18 सूरा अल कहफ़ हिंदी में पेज 3

सूरा अल कहफ़ हिंदी में | Surah Al-Kahf in Hindi

  1. औ युस्बि-ह माउहा गौ़रन् फ़-लन् तस्तती-अ़ लहू त-लबा
    उसका पानी नीचे उतर (के खुश्क) हो जाए फिर तो उसको किसी तरह तलब न कर सके।
  2. व उही-त बि-स-मरिही फ़-अस्ब-ह युक़ल्लिबु कफ़्फै़हि अ़ला मा अन्फ़-क़ फ़ीहा व हि-य ख़ावि-यतुन् अ़ला अुरूशिहा व यकूलु यालैतनी लम् उशिरक् बिरब्बी अ-हदा
    (चुनान्चे अज़ाब नाज़िल हुआ) और उसके (बाग़ के) फल (आफत में) घेर लिए गए तो उस माल पर जो बाग़ की तैयारी में सर्फ (ख़र्च) किया था (अफसोस से) हाथ मलने लगा और बाग़ की ये हालत थी कि अपनी टहनियों पर औंधा गिरा हुआ पड़ा था तो कहने लगा काश मै अपने परवरदिगार का किसी को शरीक न बनाता।
  3. व लम् तकुल्लहू फ़ि-अतुंय्यन्सुरूनहू मिन् दूनिल्लाहि व मा का-न मुन्तसिरा
    और ख़ुदा के सिवा उसका कोई जत्था भी न था कि उसकी मदद करता और न वह बदला ले सकता था इसी जगह से (साबित हो गया।
  4. हुना लिकल्-व ला-यतु लिल्लाहिल्-हक्कि, हु-व खै़रून् सवाबंव्-व खै़रून् अुक्बा*
    कि सरपरस्ती ख़ास ख़ुदा ही के लिए है जो सच्चा है वही बेहतर सवाब (देने) वाला है और अन्जाम के जंगल से भी वही बेहतर है।
  5. वज्रिब् लहुम् म-सलल्-हयातिद्दुन्या कमाइन् अन्ज़ल्नाहु मिनस्समा-इ फ़ख़्त-ल-त बिही नबातुल्अर्ज़ि फ़अस्ब-ह हशीमन् तज्रूहुर्रियाहु , व कानल्लाहु अ़ला ” कुल्लि शैइम्-मुक्तदिरा
    और (ऐ रसूल!) इनसे दुनिया की ज़िन्दगी की मसल भी बयान कर दो कि उसके हालत पानी की सी है जिसे हमने आसमान से बरसाया तो ज़मीन की उगाने की ताक़त उसमें मिल गई और (खूब फली फूली) फिर आख़िर रेज़ा रेज़ा (भूसा) हो गई कि उसको हवाएँ उड़ाए फिरती है और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है।
  6. अल्मालु वल्बनू-न जीनतुल-हयातिद्दुन्या वल्बाकियातुस्सालिहातु खैरून् अिन्-द रब्बि-क सवाबंव्-व खैरून् अ-मला
    (ऐ रसूल!) माल और औलाद (इस ज़रा सी) दुनिया की ज़िन्दगी की ज़ीनत हैं और बाक़ी रहने वाली नेकियाँ तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक सवाब में उससे कही ज्यादा अच्छी हैं और तमन्नाएँ व आरजू की राह से (भी) बेहतर हैं।
  7. व यौ-म नुसय्यिरूल्-जिबा-ल व तरल्-अर्-ज़ बारि-ज़तंव्-व हशरनाहुम् फ़-लम् नुग़ादिर् मिन्हुम् अ-हदा
    और (उस दिन से डरो) जिस दिन हम पहाड़ों को चलाएँगें और तुम ज़मीन को खुला मैदान (पहाड़ों से) खाली देखोगे और हम इन सभी को इकट्ठा करेगे तो उनमें से एक को न छोड़ेगें।
  8. व अुरिजू अला रब्बि-क सफ़्फ़न्, ल-क़द् जिअ्तुमूना कमा ख़लक़्नाकुम् अव्व-ल मर्रतिम् बल् ज़अ़म्तुम् अल्-लन् नज्-अ़-ल लकुम् मौअिदा
    सबके सब तुम्हारे परवरदिगार के सामने कतार पे क़तार पेश किए जाएँगें और (उस वक्त हम याद दिलाएँगे कि जिस तरह हमने तुमको पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) तुम लोगों को (आख़िर) हमारे पास आना पड़ा मगर तुम तो ये ख्याल करते थे कि हम तुम्हारे (दोबारा पैदा करने के) लिए कोई वक्त ही न ठहराएँगें।
  9. व वुज़िअ़ल्-किताबु फ़-तरल्-मुज्रिमी-न मुश्फिकी-न मिम्मा फीहि व यकूलू-न यावैल-तना मा लि-हाज़ल-किताबि ला युग़ादिरू सगी़-रतंव्-व ला कबी-रतन् इल्ला अह्साहा व व-जदू मा अ़मिलू हाज़िरन्, व ला यज्लिमु रब्बु-क अ-हदा*
    और लोगों के आमाल की किताब (सामने) रखी जाएँगी तो तुम गुनेहगारों को देखोगे कि जो कुछ उसमें (लिखा) है (देख देख कर) सहमे हुए हैं और कहते जाते हैं हाए हमारी यामत ये कैसी किताब है कि न छोटे ही गुनाह को बे क़लमबन्द किए छोड़ती है न बड़े गुनाह को और जो कुछ इन लोगों ने (दुनिया में) किया था वह सब (लिखा हुआ) मौजूद पाएँगें और तेरा परवरदिगार किसी पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म न करेगा।
  10. व इज् कुल्ना लिल्मलाइ-कतिस्जुदू लिआद-म फ़-स-जदू इल्ला इब्ली-स, का-न मिनल्-जिन्नि फ़-फ़-स-क अन् अम्रि रब्बिही, अ-फ़-तत्तखिजूनहू व जुर्रिय्य-तहू औलिया-अ मिन् दूनी व हुम् लकुम् अ़दुव्वुन् , बिअ्-स लिज़्जा़लिमी-न ब-दला
    और (वह वक्त याद करो) जब हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा करो तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया (ये इबलीस) जिन्नात से था तो अपने परवरदिगार के हुक्म से निकल भागा तो (लोगों) क्या मुझे छोड़कर उसको और उसकी औलाद को अपना दोस्त बनाते हो हालॉकि वह तुम्हारा (क़दीमी) दुश्मन हैं ज़ालिमों (ने ख़ुदा के बदले शैतान को अपना दोस्त बनाया ये उन) का क्या बुरा ऐवज़ है।
  1. मा अश्हत्तुहुम् ख़ल्कस्-समावाति वल्अर्जि व ला ख़ल्-क अन्फुसिहिम् व मा कुन्तु मुत्तख़िज़ल्-मुज़िल्ली-न अ़जुदा
    मैने न तो आसमान व ज़मीन के पैदा करने के वक्त उनको (मदद के लिए) बुलाया था और न खुद उनके पैदा करने के वक्त और मै (ऐसा गया गुज़रा) न था कि मै गुमराह करने वालों को मददगार बनाता।
  2. व यौ-म यकूलु नादू शु-रकाइ-यल्लजी-न ज़अ़म्तुम् फ़-दऔ़हुम् फ़-लम् यस्तजीबू लहुम् व जअ़ल्ना बैनहुम् मौबिका
    और (उस दिन से डरो) जिस दिन ख़ुदा फरमाएगा कि अब तुम जिन लोगों को मेरा शरीक़ ख्याल करते थे उनको (मदद के लिए) पुकारो तो वह लोग उनको पुकारेगें मगर वह लोग उनकी कुछ न सुनेगें और हम उन दोनों के बीच में महलक (खतरनाक) आड़ बना देंगे।
  3. व र-अल् मुज्रिमूनन्ना-र फ़-ज़न्नू अन्नहुम् मुवाकिअूहा व लम् यजिदू अन्हा मस्रिफ़ा*
    और गुनेहगार लोग (देखकर समझ जाएँगें कि ये इसमें सोके जाएँगे और उससे गरीज़ (बचने की) की राह न पाएँगें।
  4. व ल-कद् सर्रफ्ना फ़ी हाज़ल्-कुरआनि लिन्नासि मिन् कुल्लि म-सलिन्, व कानल्-इन्सानु अक्स-र शैइन् ज-दला
    और हमने तो इस क़ुरान में लोगों (के समझाने) के वास्ते हर तरह की मिसालें फेर बदल कर बयान कर दी है मगर इन्सान तो तमाम मख़लूक़ात से ज्यादा झगड़ालू है।
  5. व मा म-नअ़न्-ना-स अंय्युअ्मिनू इज् जाअहुमुल्हुदा व यस्तग्फिरू रब्बहुम् इल्ला अन् तअ्ति-यहुम् सुन्नतुल-अव्वली-न औ यअ्ति-यहुमुल-अ़ज़ाबु कुबुला
    और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो (फिर) उनको ईमान लाने और अपने परवरदिगार से मग़फिरत की दुआ माँगने से (उसके सिवा और कौन) अम्र मायने है कि अगलों की सी रीत रस्म उनको भी पेश आई या हमारा अज़ाब उनके सामने से (मौजूद) हो।
  6. व मा नुर्सिलुल्-मुर्सली-न इल्ला मुबश्शिरी-न व मुन्ज़िरी-न व युजादिलुल्लज़ी-न क-फरू बिल्बातिलि लियुद्हिजू बिहिल्हक्-क वत्त-ख़जू आयाती व मा उन्ज़िरू हुजुवा
    और हम तो पैग़म्बरों को सिर्फ इसलिए भेजते हैं कि (अच्छों को निजात की) खुशख़बरी सुनाएंऔर (बदों को अज़ाब से) डराएंऔर जो लोग काफिर हैं झूटी झूटी बातों का सहारा पकड़ के झगड़ा करते है ताकि उसकी बदौलत हक़ को (उसकी जगह से उखाड़ फेकें और उन लोगों ने मेरी आयतों को जिस (अज़ाब से) ये लोग डराए गए हॅसी ठ्ठ्ठा (मज़ाक) बना रखा है।
  7. व मन् अज़्लमु मिम्-मन् जुक्कि-र बिआयाति रब्बिही फ़-अअ्र-ज़ अन्हा व नसि-य मा क़द्दमत् यदाहु, इन्ना जअ़ल्ना अ़ला कुलूबिहिम् अकिन्न-तन् अंय्यफ़्क़हूहु व फी आज़ानिहिम् वक्रन्, व इन् तद्अुहुम् इलल्-हुदा फ़-लंय्यह्तदू इज़न् अ-बदा
    और उससे बढ़कर और कौन ज़ालिम होगा जिसको ख़ुदा की आयतें याद दिलाई जाए और वह उनसे रद गिरदानी (मुँह फेर ले) करे और अपने पहले करतूतों को जो उसके हाथों ने किए हैं भूल बैठे (गोया) हमने खुद उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं कि वह (हक़ बात को) न समझ सकें और (गोया) उनके कानों में गिरानी पैदा कर दी है कि (सुन न सकें) और अगर तुम उनको राहे रास्त की तरफ़ बुलाओ भी तो ये हरगिज़ कभी रुबरु होने वाले नहीं हैं।
  8. व रब्बुकल-ग़फूरू जुर्रह्मति, लौ युआखिजुहुम् बिमा क-सबू ल-अ़ज्ज-ल लहुमुल्-अज़ा-ब , बल्-लहुम् मौअिदुल्-लंय्यजिदू मिन् दूनिही मौअिला
    और (ऐ रसूल!) तुम्हारा परवरदिगार तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है अगर उनकी करतूतों की सज़ा में धर पकड़ करता तो फौरन (दुनिया ही में) उन पर अज़ाब नाज़िल कर देता मगर उनके लिए तो एक मियाद (मुक़र्रर) है जिससे खुदा के सिवा कहीं पनाह की जगह न पाएंगें।
  9. व तिल्कल्-कुरा अह़्लक्नाहुम् लम्मा ज़-लमू व जअ़ल्ना लिमह़्लिकिहिम् मौअिदा*
    और ये बस्तियाँ (जिन्हें तुम अपनी ऑंखों से देखते हो) जब उन लोगों ने सरकशी तो हमने उन्हें हलाक कर मारा और हमने उनकी हलाकत की मियाद मुक़र्रर कर दी थी।
  10. व इज् का-ल मूसा लि-फ़ताहु ला अब्रहु हत्ता अब्लु-ग़ मज्म-अ़ल् बहरैनि औ अम्ज़ि-य हुकुबा
    (ऐ रसूल!) वह वाक़या याद करो जब मूसा खिज़्र की मुलाक़ात को चले तो अपने जवान वसी यूशा से बोले कि जब तक में दोनों दरियाओं के मिलने की जगह न पहुँच जाऊँ (चलने से) बाज़ न आऊँगा।

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