- व क़ज़ा रब्बु-क अल्ला तअ्बुदू इल्ला इय्याहु व बिल्-वालिदैनि इह्सानन्, इम्मा यब्लु ग़न्-न अिन्द – कल् कि-ब-र अ-हदुहुमा औ किलाहुमा फ़ला तकुल् – लहुमा उफ्फिंव् – व ला तन्हरहुमा व कुल- लहुमा कौलन् करीमा
और तुम्हारे परवरदिगार ने तो हुक्म ही दिया है कि उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत न करना और माँ बाप से नेकी करना अगर उनमें से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुँचे (और किसी बात पर खफा हों) तो (ख़बरदार उनके जवाब में उफ तक) न कहना और न उनको झिड़कना और जो कुछ कहना सुनना हो तो बहुत अदब से कहा करो (23) - वख़्फिजू लहुमा जनाहज़्ज़ुल्लि मिनर्रह्मति व कुर्रब्बिर्हम्हुमा कमा रब्बयानी सगीरा
और उनके सामने नियाज़ {रहमत} से ख़ाकसारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि मेरे पालने वाले जिस तरह इन दोनों ने मेरे छोटेपन में मेरी मेरी परवरिश की है (24) - रब्बुकुम् अअ्लमु बिमा फी नुफूसिकुम् इन् तकूनू सालिही -न फ़ – इन्नहू का-न लिल् – अव्वाबी-न ग़फूरा
इसी तरह तू भी इन पर रहम फरमा तुम्हारे दिल की बात तुम्हारा परवरदिगार ख़ूब जानता है अगर तुम (वाक़ई) नेक होगे और भूले से उनकी ख़ता की है तो वह तुमको बख़्श देगा क्योंकि वह तो तौबा करने वालों का बड़ा बख़शने वाला है (25) - व आति ज़ल्कुर्बा हक़्क़हू वल्-मिस्की-न वब्नस्सबीलि व ला तु बज़्ज़िर तब्ज़ीरा
और क़राबतदारों और मोहताज और परदेसी को उनका हक़ दे दो और ख़बरदार फुज़ूल ख़र्ची मत किया करो (26) - इन्नल्-मु बज्ज़िरी-न कानू इख़्वानश् शयातीनि, व कानश्शैतानु लिरब्बिही कफूरा
क्योंकि फुज़ूलख़र्ची करने वाले यक़ीनन शैतानों के भाई है और शैतान अपने परवरदिगार का बड़ा नाशुक्री करने वाला है (27) - व इम्मा तुअ्-रिज़न्-न अन्हुमुब्तिगा-अ रह़्मतिम्-मिर्रब्बि-क तरजूहा फ़कुल-लहुम् क़ौलम्-मैसूरा
और तुमको अपने परवरदिगार के फज़ल व करम के इन्तज़ार में जिसकी तुम को उम्मीद हो (मजबूरन) उन (ग़रीबों) से मुँह मोड़ना पड़े तो नरमी से उनको समझा दो (28) - व ला तज्अ़ल् य-द-क म़ग्लू-लतन् इला अुनुकि-क व ला तब्सुत्हा कुल्लल्बस्ति फ़-तक़अु-द मलूमम्-मह्सूरा
और अपने हाथ को न तो गर्दन से बँधा हुआ (बहुत तंग) कर लो (कि किसी को कुछ दो ही नहीं) और न बिल्कुल खोल दो कि सब कुछ दे डालो और आखि़र तुम को मलामत ज़दा हसरत से बैठना पड़े (29) - इन्-न रब्ब-क यब्सुतुर्रिज्-क लिमंय्यशा-उ व यक्दिरू, इन्नहू का-न बिअिबादिही ख़बीरम्-बसीरा *
इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ {बढ़ा} देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग रखता है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों से बहुत बाख़बर और देखभाल रखने वाला है (30) - व ला तक्तुलू औलादकुम् ख़श्य-त इम्लाकिन्, नह़्नु नरज़ुकुहुम् व इय्याकुम्, इन्-न क़त्लहुम् का- न ख़ित् अन् कबीरा
और (लोगों) मुफलिसी {ग़रीबी} के ख़ौफ से अपनी औलाद को क़त्ल न करो (क्योंकि) उनको और तुम को (सबको) तो हम ही रोज़ी देते हैं बेशक औलाद का क़त्ल करना बहुत सख़्त गुनाह है (31) - व ला तक्रबुज्ज़िना इन्नहू का-न फ़ाहि – शतन्, व सा – अ सबीला
और (देखो) जि़ना के पास भी न फटकना क्योंकि बेशक वह बड़ी बेहयाई का काम है और बहुत बुरा चलन है (32) - व ला तक्रबुज्ज़िना इन्नहू का-न फ़ाहि – शतन्, व सा – अ सबीला
और जिस जान का मारना ख़ुदा ने हराम कर दिया है उसके क़त्ल न करना मगर जायज़ तौर पर और जो शख़्स नाहक़ मारा जाए तो हमने उसके वारिस को (क़ातिल पर क़सास का क़ाबू दिया है तो उसे चाहिए कि क़त्ल {ख़ून का बदला लेने) में ज़्यादती न करे बेशक वह मदद दिया जाएगा (33) - व ला तक्रबू मालल् यतीमि इल्ला बिल्लती हि – य अह्सनु हत्ता यब्लु-ग़ अशुद्दहू व औफू बिल्अ़ह्दि इन्नल् -अ़ह-द का-न मस्ऊला
(कि क़त्ल ही करे और माफ न करे) और यतीम जब तक जवानी को पहुँचे उसके माल के क़रीब भी न पहुँच जाना मगर हाँ इस तरह पर कि (यतीम के हक़ में) बेहतर हो और एहद को पूरा करो क्योंकि (क़यामत में) एहद की ज़रुर पूछ गछ होगी (34) - व औफुल्कै ल इज़ा किल्तुम् व जिनू बिल – किस्तासिल-मुस्तकीमि, ज़ालि- क खैरूंव् – व अह्सनु तअ्वीला
और जब नाप तौल कर देना हो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो और (जब तौल कर देना हो तो) बिल्कुल ठीक तराजू से तौला करो (मामले में) यही (तरीक़ा) बेहतर है और अन्जाम (भी उसका) अच्छा है (35) - व ला तक़्फु मा लै-स ल-क बिही अिल्मुन्, इन्नस्सम् – अ वल्ब स- र वल्फुआ-द कुल्लू उलाइ – क का- न अ़न्हु मस्ऊला
और जिस चीज़ का कि तुम्हें यक़ीन न हो (ख़्वाह मा ख़्वाह) उसके पीछे न पड़ा करो (क्योंकि) कान और आँख और दिल इन सबकी (क़यामत के दिना यक़ीनन बाज़पुर्स होती है (36) - व ला तम्शि फ़िल्अर्ज़ि म रहन् इन्न- क लन् तख्रिकल् – अर्ज़ व लन् तब्लुग़ल् – जिबा – ल तूला
और (देखो) ज़मीन पर अकड़ कर न चला करो क्योंकि तू (अपने इस धमाके की चाल से) न तो ज़मीन को हरगिज़ फाड़ डालेगा और न (तनकर चलने से) हरगिज़ लम्बाई में पहाड़ों के बराबर पहुँच सकेगा (37) - कुल्लु ज़ालि-क का-न सय्यिउहू अिन् – द रब्बि – क मक्रूहा
(ऐ रसूल) इन सब बातों में से जो बुरी बात है वह तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक नापसन्द है (38) - कुल्लु ज़ालि-क का-न सय्यिउहू अिन् – द रब्बि – क मक्रूहा
ये बात तो हिकमत की उन बातों में से जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे पास ‘वही’ भेजी और ख़ुदा के साथ कोई दूसरा माबूद न बनाना और न तू मलामत ज़दा राइन्द {धुत्कारा} होकर जहन्नुम में झोंक दिया जाएगा (39) - अ – फ़अस्फाकुम् रब्बुकुम् बिल्बनी – न वत्त-ख-ज़ मिनल् – मलाइ – कति इनासन, इन्नकुम् ल – तकूलू – न कौलन् अ़ज़ीमा *
(ऐ मुशरेकीन मक्का) क्या तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें चुन चुन कर बेटे दिए हैं और खुद बेटियाँ ली हैं (यानि) फरिश्ते इसमें शक नहीं कि बड़ी (सख़्त) बात कहते हो (40) - व ल क़द् सर्रफ्ना फ़ी हाज़ल कुरआनि लि-यज़्ज़क्करू, व मा यज़ीदुहुम् इल्ला नुफूरा
और हमने तो इसी क़ुरान में तरह तरह से बयान कर दिया ताकि लोग किसी तरह समझें मगर उससे तो उनकी नफरत ही बढ़ती गई (41) - कुल् लौ का-न म-अ़हू आलि – हतुन् कमा यकूलू – न इज़ल् – लब्तग़ौ इला ज़िल-अर्शि सबीला
(ऐ रसूल उनसे) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा के साथ जैसा ये लोग कहते हैं और माबूद भी होते तो अब तक उन माबूदों ने अर्श तक (पहुँचाने की कोई न कोई राह निकाल ली होती (42) - सुब्हानहू व तआ़ला अम्मा यकूलू-न अुलुव्वन् कबीरा
जो बेहूदा बातें ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) कहा करते हैं वह उनसे बहुत बढ़के पाक व पाकीज़ा और बरतर है (43) - तुसब्बिहु लहुस्समावातुस्सब् अु वल्अर्जु व मन् फ़ीहिन् – न, व इम् – मिन् शैइन् इल्ला युसब्बिहु बिहम्दिही व लाकिल्-ला तफ़्क़हू – न तस्बी – हहुम्, इन्नहू का-न हलीमन् ग़फूरा
सातों आसमान और ज़मीन और जो लोग इनमें (सब) उसकी तस्बीह करते हैं और (सारे जहाँन) में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसकी (हम्द व सना) की तस्बीह न करती हो मगर तुम लोग उनकी तस्बीह नहीं समझते इसमें शक नहीं कि वह बड़ा बुर्दबार बख़्शने वाला है (44)
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