17 सूरह बनी इसराईल हिंदी में पेज 4

सूरह बनी इसराईल हिंदी में | Surah Al-Isra in Hindi

  1. व इज़ा मस्सकुमुज़्ज़ुर्रु फ़िल्बहरि ज़ल् – ल मन् तद्अू -न इल्ला इय्याहु फ़ -लम्मा नज्जाकुम् इलल् -बर्रि अअ्रज्तुम्, व कानल् – इन्सानु कफूरा
    और जब समन्दर में कभी तुम को कोई तकलीफ पहुँचे तो जिनकी तुम इबादत किया करते थे ग़ायब हो गए मगर बस वही (एक ख़ुदा याद रहता है) उस पर भी जब ख़ुदा ने तुम को छुटकारा देकर खुशकी तक पहुँचा दिया तो फिर तुम इससे मुँह मोड़ बैठें और इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है (67)
  2. अ-फ़-अमिन्तुम् अंय्यख़्सि-फ़ बिकुम् जानिबल् – बर्रि औ युर्सि – ल अ़लैकुम् हासिंबऩ सुम् -म ला तजिदू लकुम् वकीला
    तो क्या तुम उसको इस का भी इत्मिनान हो गया कि वह तुम्हें खुश्की तरफ (ले जाकर) (क़ारुन की तरह) ज़मीन में धंसा दे या तुम पर (क़ौम) लूत की तरह पत्थरों का मेंह बरसा दे फिर (उस वक़्त) तुम किसी को अपना कारसाज़ न पाओगे (68)
  3. अम् अमिन्तुम् अंय्युई-दकुम् फ़ीहि ता रतन उख़्रा फयुरसि – ल अ़लैकुम् क़ासिफ़म् – मिनर् रीहि फ़्युग्रि क़कुम् बिमा कफरतुम् सुम्-म ला तजिदू लकुम् अ़लैना बिही तबीआ
    या तुमको इसका भी इत्मेनान हो गया कि फिर तुमको दोबारा इसी समन्दर में ले जाएगा उसके बाद हवा का एक ऐसा झोका जो (जहाज़ के) परख़चे उड़ा दे तुम पर भेजे फिर तुम्हें तुम्हारे कुफ्र की सज़ा में डुबा मारे फिर तुम किसी को (ऐसा हिमायती) न पाओगे जो हमारा पीछा करे और (तुम्हें छोड़ा जाए) (69)
  4. व ल – कद् कर्रम्ना बनी आद-म व हमल्नाहुम् फ़िल्बरिं वल्बहरि व रज़क़्नाहुम् मिनत्तय्यिबाति व फज़्ज़ल्नाहुम् अ़ला कसीरिम् – मिम्मन् ख़लक़्ना तफ़्ज़ीला *
    और हमने यक़ीनन आदम की औलाद को इज़्ज़त दी और खुश्की और तरी में उनको (जानवरों कश्तियों के ज़रिए) लिए लिए फिरे और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी और अपने बहुतेरे मख़लूक़ात पर उनको अच्छी ख़ासी फज़ीलत दी (70)
  5. यौ-म नद्अू कुल्-ल उनासिम् बि- इमामिहिम् फ़ मन् ऊति य किताबहू बियमीनिही फ़-उलाइ-क यक्रऊ -न किताबहुम् व ला युज़्लमू- न फतीला
    उस दिन (को याद करो) जब हम तमाम लोगों को उन पेशवाओं के साथ बुलाएँगें तो जिसका नामए अमल उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा तो वह लोग (खुश खुश) अपना नामए अमल पढ़ने लगेगें और उन पर रेशा बराबर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा (71)
  6. व मन् का- न फ़ी हाज़िही अअ्मा फहु-व फिल्आख़िरति अअ्मा व अज़ल्लु सबीला
    और जो शख़्स इस (दुनिया) में (जान बूझकर) अंधा बना रहा तो वह आखि़रत में भी अंधा ही रहेगा और (नजात) के रास्ते से बहुत दूर भटका सा हुआ (72)
  7. व इन् कादू लयफ्तिनू -न-क अ़निल्लज़ी औहैना इलै-क लितफ़्तरि-य अ़लैना ग़ैरहू व इज़ल लत्त-ख़जू-क ख़लीला
    और (ऐ रसूल) हमने तो (क़ुरान) तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए भेजा अगर चे लोग तो तुम्हें इससे बहकाने ही लगे थे ताकि तुम क़ुरान के अलावा फिर (दूसरी बातों का) इफ़तेरा बाँधों और (जब तुम ये कर गुज़रते उस वक़्त ये लोग तुम को अपना सच्चा दोस्त बना लेते (73)
  8. व लौ ला अन् सब्बत्ना – क ल – क़द् कित् – त तर् – कनु इलैहिम् शैअन् क़लीला
    और अगर हम तुमको साबित क़दम न रखते तो ज़रुर तुम भी ज़रा (ज़हूर) झुकने ही लगते (74)
  9. इज़ल् ल – अज़क्ना – क ज़िअ्फल् – हयाति व ज़िअ्फ़ल् – ममाति सुम्-म ला तजिदु ल – क अ़लैना नसीरा
    और (अगर तुम ऐसा करते तो) उस वक़्त हम तुमको जि़न्दगी में भी और मरने पर भी दोहरे (अज़ाब) का मज़ा चखा देते और फिर तुम को हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार भी न मिलता (75)
  10. व इन् कादू लयस्तफिज़्जू-न-क मिनल्अर्ज़ि लियुख्रिजू-क मिन्हा व इज़ल् – ला यल्बसू-न ख़िलाफ़-क इल्ला क़लीला
    और ये लोग तो तुम्हें (सर ज़मीन मक्के) से दिल बर्दाश्त करने ही लगे थे ताकि तुम को वहाँ से (शाम की तरफ) निकाल बाहर करें और ऐसा होता तो तुम्हारे पीछे में ये लोग चन्द रोज़ के सिवा ठहरने भी न पाते (76)
  11. सुन्न – त मन् कद् अरसल्ना क़ब्ल-क मिर्रूसुलिना व ला तजिदु लिसुन्नतिना तह़्वीला *
    तुमसे पहले जितने रसूल हमने भेजे हैं उनका बराबर यही दस्तूर रहा है और जो दस्तूर हमारे (ठहराए हुए) हैं उनमें तुम तग़्य्युर तबद्दुल {रद्दो बदल} न पाओगे (77)
  12. अकिमिस्सला – त लिदुलूकिश्शम्सि इला ग़ – सकिल्लैलि व कुरआनल् – फ़ज्रि, इन् – न कुरआनल-फ़ज्रि का-न मशहूदा
    (ऐ रसूल) सूरज के ढलने से रात के अँधेरे तक नमाज़े ज़ोहर, अ०, मग़रिब, इशा पढ़ा करो और नमाज़ सुबह (भी) क्योंकि सुबह की नमाज़ पर (दिन और रात दोनों के फरिश्तौं की) गवाही होती है (78)
  13. व मिनल्लैलि फ़-तहज्जद् बिही नाफ़ि – लतल् ल -क अ़सा अंय्यब्अ -स-क रब्बु-क मक़ामम – मह़्मूदा
    और रात के ख़ास हिस्से में नमाजे़ तहज्जुद पढ़ा करो ये सुन्नत तुम्हारी खास फज़ीलत हैं क़रीब है कि क़यामत के दिन ख़ुदा तुमको मक़ामे महमूद तक पहुँचा दे (79)
  14. व कुर्रब्बि अद्खिल्नी मुद्ख़ – ल सिद्किंव्-व अख़्रिज्नी मुख़्र-ज सिद्किंव् – वज्अ़ल् – ली मिल्लदुन् – क सुल्तानन् नसीरा
    और ये दुआ माँगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहाँ) पहुँचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से एक हुकूमत अता फरमा जिस से (हर कि़स्म की) मदद पहुँचे (80)
  15. व कुल जाअल् – हक्कु व ज़ – हक़ल – बातिलु, इन्नल – बाति – ल का – न ज़हूका
    और (ऐ रसूल) कह दो कि (दीन) हक़ आ गया और बातिल नेस्तनाबूद हुआ इसमें शक नहीं कि बातिल मिटने वाला ही था (81)
  16. व नुनज़्ज़िलु मिनल्-कुरआनि मा हु-व शिफाउंव् – व रह़्मतुल् लिल मुअ्मिनी-न व ला यज़ीदुज़्ज़ालिमी – न इल्ला ख़सारा
    और हम तो क़ुरान में वही चीज़ नाजि़ल करते हैं जो मोमिनों के लिए (सरासर) शिफा और रहमत है (मगर) नाफरमानों को तो घाटे के सिवा कुछ बढ़ाता ही नहीं (82)
  17. व इज़ा अन्अ़म्ना अलल् – इन्सानि अअ्र-ज़ व नआ बिजानिबिही व इज़ा मस्सहुश्शर्रु का-न यऊसा
    और जब हमने आदमी को नेअमत अता फरमाई तो (उल्टे) उसने (हमसे) मुँह फेरा और पहलू बचाने लगा और जब उसे कोई तकलीफ छू भी गई तो मायूस हो बैठा (83)
  18. कुल कुल्लुंय्य अ्मलु अ़ला शाकि-लतिही, फ़रब्बुकुम् अअ़लमु बिमन् हु-व अह्दा सबीला *
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हर (एक अपने तरीक़े पर कारगुज़ारी करता है फिर तुम में से जो शख़्स बिल्कुल ठीक सीधी राह पर है तुम्हारा परवरदिगार (उससे) खूब वाकि़फ है (84)
  19. व यस्अलून – क अनिर्रुहि कुलिर्रुहु मिन् अम्रि रब्बी व मा ऊतीतुम् मिनल्- अिल्मि इल्ला क़लीला
    और (ऐ रसूल) तुमसे लोग रुह के बारे में सवाल करते हैं तुम (उनके जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परदिगार के हुक्म से (पैदा हुई है) और तुमको बहुत थोड़ा सा इल्म दिया गया है (85)
  20. व ल – इन् शिअ्ना लनज़्ह – बन्-न बिल्लज़ी औहैना इलै-क सुम्-म ला तजिदु ल – क बिही अ़लैना वकीला
    (इसकी हक़ीकत नहीं समझ सकते) और (ऐ रसूल) अगर हम चाहे तो जो (क़ुरान) हमने तुम्हारे पास ‘वही’ के ज़रिए भेजा है (दुनिया से) उठा ले जाएँ फिर तुम अपने वास्ते हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार न पाओगे (86)
  21. इल्ला रह़्म – तम् मिर्रब्बि-क, इन्- न फज़्लहू का-न अलै-क कबीरा
    मगर ये सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है (कि उसने ऐसा किया) इसमें शक नहीं कि उसका तुम पर बड़ा फज़ल व करम है (87)
  22. कुल ल – इनिज्त म अ़तिल इन्सु वल्जिन्नु अ़ला अंय्यअ्तू बिमिस्लि हाज़ल्-कुरआनि ला यअ्तू-न बिमिस्लिही व लौ का – न बअ्जुहुम् लिबअ्ज़िन ज़हीरा
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अगर सारे दुनिया जहाँन के) आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि उस क़ुरान का मिसल ले आएँ तो (ना मुमकिन) उसके बराबर नहीं ला सकते अगरचे (उसको कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने (88)

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