16 सूरह अन नहल हिंदी में पेज 2

सूरह अन नहल हिंदी में | Surat An-Nahl in Hindi

  1. क़द् म-करल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़-अतल्लाहु बुन्या-नहुम् मिनल्-क़वाअिदि फ़-ख़र्-र अ़लैहिमुस्सक़्फु मिन् फ़ौक़िहिम् व अताहुमुल्-अ़ज़ाबु मिन् हैसु ला यश्अुरून
    बेशक जो लोग उनसे पहले थे उन्होंने भी मक्कारियाँ की थीं तो (अल्लाह का हुक्म) उनके ख़्यालात की इमारत की जड़ की तरफ से आ पड़ा (पस फिर क्या था) इस ख़्याली इमारत की छत उन पर उनके ऊपर से धम से गिर पड़ी (और सब ख़्याल हवा हो गए) और जिधर से उन पर अज़ाब आ पहुँचा उसकी उनको ख़बर तक न थी।
  2. सुम्-म यौमल क़ियामति युख़्ज़ीहिम् व यक़ूलु ऐ-न शु-रकाइ-यल्लज़ी-न कुन्तुम् तुशाक़्क़ू-न फ़ीहिम्, क़ालल्लज़ी-न ऊतुल-अिल्-म इन्नल् ख़िज़्यल् यौ-म वस्सू-अ अ़लल्-काफ़िरीन
    (फिर उसी पर इकतिफा नहीं) उसके बाद क़यामत के दिन अल्लाह उनको रुसवा करेगा और फरमाएगा कि (अब बताओ) जिसको तुमने मेरा शरीक बना रखा था और जिनके बारे में तुम (इमानदारों से) झगड़ते थे कहाँ हैं (वह तो कुछ जवाब देगें नहीं मगर) जिन लोगों को (अल्लाह की तरफ से) इल्म दिया गया है कहेगें कि आज के दिन रुसवाई और ख़राबी (सब कुछ) काफिरों पर ही है।
  3. अल्लज़ी-न त तवफ़्फ़ाहुमुल् मलाइ-कतु ज़ालिमी अन्फुसिहिम्, फ़-अल्क़वुस्स-ल-म मा कुन्ना नअ्-मलु मिन् सूइन्, बला इन्नल्ला-ह अ़लीमुम्-बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    वह लोग हैं कि जब फरिश्ते उनकी रुह क़ब्ज़ करने लगते हैं (और) ये लोग (कुफ्र करके) आप अपने ऊपर सितम ढ़ाते रहे तो इताअत पर आमादा नज़र आते हैं और (कहते हैं कि) हम तो (अपने ख़्याल में) कोई बुराई नहीं करते थे (तो फरिष्ते कहते हैं) हाँ जो कुछ तुम्हारी करतूते थी अल्लाह उससे खूब अच्छी तरह वाकि़फ हैं।
  4. फ़द्ख़ुलू अब्वा-ब जहन्न-म ख़ालिदी-न फ़ीहा, फ़ लबिअ्-स मस्वल् मु-तकब्बिरीन
    (अच्छा तो लो) जहन्नुम के दरवाज़ों में दाखि़ल हो और इसमें हमेषा रहोगे ग़रज़ तकब्बुर करने वालो का भी क्या बुरा ठिकाना है।
  5. व क़ी-ल लिल्लज़ीनत्तक़ौ माज़ा-अन्ज़-ल रब्बुकुम, क़ालू ख़ैरन्, लिल्लज़ी-न अह़्सनू फ़ी हाज़िहिद्दुन्या ह-स-नतुन्, व लदारूल् आख़िरति ख़ैरून्, व लनिअ्-म दारूल्-मुत्तक़ीन
    और जब परहेज़गारों से पूछा जाता है कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या नाजि़ल किया है तो बोल उठते हैं सब अच्छे से अच्छा जिन लोगों ने नेकी की उनके लिए इस दुनिया में (भी) भलाई (ही भलाई) है और आखि़रत का घर क्या उम्दा है।
  6. जन्नातु अद्-निंय्यद्ख़ुलूनहा तज्री मिन् तह़्तिहल् – अन्हारू लहुम् फ़ीहा मा यशाऊ-न, कज़ालि-क यज्ज़िल्लाहुल मुत्तक़ीन
    सदा बहार (हरे भरे) बाग़ हैं जिनमें (वे तकल्लुफ) जा पहुँचेगें उनके नीचे नहरें जारी होंगी और ये लोग जो चाहेगें उनके लिए मुयय्या (मौजू़द) है यूँ अल्लाह परहेज़गारों (को उनके किए) की जज़ा अता फरमाता है।
  7. अल्लज़ी-न त-तवफ़्फ़ाहुमुल् मलाइ कतु तय्यिबी-न यक़ूलू न सलामुन् अ़लैकुमुद्ख़ुलुल्-जन्न-त बिमा कुन्तुम् तअ्मलून
    (ये) वह लोग हैं जिनकी रुहें फरिश्ते इस हालत में क़ब्ज़ करतें हैं कि वह (नजासते कुफ्र से) पाक व पाकीज़ा होते हैं तो फरिश्ते उनसे (निहायत तपाक से) कहते है सलामुन अलैकुम जो नेकियाँ दुनिया में तुम करते थे उसके सिले में जन्नत में (बेतकल्लुफ) चले जाओ।
  8. हल् यन्ज़ुरू-न इल्ला अन् तअ्ति-यहुमुल्-मलाइ-कतु औ यअ्ति-य अम्रू रब्बु-क, कज़ालि-क फ़-अ़लल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम्, व मा ज़-ल-महुमुल्लाहु व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
    (ऐ रसूल!) क्या ये (एहले मक्का) इसी बात के मुन्तिज़र है कि उनके पास फरिश्ते (क़ब्ज़े रुह को) आ ही जाएँ या (उनके हलाक करने को) तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब ही आ पहुँचे जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं वह ऐसी बातें कर चुके हैं और अल्लाह ने उन पर (ज़रा भी) जुल्म नहीं किया बल्कि वह लोग ख़ुद कुफ्ऱ की वजह से अपने ऊपर आप जुल्म करते रहे।
  9. फ़-असाबहुम् सय्यिआतु मा अ़मिलू व हा-क़ बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन *
    फिर जो जो करतूतें उनकी थी उसकी सज़ा में बुरे नतीजे उनको मिले और जिस (अज़ाब) की वह हँसी उड़ाया करते थे उसने उन्हें (चारो तरफ से) घेर लिया।
  10. व क़ालल्लज़ी-न अश्रकू लौ शाअल्लाहु मा अ़बद्-ना मिन् दूनिही मिन् शैइन् नह़्नू व ला आबाउना व ला हर्रम्-ना मिन् दूनिही मिन् शैइन्, कज़ालि-क फ़-अ़लल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़-हल् अ़लर्रूसुलि इल्लल् बलाग़ुल-मुबीन
    और मुशरेकीन कहते हैं कि अगर अल्लाह चाहता तो न हम ही उसके सिवा किसी और चीज़ की इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बग़ैर उस (की मर्ज़ी) के किसी चीज़ को हराम कर बैठते जो लोग इनसे पहले हो गुज़रे हैं वह भी ऐसे (हीला हवाले की) बातें कर चुके हैं तो (कहा करें) पैग़म्बरों पर तो उसके सिवा कि एहकाम को साफ साफ पहुँचा दे और कुछ भी नहीं।
  11. व ल-क़द् बअ़स्-ना फ़ी कुल्लि उम्मतिर्रसूलन् अनिअ्बुदुल्ला-ह वज्तनिबुत्ताग़ू-त, फ़मिन्हुम् मन् हदल्लाहु व मिन्हुम् मन् हक़्क़त् अ़लैहिज़्ज़लालतु, फ़सीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़न्ज़ुरू कै-फ़ का-न आक़ि-बतुल्-मुकज़्ज़िबीन
    और हमने तो हर उम्मत में एक (न एक) रसूल इस बात के लिए ज़रुर भेजा कि लोगों अल्लाह की इबादत करो और बुतों (की इबादत) से बचे रहो ग़रज़ उनमें से बाज़ की तो अल्लाह ने हिदायत की और बाज़ के (सर) पर गुमराही सवार हो गई तो ज़रा तुम लोग रुए ज़मीन पर चल फिर कर देखो तो कि (पैग़म्बराने अल्लाह के) झुठलाने वालों को क्या अन्जाम हुआ।
  12. इन तह्-रिस् अ़ला हुदाहुम् फ़-इन्नल्ला-ह ला यह्दी मंय्युज़िल्लु व मा लहुम् मिन्-नासिरीन
    (ऐ रसूल!) अगर तुमको इन लोगों के राहे रास्त पर जाने का हौका है (तो बे फायदा) क्योंकि अल्लाह तो हरगिज़ उस शख़्स की हिदायत नहीं करेगा जिसको (नाज़िल होने की वजह से) गुमराही में छोड़ देता है और न उनका कोई मददगार है।
  13. व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम्, ला यब्अ़सुल्लाहु मंय्यमूतु, बला वअ्दन् अ़लैहि हक़्क़ंव्-व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
    (कि अज़ाब से बचाए) और ये कुफ्फार अल्लाह की जितनी क़समें उनके इमकान में तुम्हें खा (कर कहते) हैं कि जो शख़्स मर जाता है फिर उसको अल्लाह दोबारा जि़न्दा नहीं करेगा (ऐ रसूल) तुम कह दो कि हाँ ज़रुर ऐसा करेगा इस पर अपने वायदे की (वफा) लाजि़म व ज़रुरी है मगर बहुतेरे आदमी नहीं जानते हैं।
  14. लियुबय्यि न लहुमुल्लज़ी यख़्तलिफू-न फ़ीहि व लियअ्-लमल्लज़ी-न क-फरू अन्नहुम् कानू काज़िबीन
    (दोबारा ज़िन्दा करना इसलिए ज़रुरी है) कि जिन बातों पर ये लोग झगड़ा करते हैं उन्हें उनके सामने साफ वाज़ेए कर देगा और ताकि कुफ्फार ये समझ लें कि ये लोग (दुनिया में) झूठे थे।
  15. इन्नमा क़ौलुना लिशैइन् इज़ा अरद्-ना हु अन्-नक़ू-ल लहू कुन् फ़-यकून *
    हम जब किसी चीज़ (के पैदा करने) का इरादा करते हैं तो हमारा कहना उसके बारे में इतना ही होता है कि हम कह देते हैं कि ‘हो जा’ बस फौरन हो जाती है (तो फिर मुर्दों का जिलाना भी कोई बात है)।
  16. वल्लज़ी-न हाजरू फ़िल्लाहि मिम्-बअ्दि मा ज़ुलिमू लनुबव्विअन्नहुम् फ़िद्दुन्या ह-स-नतन्, व लअज्रुल-आख़िरति अक्बरू • लौ कानू यअ्लमून
    और जिन लोगों ने (कुफ़्फ़ार के ज़ुल्म पर ज़ुल्म सहने के बाद अल्लाह की खुशी के लिए घर बार छोड़ा हिजरत की हम उनको ज़रुर दुनिया में भी अच्छी जगह बिठाएँगें और आख़िरत की जज़ा तो उससे कहीं बढ़ कर है काश ये लोग जिन्होंने अल्लाह की राह में सख्तियों पर सब्र किया।
  17. अल्लज़ी-न स-बरू व अ़ला रब्बिहिम् य-तवक्कलून
    और अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं (आख़िरत का सवाब) जानते होते।
  18. व मा अर्सल्ना मिन् क़ब्लि-क इल्ला रिजालन् नूही इलैहिम् फस्अलू अह् लज़्ज़िक्-रि इन कुन्तुम् ला तअ्लमून
    और (ऐ रसूल) तुम से पहले आदमियों ही को पैग़म्बर बना बनाकर भेजा किए जिन की तरफ हम वहीं भेजते थे तो (तुम एहले मक्का से कहो कि) अगर तुम खुद नहीं जानते हो तो एहले जि़क्र (आलिमों से) पूछो (और उन पैग़म्बरों को भेजा भी तो) रौशन दलीलों और किताबों के साथ।
  19. बिल्-बय्यिनाति वज़्ज़ुबुरि, व अन्ज़ल्ना इलैकज़्ज़िक्र लितुबय्यि-न लिन्नासि मा नुज़्ज़ि-ल इलैहिम् व लअ़ल्लहुम् य तफ़क्करून •
    और तुम्हारे पास क़ुरान नाजि़ल किया है ताकि जो एहकाम लोगों के लिए नाजि़ल किए गए है तुम उनसे साफ साफ बयान कर दो ताकि वह लोग खुद से कुछ ग़ौर फिक्र करें।
  20. अ-फ-अमिनल्लज़ी-न म-करूस्सय्यिआति अंय्यख़्सिफ़ल्लाहु बिहिमुल-अर्-ज़ औ यअ्ति-यहुमुल्-अ़ज़ाबु मिन हैसु ला यश्अुरून
    तो क्या जो लोग बड़ी बड़ी मक्कारियाँ (शिर्क वग़ैरह) करते थे (उनको इस बात का इत्मिनान हो गया है (और मुत्तलिक़ ख़ौफ नहीं) कि अल्लाह उन्हें ज़मीन में धसा दे या ऐसी तरफ से उन पर अज़ाब आ पहुँचे कि उसकी उनको ख़बर भी न हो।
  21. औ यअ्ख़ु-ज़हुम् फी तक़ल्लुबिहिम् फ़मा हुम् बिमुअ्जिज़ीन
    उनके चलते फिरते (अल्लाह का अज़ाब) उन्हें गिरफ्तार करे तो वह लोग उसे ज़ेर नहीं कर सकते।
  22. औ यअ्ख़ु-ज़हुम् अला तख़व्वुफ़िन्, फ़-इन्-न रब्बकुम् ल-रऊफुर्रहीम
    या वह अज़ाब से डरते हो तो (उसी हालत में) धर पकड़ करे इसमें तो शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बड़ा शफीक़ रहम वाला है।
  23. अ-व लम् यरौ इला मा ख़-लक़ल्लाहु मिन् शैइंय्-य तफ़य्यउ ज़िलालुहू अ़निल्-यमीनि वश्शमाइलि सुज्जदल्-लिल्लाहि व हुम् दाख़िरून
    क्या उन लोगों ने अल्लाह की मख़लूक़ात में से कोई ऐसी चीज़ नहीं देखी जिसका साया (कभी) दाहिनी तरफ और कभी बायी तरफ पलटा रहता है कि (गोया) अल्लाह के सामने सर सजदा है और सब इताअत का इज़हार करते हैं।
  24. व लिल्लाहि यस्जुदू मा फ़िस्समावाति व मा फिल्अर्ज़ि मिन् दाब्बतिंव्-वल्-मलाइ-कतु व हुम् ला यस्तक्बिरून
    और जितनी चीज़ें (चादँ सूरज वग़ैरह) आसमानों में हैं और जितने जानवर ज़मीन में हैं सब अल्लाह ही के आगे सर सजूद हैं और फरिश्ते तो (है ही) और वह हुक्में अल्लाह से सरकशी नहीं करते। (सजदा)
  25. यख़ाफू-न रब्बहुम् मिन् फौक़िहिम् व यफ्अलू-न मा युअ्मरून *सज़्दा*
    और अपने परवरदिगार से जो उनसे (कहीं) बरतर (बड़ा) व आला है डरते हैं और जो हुक्में दिया जाता है फौरन बजा लाते हैं।

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