03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 7

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

  1. सनुल्क़ी फ़ी क़ुलूबिल्लज़ी-न क-फ़रुर्रूअ्-ब बिमा अश्रकू बिल्लाहि मा लम् युनज़्ज़िल् बिही सुल्तानन्, व मअ्वाहुमुन्नारु, व बिअ्-स मस्वज़्ज़ालिमीन
    (तुम घबराओ नहीं) हम अनक़रीब तुम्हारा रोब काफ़िरों के दिलों में जमा देंगे इसलिए कि उन लोगों ने अल्लाह का शरीक बनाया (भी तो) उस चीज़ बुत को जिसे अल्लाह ने किसी किस्म की हुकूमत नहीं दी और (आखिरकार) उनका ठिकाना नरक है और ज़ालिमों का (भी क्या) बुरा ठिकाना है।
  2. व ल-क़द् स-द-क़कुमुल्लाहु वअ्दहू इज़् तहुस्सूनहुम् बि-इज़्निही, हत्ता इज़ा फ़शिल्तुम् व तनाज़अ्तुम् फ़िल्अम्रि व अ़सैतुम् मिम्-बअ्दि मा अराकुम् मा तुहिब्बू-न, मिन्कुम् मंय्युरीदुदुन्या व मिन्कुम् मंय्युरीदुल्-आख़ि-र-त, सुम्-म स-र-फ़कुम् अ़न्हुम् लि-यब्तलि-यकुम्, व ल-क़द् अ़फ़ा अ़न्कुम्, वल्लाहु ज़ू फ़ज़्लिन् अ़लल् मुअ्मिनीन
    बेशक अल्लाह ने (जंगे ओहद में भी) अपना (फतेह का) वायदा सच्चा कर दिखाया था जब तुम उसके हुक्म से (पहले ही हमले में) उन (कुफ़्फ़ार) को खू़ब क़त्ल कर रहे थे। यहाँ तक की तुम्हारे पसन्द की चीज़ (फ़तेह) तुम्हें दिखा दी। इसके बाद भी तुमने (माले ग़नीमत देखकर) बुज़दिलापन किया और हुक्में रसूल (स०) (मोर्चे पर जमे रहने) में झगड़ा किया और रसूल की नाफ़रमानी की। तुममें से कुछ तो तालिबे दुनिया हैं (कि माले ग़नीमत की तरफ़) से झुक पड़े और कुछ तालिबे आखेरत (कि रसूल पर अपनी जान फ़िदा कर दी)। फिर (बुज़दिलेपन ने) तुम्हें उन (कुफ़्फ़ार) की की तरफ से फेर दिया (और तुम भाग खड़े हुए) उससे अल्लाह को तुम्हारा (ईमान अख़लासी) आज़माना मंज़ूर था। और (इसपर भी) अल्लाह ने तुमसे दरगुज़र की और अल्लाह मोमिनीन पर बड़ा फ़ज़ल करने वाला है।
  3. इज़् तुस्अिदू-न व ला तल्वू-न अ़ला अ-हदिंव्-वर्रसूलु यद्अूकुम् फ़ी उख़्राकुम् फ़-असाबकुम् ग़म्मम्-बिग़म्मिल् लिकैला तह्ज़नू अ़ला मा फ़ातकुम् व ला मा असाबकुम, वल्लाहु ख़बीरुम् बिमा तअ्मलून
    (मुसलमानों! तुम) उस वक़्त को याद करके शर्माओ जब तुम (बदहवास) भागे पहाड़ पर चले जाते थे और बावजूद रसूल (स०) तुम्हें तुम्हारे पीछे से पुकार रहे थे, मगर तुम (जान के डर से) किसी को मुड़ के भी न देखते थे। बस (चूंकि) रसूल को तुमने (दुःखी) किया, अल्लाह ने भी तुमको (उस) रंज की सज़ा में (शिकस्त का) रंज दिया ताकि जब कभी तुम्हारी कोई चीज़ हाथ से जाती रहे या कोई मुसीबत पड़े तो तुम रंज न करो। और सब्र करना सीखो और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे ख़बरदार है।
  4. सुम्-म अन्ज़-ल अ़लैकुम् मिम्-बअ्दिल्-ग़म्मि अ-म-नतन् नुआ़संय्यग़्शा ता-इ-फ़तम् मिन्कुम्, व ता-इ-फ़तुन् क़द् अहम्मत्हुम् अन्फ़ुसुहुम् यज़ुन्नू-न बिल्लाहि ग़ैरल्-हक़्क़ि ज़न्नल्-जाहिलिय्यति, यक़ूलू-न हल्-लना मिनल्-अम्रि मिन् शैइन्, क़ुल् इन्नल्-अम्-र कुल्लहू लिल्लाहि, युख़्फ़ू-न फ़ी अन्फ़ुसिहिम् मा ला युब्दू-न ल-क, यक़ूलू-न लौ का-न लना मिनल्-अम्रि शैउम् मा क़ुतिल्ना हाहुना, क़ुल् लौ कुन्तुम् फ़ी बुयूतीकुम् ल-ब-रज़ल्लज़ी-न कुति-ब अ़लैहिमुल्क़त्लु इला मज़ाजिअिहिम्, व लि-यब्तलियल्लाहु मा फ़ी सुदूरिकुम् व लियु-मह्हि-स मा फ़ी क़ुलूबिकुम्, वल्लाहु अ़लीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
    फिर अल्लाह ने इस रंज के बाद तुमपर इत्मिनान की हालत तारी की कि तुममें से एक गिरोह का (जो सच्चे ईमानदार थे) ख़ूब गहरी नींद आ गयी। और एक गिरोह जिनको उस वक्त भी (भागने की शर्म से) जान के लाले पड़े थे अल्लाह के साथ (ख़्वाह मख़्वाह) ज़मानाए जिहालत की ऐसी बदगुमानिया करने लगे। और कहने लगे भला क्या ये फ़तेह कुछ भी हमारे इखि़्तयार में है? (ऐ रसूल!) कह दो कि हर फ़तेह का इखि़्तयार अल्लाह ही को है (ज़बान से तो कहते ही है नहीं) ये अपने दिलों में ऐसी बातें छिपाए हुए हैं जो तुमसे ज़ाहिर नहीं करते (अब सुनो) कहते हैं कि इस फ़तेह में हमारा कुछ इख़्तियार होता तो हम यहाँ मारे न जाते (ऐ रसूल! इनसे) कह दो कि तुम अपने घरों में रहते तो जिन जिन की तकदीर में लड़ के मर जाना लिखा था वह अपने (घरों से) निकल निकल के अपने मरने की जगह ज़रूर आ जाते। और (ये इस वास्ते किया गया) ताकि जो कुछ तुम्हारे दिल में है उसका इम्तिहान कर दे और अल्लाह तो दिलों के राज़ खू़ब जानता है।
  5. इन्नल्लज़ी-न तवल्लौ मिन्कुम् यौमल्-तक़ल् जम्आ़नि,
    इन्नमस्तज़ल्लहुमुश्शैतानु बि-बअ्ज़ि मा क-सबू, व ल-क़द् अ़फ़ल्लाहु अ़न्हुम्, इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुन् हलीम
    बेशक जिस दिन (जंगे औहद में) दो जमाअतें आपस में गुथ गयीं, उस दिन जो लोग तुम (मुसलमानों) में से भाग खड़े हुए (उसकी वजह ये थी कि) उनके कुछ कुकर्मों की वजह से शैतान ने बहका के उनके पाँव उखाड़ दिए और (उसी वक़्त तो) अल्लाह ने ज़रूर उनसे दरगुज़र की, बेशक अल्लाह अति क्षमाशील सहनशील है।
  6. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तकूनू कल्लज़ी-न क-फ़रू व क़ालू लि-इख़्वानिहिम् इज़ा ज़-रबू फ़िल्अर्ज़ि औ कानू ग़ुज़्ज़ल्-लौ कानू अिन्दना मा मातू व मा क़ुतिलू, लि-यज्अ़लल्लाहु ज़ालि-क हस्र-तन् फ़ी क़ुलूबिहिम्, वल्लाहु युह्-यी व युमीतु, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीर
    ऐ ईमानदारों! उन लोगों के ऐसे न बनो, जो काफिर हो गए भाई बन्द उनके परदेस में निकले हैं या जेहाद करने गए हैं (और वहाँ) मर (गए) तो उनके बारे में कहने लगे कि वह हमारे पास रहते तो न मरते ओर न मारे जाते (और ये इस वजह से कहते हैं) ताकि अल्लाह उनके दिलों में इसे संताप बना दे और (यू तो) अल्लाह ही जिलाता और मारता है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है।
  7. व ल-इन् क़ुतिल्तुम् फ़ी सबीलिल्लाहि औ मुत्तुम् ल -मग़्फ़ि-रतुम् मिनल्लाहि व रह्-मतुन् ख़ैरुम् मिम्मा यज्मअून
    और अगर तुम अल्लाह की राह में मारे जाओ या (अपनी मौत से) मर जाओ तो बेशक अल्लाह की क्षमा और रहमत इस (माल व दौलत) से जिसको तुम जमा करते हो ज़रूर बेहतर है।
  8. व ल-इम्मु-त्तुम् औ क़ुतिल्तुम् ल-इलल्लाहि तुह्शरून
    और अगर तुम (अपनी मौत से) मरो या मारे जाओ (आखिरकार) अल्लाह ही की तरफ़ (क़ब्रों से) उठाए जाओगे।
  9. फ़बिमा रह्-मतिम् मिनल्लाहि लिन्-त लहुम्, व लौ कुन्-त फ़ज़्ज़न् ग़लीज़ल्क़ल्बि लन्फ़ज़्ज़ू मिन् हौलि-क, फ़अ्फ़ु अ़न्हुम् वस्तग़्फ़िर् लहुम् व शाविर्हुम् फ़िल्-अम्रि, फ़-इज़ा अ़ज़म्-त फ़-तवक्कल् अ़लल्लाहि, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल मु-तवक्किलीन
    (तो ऐ रसूल! ये भी) अल्लाह की एक मेहरबानी है कि तुम (सा) नरमदिल (सरदार) उनको मिला और तुम अगर बदमिज़ाज और सख़्त दिल होते तब तो ये लोग (अल्लाह जाने कब के) तुम्हारे गिर्द से तितर बितर हो गए होते। बस (अब भी) तुम उनसे दरगुज़र करो और उनके लिए मग़फ़िरत की दुआ मांगों और उनसे काम काज में मशवरा कर लिया करो (मगर) इस पर भी जब किसी काम को ठान लो तो अल्लाह ही पर भरोसा रखो (क्योंकि जो लोग अल्लाह पर भरोसा रखते हैं अल्लाह उनको ज़रूर दोस्त रखता है।
  10. इंय्यन्सुर्कुमुल्लाहु फ़ला ग़ालि-ब लकुम्, व इंय्यख़्ज़ुल्कुम् फ़-मन् ज़ल्लज़ी यन्सुरुकुम् मिम्- बअ्दिही, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
    (मुसलमानों! याद रखो) अगर अल्लाह ने तुम्हारी मदद की तो फिर कोई तुम पर ग़ालिब नहीं आ सकता और अगर अल्लाह तुमको छोड़ दे तो फिर कौन ऐसा है जो उसके बाद तुम्हारी मदद को खड़ा हो और मोमिनीन को चाहिये कि अल्लाह ही पर भरोसा रखें।
  11. व मा का-न लि-नबिय्यिन् अंय्यग़ुल्-ल, व मंय्यग़्लुल् यअ्ति बिमा ग़ल्-ल यौमल्-क़ियामति, सुम्-म तुवफ़्फ़ा कुल्लु नफ़्सिम् मा क-सबत् व हुम् ला युज़्लमून
    और (तुम्हारा गुमान बिल्कुल ग़लत है) किसी नबी की (हरगिज़) ये शान नहीं कि ख़्यानत करे और ख़्यानत करेगा तो जो चीज़ ख़्यानत की है क़यामत के दिन वही चीज़ (बिलकुल वैसा ही) अल्लाह के सामने लाना होगा फिर हर शख़्स अपने किए का पूरा पूरा बदला पाएगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जायेगा।
  12. अ-फ़ मनित्त-ब-अ़ रिज़्वानल्लाहि क-मम्बा-अ बि-स-ख़तिम् मिनल्लाहि व मअ्वाहु जहन्नमु, व बिअ्सल्-मसीर
    भला जो शख़्स अल्लाह की ख़ुशनूदी का पाबन्द हो क्या वह उस शख़्स के बराबर हो सकता है जो अल्लाह के गज़ब में गिरफ़्तार हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है।
  13. हुम् द-रजातुन् अिन्दल्लाहि, वल्लाहु बसीरुम्-बिमा यअ्मलून
    वह लोग अल्लाह के यहाँ मुख़्तलिफ़ दरजों के हैं और जो कुछ वह करते हैं अल्लाह देख रहा है।
  14. ल-क़द् मन्नल्लाहु अ़लल् मुअ्मिनी-न इज़् ब-अ़-स फ़ीहिम् रसूलम्-मिन् अन्फ़ुसिहिम् यत्लू अ़लैहिम् आयातिही व युज़क्कीहिम् व युअ़ल्लिमुहुमुल्-किता-ब वल्-हिक्म-त, व इन् कानू मिन् क़ब्लु लफ़ी ज़लालिम् मुबीन
    अल्लाह ने तो ईमानदारों पर बड़ा एहसान किया कि उनके वास्ते उन्हीं की क़ौम का एक रसूल भेजा। जो उन्हें अल्लाह की आयतें पढ़ पढ़ के सुनाता है और उनकी तबीयत को पाकीज़ा करता है और उन्हें किताबे (अल्लाह) और अक़्ल की बातें सिखाता है, अगरचे वह पहले खुली हुयी गुमराही में पडे़ थे।
  15. अ-व-लम्मा असाबत्कुम् मुसीबतुन् क़द् असब्तुम् मिस्लैहा, क़ुल्तुम् अन्ना हाज़ा, क़ुल् हु-व मिन् अिन्दि अन्फ़ुसिकुम्, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
    मुसलमानों! क्या जब तुम पर (जंगे ओहद) में वह मुसीबत पड़ी जिसकी दूनी मुसीबत तुम (कुफ़्फ़ार पर) डाल चुके थे तो (घबरा के) कहने लगे ये (आफ़त) क़हाँ से आ गयी (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ये तो खुद तुम्हारी ही तरफ़ से है (न रसूल की मुख़ालेफ़त करते न सज़ा होती) बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  16. व मा असाबकुम् यौमल्-तक़ल् जम्आ़नि फ़बि-इज़्निल्लाहि व लि-यअ्-लमल् मुअ्मिनीन
    और जिस दिन दो जमाअतें आपस में गुंथ गयीं उस दिन तुम पर जो मुसीबत पड़ी वह तुम्हारी शरारत की वजह से (अल्लाह की इजाजत की वजह से आयी) और ताकि अल्लाह सच्चे ईमान वालों को देख ले।
  17. व लि-यअ्-लमल्लज़ी-न नाफ़क़ू, व क़ी-ल लहुम् तआ़लौ क़ातिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अविद्फ़अू, क़ालू लौ नअ्लमु क़ितालल्- लत्त-बअ्नाकुम, हुम् लिल्कुफ़्रि यौमइज़िन् अक़्रबु मिन्हुम् लिल्-ईमानि, यक़ूलू-न बिअफ़्वाहिहिम् मा लै-स फ़ी क़ुलूबिहिम्, वल्लाहु अअ्लमु बिमा यक्तुमून
    और मुनाफ़िक़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफ़िक़ों से कहा गया कि आओ अल्लाह की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुश्मन को) हटा दो। तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते। ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ्र के ज़्यादा क़रीब थे। अपने मुँह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं अल्लाह उसे ख़ूब जानता है।
  18. अल्लज़ी-न क़ालू लि-इख़्वानिहिम् व क़-अ़दू लौ अताअूना मा क़ुतिलू, क़ुल् फ़द्रऊ अ़न् अन्फ़ुसिकुमुल्मौ-त इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    (ये वही लोग हैं) जो (आप चैन से घरों में बैठे रहते है और अपने शहीद) भाईयों के बारे में कहने लगे काश हमारी पैरवी करते तो न मारे जाते (ऐ रसूल!) उनसे कहो (अच्छा) अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा अपनी जान से मौत को टाल दो।
  19. व ला तह्सबन्नल्लज़ी-न क़ुतिलू फ़ी सबीलिल्लाहि अम्वातन्, बल् अह्-याउन् अिन्-द रब्बिहिम् युर्ज़क़ून
    और जो लोग अल्लाह की राह में शहीद किए गए उन्हें हरगिज़ मुर्दा न समझना बल्कि वह लोग जीते जागते मौजूद हैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से वह (तरह तरह की) रोज़ी पाते हैं।
  20. फ़रिही न बिमा आताहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही, व यस्तब्शिरू-न बिल्लज़ी-न लम् यल्हक़ू बिहिम् मिन् ख़ाल्फिहिम्, अल्ला ख़ौफ़ुन् अ़लैहिम् व ला हुम् यह्ज़नून
    और अल्लाह ने जो फ़ज़ल व करम उन पर किया है उसकी (ख़ुशी) से फूले नहीं समाते और जो लोग उनसे पीछे रह गए और उनमें आकर शामिल नहीं हुए उनकी निस्बत ये (ख़्याल करके) ख़ुशियां मनाते हैं कि (ये भी शहीद हों तो) उनपर न किसी किस्म का ख़ौफ़ होगा और न आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे।
  21. यस्तब्शिरू-न बिनिअ्मतिम् मिनल्लाहि व फ़ज़्लिंव्-व अन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल् मुअ्मिनीन
    अल्लाह नेअमत और उसके फ़ज़ल (व करम) और इस बात की ख़ुशख़बरी पाकर कि अल्लाह मोमिनीन के सवाब को बरबाद नहीं करता।
  22. अल्लज़ीनस्तजाबू लिल्लाहि वर्रसूलि मिम्-बअ्दि मा असाबहुमुल्क़र्हु, लिल्लज़ी-न अह्सनू मिन्हुम् वत्तक़ौ अज्रुन् अ़ज़ीम
    निहाल हो रहे हैं (जंगे ओहद में) जिन लोगों ने जख़्म खाने के बाद भी अल्लाह और रसूल का कहना माना उनमें से जिन लोगों ने नेकी और परहेज़गारी की (सब के लिये नहीं सिर्फ) उनके लिये बड़ा सवाब है।
  23. अल्लज़ी-न क़ा-ल लहुमुन्नासु इन्नन्ना-स क़द् ज-मअू लकुम् फ़ख़्शौहुम् फ़-ज़ादहुम् ईमानंव्-व क़ालू हस्बुनल्लाहु व निअ्मल् वकील
    यह वह हैं कि जब उनसे लोगों ने आकर कहना शुरू किया कि (दुशमन) लोगों ने तुम्हारे (मुक़ाबले के) वास्ते (बड़ा लश्कर) जमा किया है बस उनसे डरते (तो बजाए ख़ौफ़ के) उनका ईमान और ज़्यादा हो गया और कहने लगे (होगा भी) अल्लाह हमारे वास्ते काफ़ी है।
  24. फ़न्क़-लबू बिनिअ्मतिम्-मिनल्लाहि व फ़ज़्लिल्-लम् यम्सस्हुम् सूउंव्-वत्त-बअू रिज़्वानल्लाहि, वल्लाहु ज़ू फ़ज़्लिन् अ़ज़ीम
    और वह क्या अच्छा कारसाज़ है फिर (या तो हिम्मत करके गए मगर जब लड़ाई न हुयी तो) ये लोग अल्लाह की नेअमत और फ़ज़ल के साथ (अपने घर) वापस आए और उन्हें कोई बुराई छू भी नहीं गयी। और अल्लाह की ख़ुशनूदी के पाबन्द रहे और अल्लाह बड़ा फ़ज़ल करने वाला है।
  25. इन्नमा ज़ालिकुमुश्शैतानु युख़व्विफ़ु औलिया-अहू, फ़ला तख़ाफ़ूहुम् व ख़ाफ़ूनि इन् कुन्तुम् मुअ्मिनीन
    यह (मुख़बिर) बस शैतान था जो सिर्फ़ अपने दोस्तों को (रसूल का साथ देने से) डराता है। बस तुम उनसे तो डरो नहीं अगर सच्चे मोमिन हो तो मुझ ही से डरते रहो।

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