60 सूरह अल मुमताहिना हिंदी में​

60 सूरह अल मुमताहिना | Surah Al-Mumtahanah

सूरह अल मुमताहिना में अरबी के 13 आयतें और 2 रुकू है। यह सूरह मदनी है। यह सूरह पारा 28 मे है।

इस सूरह की आयत 10 में आदेश दिया गया है कि जो स्त्रियां हिजरत करके जाएं और मुसलमान होने का दावा करें उनकी परीक्षा ली जाए। इसी से इसका नाम अल्-मुम्तहिना रखा गया है। इसका उच्चारण मुम्तहना और मुस्तहिना भी है। पहले के अनुसार अर्थ है “वह स्त्री जिसकी परीक्षा ली जाए”। और दूसरे के अनुसार अर्थ है, “परीक्षा लेने वाली सूरह”

यह सूरह हुदैबिया की सन्धि और मक्का की विजय के बीच के समय में अवतरित हुई है।

सूरह अल मुमताहिना हिंदी में | Surah Al-Mumtahanah in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तख़िज़ू अ़दुब्बी व अ़दुब्वकुम् औलिया-अ तुल्क़ु-न इलैहिम् बिल्-म-वद्दति व क़द् क-फ़रू बिमा जा- अकुम् मिनल्- हक़्क़ि युख़्-रिजूनर्-रसू-ल व इय्याकुम् अन् तुअ्मिनू बिल्लाहि रब्बिकुम्, इन् कुन्तुम् ख़रज्तुम् जिहादन् फी सबीली वब्तिग़ा-अ मर्ज़ाती तुसिर्रू – न इलैहिम् बिल्म-वद्द्ति व अ-न अअ्लमु बिमा अख़्फैतुम व मा अअ्लन्तुम्, व मंय्यफ़्अल्हु मिन्कुम् फ़-क़द् जल्-ल सवा-अस्सबील
    ऐ ईमानदारों! अगर तुम मेरी राह में जेहाद करने और मेरी प्रसन्नता की तलाश में (घर से) निकलते हो तो मेरे और अपने दुश्मनों को दोस्त न बनाओ। तुम उनके पास दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो और जो सत्य तुम्हारे पास आया है उससे वह लोग इनकार करते हैं। वह लोग रसूल को और तुमको इस बात पर (घर से) निकालते हैं कि तुम अपने पालनहार अल्लाह पर ईमान ले आए हो। (और) तुम हो कि उनके पास छुप छुप के दोस्ती का पैग़ाम भेजते हो। हालांकि तुम कुछ भी छुपा कर या खुले आम करते हो, मैं उससे भली-भाँति जानता हूँ। और तुममें से जो शख़्स ऐसा करे तो वह सीधी राह से यक़ीनन भटक गया।
  2. इंय्यस्कफ़ूकुम् यकूनू लकुम् अअ्दा-अंव्- व यब्सुतू इलैकुम् ऐदि-यहुम् व अल्सि-न-तहुम् बिस्सू-इ व वद्दू लौ तक्फ़ुरून
    अगर ये लोग तुम पर क़ाबू पा जाएँ तो तुम्हारे शत्रु हो जाएँ। और दुःख पहुँचाने के लिए तुम्हारी तरफ़ अपने हाथ भी बढ़ाएँगे और अपनी ज़बाने भी और चाहते हैं कि काश तुम भी काफ़िर हो जाओ।
  3. लन् तन्फ़-अ़कुम् अर्हामुकुम् व ला औलादुकुम् यौमल्- क़ियामति यफ़िसलु बैनकुम्, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न बसीर
    प्रलय के दिन न तुम्हारे रिश्ते नाते ही कुछ काम आएँगे न तुम्हारी औलाद (उस दिन) तो वही फ़ैसला कर देगा। और जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसे देख रहा है।
  4. क़द् कानत् लकुम् उस्वतुन् ह-स-नतुन् फ़ी इब्राही म वल्लज़ी-न म-अ़हू इज़् क़ालू लिक़ौमिहिम् इन्ना बु-रआ-उ मिन्कुम् व मिम्मा तअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि कफर्ना बिकुम् व बदा बैनना व बैनकुमुल् – अ़दा – वतु वल्- ब़ग्ज़ा – उ अ-बदन् हत्ता तुअ्मिनू बिल्लाहि वह्-दहू इल्ला क़ौ-ल इब्राही – म लि-अबीहि ल-अस्तग़्फ़िरन्-न ल-क व मा अम्लिकु ल-क मिनल्लाहि मिन् शैइन्, रब्बना अ़लै-क तवक्कल्ना व इलै-क अनब्ना व इलैकल्-मसीर
    (मुसलमानों!) तुम्हारे लिए तो इब्राहीम और उनके साथियों में एक अच्छा आदर्श है कि जब उन्होने अपनी जाति से कहा कि हम तुमसे और उन (बुतों) से जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो, विरक्त हैं हम तो तुम्हारे (दीन के) मुनकिर हैं। और जब तक तुम एक अल्लाह पर ईमान न लाओ, हमारे तथा तुम्हारे बीच बैर और क्रोध सदा के लिए खुल चुका है, मगर (हाँ) इबराहीम ने अपने (मुँह बोले) बाप से ये (अलबत्ता) कहा कि मैं आपके लिए क्षमा की प्रार्थना ज़रूर करूँगा। और अल्लाह के सामने तो मैं आपके वास्ते कुछ अधिकार नहीं रखता। ऐ हमारे पालने वाले! हमने तुझी पर भरोसा कर लिया है। और तेरी ही ओर ध्यान किया है और तेरी ही ओर फिर आना है।
  5. रब्बना ला तज्अ़ल्ना फ़ित्-नतल् – लिल्लज़ी – न क – फ़रू वग़्फ़िर् लना रब्बना इन्न-क अन्तल्-अ़ज़ीज़ुल् – हकीम
    और तेरी तरफ़ हमें लौट कर जाना है। ऐ हमारे पालने वाले! हमें काफ़िरों के लिए परीक्षा (का साधन) न बना। और परवरदिगार! तू हमें बख़्श दे बेशक तू तू ही प्रभुत्वशाली, गुणी है।
  6. ल – क़द् का-न लकुम् फ़ीहिम् उस्वतुन् ह-स-नतुल्-लिमन् का-न यर्जुल्ला-ह वल्यौमल् – आख़ि-र व मंय़्य – तवल्-ल फ़-इन्नल्ला-ह हुवल् ग़निय्युल्- हमीद
    निःसंदेह, तुम्हारे लिए उनमें अच्छा आदर्श है और हर उस व्यक्ति के लिए जो अल्लाह और प्रलय की आशा रखता हो। और जो (इससे) विमुख हो, तो अल्लाह भी यक़ीनन बेपरवा (और) प्रशंसित है।
  7. अ़सल्लाहु अंय्यज्अ़-ल बैनकुम् व बैनल्लज़ी – न आ़दैतुम् मिन्हुम् मवद्द – तन्, वल्लाहु क़दीरुन्, वल्लाहु ग़फ़ूरुर्-रहीम
    करीब है कि अल्लाह तुम्हारे और उनमें से तुम्हारे दुश्मनों के बीच दोस्ती पैदा कर दे। और अल्लाह तो बड़ा सामर्थ्यवान है और अल्लाह अति क्षमाशील, दयावान है।
  8. ला यन्हाकुमुल्लाहु अ़निल्लज़ी-न लम् युक़ातिलूकुम् फ़िद्दीनि व लम् यु ख़्-रिजूकुम् मिन् दियारिकुम् अन् तबर्रूहुम् व तुक़्सितू इलैहिम्, इन्नल्ला-ह युहिब्बुल्-मुक़्सितीन
    जो लोग तुमसे तुम्हारे युद्ध के बारे में नहीं लड़े भिड़े और न तुम्हें घरों से निकाले उन लोगों के साथ एहसान करने और उनके साथ इन्साफ़ से पेश आने से अल्लाह तुम्हें मना नहीं करता। बेशक अल्लाह इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है।
  9. इन्नमा यन्हाकुमुल्लाहु अ़निल्लज़ी-न क़ा – तलुकुम् फ़िद्दीनि व अख़्-रजूकुम् मिन् दियारिकुम् व ज़ा-हरू अ़ला इख़्राजिकुम् अन् तवल्लौहुम् व मंय्य-तवल्लहुम् फ़-उलाइ क हुमुज़्ज़ालिमून
    अल्लाह तो बस उन लोगों के साथ दोस्ती करने से मना करता है जिन्होने तुमसे धर्म के बारे में लड़ाई की। और तुमको तुम्हारे घरों से निकाल बाहर किया, और तुम्हारे निकालने में (औरों की) मदद की और जो लोग ऐसों से दोस्ती करेंगे वह लोग अत्याचारी हैं।
  10. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इज़ा जा – अकुमुल् मुअ्मिनातु मुहाजिरातिन् फ़म्तहिनूहुन्-न, अल्लाहु अअ्लमु बि-ईमानिहिन्-न फ़-इन् अ़लिम्तुमूहुन्-न मुअ्मिनातिन् फ़ला तर्जि अूहुन्-न इल ल् – कुफ़्फ़ारि, ला हुन्-न हिल्लुल् लहुम् व ला हुम् यहिल्लू-न लहुन्-न, व आतूहुम् मा अन्फ़क़ू, व ला जुना-ह अ़लैकुम् अन् तन्किहू हुन्- न इज़ा आतैतुमूहुन्-न उजू-रहुन्-न, व ला तुम्सिकू बि अ़ि -समिल् – कवा फ़िरि वस्अलू मा अन्फ़ क़्तुम् वल्-यस्अलू मा अन्फ़क़ू, ज़ालिकुम् हुक्मुल्लाहि, यह्कुमु बैनकुम्, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
    ऐ ईमानदारों! जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें हिजरत करके आएँ तो तुम उनको जाँच लिया करो, अल्लाह तो उनके ईमान से वाकिफ़ है ही, पस अगर तुम भी उनको ईमानदार समझो तो उन्ही काफि़रों के पास वापस न करो।न ये औरतें उनके लिए हलाल हैं और न वह कुफ़्फ़ार उन औरतों के लिए हलाल हैं। और उन कुफ्फ़ार ने जो कुछ (उन औरतों के मेहर में) ख़र्च किया हो उनको दे दो, और जब उनका मेहर उन्हें दे दिया करो तो इसका तुम पर कुछ गुनाह नहीं कि तुम उससे निकाह कर लो। और काफ़िर औरतों की आबरू (जो तुम्हारी बीवियाँ हों) अपने कब्ज़े में न रखो (छोड़ दो कि कुफ़्फ़ार से जा मिलें) और तुमने जो कुछ (उन पर) ख़र्च किया हो (कुफ़्फ़ार से) लो, और उन्होने भी जो कुछ ख़र्च किया हो तुम से माँग लें। यही अल्लाह का हुक्म है जो तुम्हारे दरमियान सादिर करता है। और अल्लाह वाकि़फ़कार हकीम है।
  11. व इन् फ़ा-तकुम् शैउम् – मिन् अज़्वाजिकुम् इलल्-कुफ़्फ़ारि फ़- आ़क़ब्तुम् फ़-आतुल्लज़ी-न ज़-हबत् अज़्वाजुहुम् मिस्-ल मा अन्फ़क़ू, वत्तकुल्लाहल्लज़ी अन्तुम् बिही मुअ्मिनून
    और अगर तुम्हारी पत्नियों में से कोई औरत तुम्हारे हाथ से निकल कर काफिरों के पास चली जाए और (ख़र्च न मिले) और तुम उन काफि़रों से लड़ो और लूटो तो (माले ग़नीमत से) जिनकी औरतें चली गयीं हैं। उनको इतना दे दो जितना उनका ख़र्च हुआ है और जिस अल्लाह पर तुम लोग ईमान लाए हो उससे डरते रहो।
  12. या अय्युहन्नबिय्यु इज़ा जा-अकल् – मुअ्मिनातु युबायिअ् – न- क अ़ला अल्-ला युश्रिक्-न बिल्लाहि शैअंव्-व ला यस्-रिक् -न व ला यज़्नी-न व ला यक़्तुल्-न औला-दहुन्-न व ला यअ्ती – न बिबुह्तानिंय्-यफ़्तरीनहू बै-न ऐदीहिन्-न व अर्जुलिहिन्-न व ला यअ्सी-न-क फ़ी मअ़रूफ़िन् फ़-बायिअ्हुन्-न वस्तग्फ़िर् लहुन्नल्ला-ह, इन्नल्ला-ह ग़फ़ूरुर्रहीम
    (ऐ रसूल!) जब तुम्हारे पास ईमानदार औरतें तुमसे इस बात पर वचन करने आएँ कि वह न किसी को अल्लाह का साझी बनाएँगी और न चोरी करेंगी। और न व्यभिचार करेंगी और न अपनी संतान को मार डालेंगी।और न कोई ऐसा कलंक लगायेंगी जिसे उन्होंने घड़ लिया हो अपने हाथों तथा पैरों के आगे, और न किसी नेक काम में तुम्हारी अवज्ञा करेंगी। तो तुम उनसे वचन ले लो और अल्लाह से उनके क्षमा की प्रार्थना माँगो। बेशक अल्लाह अति क्षमाशील तथा दयावान है।
  13. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला त-तवल्लौ क़ौमन् ग़ज़िबल्लाहु अ़लैहिम् क़द् य-इसू मिनल्-आख़िरति कमा य-इसल्-कुफ़्फ़ारु मिन् अस्हाबिल्-क़ुबूर
    ऐ ईमानदारों! जिन लोगों पर अल्लाह ने अपना प्रकोप ढाया उनसे दोस्ती न करो। (क्योंकि) जिस तरह काफ़िरों को मुर्दों (के दोबारा ज़िन्दा होने) की उम्मीद नहीं। उसी तरह परलोक से भी ये लोग निराश हैं।

सूरह अल मुमताहिना वीडियो | Surah Al-Mumtahanah Video

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