17 सूरह बनी इसराईल हिंदी में पेज 5

सूरह बनी इसराईल हिंदी में | Surah Al-Isra in Hindi

  1. व ल-क़द् सर्रफ़्ना लिन्नासि फ़ी हाज़ल्-क़ुरआनि मिन् कुल्लि म-सलिन्, फ़-अबा अक्सरून्नासि इल्ला कुफूरा
    और हमने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस क़ुरान में हर कि़स्म की मसलें अदल बदल के बयान कर दीं उस पर भी अक्सर लोग बग़ैर नाशुक्री किए नहीं रहते।
  2. व क़ालू लन् नुअ्मि-न ल-क हत्ता तफ़्जु-र लना मिनल्- अर्ज़ि यम्बूआ
    (ऐ रसूल! कुफ्फार मक्के ने) तुमसे कहा कि जब तक तुम हमारे वास्ते ज़मीन से चश्मा (न) बहा निकालोगे हम तो तुम पर हरगिज़ इमान न लाएँगें।
  3. औ तकू-न ल-क जन्नतुम् मिन् नख़ीलिंव्-व अि-नबिन् फ़तुफ़ज्जिरल्-अन्हा-र ख़िलालहा तफ़्जीरा
    या (ये नहीं तो) खजूरों और अँगूरों का तुम्हारा कोई बाग़ हो उसमें तुम बीच बीच में नहरे जारी करके दिखा दो।
  4. औ तुस्क़ितस्समा अ कमा ज़अ़म्-त अ़लैना कि सफ़न् औ तअ्ति-य बिल्लाहि वल्मलाइ कति क़बीला
    या जैसा तुम गुमान रखते थे हम पर आसमान ही को टुकड़े (टुकड़े) करके गिराओ या अल्लाह और फरिष्तों को (अपने क़ौल की तस्दीक़) में हमारे सामने (गवाही में ला खड़ा कर दिया।
  5. औ यकू-न ल-क बैतुम्-मिन् जुख़्रुफिन् औ तरक़ा फिस्समा-इ, व लन् नुअ्मि-न लिरूक़िय्यि-क हत्ता तुनज्ज़ि-ल अ़लैना किताबन् नक़्रउहू, क़ुल सुब्हा-न रब्बी हल् कुन्तु इल्ला ब-शरर्-रसूला *
    और जब तक तुम हम पर अल्लाह के यहाँ से एक किताब न नाजि़ल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक़्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ायल न होगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुबहान अल्लाह मै एक आदमी (अल्लाह के) रसूल के सिवा आखि़र और क्या हूँ।
  6. व मा म-न अ़न्ना-स अंय्युअ्मिनू इज़् जा-अहुमुल्-हुदा इल्ला अन् क़ालू अ-ब-अ़सल्लाहु ब-शरर्रसूला
    (जो ये बेहूदा बातें करते हो) और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो उनको इमान लाने से इसके सिवा किसी चीज़ ने न रोका कि वह कहने लगे कि क्या अल्लाह ने आदमी को रसूल बनाकर भेजा है।
  7. क़ुल् लौ का-न फ़िल् अर्ज़ि मलाइ कतुंय्यम्शू-न मुत्मइन्नी-न लनज़्ज़ल्ना अ़लैहिम् मिनस्समा-इ म-लकर्रसूला
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते (बसे हुये) होते कि इत्मेनान से चलते फिरते तो हम उन लोगों के पास फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर नाजि़ल करते।
  8. क़ुल कफ़ा बिल्लाहि शहीदम्-बैनी व बैनकुम्, इन्नहू का-न बिअिबादिही ख़बीरम्-बसीरा
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हमारे तुम्हारे दरम्यिान गवाही के वास्ते बस अल्लाह काफी है इसमें शक नहीं कि वह अपने बन्दों के हाल से खूब वाकि़फ और देखता रहता है।
  9. व मंय्यह्दिल्लाहु फहुवल्-मुह्तदि, व मंय्युज़्लिल् फ़-लन् तजि-द लहुम् औलिया-अ मिन् दूनिही, व नह्शुरूहुम् यौमल्-क़ियामति अ़ला वुजूहिहिम् अुम्यंव्-व बुक्मंव्-व सुम्मन्, मअ्वाहुम् जहन्नमु, कुल्लमा ख़बत् ज़िद्-ना-हुम् सईरा•
    और अल्लाह जिसकी हिदायत करे वही हिदायत याफता है और जिसको गुमराही में छोड़ दे तो (याद रखो कि) फिर उसके सिवा किसी को उसका सरपरस्त न पाआगे और क़यामत के दिन हम उन लोगों का मुँह के बल औंधे और गूँगें और बहरे क़ब्रों से उठाएँगें उनका ठिकाना जहन्नुम है कि जब कभी बुझने को होगी तो हम उन लोगों पर (उसे) और भड़का देंगे।
  10. ज़ालि-क जज़ा-उहुम् बिअन्नहुम् क-फ़रू बिआयातिना व क़ालू अ-इज़ा कुन्ना अिज़ामंव्व रूफ़ातन् अ-इन्ना लमब्अूसू-न ख़ल्क़न् जदीदा
    ये सज़ा उनकी इस वज़ह से है कि उन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया और कहने लगे कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल) कर हड्डियाँ और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगीं तो क्या फिर हम नये सिरे से पैदा करके उठाए जाएँगें।
  11. अ-व लम् यरौ अन्नल्लाहल्लज़ी ख़लक़स्समावाति वल्अर्ज़ क़ादिरून् अला अंय्यख़्लु-क़ मिस्लहुम् व ज-अ-ल लहुम् अ जलल्-ला रै-ब फ़ीहि, फ़-अबज़्ज़ालिमू – न इल्ला कुफूरा
    क्या उन लोगों ने इस पर भी नहीं ग़ौर किया कि वह अल्लाह जिसने सारे आसमान और ज़मीन बनाए इस पर भी (ज़रुर) क़ादिर है कि उनके ऐसे आदमी दोबारा पैदा करे और उसने उन (की मौत) की एक मियाद मुक़र्रर कर दी है जिसमें ज़रा भी शक नहीं उस पर भी ये ज़ालिम इन्कार किए बग़ैर न रहे।
  12. क़ुल् लौ अन्तुम् तम्लिकू न ख़ज़ाइ-न रह्-मति रब्बी इज़ल् ल-अम्सक्तुम् ख़श्य-तल इन्फ़ाक़ि, व कानल्-इन्सानु क़तूरा *
    (ऐ रसूल!) इनसे कहो कि अगर मेरे परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने भी तुम्हारे एख़तियार में होते तो भी तुम खर्च हो जाने के डर से (उनको) बन्द रखते और आदमी बड़ा ही तंग दिल है।
  13. व ल-क़द् आतैना मूसा तिस्-अ आयातिम्-बय्यिनातिन् फ़स् अल् बनी इस्राई-ल इज़् जा-अहुम् फ़क़ा-ल लहू फिरऔनु इन्नी ल-अज़ुन्नु-क या मूसा मस्हूरा
    और हमने यक़ीनन मूसा को खुले हुए नौ मौजिज़े अता किए तो (ऐ रसूल!) बनी इसराईल से (यही) पूछ देखो कि जब मूसा उनके पास आए तो फिरआऊन ने उनसे कहा कि ऐ मूसा मै तो समझता हूँ कि किसी ने तुम पर जादू करके दीवाना बना दिया है।
  14. क़ा-ल लक़द् अलिम् त मा अन्ज़-ल हाउला-इ इल्ला रब्बुस्समावाति वलअर्ज़ि बसाइ-र, व इन्नी ल-अज़ुन्नु-क या फिरऔ़नु मस्बूरा
    मूसा ने कहा तुम ये ज़रुर जानते हो कि ये मौजिज़े सारे आसमान व ज़मीन के परवरदिगार ने नाजि़ल किए (और वह भी लोगों की) सूझ बूझ की बातें हैं और ऐ फिरआऊन मै तो ख़्याल करता हूँ कि तुम पर शामत आई है।
  15. फ़-अरा-द अंय्यस्तफिज़्ज़हुम् मिनल्-अर्ज़ि फ़-अग़्रक्नाहु व मम्म अ़हू जमीआ
    फिर फिरआऊन ने ये ठान लिया कि बनी इसराईल को (सर ज़मीने) मिस्र से निकाल बाहर करे तो हमने फिरआऊन और जो लोग उसके साथ थे सब को डुबो मारा।
  16. व क़ुल्ना मिम्-बअ्दिही लि-बनी इस्राईलस्कुनुल् अर्-ज़ फ़-इज़ा जा-अ वअ्दुल-आख़िरति जिअ्ना बिकुम् लफ़ीफ़ा
    और उसके बाद हमने बनी इसराईल से कहा कि (अब तुम ही) इस मुल्क में (खूब आराम से) रहो सहो फिर जब आखि़रत का वायदा आ पहुँचेगा तो हम तुम सबको समेट कर ले आएँगें।
  17. व बिल्हक़्क़ि अन्ज़ल्नाहु व बिल्हक़्क़ि न ज़-ल, व मा अर्सल्ना-क इल्ला मुबश्शिरंव्-व नज़ीरा
    और (ऐ रसूल!) हमने इस क़ुरान को बिल्कुल ठीक नाजि़ल किया और बिल्कुल ठीक नाजि़ल हुआ और तुमको तो हमने (जन्नत की) खुशखबरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला (रसूल) बनाकर भेजा है।
  18. व क़ुरआनन् फ़रक़्नाहु लितक़्र-अहू अ़लन्नासि अ़ला मुक्सिंव्-व नज़्ज़ल्नाहु तन्ज़ीला
    और क़ुरान को हमने थोड़ा थोड़ा करके इसलिए नाजि़ल किया कि तुम लोगों के सामने (ज़रुरत पड़ने पर) मोहलत दे देकर उसको पढ़ दिया करो।
  19. क़ुल आमिनू बिही औ ला तुअ्मिनू, इन्नल्लज़ी-न ऊतुल्-अिल्-म मिन् क़ब्लिही इज़ा युत्ला अ़लैहिम् यख़िर्रू-न लिल्अज़्कानि सुज्जदा
    और (इसी वजह से) हमने उसको रफ्ता रफ्ता नाजि़ल किया तुम कह दो कि ख़्वाह तुम इस पर ईमान लाओ या न लाओ इसमें शक नहीं कि जिन लोगों को उसके क़ब्ल ही (आसमानी किताबों का इल्म अता किया गया है उनके सामने जब ये पढ़ा जाता है तो ठुडडियों से (मुँह के बल) सजदे में गिर पड़तें हैं।
  20. व यक़ूलू-न सुब्हा-न रब्बिना इन् का-न वअ्दु रब्बिना ल मफ्अूला
    और कहते हैं कि हमारा परवरदिगार (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक हमारे परवरदिगार का वायदा पूरा होना ज़रुरी था।
  21. व यखिर्रू-न लिल्अज़्क़ानि यब्कू-न व यज़ीदुहुम् खुशूआ *सज़्दा*
    और ये लोग (सजदे के लिए) मुँह के बल गिर पड़तें हैं और रोते चले जाते हैं और ये क़ुरान उन की ख़ाकसारी के बढ़ाता जाता है।
  22. क़ुलिद्अुल्ला-ह अविद् उर्रह्-मा-न, अय्यम् मा तद्अू  फ़-लहुल् अस्माउल्-हुस्-ना, व ला तज्हर् बि-सलाति-क व ला तुख़ाफ़ित् बिहा वब्तग़ि बै-न ज़ालि-क सबीला
    (ऐ रसूल!) तुम (उनसे) कह दो कि (तुम को एख़तियार है) ख़्वाह उसे अल्लाह (कहकर) पुकारो या रहमान कह कर पुकारो (ग़रज़) जिस नाम को भी पुकारो उसके तो सब नाम अच्छे (से अच्छे) हैं और (ऐ रसूल) न तो अपनी नमाज़ बहुत चिल्ला कर पढ़ो न और न बिल्कुल चुपके से बल्कि उसके दरम्यिान एक औसत तरीका एख़्तेयार कर लो।
  23. व क़ुलिल्-हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी लम् यत्तख़िज़् वलदंव्-व लम् यकुल्-लहू शरीकुन् फ़िल्मुल्कि व लम् यकुल्लहू वलिय्युम्मिनज़्ज़ुल्लि व कब्बिरहु तक्बीरा*
    और कहो कि हर तरह की तारीफ उसी अल्लाह को (सज़ावार) है जो न तो कोई औलाद रखता है और न (सारे जहाँन की) सल्तनत में उसका कोई साझेदार है और न उसे किसी तरह की कमज़ोरी है न कोई उसका सरपरस्त हो और उसकी बड़ाई अच्छी तरह करते रहा करो।

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