03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 5

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

  1. व कै-फ़ तक़्फुरू-न व अन्तुम् तुल्ला अ़लैकुम् आयातुल्लाहि व फ़ीकुम् रसूलुहू, व मंय्यअ्तसिम् बिल्लाहि फ़-क़द् हुदि-य इला सिरातिम् मुस्तक़ीम *
    और (भला) तुम क्यों कर काफि़र बन जाओगे हालांकि तुम्हारे सामने अल्लाह की आयतें (बराबर) पढ़ी जाती हैं और उसके रसूल (मोहम्मद) भी तुममें (मौजूद) हैं और जो शख़्स अल्लाह से वाबस्ता हो वह (तो) जरूर सीधी राह पर लगा दिया गया।
  2. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुत्तक़ुल्ला-ह हक़् क़-तुक़ातिही व ला तमूतुन्-न इल्ला व अन्तुम् मुस्लिमून 
    ऐ ईमान वालों! अल्लाह से डरो जितना उससे डरने का हक़ है और तुम (दीन) इस्लाम के सिवा किसी और दीन पर हरगिज़ न मरना।
  3. वअ्तसिमू बि-हब्लिल्लाहि जमीअ़ंव्-व ला तफ़र्रक़ू, वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अ़लैकुम् इज़् कुन्तुम् अअ्दा -अन् फ़-अल्ल-फ़ बै-न क़ुलूबिकुम् फ़-अस्बह्तुम् बिनिअ्मतिही इख़्वानन्, व कुन्तुम् अ़ला शफा हुफ़्रतिम् मिनन्नारि फ़-अन्क़-ज़कुम् मिन्हा, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही लअ़ल्लकुम् तह्तदून
    और तुम सब के सब (मिलकर) अल्लाह की रस्सी मज़बूती से थामे रहो और आपस में (एक दूसरे) के फूट न डालो और अपने हाल (ज़ार) पर अल्लाह के एहसान को तो याद करो जब तुम आपस में (एक दूसरे के) दुश्मन थे तो अल्लाह ने तुम्हारे दिलों में (एक दूसरे की) उलफ़त पैदा कर दी तो तुम उसके फ़ज़ल से आपस में भाई भाई हो गए। और तुम गोया सुलगती हुयी आग की भट्टी (दोज़ख) के लब पर (खडे़) थे गिरना ही चाहते थे कि अल्लाह ने तुमको उससे बचा लिया। तो अल्लाह अपने एहकाम यू वाजे़ह करके बयान करता है ताकि तुम राहे रास्त पर आ जाओ।
  4. वल्तकुम् मिन्कुम् उम्मतुंय्यद् अू-न इलल्ख़ैरि व यअ्मुरू-न बिल्मअ्-रूफ़ि व यन्हौ-न अ़निल्मुन्करि, व उलाइ-क हुमुल् मुफ़्लिहून
    और तुमसे एक गिरोह ऐसे (लोगों का भी) तो होना चाहिये जो (लोगों को) नेकी की तरफ़ बुलाए, अच्छे काम का हुक्म दे और बुरे कामों से रोके और ऐसे ही लोग (आख़ेरत में) अपनी दिली मुरादें पायेंगे।
  5. व ला तकूनू कल्लज़ी-न तफ़र्रक़ू वख़्त-लफ़ू मिम्-बअ्दि मा जा- अहुमुल्-बय्यिनातु, व उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
    औेर तुम (कहीं) उन लोगों के ऐसे न हो जाना जो आपस में फूट डाल कर बैठ रहे। और रौशन (दलील) आने के बाद भी एक मुँह एक ज़बान न रहे और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा (भारी) अज़ाब है।
  6. यौ-म तब्यज़्ज़ु वुजूहुंव्-व तस्वद्दु वुजूहुन्, फ़-अम्मल्लज़ीनस्-वद्दत् वुजूहुहुम्, अ-कफ़र्तुम् बअ्-द ईमानिकुम् फ़ज़ूकुल्-अ़ज़ा-ब बिमा कुन्तुम् तक्फ़ुरून
    (उस दिन से डरो) जिस दिन कुछ यू लोगों के चेहरे तो सफेद नूरानी होंगे और कुछ (लोगो) के चेहरे सियाह। जिन लोगों के मुहॅ में कालिक होगी (उनसे कहा जायेगा) हाए क्यों तुम तो ईमान लाने के बाद काफिर हो गए थे अच्छा तो (लो) (अब) अपने कुफ्रकी सज़ा में अज़ाब (के मजे़) चखो।
  7. व अम्मल्लज़ीनब्-यज़्ज़त् वुजूहुहुम् फ़-फ़ी रह्-मतिल्लाहि, हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    और जिनके चेहरे पर नूर बरसता होगा वह तो अल्लाह की रहमत (बहिश्त) में होंगे (और) उसी में सदा रहेंगे।
  8. तिल्-क आयातुल्लाहि नत्लूहा अ़लै-क बिल्हक़्क़ि, व मल्लाहु युरीदु ज़ुल्मल् लिल्आ़लमीन
    (ऐ रसूल!) ये अल्लाह की आयतें हैं जो हम तुमको ठीक (ठीक) पढ़ के सुनाते हैं और अल्लाह सारे जहांन के लोगों (से किसी) पर जु़ल्म करना नहीं चाहता।
  9. व लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि, व इलल्लाहि तुर्जअुल उमूर
    और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (सब) अल्लाह ही का है और (आखि़र) सब कामों की रूज़ु अल्लाह ही की तरफ़ है।
  10. कुन्तुम् ख़ै-र उम्मतिन् उख़रिजत् लिन्नासि तअ्मुरू-न बिल्मअ्-रूफ़ि व तन्हौ-न अ़निल्मुन्करि व तुअ्मिनू-न बिल्लाहि, व लौ आम-न अह्लुल्-किताबि लका-न ख़ैरल्लहुम, मिन्हुमुल् मुअ्मिनू-न व अक्सरुहुमुल् फ़ासिक़ून
    तुम क्या अच्छे गिरोह हो कि (लोगों की) हिदायत के वास्ते पैदा किये गए हो तुम (लोगों को) अच्छे काम का हुक्म करते हो और बुरे कामों से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो और अगर एहले किताब भी (इसी तरह) ईमान लाते तो उनके हक़ में बहुत अच्छा होता उनमें से कुछ ही तो इमानदार हैं और अक्सर बदकार।
  11. लंय्यज़ुर्रूकुम् इल्ला अज़न्, व इंय्युक़ातिलूकुम् युवल्लूकुमुल् अद्-बार, सुम्- म ला युन्सरून
    (मुसलमानों!) ये लोग मामूली अज़ीयत के सिवा तुम्हें हरगिज़ ज़रर नही पहुचा सकते और अगर तुमसे लड़ेंगे तो उन्हें तुम्हारी तरफ़ पीठ ही करनी होगी और फिर उनकी कहीं से मदद भी नहीं पहुचेगी।
  12. ज़ुरिबत् अ़लैहिमुज़्ज़िल्लतु ऐनमा सुक़िफ़ू इल्ला बि-हब्लिम् मिनल्लाहि व हब्लिम्-मिनन्नासि व बाऊ बि-ग़-ज़बिम् मिनल्लाहि व ज़ुरिबत् अ़लैहिमुल्- मस्क-नतु, ज़ालि-क बि-अन्नहुम् कानू यक्फ़ुरु-न बिआयातिल्लाहि व यक़्तुलूनल्-अम्बिया-अ बिग़ैरि हक़्क़िन्, ज़ालि-क बिमा अ़-सव् व कानू यअ्तदून
    और जहाँ कहीं हत्ते चढ़े उनपर रूसवाई की मार पड़ी। मगर अल्लाह के अहद (या) और लोगों के अहद के ज़रिये से (उनको कहीं पनाह मिल गयी) और फिर हेरफेर के अल्लाह के गज़ब में पड़ गए और उनपर मोहताजी की मार (अलग) पड़ी। ये (क्यों)? इस सबब से कि वह अल्लाह की आयतों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करते थे। ये सज़ा उसकी है कि उन्होंने नाफ़रमानी की और हद से गुज़र गए थे।
  13. लैसू सवाअन्, मिन् अह्-लिल्-किताबि उम्मतुन् क़ाइ-मतुंय्यत्लू-न आयातिल्लाहि आनाअल्लैलि व हुम् यस्जुदून
    और ये लोग भी सबके सब यकसा नहीं हैं (बल्कि) एहले किताब से कुछ लोग तो ऐसे हैं कि (अल्लाह के दीन पर) इस तरह साबित क़दम हैं कि रातों को अल्लाह की आयतें पढ़ा करते हैं और वह बराबर सजदे किया करते हैं।
  14. युअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आख़िरि व यअ्मुरू-न बिल्-मअ्-रूफ़ि व यन्हौ-न अ़निल्मुन्करि व युसारिअू-न फ़िल्ख़ैराति, व उलाइ-क मिनस्सालिहीन
    अल्लाह और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं और अच्छे काम का तो हुक्म करते हैं और बुरे कामों से रोकते हैं। और नेक कामों में दौड़ पड़ते हैं और यही लोग तो नेक बन्दों से हैं।
  15. व मा यफ़्अ़लू मिन् ख़ैरिन् फ़-लंय्युक्फ़रूहु, वल्लाहु अ़लीमुम् बिल्-मुत्तक़ीन
    और वह जो कुछ नेकी करेंगे उसकी हरगिज़ नाक़द्री न की जाएगी और अल्लाह परहेज़गारों से खू़ब वाकिफ़ है।
  16. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू लन् तुग़्नि-य अ़न्हुम् अम्वालुहुम् व ला औलादुहुम् मिनल्लाहि शैअन्, व उलाइ-क अस्हाबुन्नारि हुम् फ़ीहा ख़ालिदून
    बेशक जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया अल्लाह (के अज़ाब) से बचाने में हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएंगे न उनकी औलाद और यही लोग जहन्नुमी हैं और हमेशा उसी में रहेंगे।
  17. म-सलु मा युन्फ़िक़ू-न फ़ी हाज़िहिल् हयातिद्दुन्या क-म-सलि रीहिन् फ़ीहा सिर्रुन् असाबत् हर्-स क़ौमिन् ज़-लमू अन्फ़ु-सहुम् फ़-अह्-लकत्हु, व मा ज़-ल-महुमुल्लाहु व लाकिन् अन्फ़ु-सहुम् यज़्लिमून
    दुनिया की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी में ये लोग जो कुछ ख़र्च करते हैं उसकी मिसाल अन्धड़ की मिसाल है जिसमें बहुत पाला हो और वह उन लोगों के खेत पर जा पड़े जिन्होंने (कुफ्रकी वजह से) अपनी जानों पर सितम ढाया हो। और फिर पाला उसे मार के (नास कर दे) और अल्लाह ने उनपर जुल्म कुछ नहीं किया। बल्कि उन्होंने आप अपने ऊपर जु़ल्म किया।
  18. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ू बितान- तम् मिन् दूनिकुम् ला यअ्लूनकुम् ख़बालन्, वद्दू मा अ़नित्तुम् क़द् ब-दतिल्-बग़्ज़ा-उ मिन् अफ़्वाहिहिम्, व मा तुख़्फ़ी सुदूरुहुम् अक्बरु, क़द् बय्यन्ना लकुमुल्-आयाति इन् कुन्तुम् तअ्क़िलून
    ऐ ईमानदारों! अपने (मोमिनीन) के सिवा (गै़रो को) अपना राज़दार न बनाओ (क्योंकि) ये गै़र लोग तुम्हारी बरबादी में कुछ (कसर) उठा नहीं रखेंगे (बल्कि जितना ज़्यादा तकलीफ़) में पड़ोगे उतना ही ये लोग ख़ुश होंगे। दुश्मनी तो उनके मुह से टपकती है और जो (बुग़ज़ व हसद) उनके दिलों में भरा है वह कहीं उससे बढ़कर है। हमने तुमसे (अपने) एहकाम साफ़ साफ़ बयान कर दिये अगर तुम समझ रखते हो।
  19. हा-अन्तुम् उला-इ तुहिब्बूनहुम् व ला युहिब्बूनकुम् व तुअ्मिनू-न बिल्किताबि कुल्लिही, व इज़ा लक़ूकुम् क़ालू आमन्ना, व इज़ा ख़लौ अ़ज़्ज़ू अ़लैकुमुल्-अनामि-ल मिनल्-ग़ैज़ि, क़ुल् मूतू बिग़ैज़िक़ुम्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुम् बिज़ातिस्सुदूर
    ऐ लोगों! तुम ऐसे (सीधे) हो कि तुम उनसे उलफ़त रखतो हो और वह तुम्हें (ज़रा भी) नहीं चाहते। और तुम तो पूरी किताब (अल्लाह) पर ईमान रखते हो और वह ऐसे नहीं हैं (मगर) जब तुमसे मिलते हैं तो कहने लगते हैं कि हम भी ईमान लाए। और जब अकेले में होते हैं तो तुम पर गुस्से के मारे उंगलियां काटते हैं। (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि (काटना क्या) तुम अपने गुस्से में जल मरो। जो बातें तुम्हारे दिलों में हैं बेशक अल्लाह ज़रूर जानता है।
  20. इन् तम्सस्कुम् ह-स-नतुन् तसुअ्हुम्, व इन् तुसिब्कुम् सय्यि-अतुंय्यफ़्रहू बिहा, व इन् तस्बिरू व तत्तक़ू ला यज़ुर्रुकुम् कैदुहुम् शैअन, इन्नल्ला-ह बिमा यअ्मलू-न मुहीत
    (ऐ ईमानदारों!) अगर तुमको भलाई छू भी गयी तो उनको बुरा मालूम होता है। और जब तुमपर कोई भी मुसीबत पड़ती है तो वह ख़ुश हो जाते हैं। और अगर तुम सब्र करो और परहेज़गारी इख़्तेयार करो तो उनका फ़रेब तुम्हें कुछ भी ज़रर नहीं पहुचाएगा। (क्योंकि) अल्लाह तो उनकी कारस्तानियों पर हावी है।
  21. व इज़् ग़दौ-त मिन् अह्-लिक तुबव्विउल्- मुअ्मिनी-न मक़ाअि-द लिल्क़ितालि, वल्लाहु समीअुन् अ़लीम
    और (ऐ रसूल!) एक वक़्त वो भी था जब तुम अपने बाल बच्चों से तड़के ही निकल खड़े हुए। और मोमिनीन को लड़ाई के मोर्चों पर बिठा रहे थे और अल्लाह सब कुछ जानता औेर सुनता है।
  22. इज़् हम्मत्ता-इ-फ़तानि मिन्कुम् अन् तफ़्शला, वल्लाहु वलिय्युहुमा, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
    ये उस वक़्त का वाक़या है जब तुममें से दो गिरोहों ने ठान लिया था कि पसपाई करें और फिर (सँभल गए) क्योंकि अल्लाह तो उनका सरपरस्त था। और मोमिनीन को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिये।
  23. व लक़द् न-स-रकुमुल्लाहु बि-बद् रिंव् अन्तुम् अज़िल्लतुन् फ़त्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तश्कुरून
    यक़ीनन अल्लाह ने जंगे बदर में तुम्हारी मदद की (बावजूद के) तुम (दुश्मन के मुक़ाबले में) बिल्कुल बे हक़ीक़त थे (फिर भी) अल्लाह ने फतेह दी।
  24. इज़् तक़ूलु लिल्-मुअ्मिनी-न अलंय्यक्फ़ि-यकुम् अंय्युमिद्दकुम् रब्बुकुम् बि-सलासति आलाफिम् मिनल्-मलाइ-कति मुन्ज़लीन
    बस तुम अल्लाह से डरते रहो ताकि (उनके) शुक्रगुज़ार बनो (ऐ रसूल!) उस वक़्त तुम मोमिनीन से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा परवरदिगार तीन हज़ार फ़रिश्ते आसमान से भेजकर तुम्हारी मदद करे? हाँ (ज़रूर काफ़ी है)।
  25. बला इन् तस्बिरू व तत्तक़ू व यअ्तूकुम् मिन् फ़ौरिहिम् हाज़ा युम्दिद्कुम् रब्बुकुम् बि-ख़म्सति आलाफिम् मिनल् मलाइ-कति मुसव्विमीन
    बल्कि अगर तुम साबित क़दम रहो और (रसूल की मुख़ालेफ़त से) बचो और कुफ़्फ़ार अपने (जोश में) तुमपर चढ़ भी आये तो तुम्हारा परवरदिगार ऐसे पांच हज़ार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करेगा जो निशाने जंग लगाए हुए डटे होंगे। और अल्लाह ने ये मदद सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशी के लिए की है।

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