03 सूरह-आले इमरान हिंदी में पेज 8

सूरह-आले इमरान हिंदी में | Surah Al-Imran in Hindi

  1. व ला यह्ज़ुन्कल्लज़ी-न युसारिअू-न फ़िल्कुफ्रि, इन्नहुम् लंय्यज़ुर्रुल्ला-ह शैअन्, युरीदुल्लाहु अल्ला यज्अ़-ल लहुम् हज़्ज़न् फ़िल्-आख़िरति, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
    और (ऐ रसूल!) जो लोग कुफ्र की (मदद) में पेश क़दमी कर जाते हैं उनकी वजह से तुम रन्ज न करो। क्योंकि ये लोग अल्लाह को कुछ ज़रर नहीं पहुँचा सकते (बल्कि) अल्लाह तो ये चाहता है कि आख़ेरत में उनका हिस्सा न क़रार दे और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है।
  2. इन्नल्लज़ीनश्-त-रवुल्-क़ुफ़्-र बिल्-ईमानि लंय्यज़ुर्रुल्ला-ह शैअन्, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    बेशक जिन लोगों ने ईमान के एवज़ कुफ्र ख़रीद किया वह हरगिज़ अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ेगे (बल्कि आप अपना) और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
  3. व ला यह्सबन्नल्लज़ी-न क-फ़रू अन्नमा नुम्ली लहुम् ख़ौरुल् लिअन्फ़ुसिहिम्, इन्नमा नुम्ली लहुम् लि-यज़्दादू इस्मन्, व लहुम् अ़ज़ाबुम्- मुहीन
    और जिन लोगों ने कुफ्र इखि़्तयार किया वह हरगिज़ ये ख़्याल न करें कि हमने जो उनको मोहलत व बेफिक्री दे रखी है वह उनके हक़ में बेहतर है (हालांकि) हमने मोहल्लत व बेफिक्री सिर्फ इस वजह से दी है ताकि वह और ख़ूब गुनाह कर लें और (आखि़र तो) उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है।
  4. मा कानल्लाहु लि-य-ज़रल् मुअ्मिनी-न अ़ला मा अन्तुम् अ़लैहि हत्ता यमीज़ल्-ख़बी-स मिनत्तय्यिबि, व मा कानल्लाहु लियुत्लि-अ़कुम् अ़लल्-ग़ैबि व लाकिन्नल्ला-ह यज्तबी मिर्रुसुलिही मंय्यशा-उ, फ़-आमिनू बिल्लाहि व रुसुलिही, व इन् तुअ्मिनू व तत्तक़ू फ़-लकुम् अज्रून् अ़ज़ीम
    (मुनाफि़क़ो!) अल्लाह ऐसा नहीं कि बुरे भले की तमीज़ किए बगैर जिस हालत पर तुम हो उसी हालत पर मोमिनों को भी छोड़ दे और अल्लाह ऐसा भी नहीं है कि तुम्हें गै़ब की बातें बता दे मगर (हाँ) अल्लाह अपने रसूलों में जिसे चाहता है (गै़ब बताने के वास्ते) चुन लेता है बस अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और अगर तुम ईमान लाओगे और परहेज़गारी करोगे तो तुम्हारे वास्ते बड़ी जज़ाए ख़ैर है।
  5. व ला यह्सबन्नल्लज़ी-न यब्ख़लू-न बिमा आताहुमुल्लाहु मिन् फज़्लिही हु-व ख़ैरल्लहुम्, बल् हु-व शर्रूल्लहुम्, सयुतव्वक़ू-न मा बख़िलू बिही यौमल्-क़ियामति, व लिल्लाहि मीरासुस्समावाति वल् अर्ज़ि, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीर
    और जिन लोगों को अल्लाह ने अपने फ़ज़ल (व करम) से कुछ दिया है (और फिर) बुख़्ल करते हैं वह हरगिज़ इस ख़्याल में न रहें कि ये उनके लिए (कुछ) बेहतर होगा बल्कि ये उनके हक़ में बदतर है क्योंकि जिस (माल) का बुख़्ल करते हैं अनक़रीब ही क़यामत के दिन उसका तौक़ बनाकर उनके गले में पहनाया जाएगा और सारे आसमान व ज़मीन की मीरास अल्लाह ही की है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे ख़बरदार है।
  6. ल-क़द् समिअ़ल्लाहु क़ौलल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह फ़क़ीरूंव्-व नह्नु अग़्निया-उ, सनक्तुबु मा क़ालू व क़त्लहुमुल्-अम्बिया-अ बिग़ैरि हक़्क़िंव्-व नक़ूलु ज़ूक़ू अ़ज़ाबल् हरीक़
    जो लोग (यहूद) ये कहते हैं कि अल्लाह तो कंगाल है और हम बड़े मालदार हैं अल्लाह ने उनकी ये बकवास सुनी उन लोगों ने जो कुछ किया उसको और उनका पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करना हम अभी से लिख लेते हैं और (आज तो जो जी में कहें मगर क़यामत के दिन) हम कहेंगे कि अच्छा तो लो (अपनी शरारत के एवज़ में) जलाने वाले अज़ाब का मज़ा चखो।
  7. ज़ालि-क बिमा क़द्द-मत् ऐदीकुम् व अन्नल्ला-ह लै-स बिज़ल्लामिल् लिल्-अ़बीद
    ये उन्हीं कामों का बदला है जिनको तुम्हारे हाथों ने (ज़ादे आख़ेरत बना कर) पहले से भेजा है वरना अल्लाह तो कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं।
  8. अल्लज़ी-न क़ालू इन्नल्ला-ह अ़हि-द इलैना अल्ला नुअ्मि-न लि-रसूलिन् हत्ता यअ्ति-यना बिक़ुर्बानिन् तअ्कुलुहुन्नारु, क़ुल् क़द् जा-अकुम् रुसुलुम् मिन् क़ब्ली बिल्-बय्यिनाति व बिल्लज़ी क़ुल्तुम् फ़लि-म क़तल्तुमूहुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    (यह वही लोग हैं) जो कहते हैं कि अल्लाह ने तो हमसे वायदा किया है कि जब तक कोई रसूल हमें ये (मौजिज़ा) न दिखा दे कि वह कुरबानी करे और उसको (आसमानी) आग आकर चट कर जाए उस वक़्त तक हम ईमान न लाएंगें (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि (भला) ये तो बताओ बहुतेरे पैग़म्बर मुझसे क़ब्ल तुम्हारे पास वाजे़ व रौशन मौजिज़ात और जिस चीज़ की तुमने (उस वक़्त) फ़रमाइश की है (वह भी) लेकर आए फिर तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो तुमने उन्हें क्यों क़त्ल किया।
  9. फ़-इन् कज़्ज़बू-क फ़-क़द् कुज़्ज़ि-ब रुसुलुम् मिन् क़ब्लि-क जाऊ बिल्बय्यिनाति वज़्ज़ुबुरि वल्-किताबिल् मुनीर
    (ऐ रसूल!) अगर वह इस पर भी तुम्हें झुठलाएं तो (तुम आज़ुर्दा न हो क्योंकि) तुमसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर रौशन मौजिज़े और सहीफे़ और नूरानी किताब लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर भी लोगों ने आखि़र झुठला ही छोड़ा।
  10. कुल्लु नफ़्सिन् ज़ा-इ-क़तुल्मौति, व इन्नमा तुवफ़्फ़ौ-न उजू-रकुम् यौमल्-क़ियामति, फ़-मन् ज़ुह्ज़ि-ह अ़निन्नारि व उद्ख़िलल्-जन्न-त फ़-क़द् फ़ा-ज़, व मल्हयातुद्-दुन्या इल्ला मताअुल् ग़ुरूर
    हर जान एक न एक (दिन) मौत का मज़ा चखेगी और तुम लोग क़यामत के दिन (अपने किए का) पूरा पूरा बदला भर पाओगे बस जो शख़्स जहन्नुम से हटा दिया गया और बहिश्त में पहुचा दिया गया बस वही कामयाब हुआ और दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी धोखे की टट्टी के सिवा कुछ नहीं।
  11. लतुब्लवुन् न फ़ी अम्वालिकुम् व अन्फ़ुसिकुम्, व ल-तस्मअुन्-न मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब मिन् क़ब्लिकुम् व मिनल्लज़ी-न अश्रकू अज़न् कसीरन्, व इन् तस्बिरू व तत्तक़ू फ़-इन्-न ज़ालि-क मिन् अ़ज़्मिल उमूर
    (मुसलमानों!) तुम्हारे मालों और जानों का तुमसे ज़रूर इम्तेहान लिया जाएगा और जिन लोगो को तुम से पहले किताबे अल्लाह दी जा चुकी है (यहूद व नसारा) उनसे और मुशरेकीन से बहुत ही दुख दर्द की बातें तुम्हें ज़रूर सुननी पड़ेंगी। और अगर तुम (उन मुसीबतों को) झेल जाओगे और परहेज़गारी करते रहोगे तो बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है।
  12. व इज़् अ-ख़ज़ल्लाहु मिसाक़ल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब लतु-बय्यिनुन्नहू लिन्नासि व ला तक्तुमूनहू, फ़-न-बज़ूहु वरा-अ ज़ुहूरिहिम् वश्तरौ बिही स-मनन् क़लीलन्, फ़-बिअ्-स मा यश्तरून
    और (ऐ रसूल!) इनको वह वक़्त तो याद दिलाओ जब अल्लाह ने एहले किताब से एहद व पैमान लिया था कि तुम किताबे अल्लाह को साफ़ साफ़ बयान कर देना। और (ख़बरदार) उसकी कोई बात छुपाना नहीं मगर इन लोगों ने (ज़रा भी ख़्याल न किया) और उनको बसे पुश्त फेंक दिया। और उसके बदले में (बस) थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली बस ये क्या ही बुरा (सौदा) है जो ये लोग ख़रीद रहे हैं।
  13. ला तह्सबन्नल्लज़ी-न यफ़्रहू-न बिमा अतव्-व युहिब्बू – न अंय्युह्-मदू बिमा लम् यफ़्अ़लू फ़ला तह्सबन्नहुम् बि-मफ़ाज़तिम् मिनल्-अ़ज़ाबि, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    (ऐ रसूल!) तुम उन्हें ख़्याल में भी न लाना जो अपनी कारस्तानी पर इतराए जाते हैं और किया कराया ख़ाक नहीं (मगर) तारीफ़ के ख़ास्तगार {चाहते} हैं बस तुम हरगिज़ ये ख़्याल न करना कि इनको अज़ाब से छुटकारा है बल्कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
  14. व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, वल्लाहु अ़ला कुल्लि शैइन क़दीर
    और आसमान व ज़मीन सब अल्लाह ही का मुल्क है और अल्लाह ही हर चीज़ पर क़ादिर है।
  15. इन्-न फ़ी ख़ल्क़िस्समावाति वल्अर्ज़ि वख़्तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि ल-आयातिल्-लिउलिल् अल्बाब
    इसमें तो शक ही नहीं कि आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के फेर बदल में अक़्लमन्दों के लिए (क़ुदरत अल्लाह की) बहुत सी निशानिया हैं।
  16. अल्लज़ी-न यज़्कुरूनल्ला-ह क़ियामंव्-व क़ुअूदंव्-व अ़ला जुनूबिहिम् व य-तफ़क्करू-न फ़ी ख़ल्किस्समावाति वल्अर्ज़ि, रब्बना मा ख़लक़्-त हाज़ा बातिलन्, सुब्हान-क फ़क़िना अ़ज़ाबन्नार
    जो लोग उठते बैठते करवट लेते (अलगरज़ हर हाल में) अल्लाह का ज़िक्र करते हैं और आसमानों और ज़मीन की बनावट में ग़ौर व फिक्र करते हैं और (बेसाख़्ता) कह उठते हैं कि ख़ुदावन्दा तूने इसको बेकार पैदा नहीं किया तू (फेले अबस से) पाक व पाकीज़ा है बस हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा।
  17. रब्बना इन्न-क मन् तुद्ख़िलिन्-ना-र फ़-क़द् अख़्ज़ैतहू, व मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् अन्सार
    ऐ हमारे पालने वाले! जिसको तूने दोज़ख़ में डाला तो यक़ीनन उसे रूसवा कर डाला और जु़ल्म करने वाले का कोई मददगार नहीं।
  18. रब्बना इन्नना समिअ्ना मुनादियंय्युनादी लिल्ईमानि अन् आमिनू बि-रब्बिकुम् फ़-आमन्ना, रब्बना फ़ग़्फिर् लना ज़ुनूबना व कफ़्फ़िर अ़न्ना सय्यिआतिना व तवफ़्फ़ना मअ़ल् अब्रार
    ऐ हमारे पालने वाले! (जब) हमने एक आवाज़ लगाने वाले (पैग़म्बर) को सुना कि वह (ईमान के वास्ते यू पुकारता था) कि अपने परवरदिगार पर ईमान लाओ तो हम ईमान लाए बस ऐ हमारे पालने वाले हमें हमारे गुनाह बख़्श दे और हमारी बुराईयों को हमसे दूर करे दे और हमें नेकों के साथ (दुनिया से) उठा ले।
  19. रब्बना व आतिना मा व-अ़त्तना अ़ला रुसुलि-क व ला तुख़्ज़िना यौमल्-क़ियामति, इन्न-क ला तुख़्लिफ़ुल मीआ़द
    और ऐ पालने वाले! अपने रसूलों की मारफ़त जो कुछ हमसे वायदा किया है हमें दे और हमें क़यामत के दिन रूसवा न कर तू तो वायदा खि़लाफ़ी करता ही नहीं।
  20. फ़स्तजा-ब लहुम् रब्बुहुम् अन्नी ला उज़ीअु अ़-म-ल आ़मिलिम् मिन्कुम् मिन् ज़-करिन् औ उन्सा, बअ्ज़ुकुम् मिम्-बअ्ज़िन्, फ़ल्लज़ी-न हाजरू व उख़्रिजू मिन् दियारिहिम् व ऊज़ू फ़ी सबीली व क़ातलू व क़ुतिलू ल-उकफ़्फ़िरन्-न अ़न्हुम् सय्यिआतिहिम् व ल-उद्ख़िलन्नहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह्तिहल् अन्हारु, सवाबम् मिन् अिन्दिल्लाहि, वल्लाहु अिन्दहू हुस्नुस्सवाब
    तो उनके परवरदिगार ने दुआ कु़बूल कर ली और (फ़रमाया) कि हम तुममें से किसी काम करने वाले के काम को अकारत नहीं करते मर्द हो या औरत (इस में कुछ किसी की खु़सूसियत नहीं क्योंकि) तुम एक दूसरे (की जिन्स) से हो जो लोग (हमारे लिए वतन आवारा हुए) और शहर बदर किए गए और उन्होंने हमारी राह में अज़ीयतें उठायीं और (कुफ़्फ़र से) जंग की और शहीद हुए मैं उनकी बुराईयों से ज़रूर दरगुज़र करूंगा और उन्हें बेहिश्त के उन बाग़ों में ले जाऊॅगा जिनके नीचे नहरें जारी हैं अल्लाह के यहाँ ये उनके किये का बदला है और अल्लाह (ऐसा ही है कि उस) के यहाँ तो अच्छा ही बदला है।
  21. ला यग़ुर्रन्न-क त-क़ल्लुबुल्लज़ी-न क-फ़रू फ़िल्बिलाद
    (ऐ रसूल!) काफ़िरों का शहरो शहरो चैन करते फिरना तुम्हे धोखे में न डाले।
  22. मताअुन् क़लीलुन्, सुम्-म मअ्वाहुम् जहन्न-मु, व बिअ्सल् मिहाद
    ये चन्द रोज़ा फ़ायदा हैं फिर तो (आखि़रकार) उनका ठिकाना जहन्नुम ही है और क्या ही बुरा ठिकाना है।
  23. लाकिनिल्लज़ीनत्तक़ौ रब्बहुम् लहुम् जन्नातुन् तज्री मिन् तह्तिहल् अन्हारु ख़ालिदी-न फ़ीहा नुज़ुलम् मिन् अिन्दिल्लाहि, व मा अिन्दल्लाहि ख़ैरुल्- लिल्- अब्रार
    मगर जिन लोगों ने अपने परवरदिगार की परहेज़गारी (इख़्तेयार की उनके लिए स्वर्ग के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारीं हैं और वह हमेशा उसी में रहेंगे। ये अल्लाह की तरफ़ से उनकी (दावत है और जो साज़ो सामान) अल्लाह के यहाँ है। वह नेको कारों के वास्ते दुनिया से कहीं बेहतर है।
  24. व इन्- न मिन् अह्-लिल्-किताबि ल-मंय्युमिनु बिल्लाहि व मा उन्ज़ि-ल इलैकुम् व मा उन्ज़ि-ल इलैहिम् ख़ाशिई-न लिल्लाहि, ला यश्तरू-न बिआयातिल्लाहि स-मनन् क़लीलन्, उलाइ-क लहुम् अज्रुहुम् अिन्-द रब्बिहिम्, इन्नल्ला-ह सरीअुल् हिसाब
    और एहले किताब में से कुछ लोग तो ऐसे ज़रूर हैं जो अल्लाह पर और जो (किताब) तुम पर नाज़िल हुयी और जो (किताब) उनपर नाज़िल हुयी (सब पर) ईमान रखते हैं अल्लाह के आगे सर झुकाए हुए हैं। और अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनियावी फ़ायदे) नहीं लेते। ऐसे ही लोगों के वास्ते उनके परवरदिगार के यहाँ अच्छा बदला है। बेशक अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है।
  25. या अय्युहल्लज़ी-न आमनुस्बिरू व साबिरू व राबितू, वत्तक़ुल्ला-ह लअ़ल्लकुम् तुफ़्लिहून
    ऐ ईमानदारों! (दीन की तकलीफ़ों को) झेल जाओ और दूसरों को बर्दाश्त की तालीम दो और (जिहाद के लिए) कमरें कस लो और अल्लाह ही से डरो ताकि तुम अपनी दिली मुराद पाओ।

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