22 सूरह अल हज हिंदी में पेज 2

सूरह अल हज हिंदी में | Surat Al-Hajj in Hindi

  1. व लहुम् मक़ामिअु मिन् हदीद
    और उनके (मारने के) लिए लोहे के गुर्ज़ होंगे।
  2. कुल्लमा अरादू अंय्यख़रूजू मिन्हा मिन् ग़म्मिन् उईदू फ़ीहा, व जूकू अ़ज़ाबल – हरीक़*
    कि जब सदमें के मारे चाहेंगे कि दोज़ख़ से निकल भागें तो (ग़ुर्ज़ मार के) फिर उसके अन्दर ढकेल दिए जाएँगे और (उनसे कहा जाएगा कि) जलाने वाले अज़ाब के मज़े चखो।
  3. इन्नल्ला – ह युद्खिलुल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस् – सालिहाति जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् – अन्हारू युहल्लौ-न फ़ीहा मिन् असावि-र मिन् ज़ – हबिंव् व लुअ्लुअन्, व लिबासुहुम् फ़ीहा हरीर
    जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम भी किए उनको अल्लाह बेहश्त के ऐसे हरे-भरे बाग़ों में दाखि़ल फरमाएगा जिनके नीचे नहरे जारी होगी उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती (के हार) से सँवारा जाएगा और उनका लिबास वहाँ रेशमी होगा।
  4. व हुदू इलत्तय्यिबि मिनल् – कौलि व हुदू इला सिरातिल् – हमीद
    और (ये इस वजह से कि दुनिया में) उन्हें अच्छी बात (कलमा ए तौहीद) की हिदायत की गई और उन्हें सज़ावार हम्द (अल्लाह) का रास्ता दिखाया गया।
  5. इन्नल्लज़ी -न क-फ़रू व यसुद्दू -न अ़न् सबीलिल्लाहि वल्मस्जिदिल् हरामिल्लज़ी जअ़ल्नाहु लिन्नासि सवा-अ-निल्-आ़किफु फ़ीहि वल्बादि, व मंय्युरिद् फ़ीहि बिअल्लाहइल्हादिम्-बिजुल्मिन् नुज़िक़्हु मिन् अ़ज़ाबिन् अलीम*
    बेशक जो लोग काफिर हो बैठे और अल्लाह की राह से और मस्जिदें मोहतरम (ख़ाना ए काबा) से जिसे हमने सब लोगों के लिए (मईद) बनाया है (और) इसमें शहरी और बैरूनी सबका हक़ बराबर है (लोगों को) रोकते हैं (उनको) और जो शख़्स इसमें शरारत से गुमराही करे उसको हम दर्दनाक अज़ाब का मज़ा चखा देंगे।
  6. व इज् बव्वअ्ना लिइब्राही-म मकानल् बैति अल्ला तुश्रिक् बी शैअंव् – व तह्हिर बैति -य लित्ताइफ़ी – न वल्काइमी -न वर्रूक्कअिस् – सुजूद
    और (ऐ रसूल! वह वक़्त याद करो) जब हमने इबराहीम के ज़रिये से इबराहीम के वास्ते ख़ानए काबा की जगह ज़ाहिर कर दी (और उनसे कहा कि) मेरा किसी चीज़ को शरीक न बनाना और मेरे घर केा तवाफ़ और क़याम और रूकू सुजूद करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखना।
  7. व अज्ज़िन् फ़िन्नासि बिल्हज्जि यअ्तू -क रिजालंव् -व अ़ला कुल्लि ज़ामिरिंय्यअ्ती – न मिन् कुल्लि फ़ज्जिन अ़मीक़
    और लोगों को हज की ख़बर कर दो कि लोग तुम्हारे पास (ज़ूक दर ज़ूक) ज़्यादा और हर तरह की दुबली (सवारियों पर जो राह दूर दराज़ तय करके आयी होगी चढ़-चढ़ के) आ पहुँचेगें।
  8. लि – यश्हदू मनाफ़ि-अ़ लहुम् व यज़्कुरूस्मल्लाहि फ़ी अय्यामिम् मअ्लूमातिन् अला मा र-ज़-कहुम् मिम् – बहीमतिल-अन्आ़मि फ़कुलू मिन्हा व अत्अिमुल् – बाइसल् – फकीर
    ताकि अपने (दुनिया व आखे़रत के) फायदो पर फायज़ हों और अल्लाह ने जो जानवर चारपाए उन्हें अता फ़रमाए उनपर (जि़बाह के वक़्त) चन्द मोअययन दिनों में अल्लाह का नाम लें तो तुम लोग कु़रबानी के गोश्त खु़द भी खाओ और भूखे मोहताज केा भी खिलाओ।
  9. सुम्मल यक़्जू त-फ़ सहुम् वल्यूफू नुजूरहुम् वल्यत्तव्वफू बिल्बैतिल-अ़तीक
    फिर लोगों को चाहिए कि अपनी-अपनी (बदन की) कशाफ्त दूर करें और अपनी नज़रें पूरी करें और क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा का तवाफ़ करें यही हुक्म है।
  10. ज़ालि- क व मंय्युअ़ज्ज़िम् हुरूमातिल्लाहि फहु व ख़ैरुल्लहू अिन्-द रब्बिही, व उहिल्लत् लकुमुल्-अन्आ़मु इल्ला-मा युत्ला अलैकुम् फ़ज तनिबुर्रिज् स मिनल्-औसानि वज्तनिबू क़ौलज़्जूर
    और इसके अलावा जो शख़्स अल्लाह की हुरमत वाली चीज़ों की ताज़ीम करेगा तो ये उसके पवरदिगार के यहाँ उसके हक़ में बेहतर है और उन जानवरों के अलावा जो तुमसे बयान किए जाँएगे कुल चारपाए तुम्हारे वास्ते हलाल किए गए तो तुम नापाक बुतों से बचे रहो और लग़ो बातें गाने वग़ैरह से बचे रहो।
  11. हु – नफ़ा – अ लिल्लाहि गै-र मुश्रिकी – न बिही, व मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ़-कअन्नमा ख़र्-र मिनस्समा इ फ़ – तख़्तफूहुत्तैरू औ तह़्वी बिहिर्रीहु फ़ी मकानिन् सहीक़
    निरे खुरे अल्लाह के होकर (रहो) उसका किसी को शरीक न बनाओ और जिस शख़्स ने (किसी को) अल्लाह का शरीक बनाया तो गोया कि वह आसमान से गिर पड़ा फिर उसको (या तो दरम्यिान ही से) कोई (मुरदा ख़्ववार) चिडि़या उचक ले गई या उसे हवा के झोंके ने बहुत दूर जा फेंका।
  12. ज़ालि-क व मंय्युअज्ज़िम् शआ-इरल्लाहि फ़ -इन्नहा मिन् तक़्वल – कुलूब
    ये (याद रखो) और जिस शख़्स ने अल्लाह की निशानियों की ताज़ीम की तो कुछ शक नहीं कि ये भी दिलों की परहेज़गारी से हासिल होती है।
  13. लकुम् फ़ीहा मनाफ़िअु इला अ – जलिम् मुसम्मन् सुम् – म महिल्लुहा इलल्-बैतिल-अ़तीक़*
    और इन चार पायों में एक मईन मुद्दत तक तुम्हार लिये बहुत से फायदें हैं फिर उनके जि़बाह होने की जगह क़दीम (इबादत) ख़ाना ए काबा है।
  14. व लिकुल्लि उम्मतिन् जअ्ल्ना मन् – सकल् लि – यज़्कुरूस्मल्लाहि अ़ला मा र-ज़ क़हुम् मिम् – बहीमतिल् – अन्आमि फ़- इलाहुकुम् इलाहुंव्वाहिदुन् फ़ – लहू अस्लिमु, व बश्शिरिल्- मुख्बितीन
    और हमने तो हर उम्मत के वास्ते क़ुरबानी का तरीक़ा मुक़र्रर कर दिया है ताकि जो मवेशी चारपाए अल्लाह ने उन्हें अता किए हैं उन पर (जि़बाह के वक़्त) अल्लाह का नाम ले ग़रज़ तुम लोगों का माबूद (वही) यकता अल्लाह है तो उसी के फरमाबरदार बन जाओ।
  15. अल्लज़ी – न इज़ा जुकिरल्लाहु वजिलत् कुलूबुहुम् वस्साबिरी – न अ़ला मा असा – बहुम् वल्मुक़ीमिस्सलाति व मिम्मा रज़क़्नाहुम् युन्फ़िकून
    और (ऐ रसूल! हमारे) गिड़गिड़ाने वाले बन्दों को (बेहश्त की) खु़शख़बरी दे दो ये वो हैं कि जब (उनके सामने) अल्लाह का नाम लिया जाता है तो उनके दिल सहम जाते हैं और जब उनपर कोई मुसीबत आ पड़े तो सब्र करते हैं और नमाज़ पाबन्दी से अदा करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दे रखा है उसमें से (राहे अल्लाह में) ख़र्च करते हैं।
  16. वल्बुद् – न जअ़ल्नाहा लकुम् मिन् शआ़ – इरिल्लाहि लकुम् फ़ीहा ख़ैरून् फ़ज़्कुरूस्मल्लाहि अ़लैहा सवाफ् -फ़ फ़ -इज़ा व -जबत् जुनूबुहा फ़कुलू मिन्हा व अत्अिमुल् – क़ानि – अ़ वल् – मुअतर्र, कज़ालि- क सख़्ख़रनाहा लकुम् लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
    और कु़रबानी (मोटे गदबदे) ऊँट भी हमने तुम्हारे वास्ते अल्लाह की निशानियों में से क़रार दिया है इसमें तुम्हारी बहुत सी भलाईयाँ हैं फिर उनका तांते का तांता बाँध कर हज करो और उस वक़्त उन पर अल्लाह का नाम लो फिर जब उनके दस्त व बाजू कटकर गिर पड़े तो उन्हीं से तुम खु़द भी खाओ और क़नाअत पेशा फ़क़ीरों और माँगने वाले मोहताजों (दोनों) को भी खिलाओ हमने यूँ इन जानवरों को तुम्हारा ताबेए कर दिया ताकि तुम शुक्रगुज़ार बनो।
  17. लंय्यनालल्ला – ह लुहूमुहा व ला दिमा-उहा व ला किंय्यनालुहुत् – तक़्वा मिन्कुम्, कज़ालि क सख़्ख़-रहा लकुम् लितुकब्बिरूल्ला -ह अ़ला मा हदाकुम्, व बश्शिरिल् – मुह्सिनीन
    अल्लाह तक न तो हरगिज़ उनके गोश्त ही पहुँचेगे और न खू़न मगर (हाँ) उस तक तुम्हारी परहेज़गारी अलबत्ता पहुँचेगी अल्लाह ने जानवरों को (इसलिए) यूँ तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है ताकि जिस तरह अल्लाह ने तुम्हें बनाया है उसी तरह उसकी बड़ाई करो।
  18. इन्नल्ला – ह युदाफिअु अ़निल्लज़ी – न आमनू, इन्नल्ला -ह ला युहिब्बु कुल्-ल ख़व्वानिन् कफूर *
    और (ऐ रसूल!) नेकी करने वालों को (हमेशा की) ख़ु़शख़बरी दे दो इसमें शक नहीं कि अल्लाह ईमानवालों से कुफ़्फ़ार को दूर दफा करता रहता है अल्लाह किसी बद दयानत नाशुक्रे को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता।
  19. उज़ि-न लिल्लज़ी-न युक़ातलू-न बि-अन्नहुम् जुलिमू, व इन्नल्ला – ह अला नसरिहिम् ल – कदीर
    जिन (मुसलमानों) से (कुफ़्फ़ार) लड़ते थे चूँकि वह (बहुत) सताए गए उस वजह से उन्हें भी (जिहाद) की इजाज़त दे दी गई और अल्लाह तो उन लोगों की मदद पर यक़ीनन क़ादिर (व तवाना) है।
  20. अल्लज़ी-न उख़रिजू मिन् दियारिहिम् बिग़ैरि हक़्क़िन् इल्ला अंय्यकूलू रब्बुनल्लाहु, व लौ ला दफ़अुल्लाहिन्ना -स बअ्-ज़हुम् बिबअ्ज़िल्-लहुद्दिमत् सवामिअु व बि -यअुंव-व स-लवातुंव्- व मसाजिदु युज़्करू फ़ीहस्मुल्लाहि कसीरन्, व ल-यन्सुरन्नल्लाहु मंय्यन्सुरूहू, इन्नल्ला-ह ल-क़विय्युन अज़ीज़
    ये वह (मज़लूम हैं जो बेचारे) सिर्फ इतनी बात कहने पर कि हमारा परवरदिगार अल्लाह है (नाहक़) अपने-अपने घरों से निकाल दिए गये और अगर अल्लाह लोगों को एक दूसरे से दूर दफ़ा न करता रहता तो गिरजे और यहूदियों के इबादत ख़ाने और मजूस के इबादतख़ाने और मस्जिद जिनमें कसरत से अल्लाह का नाम लिया जाता है कब के कब ढहा दिए गए होते और जो शख़्स अल्लाह की मदद करेगा अल्लाह भी अलबत्ता उसकी मदद ज़रूर करेगा बेशक अल्लाह ज़रूर ज़बरदस्त ग़ालिब है।

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