58 सूरह अल-मुजादिला हिंदी में​

58 सूरह अल-मुजादिला(मुजादलह या मुजादला) | Surah Al-Mujadila

सूरह अल-मुजादिला में अरबी के 22 आयतें और 3 रुकू है। यह सूरह मदनी है। यह सूरह पारा 28 में है।

इस सूरह का नाम अल्-मुजादला और अल्-मुजादिला भी है। इस सूरह का नाम पहली ही आयत के शब्द ‘तुजादिलु-क’ (तुम से तकरार कर रही है) से लिया गया है।

सूरह अल-मुजादिला हिंदी में | Surah Al-Mujadila in Hindi

पारा 28 शुरू

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. क़द् समिअल्लाहु क़ौलल्लती तुजादिलु – क फ़ी ज़ौजिहा व तश्तकी इलल्लाहि वल्लाहु यस्-मअु तहावु-रकुमा, इन्नल्ला-ह समीअुम्-बसीर
    ऐ रसूल! जो औरत (ख़ुला) तुमसे अपने शौहर के बारे में तुमसे झगड़ती और अल्लाह से गिले शिकवे करती है। अल्लाह ने उसकी बात सुन ली और अल्लाह तुम दोनों की ग़ुफ्तगू सुन रहा है। वास्तव में, अल्लाह बड़ा सुनने वाला देखने वाला है।
  2. अल्लज़ी – न यु ज़ाहिरू-न मिन्कुम् मिन्- निसा – इहिम् मा हुन्-न उम्महाति-हिम्, इन् उम्महातुहुम् इल्लल्-लाई व-लद्- नहुम्, व इन्नहुम् ल यक़ूलू-न मुन्करम् मिनल्-क़ौलि वज़ूरन्, व इन्नल्ला-ह ल-अ़फ़ुव्वुन् ग़फ़ूर
    तुम में से जो लोग अपनी बीवियों के साथ ज़िहार करते हैं अपनी बीवी को माँ कहते हैं वह कुछ उनकी माएँ नहीं (हो जातीं)। उनकी माएँ तो बस वही हैं जो उनको जनती हैं। और वह बेशक एक अप्रिय और झूठी बात कहते हैं। और अल्लाह बेशक माफ़ करने वाला और बड़ा क्षमाशील है। (ज़िहार का अर्थ है पति का अपनी पत्नी से यह कहना कि तू मुझ पर मेरी माँ की पीठ के समान है। इस्लाम से पूर्व अरब समाज में यह कुरीति थी कि पति अपनी पत्नी से यह कह देता तो पत्नी को तलाक़ हो जाती थी। और सदा के लिये पति से विलग हो जाती थी। और इस का नाम ‘ज़िहार’ था। इस्लाम में एक स्त्री जिस का नाम ख़ौला (रज़ियल्लाहु अन्हा) है उस से उस के पति औस पुत्र सामित (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ज़िहार कर लिया। ख़ौला (रज़ियल्लाहु अन्हा) नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के पास आई। और आप से इस विषय में झगड़ने लगी। उस पर यह आयतें उतरीं।)
  3. वल्लज़ी – न युज़ाहिरू- न मिन् निसा – इहिम् सुम्- मउदू-न लिमा कालू फ़ तह्-रीरु र-क़-बतिम्-मिन् क़ब्लि अंय्य-तमास्सा, ज़ालिकुम् तू अ़ज़ू-न बिही, वल्लाहु बिमा तअ्मलू- न ख़बीर
    और जो लोग अपनी बीवियों से ज़िहार कर बैठे फिर अपनी बात वापस लें तो दोनों के हमबिस्तर होने से पहले (उसका दण्ड) एक ग़ुलाम का आज़ाद करना (ज़रूरी) है। उसकी तुमको शिक्षा की जाती है। और तुम जो कुछ भी करते हो (अल्लाह) उससे सूचित है।
  4. फ़-मल्लम् यजिद् फ़सियामु श ह्-रैनि मु-तताबि अैनि मिन् क़ब्लि अंय्य-तमास्सा, फ़-मल्-लम् यस्ततिअ् फ़-इत्आमु सित्ती – न मिस्कीनन्, ज़ालि क लितु अ्मिनू बिल्लाहि व रसूलिही, व तिल् क हुदूदुल्लाहि, व लिल्का फ़िरी-न अ़ज़ाबुन् अलीम
    फिर जिसको ग़ुलाम न मिले तो इससे पहले कि वे दोनों एक-दूसरे को हाथ लगाएँ, दो महीने निरन्तर रोज़ा (व्रत) रखना है। और जिसको इसकी भी सामर्थ्य न हो, साठ मोहताजों को खाना खिलाना फ़र्ज़ है। ये (हुक़्म इसलिए है) ताकि तुम ईमान लाओ अल्लाह तथा उसके रसूल पर  और ये अल्लाह की सीमायें हैं और काफ़िरों के लिए दुःखदायी यातना है।
  5. इन्नल्लज़ी – न युहाद्दूनल्लाह व रसूलहू कुबितू कमा कुबितल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् व क़द् अन्ज़ल्ना आयातिम्-बय्यिनातिन्, व लिल्काफ़िरी-न अ़ज़ाबुम् मुहीन
    वास्तव में, जो लोग अल्लाह का और उसके रसूल का विरोध करते हैं। वह (उसी तरह) अपमानित किए जाएँगे जिस तरह उनके पहले लोग किए जा चुके हैं। और हम तो अपनी साफ़ और खुली आयतें नाजि़ल कर चुके। और काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना है।
  6. यौ-म यब्अ़सुहुमुल्लाहु जमीअ़न् फ़-युनब्बिउहुम् बिमा अ़मिलू, अह्साहुल्लाहु व नसूहु, वल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन् शहीद
    जिस दिन अल्लाह उन सबको दोबारा जीवित उठाएगा तो उनके कर्मों से उनको आगाह कर देगा। ये लोग उनको भूल गये हैं मगर अल्लाह ने उनको याद रखा है। और अल्लाह तो हर वस्तु का गवाह है।
  7. अलम् त-र अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, मा यकूनु मिन्-नज्वा सला-सतिन् इल्ला हु-व राबिअुहुम् व ला ख़म्सतिन् इल्ला हु-व सादिसुहुम् व ला अद्ना मिन् ज़ालि-क व ला अक्स र इल्ला हु-व म अ़हुम् ऐ न मा कानू सुम्-म युनब्बिउहुम् बिमा अ़मिलू यौमल्- क़ियामति, इन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
    क्या तुमको मालूम नहीं कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (सब कुछ) अल्लाह जानता है। जब तीन (आदमियों) का ख़ुफिया मशवरा होता है तो वह (ख़ुद) उनका ज़रूर चौथा है। और जब पाँच का मशवरा होता है तो वह उनका छठा है। और उससे कम हो या ज़्यादा और चाहे जहाँ कहीं हो वह उनके साथ ज़रूर होता है। फिर जो कुछ वह (दुनिया में) करते रहे क़यामत के दिन उनको उससे आगाह कर देगा। बेशक अल्लाह हर चीज़ से ख़ूब वाकिफ़ है।
  8. अलम् त-र इलल्लज़ी-न नुहू अ़निन्-नज्वा सुम्-म यअूदू-न लिमा नुहू अ़न्हु व य-तनाजौ-न बिल्इस्मि वल्- अुद्वानि व मअ्सि – यतिर्रसूलि व इज़ा जाऊ -क हय्यौ-क बिमा लम् युहय्यि-क बिहिल्लाहु व यक़ूलू-न फ़ी अ़न्फुसिहिम् लौ ला युअ़ज़्ज़िबुनल्लाहु बिमा नक़ूलु, हस्बुहुम् जहन्नमु यस्लौनहा फ़-बिअ्सल्-मसीर
    क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनको काना-फूसी करने से मना किया गया। तो जिस काम से उनको मना किया गया था उसी को फिर करते हैं। और (आनंद तो ये है कि) गुनाह और ज़्यादती और रसूल की अवज्ञा करते हैं।और जब तुम्हारे पास आते हैं तो जिन शब्दो से अल्लाह ने भी तुम को सलाम नहीं किया। उन शब्दो से सलाम करते हैं और अपने जी में कहते हैं कि (अगर ये वाक़ई पैग़म्बर हैं तो) जो कुछ हम कहते हैं अल्लाह हमें उसकी सज़ा क्यों नहीं देता। (ऐ रसूल!) उनको नरक ही (की सज़ा) काफ़ी है जिसमें ये प्रवेश करेंगे तो वह (क्या) बुरी जगह है।(मुनाफ़िक़ और यहूदी जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में आते तो “अस्सलामो अलैकुम” (अनुवादः आप पर सलाम और शान्ति हो) की जगह “अस्सामो अलैकुम” (अनुवादः आप पर मौत आये।) कहते थे। और अपने मन में यह सोचते थे कि यदि आप अल्लाह के सच्चे रसूल होते तो हमारे इस दुराचार के कारण हम पर यातना आ जाती। और जब कोई यातना नहीं आई तो आप अल्लाह के रसूल नहीं हो सकते। ह़दीस में है कि यहूदी तुम को सलाम करें तो वह “अस्सामो अलैका” कहते हैं, तो तुम “व अलैका” कहो। अर्थात और तुम पर भी। :सह़ीह़ बुख़ारीः 6257, सह़ीह़ मुस्लिमः 2164)
  9. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा तनाजैतुम् फ़ला त-तनाजौ बिल्इस्मि वल्अुद्वानि व मअ्सि यतिर्-रसूलि व तनाजौ बिल्-बिर्रि वत्तक़्वा, वत्तक़ुल्लाहल्लज़ी इलैहि तुह्शरून 
    ऐ ईमानदारों! जब तुम आपस में काना-फूसी करो तो पाप तथा अत्याचार और रसूल की अवज्ञा की काना-फूसी न करो बल्कि पुण्य तथा सदाचार की काना-फूसी करो। और अल्लाह से डरते रहो जिसके सामने (एक दिन) एकत्र किए जाओगे।
  10. इन्नमन्- नज्वा मिनश्- शैतानि लियह्जुनल्लज़ी-न आमनू व लै-स बिज़ार्रिहिम् शैअन् इल्ला बि-इज़्निल्लाहि, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल्-मुअ्मिनून
    काना-फूसी तो बस एक शैतानी काम है (और इसलिए करते हैं) ताकि ईमानदारों को उससे ग़म पहुँचे। हालाँकि अल्लाह की तरफ़ से आज़ादी दिए बग़ैर काना-फूसी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती। और ईमान वालो को तो अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए। (ह़दीस में है कि जब तुम तीन एक साथ रहो तो दो आपस में काना फूसी न करें। क्योंकि इस से तीसरे को दुःख होता है। सह़ीह़ बुख़ारीः 6290)
  11. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा क़ी-ल लकुम् तफ़स्सहू फ़िल्-मजालिसि फ़फ़्सहू यफ़सहिल्लाहु लकुम् व इज़ा क़ीलन्शुज़ू फ़न्शुज़ू यर्फअिल्लाहुल्लज़ी-न आमनू मिन्कुम् वल्लज़ी-न ऊतुल्-अिल्- म द रजातिन्, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीर
    हे ईमान वालो! जब तुमसे कहा जाये कि विस्तार कर दो अपनी सभाओं में, तो विस्तार कर दो, विस्तार कर देगा अल्लाह तुम्हारे लिए भावार्थ यह है कि कोई आये तो उसे भी खिसक कर और आपस में सुकड़ कर जगह दो। तथा और जब तुमसे कहा जाए कि उठ खड़े हो तो उठ खड़े हुआ करो। जो लोग तुमसे ईमानदार हैं और जिनको ज्ञान प्रदान किया गया है। अल्लाह उनके दर्जे बुलन्द करेगा। और अल्लाह तुम्हारे सब कामों से अवगत है।
  12. या अय्युहल्लज़ी – न आमनू इज़ा नाजैतुमुर्रसू-ल फ़-क़द्दिमू बै-न यदै नज्वाकुम् स-द-क़तन्, ज़ालि – क ख़ैरुल – लकुम् व अत्हरु, फ़-इल्लम् तजिदू फ़-इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुर्-रहीम
    ऐ ईमानदारों! जब पैग़म्बर से कोई बात कान में कहनी चाहो तो कुछ ख़ैरात अपनी सरगोशी से पहले दे दिया करो। यही तुम्हारे वास्ते बेहतर और पाकीज़ा बात है। पस अगर तुमको इसका मुक़दूर न हो तो बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है। (प्रत्येक मुसलमान नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से एकांत में बात करना चाहता था। जिस से आप को परेशानी होती थी। इस लिये यह आदेश दिया गया।)
  13. अ-अश्फ़क़्तुम् अन् तुकद्दिमू बै-न यदै नज्वाकुम् स-द- क़ातिन्, फ़-इज़् लम् तफ़्अलू व ताबल्लाहु अ़लैकुम् फ़- अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त व अती अुल्ला-ह व रसूलहू, वल्लाहु ख़बीरुम् – बिमा तअ्मलून
    क्या तुम (इस आदेश से) डर गये कि एकान्त में बात करने से पहले कुछ दान कर दो? तो जब तुम लोग (इतना सा काम) न कर सके और अल्लाह ने तुम्हें माफ़ कर दिया तो पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात देते रहो। और अल्लाह उसके रसूल की आज्ञा पालन करो। और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे सूचित है।
  14. अमल् त र इलल्लज़ी-न तवल्लौ क़ौमन् ग़ज़ि बल्लाहु अ़लैहिम्, मा हुम्-मिन्कुम् व ला मिन्हुम् व य ह्लिफ़ू-न अ़लल्-कज़िबि व हुम् य अ्लमून 
    क्या तुमने उन लोगों की हालत पर ग़ौर नहीं किया जो उन लोगों से दोस्ती करते हैं जिन पर अल्लाह का प्रकोप हुआ है। तो अब वह न तुम मे हैं और न उनमें ये लोग जानबूझ कर झूठी बातो पर क़समें खाते हैं और वह जानते हैं।
  15. अ-अ़द्दल्लाहु लहुम् अ़ज़ाबन् शदीदन्, इन्नहुम् सा-अ मा कानू यअ्मलून
    अल्लाह ने उनके लिए कड़ी यातना तैयार कर रखा है। इसमें शक नहीं कि ये लोग जो कुछ करते हैं बहुत ही बुरा है।
  16. इत्त-ख़ज़ू ऐमा-नहुम् जुन्नतन् फ़-सद्दू अ़न् सबीलिल्लाहि फ़-लहुम् अ़ज़ाबुम्-मुहीन
    उन्होंने अपनी क़समों को ढाल बना रखा है। और (लोगों को) अल्लाह की राह से रोक दिया तो उनके लिए रूसवा करने वाला यातना है।
  17. लन् तुग़्नि-य अ़न्हुम् अम्वालुहुम् व ला औलादुहुम् मिनल्लाहि शैअन्, उलाइ-क अस्हाबुन्- नारि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    अल्लाह सामने हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएँगे और न उनकी औलाद ही काम आएगी। यही लोग नरकवासी हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे।
  18. यौ-म यब्-अ़सुहुमुल्लाहु जमीअ़न् फ़-यह्लिफ़ू-न लहू कमा यह्लिफ़ू-न लकुम् व यह्सबू-न अन्नहुम् अ़ला शैइन्, अला इन्नहुम् हुमुल् – काज़िबून
    जिस दिन अल्लाह उन सबको दोबारा उठा खड़ा करेगा तो ये लोग जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं। उसी तरह उसके सामने भी क़समें खाएँगे। और ख़्याल करते हैं कि वह राहे सवाब पर हैं। सावधान रहो, ये लोग यक़ीनन झूठे हैं।
  19. इस्तह् – व -ज़ अ़लैहिमुश्शैतानु फ़-अन्साहुम् ज़िक्रल्लाहि, उलाइ क हिज़्बुश् – शैतानि, अला इन्-न हिज़्बश्शैतानि हुमुल् – ख़ासिरून
    शैतान ने इन पर क़ाबू पा लिया है। और अल्लाह की याद उनसे भुला दी है। ये लोग शैतान के गिरोह है। सुन रखो कि शैतान का गिरोह घाटा उठाने वाला है।
  20. इन्नल्लज़ी-न युहाद्दूनल्ला ह व रसूलहू उलाइ क फ़िल्-अज़ल्लीन
    जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं। वह सब अपमानितों में से हैं।
  21. क – तबल्लाहु ल-अग़्लिबन्-न अ-न व रसुली, इन्नल्ला-ह क़विय्युन् अ़ज़ीज़
    अल्लाह ने लिख दिया है कि मैं और मेरे पैग़म्बर ज़रूर विजयी रहेंगे। बेशक अल्लाह अति शक्तिशाली, प्रभावशाली है।
  22. ला तजिदु क़ौमंय् – युअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल् – आख़िरि युवाद्-दू-न मन् हाद्दल्ला-ह व रसूलहू व लौ कानू आबा-अहुम् औ अब्ना-अहुम् औ इख़्वा-नहुम् औ अ़शी-र-तहुम्, उलाइ-क क-त-ब फ़ी क़ुलूबिहिमुल्-ईमा-न व अय्य-दहुम् बिरूहिम्-मिन्हु, व युद्-ख़िलुहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा, रज़ियल्लाहु अ़न्हुम् व रज़ू अ़न्हु, उलाइ – क हिज़्बुल्लाहि, अला इन्-न हिज़्बल्लाहि हुमुल्-मुफ़्लिहून
    जो लोग अल्लाह और प्रलय पर ईमान रखते हैं तुम उनको अल्लाह और उसके रसूल के दुश्मनों से दोस्ती करते हुए न देखोगे। यद्यपि वह उनके बाप या बेटे या भाई या ख़ानदान ही के लोग (क्यों न हों) यही वह लोग हैं जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान को साबित कर दिया है। और ख़ास अपने नूर से उनकी समर्थन किया है और उनको (स्वर्ग में) उन (हरे भरे) बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरे जारी है। (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे। अल्लाह उनसे प्रसन्न और वह अल्लाह से ख़ुश। यही अल्लाह का समूह है। सुन रखो कि अल्लाह के समूह के लोग दिली मुरादें पाएँगे।

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