03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 1

03 आले इमरान | Surah Al-Imran

(मक्की) इस सूर में 200 आयतें और 20 रुकू हैं। यह सूरह मदनी है।

इस सूरह का नाम रखने का कारण एक जगह आले इमरान का उल्लेख किया गया है। उसी से इस सूरत का नाम लिया गया है। (आले इमरान का अर्थ है इमरान की संतान)। जो ईसा (अलैहिस्सलाम) की माँ मरियम (अलैहिस्सलाम) के पिता का नाम है। यह सूरह पारा 3, पारा 4 में है।

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ़्-लाम्-मीम्
    अलिफ़ लाम मीम।
  2. अल्लाहु ला इला-ह इल्ला हुवल् हय्युल्-क़य्यूम
    अल्लाह ही वह (ईश्वर) है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं है वही ज़िन्दा (और) सारे संसार का संभालने वाला है
  3. नज़्ज़-ल अ़लैकल्-किता-ब बिल्हक़्क़ि मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि व अन्ज़लत्तौरा-त वल्-इन्जील
    (ऐ रसूल!) उसी ने तुम पर सत्य के साथ किताब (कुरान) उतारी जो (आसमानी किताबें पहले से) उसके सामने मौजूद हैं उनकी प्रमाणित करती है। और उसी ने उससे पहले लोगों की हिदायत के लिए तौरातइन्जील उतारी है।
  4. मिन् क़ब्लु हुदल्लिन्नासि व अन्ज़-लल् फ़ुर्क़ा-न, इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू बिआयातिल्लाहि लहुम् अ़ज़ाबुन् शदीदुन्, वल्लाहु अ़ज़ीज़ुन् ज़ुन्तिक़ाम
    और लोगों के मार्गदर्शन के लिए किताब (कु़रान) उतारी वास्तव में जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों को न माना उनके लिए कड़ी यातना है। और अल्लाह  प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है। अर्थात तौरात और इंजील अपने समय में लोगों के लिये मार्गदर्शन थीं, परन्तु क़ुरान उतरने के पश्चात् अब वह मार्गदर्शन केवल क़ुरान में है।
  5. इन्नल्ला-ह ला यख़्फ़ा अ़लैहि शैउन् फ़िल्अर्ज़ि व ला फ़िस्समा-इ
    निःसंदेह अल्लाह पर कोई चीज़ छुपी नहीं है (न) ज़मीन में न आसमान में।
  6. हुवल्लज़ी युसव्विरुकुम् फिल्अर्-हामि कै-फ़ यशा-उ, ला इला-ह इल्ला हुवल् अ़ज़ीज़ुल् हकीम
    वही तो वह अल्लाह है जो माँ के पेट में तुम्हारी सूरत जैसी चाहता है बनाता है उसके अलावा कोई पूज्य नहीं।
  7. हुवल्लज़ी अन्ज़-ल अ़लैकल्-किता-ब मिन्हु आयातुम् मुह्कमातुन् हुन्-न उम्मुल्-किताबि व उ-ख़रु मु-तशाबिहातुन्, फ़-अम्मल्लज़ी-न फ़ी क़ुलूबिहिम् ज़ैग़ुन् फ़-यत्तबिअू-न मा तशा-ब-ह मिन्हुब्तिग़ा- अल्-फ़ित्नति वब्तिग़ा-अ तअ्वीलिही, व मा यअ्लमु तअ्वी-लहू इल्लल्लाहु. वर्रासिख़ू-न फिल्-अिल्मि यक़ूलू-न आमन्ना बिही, कुल्लुम् मिन् अिन्दि रब्बिना, व मा यज़्ज़क्करु इल्ला उलुल्अल्बाब
    वही (हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (ए रसूल) वही (अल्लाह) है जिसने तुम पर किताब उतारी उसमें की कुछ आयतें तो मोहकम हैं। मोहकम (सुदृढ़) से अभिप्राय वह आयतें हैं, जिन के अर्थ स्थिर, खुले हुये हैं। जैसे एकेश्वरवाद, रिसालत तथा आदेशों और निषेधों एवं ह़लाल (वैध) और ह़राम (अवैध) से संबन्धित आयतें, यही पुस्तक का मूल आधार हैं।
    वही (अमल करने के लिए) असल (व बुनियाद) किताब है और कुछ (आयतें) मुतशाबेह (मुतशाबिह {संदिग्ध} से अभिप्राय वह आयतें हैं, जिन में उन तथ्यों की ओर संकेत किया गया है, जो हमारी ज्ञानेंद्रियों में नहीं आ सकते, जैसे मौत के पश्चात् जीवन, तथा प्रलोक की बातें)
    बस जिन लोगों के दिलों में खोट है वह उन्हीं आयतों के पीछे पड़े रहते हैं जो मुतशाबेह हैं ताकि फ़साद बरपा करें और इस ख़्याल से कि उन्हें मतलब पर ढाले लें। हालाँकि अल्लाह और उन लोगों के सिवा जो ज्ञान में पक्के हैं, उनका असली मतलब कोई नहीं जानता वह लोग (ये भी) कहते हैं कि हम उस पर ईमान लाए (यह) सब (मोहकम हो या मुतशाबेह) हमारे परवरदिगार की तरफ़ से है और बुद्धिमान लोग ही समझते हैं।
  8. रब्बना ला तुज़िग् क़ुलूबना बअ्-द इज़् ‘हदैतना व हब् लना मिल्लदुन्-क रह् म-तन् इन्न-क अन्तल् वह्हाब
    (और दुआ करते हैं) ऐ हमारे पालने वाले! हमारे दिल को मार्गदर्शन देने के बाद डावाडोल न कर और अपनी बारगाह से हमें रहमत अता फ़रमा इसमें तो शक ही नहीं कि तू बड़ा देने वाला है।
  9. रब्बना इन्न-क जामिअुन्नासि लियौमिल्-ला रै-ब फ़ीहि, इन्नल्ला-ह ला युख़्लिफ़ुल मीआ़द
    ऐ हमारे परवरदिगार! निःसंदेह तू एक न एक दिन जिसके आने में शुबह नहीं लोगों को इकट्ठा करेगा (तो हम पर नज़रे इनायत रहे) निःसंदेह अल्लाह अपने वायदे के खि़लाफ़ नहीं करता।
  10. इन्नल्लज़ी-न क-फ़रू लन् तुग़्नि-य अ़न्हुम् अम्वालुहुम् व ला औलादुहुम् मिनल्लाहि शैअन्, व उलाइ-क हुम् वक़ूदुन्नार
    वास्तव में जो क़ाफ़िर हो गये उनको अल्लाह (की यातना) से न उनके माल ही कुछ बचाएंगे, न उनकी औलाद (कुछ काम आएगी) और यही लोग जहन्नुम के ईधन होंगे।
  11. क-दअ्बि आलि फ़िर्-औ़-न, वल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, कज़्ज़बू बिआयातिना, फ़-अ-ख़-ज़हुमुल्लाहु बिज़ुनूबिहिम्, वल्लाहु शदीदुल् अिक़ाब
    (उनकी भी) फ़िरऔनियों और उनसे पहले वालों की सी हालत है कि उन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया तो अल्लाह ने उनके पापों के कारण उनको धर लिया और अल्लाह सख़्त सज़ा देने वाला है।
  12. क़ुल् लिल्लज़ी-न क-फ़रू सतुग़्लबू-न व तुह्शरू-न इला जहन्न-म, व बिअ्सल् मिहाद
    (ऐ रसूल!) जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उनसे कह दो कि बहुत जल्द तुम (मुसलमानो के मुक़ाबले में) परास्त होंगे और नरक में एकत्र किये जाओगे और वह बहुत बुरा ठिकाना है।
  13. क़द् का-न लकुम् आ-यतुन् फ़ी फ़ि-अतैनिल् त क़ता, फ़ि-अतुन् तुक़ातिलु फ़ी सबीलिल्लाहि व उख़्रा काफ़ि-रतुंय्यरौ-नहुम् मिस्लैहिम् रअ्यल्-ऐनि, वल्लाहु युअय्यिदु बिनस्रिही मंय्यशा-उ, इन्-न फ़ी ज़ालि-क ल-अिब्रतल्-लिउलिल् अब्सार
    वास्तव में तुम्हारे (समझाने के) वास्ते उन दो (विरोधी गिरोहों में जो (बद्र की लड़ाई में) एक दूसरे के साथ लड़ गए (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह अल्लाह की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफि़रों का जिनको मुसलमान अपनी आँख से दुगना देख रहे थे (मगर अल्लाह ने कम संख्या ही को फ़तह दी) और अल्लाह अपनी मदद से जिस की चाहता है समर्थन करता है वास्तव में समझ-बूझ वालों के लिए इस वाक़ये में बड़ी इबरत है।
  14. ज़ुय्यि-न लिन्नासि हुब्बुश्श-हवाति मिनन्निसा-इ वल्बनी-न वल्- क़नातीरिल्- मुक़न्त-रति मिनज़्ज़-हबि वल्फ़िज़्ज़ति वल्-ख़ैलिल्-मुसव्व-मति वल्-अन्आ़मि वल्हर्सि, ज़ालि-क मताअुल् हयातिद्दुन्या, वल्लाहु अिन्दहू हुस्नुल् मआब
    दुनिया में लोगों को उनके मन को मोहने वाली चीज़े (मसलन) बीवियों और बेटों और सोने चाँदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेर और उम्दा उम्दा घोड़ों और मवेशियों ओर खेती के साथ उलफ़त भली करके दिखा दी गई है ये सब सांसारिक जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) फ़ायदे हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो अल्लाह ही के यहां है।
  15. क़ुल् अ-उनब्बिउकुम् बिख़ैरिम् मिन् ज़ालिकुम्, लिल्लज़ीनत्तक़ौ अिन्-द रब्बिहिम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा व अज़्वाजुम्- मुतह्ह-रतुंव्-व रिज़्वानुम् मिनल्लाहि, वल्लाहु बसीरुम् बिल्अिबाद
    (ऐ रसूल!) उन लोगों से कह दो कि क्या मैं तुमको उन सब चीज़ों से बेहतर चीज़ बता दू (अच्छा सुनो) उनके लिए जो डरें, उनके परवरदिगार के यहां (स्वर्ग) के वह बाग़ हैं जिनके नीचे नहरें बह रही हैं (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ सुथरी बीवियां हैं और (सबसे बढ़कर) अल्लाह की प्रसन्नता है और अल्लाह (अपने) उन बन्दों को खूब देख रहा हे जो दुआऐं मांगा करते हैं।
  16. अल्लज़ी-न यक़ूलू-न रब्बना इन्नना आमन्ना फ़ग़्फ़िर् लना ज़ुनूबना व क़िना अ़ज़ाबन्नार
    कि हमारे पालने वाले हम ईमान लाए हैं बस तू भी हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमको नरक की यातना से बचा।
  17. अस्साबिरी-न वस्सादिक़ी-न वल्क़ानिती-न वल्मुन्फ़िकी-न वल्मुस्तग़्फ़िरी-न बिल्अस्हार
    (यही लोग हैं) सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और (अल्लाह के) आज्ञाकारी और (अल्लाह की राह में) ख़र्च करने वाले और पिछली रातों में (अल्लाह से) क्षमा याचना करने वाले।
  18. शहिदल्लाहु अन्नहू ला इला-ह इल्ला हु-व, वल्मलाइ-कतु व उलुल्-अिल्मि क़ा-इमम् बिल्क़िस्ति, ला इला-ह इल्ला हुवल्-अ़ज़ीज़ुल् हकीम
    ज़रूर अल्लाह और फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं है और वह अल्लाह अद्ल व इन्साफ़ के साथ (कारख़ानाए आलम का) संभालने वाला है उसके सिवा कोई पूज्य नहीं (वही हर चीज़ पर) प्रभुत्वशाली और तत्वज्ञ है (सच्चा) दीन तो अल्लाह के नज़दीक यक़ीनन (बस यही) इस्लाम है।
  19. इन्नद्दी-न अिन्दल्लाहिल् इस्लामु, व मख़्त-लफ़ल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब इल्ला मिम्-बअ्दि मा जा-अहुमुल् अिल्मु बग़्यम् बनहुम, व मंय्यक्फ़ुर् बिआयातिल्लाहि फ़-इन्नल्ला-ह सरीअुल् हिसाब
    और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से विभेद किया तो महज़ आपस की शरारत और असली मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख़्स ने अल्लाह की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि) निश्चय अल्लाह (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है।
  20. फ़-इन् हाज्जू-क फ़क़ुल् अस्लम्तु वज़्हि-य लिल्लाहि व मनित्त-ब- अ़नि, व क़ुल लिल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब वल-उम्मिय्यी-न अ-अस्लम्तुम्, फ़-इन् अस्लमू फ़-क़दिह्तदौ, व इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैकल्- बलाग़ु, वल्लाहु बसीरुम् बिल्अिबाद
    (ऐ रसूल!) बस अगर ये लोग तुमसे (बिना किसी बात के) विवाद करे तो कह दो मैंने अल्लाह के आज्ञाकारी हो गये  और जो मेरे आज्ञाकारी है (उन्होंने) भी) और ऐ रसूल! तुम एहले किताब और जाहिलों से पूछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नही) बस अगर इस्लाम लाए हैं तो मार्गदर्शन पा गये और अगर मुँह फेरे तो (ऐ रसूल!) तुम पर सिर्फ़ पैग़ाम (इस्लाम) पंहुचा देना फ़र्ज़ है (बस) और अल्लाह (अपने बन्दों) को देख रहा है।
  21. इन्नल्लज़ी-न यक्फ़ुरु-न बिआया-तिल्लाहि व यक़्तुलूनन्नबिय्यी-न बिग़ैरि हक़्क़िंव्-व यक़्तुलू-नल्लज़ी-न यअ्मुरू-न बिल्क़िस्ति मिनन्नासि फ़-बश्शिर्हुम् बि-अ़ज़ाबिन अलीम
    वास्तव में जो लोग अल्लाह की आयतों से इन्कार करते हैं और नाहक़ पैग़म्बरों को क़त्ल करते हैं और उन लोगों को (भी) क़त्ल करते हैं जो (उन्हें) इन्साफ़ करने का हुक़्म करते हैं तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को दर्दनाक यातना की ख़ुशख़बरी दे दो।
  22. उलाइ-कल्लज़ी-न हबितत् अअ्मालुहुम् फ़िद्दुन्या वल्-आख़ि-रति, व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
    यही वह (बदनसीब) लोग हैं जिनका सारा किया कराया दुनिया और आख़ेरत (दोनों) में अकारथ गया और कोई उनका मददगार नहीं।
  23. अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल्-किताबि युद्औ़-न इला किताबिल्लाहि लि-यह्कु-म बैनहुम् सुम्-म य-तवल्ला फ़रीक़ुम् मिन्हुम् व हुम् मुअ्-रिज़ून
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने (उलमाए यहूद) के हाल पर नज़र नहीं की जिनको किताब (तौरेत) का एक हिस्सा दिया गया था। (अब) उनको किताबे अल्लाह की तरफ़ बुलाया जाता है ताकि वही (किताब) उनके झगड़ें का फैसला कर दे इस पर भी उनमें का एक गिरोह मुँह फेर लेता है और यही लोगमुँह फेरने वाले हैं।
  24. ज़ालि-क बि-अन्नहुम् क़ालू लन् तमस्स-नन्नारु इल्ला अय्यामम् मअ्दूदातिंव्-व ग़र्रहुम् फ़ी दीनिहिम् मा कानू यफ़्तरून
    ये इस वजह से है कि वह लोग कहते हैं कि हमें गिनती के चन्द दिनों के सिवा जहन्नुम की आग हरगिज़ छुएगी भी नहीं, तथा उन्हें अपने धर्म में उनकी मिथ्या बनायी हुई बातों ने धोखे में डाल रखा है।
  25. फ़क-फ़ इज़ा जमअ्नाहुम् लियौमिल् ला रै-ब फ़ीहि, व वुफ़्फ़ियत् कुल्लु नफ़्सिम् मा क-सबत् व हुम् ला युज़्लमून
    फिर उनकी क्या गत होगी जब हम उनको एक दिन (क़यामत) जिसके आने में कोई संदेह नहीं इकट्ठा करेंगे और हर शख़्स को उसके किये का पूरा बदला दिया जाएगा और किसी के साथ कोई अत्याचार नहीं किया जायेगा?

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