03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 6

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

  1. व मा ज-अ़-लहुल्लाहु इल्ला बुश्रा लकुम् व लि-तत्मइन् -न क़ुलूबुकुम् बिही, व मन्नस्रु इल्ला मिन् अिन्दिल्लाहिल् अ़ज़ीज़िल् हकीम
    और ताकि इससे तुम्हारे दिल को संतोष हो जाये और (ये तो ज़ाहिर है कि) मदद जब होती है तो अल्लाह ही की तरफ़ से जो सब पर ग़ालिब (और) हिकमत वाला है।
  2. लि-यक़्त-अ़ त रफ़म् मिनल्लज़ी-न क-फ़रू औ यक्बि-तहुम् फ़-यन्क़लिबू ख़ा-इबीन
    (और यह मदद की भी तो) इसलिए कि काफ़िरों के एक गिरोह को कम कर दे या ऐसा चैपट कर दे कि (अपना सा) मुँह लेकर नामुराद अपने घर वापस चले जायें।
  3. लै-स ल-क मिनल् अम्रि शैउन् औ यतू-ब अ़लैहिम् औ युअ़ज़्ज़ि-बहुम् फ़-इन्नहुम् ज़ालिमून
    (ऐ रसूल!) तुम्हारा तो इसमें कुछ बस, नहीं चाहे अल्लाह उनकी तौबा कु़बूल करे या उनको सज़ा दे क्योंकि वह ज़ालिम तो ज़रूर हैं।
  4. व लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, यग़्फ़िरु लिमंय्यशा-उ व युअ़ज़्ज़िबु मंय्यशा-उ, वल्लाहु ग़फ़ूरुर्रहीम
    और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब अल्लाह ही का है जिसको चाहे बख़्शे और जिसको चाहे सज़ा करे और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  5. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तअ्कुलुर्रिबा अज़्आ़फ़म् मुज़ा-अ़-फ़तन्, वत्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तुफ़्लिहून
    ऐ ईमानदारों! सूद कई-कई गुणा करके खाते न चले जाओ और अल्लाह से डरो कि तुम छुटकारा पाओ।
  6. वत्तक़ुन्-नारल्लती उअिद्दत् लिल्-काफ़िरीन
    और जहन्नुम की उस आग से डरो जो काफ़िरों के लिए तैयार की गयी है।
  7. व अतीअुल्ला-ह वर्रसू-ल लअ़ल्लकुम् तुर्हमून
    और अल्लाह और रसूल की फ़रमाबरदारी करो ताकि तुम पर रहम किया जाए।
  8. व सारिअू इला मग़्फ़ि-रतिम् मिर्रब्बिकुम् व जन्नतिन् अ़र्जुहस्-समावातु वल्-अर्ज़ु, उअिद्दत् लिल्मुत्तक़ीन
    और अपने परवरदिगार के (सबब) बख़शिश और जन्नत की तरफ़ दौड़ पड़ो जिसकी चौड़ाई सारे आसमान और ज़मीन के बराबर है और जो परहेज़गारों के लिये तैयार की गयी है।
  9. अल्लज़ी-न युन्फ़िक़ू-न फ़िस्सर्रा-इ वज़्ज़र्रा-इ वल्काज़िमीनल्-ग़ै-ज़ वल्आ़फ़ी-न अ़निन्नासि, वल्लाहु युहिब्बुल् मुह्सिनीन
    जो ख़ुशहाली और कठिन वक़्त में भी (अल्लाह की राह पर) ख़र्च करते हैं और गुस्से को रोकते हैं और लोगों के दोष क्षमा कर दिया करते हैं और नेकी करने वालों से अल्लाह प्रेम रखता है।
  10. वल्लज़ी-न इज़ा फ़-अ़लू फ़ाहि-शतन् औ ज़-लमू अन्फ़ु-सहुम् ज़ करुल्ला-ह फ़स्तग़्फ़रू लिज़ुनूबिहिम्, व मंय्यग़्फ़िरुज़्ज़ुनू-ब इल्लल्लाहु, व लम् युसिर्रु अ़ला मा फ़-अ़लू व हुम् यअ्लमून
    और जब कभी वे कोई बड़ा पाप कर जाएँ या आप अपने ऊपर जु़ल्म करते हैं तो अल्लाह को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माफ़ी मांगते हैं और अल्लाह के सिवा गुनाहों का बख़्शने वाला और कौन है और जो (क़ूसूर) वह (नागहानी) कर बैठे तो जानबूझ कर उसपर हठ नहीं करते।
  11. उलाइ-क जज़ाउहुम् मग़्फ़िरतुम् मिर्रब्बिहिम् व जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा, व निअ्-म अज्रूल् आ़मिलीन
    ऐसे ही लोगों का प्रतिफल उनके परवरदिगार की तरफ़ से क्षमा है और वह बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं कि वह उनमे हमेशा रहेंगे और (अच्छे) चलन वालों की (भी) ख़ूब खरी मज़दूरी है।
  12. क़द् ख़लत् मिन् क़ब्लिकुम् सु-ननुन्, फ़सीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़न्ज़ुरू कै-फ़ का-न आ़क़ि-बतुल् मुकज़्ज़िबीन
    तुमसे पहले बहुत से वाक़यात गुज़र चुके हैं बस ज़रा धरती पर चल फिर कर देखो तो कि (अपने अपने वक़्त के पैग़म्बरों को) झुठलाने वालों का अन्जाम क्या हुआ।
  13. हाज़ा बयानुल्-लिन्नासि व हुदंव्-व मौअि-ज़तुल् लिल्मुत्तक़ीन
    ये (जो हमने कहा) आम लोगों के लिए तो सिर्फ़ बयान (वाक़या) है मगर और परहेज़गारों के लिए हिदायत व नसीहत है।
  14. व ला तहिनू व ला तह्ज़नू व अन्तुमुल्-अअ्लौ-न इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    और मुसलमानों! काहिली न करो और (इस) इत्तफ़ाक़ी शिकस्त (ओहद से) कुढ़ो नहीं (क्योंकि) अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो तुम ही सर्वोच्च रहोगे।
  15. इंय्यम्सस्कुम् क़र्हुन् फ़-क़द् मस्सल्क़ौ-म क़र्हुम् मिस्लुहू, व तिल्कल्-अय्यामु नुदाविलुहा बैनन्नासि, व लि-यअ्-लमल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व यत्तख़ि-ज़ मिन्कुम् शु-हदा-अ, वल्लाहु ला युहिब्बुज़्ज़ालिमीन
    अगर (जंगे ओहद में) तुमको ज़ख़्म लगा है तो उसी तरह (बदर में) तुम्हारे फ़रीक़ (कुफ़्फ़ार को) भी ज़ख़्म लग चुका है (उस पर उनकी हिम्मत तो न टूटी) ये युद्ध के दिन हैं, जो हम लोगों के दरमियान बारी बारी उलट फेर किया करते हैं और ये (इत्तफ़ाक़ी शिकस्त इसलिए थी) ताकि अल्लाह सच्चे ईमानदारों को (ज़ाहिरी) मुसलमानों से अलग देख लें और तुममें से कुछ को दरजाए शहादत पर फ़ायज़ करे और अल्लाह (हुक्मे रसूल से) नाफ़रमानी करने वालों को दोस्त नहीं रखता।
  16. व लियु मह्हिसल्लाहुल्लज़ी-न आमनू व यम्ह-क़ल् काफ़िरीन
    और ये (भी मंजूर था) कि सच्चे ईमानदारों को (साबित क़दमी की वजह से) निरा खरा अलग कर ले और नाफ़रमानों (भागने वालों) को मटियामेट कर दे।
  17. अम् हसिब्तुम् अन् तद्ख़ुलुल्-जन्न-त व लम्मा यअ्- लमिल्लाहुल्लज़ी-न जाहदू मिन्कुम् व यअ्-लमस्साबिरीन
    (मुसलमानों!) क्या तुम ये समझते हो कि सब के सब बहिश्त में चले ही जाओगे और क्या अल्लाह ने अभी तक तुममें से उन लोगों को भी नहीं पहचाना जिन्होंने जेहाद किया और न दृढ़तापूर्वक जमे रहने वालों को ही पहचाना।
  18. व ल-क़द् कुन्तुम् तमन्नौनल्मौ-त मिन् क़ब्लि अन् तल्क़ौहु, फ़-क़द् रऐतुमूहु व अन्तुम् तन्ज़ुरून *
    तुम तो मौत के आने से पहले (लड़ाई में) मरने की तमन्ना करते थे बस अब तुमने उसको अपनी आख से देख लिया और तुम अब भी देख रहे हो।
  19. व मा मुहम्मदुन् इल्ला रसूलुन्, क़द् ख़लत् मिन् कब्लिहिर्रुसुलु, अ-फ़-इम्मा-त औ क़ुतिलन्-क़लब्तुम् अ़ला अअ्क़ाबिकुम्, व मंय्यन्क़लिब् अ़ला अ़क़िबैहि फ़-लंय्यज़ुर्रल्ला-ह शैअन्, व स- यज्ज़िल्लाहुश्शाकिरीन
    (फिर लड़ाई से जी क्यों चुराते हो) और मोहम्मद (स०) तो सिर्फ रसूल हैं (अल्लाह नहीं) इनसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर गुज़र चुके हैं फिर क्या अगर मोहम्मद अपनी मौत से मर जाए या मार डाले जाए तो तुम उलटे पाँव (अपने कुफ्र की तरफ़) पलट जाओगे और जो उलटे पाव फिरेगा (भी) तो (समझ लो) हरगिज़ अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगड़ेगा और अनक़रीब अल्लाह का शुक्र करने वालों को अच्छा बदला देगा।
  20. व मा का-न लि-नफ़्सिन् अन् तमू-त इल्ला बि-इज़्निल्लाहि किताबम् मुअज्जलन्, व मंय्युरिद् सवाबद्दुन्या नुअ्तिही मिन्हा, व मंय्युरिद् सवाबल्-आख़ि-रति नुअ्तिही मिन्हा, व स-नज्ज़िश्शाकिरीन
    और बगै़र हुक्मे अल्लाह के तो कोई शख़्स मर ही नहीं सकता वक़्ते मुअय्यन तक हर एक की मौत लिखी हुयी है और जो शख़्स (अपने किए का) बदला दुनिया में चाहे तो हम उसको इसमें से दे देते हैं और जो शख़्स आख़ेरत का बदला चाहे उसे उसी में से देंगे और (नेअमत ईमान के) शुक्र करने वालों को बहुत जल्द हम जज़ाए खै़र देंगे।
  21. व क-अय्यिम् मिन् नबिय्यिन् क़ा-त-ल, म-अ़हू रिब्बिय्यू-न कसीरुन्, फ़मा व हनू लिमा असाबहुम् फ़ी सबीलिल्लाहि व मा ज़अुफ़ू व मस्तकानू, वल्लाहु युहिब्बुस्साबिरीन
    और (मुसलमानों तुम ही नहीं) ऐसे पैग़म्बर बहुत से गुज़र चुके हैं जिनके साथ बहुतेरे अल्लाह वालों ने (राहे अल्लाह में) जेहाद किया और फिर उनको अल्लाह की राह में जो मुसीबत पड़ी है न तो उन्होंने हिम्मत हारी न बोदापन किया (और न दुशमन के सामने) गिड़गिड़ाने लगे और साबित क़दम रहने वालों से अल्लाह उलफ़त रखता है।
  22. व मा का-न क़ौलहुम् इल्ला अन् क़ालू रब्बनग़्फ़िर् लना ज़ुनूबना व इस्राफ़ना फ़ी अम्रिना व सब्बित् अक़्दामना वन्सुर्ना अ़लल्-क़ौमिल् काफ़िरीन
    और लुत्फ़ ये है कि उनका क़ौल इसके सिवा कुछ न था कि दुआए मांगने लगें कि ऐ हमारे पालने वाले हमारे गुनाह और अपने कामों में हमारी ज़्यादतिया माफ़ कर और दुश्मनों के मुक़ाबले में हमको साबित क़दम रख और काफि़रों के गिरोह पर हमको फ़तेह दे।
  23. फ़-आताहुमुल्लाहु सवाबद्दुन्या व हुस्-न सवाबिल्-आख़ि-रति, वल्लाहु युहिब्बुल-मुह़्सिनीन
    तो अल्लाह ने उनको दुनिया में बदला (दिया) और आखि़रत में अच्छा बदला ईनायत फ़रमाया और अल्लाह नेकी करने वालों को दोस्त रखता (ही) है।
  24. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन् तुतीअुल्लज़ी-न क-फ़रू यरुद्रूकुम् अ़ला अअ्क़ाबिकुम् फ़-तन्क़लिबू ख़ासिरीन
    ऐ ईमानदारों! अगर तुम लोगों ने काफि़रों की पैरवी कर ली तो (याद रखो) वह तुमको उलटे पाव (कुफ्रकी तरफ़) फेर कर ले जाऐंगे फिर उलटे तुम ही घाटे मेंआ जाओगे।
  25. बलिल्लाहु मौलाकुम्, व हु-व ख़ैरुन्-नासिरीन
    (तुम किसी की मदद के मोहताज नहीं) बल्कि अल्लाह तुम्हारा सरपरस्त है और वह सब मददगारों से बेहतर है।

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