़ीहि बअ्सुन् शदीदुंव्-व मनाफ़िअु लिन्नासि व लि-यअ् – लमल्लाहु मंय्यन्सुरुहू व रुसु – लहू बिल्ग़ैबि, इन्नल्ला-ह क़विय्युन् अ़ज़ीज़
    हमने  निःसंदेह अपने पैग़म्बरों को खुले प्रमाणों के साथ भेजा। और उनके साथ किताब और (इन्साफ़ की) तराज़ू उतारी ताकि लोग इन्साफ़ पर क़ायम रहे।और हम ही ने लोहे को नाजि़ल किया जिसके ज़रिए से सख़्त लड़ाई और लोगों के बहुत से नफ़े (की बातें) हैं।  ताकि अल्लाह जान ले कि कौन परोक्ष में रहते हुए उसकी और उसके रसूलों की सहायता करता है। बेशक अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभावशाली है।
  26. व ल-क़द् अर्सल्ना नूहंव्-व इब्राही-म व जअ़ल्ना फ़ी ज़ुर्रिय्यतिहि-मन्नुबुव्व-त वल् किता-ब फ़मिन्हुम् मुह्तदिन् व कसीरुम् – मिन्हुम् फ़ासिक़ून
    और बेशक हम ही ने नूह और इब्राहीम को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा। और उन्ही दोनों की औलाद में पैग़म्बरी और किताब मुक़र्रर की तो उनमें से किसी ने तो संमार्ग अपनाया और उन के बहुतेरे अवज्ञाकारी हैं।
  27. सुम्-म क़फ़्फ़ैना अ़ला आसारिहिम् बिरुसुलिना व क़फ़्फ़ैना बि-ईसब्नि मर्य-म व आतैनाहुल्- इन्जी-ल व जअ़ल्ना फ़ी क़ुलूबिल्लज़ीनत् -त-बअूहु रअ्-फ़तंव्-व रह्म-तन्, व रह्बानिय्य-त- निब्त दअूहा मा कतब्नाहा अ़लैहिम् इल्लब्तिग़ा – अ रिज़्वानिल्लाहि फ़मा रऔहा हक़् क़ रिआ-यतिहा फ़आतैनल्लज़ी-न आमनू मिन्हुम् अरहुम् व कसीरुम् – मिन्हुम् फ़ासिक़ून
    फिर उनके पीछे ही उनके क़दम ब क़दम अपने और पैग़म्बर भेजे। और उनके पीछे मरियम के बेटे ईसा को भेजा और उनको इन्जील प्रदान की। और जिन लोगों ने उनका अनुसरण किया उनके दिलों में करुणा तथा दया डाल दी। और संसार त्याग उन लोगों ने ख़ुद एक नयी बात निकाली थी। हमने उनको उसका हुक़्म नहीं दिया था मगर (उन लोगों ने) अल्लाह की प्रसन्नता हासिल करने के लिए (ख़ुद ईजाद किया) तो उसको भी जैसा बनाना चाहिए था न बना सके। तो जो लोग उनमें से ईमान लाए उनको हमने उनका बदला दिया उनमें के अधिकतर तो अवज्ञाकारी ही हैं।
  28. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-हव – आमिनू बि रसूलिही युअ्तिकुम् किफ़्लैनि मिर्रह्मतिही व यज् अ़ल्-लकुम् नूरन् तम्शू-न बिही व यग़्फिर् लकुम्, वल्लाहु ग़फ़ूरुर्रहीम 
    ऐ ईमानदारों! अल्लाह से डरो और उसके रसूल (मोहम्मद) पर ईमान लाओ। तो अल्लाह तुमको अपनी रहमत के दो हिस्से प्रतिफल प्रदान करेगा। और तुमको ऐसा नूर प्रदान करेगा जिस (की रौशनी) में तुम चलोगे। और तुमको क्षमा कर देगा। और अल्लाह तो बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
  29. लि-अल्ला यअ्ल-म अह्लुल्- किताबि अल्ला यक़्दिरू-न अ़ला शैइम्-मिन् फ़ज़्लिल्लाहि व अन्नल्-फ़ज़्-ल बि-यदिल्लाहि युअ्तीहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु ज़़ुल्-फ़ज़्लिल्-अ़ज़ीम
    (ये इसलिए कहा जाता है) ताकि एहले किताब(यहूदी तथा ईसाई) ये न समझें कि ये मोमिनीन अल्लाह के फज़ल (व क़रम) पर कुछ भी अधिकार नहीं रखते। और ये तो यक़ीनी बात है कि अनुग्रह अल्लाह ही के कब्ज़े में है। वह जिसको चाहे प्रदान करता है और अल्लाह तो बड़े अनुग्रह का मालिक है। (पारा 27 समाप्त)

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