16 सूरह अन नहल हिंदी में पेज 5

सूरह अन नहल हिंदी में | Surat An-Nahl in Hindi

  1. व इज़ा बद्दल्ना आ-यतम् मका-न आयतिंव्-वल्लाहु अअ्लमु बिमा युनज़्ज़िलु क़ालू इन्नमा अन्-त मुफ़्तरिन्, बल् अक्सरूहुम् ला यअ्लमून
    और (ऐ रसूल!) हम जब एक आयत के बदले दूसरी आयत नाज़िल करते हैं तो हालाँकि अल्लाह जो चीज़ नाजि़ल करता है उस (की मसलहतों) से खूब वाकिफ़ है मगर ये लोग (तुम को) कहने लगते हैं कि तुम बस बिल्कुल मुज़तरी (ग़लत बयान करने वाले) हो बल्कि खुद उनमें के बहुतेरे (मसालेह को) नहीं जानते।
  2. क़ुल नज़्ज़-लहु रूहुल्-क़ुदुसि मिर्रब्बि-क बिल्हक़्क़ि लियुसब्बितल्लज़ी-न आमनू व हुदंव्-व बुशरा लिल-मुस्लिमीन
    (ऐ रसूल!) तुम (साफ) कह दो कि इस (क़ुरान) को तो रुहलकुदूस (जिबरील) ने तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ नाज़िल किया है ताकि जो लोग इमान ला चुके हैं उनको साबित क़दम रखे और मुसलमानों के लिए (अज़सरतापा) खुशखबरी है।
  3. व ल-क़द् नअ्लमु अन्नहुम् यक़ूलू-न इन्नमा युअ़ल्लिमुहू ब-शरून्, लिसानुल्लज़ी युल्हिदू-न इलैहि अअ्-जमिय्युंव-व हाज़ा लिसानुन् अ-रबिय्युम् मुबीन
    और (ऐ रसूल!) हम तहक़ीक़तन जानते हैं कि ये कुफ्फार तुम्हारी निस्बत कहा करते है कि उनको (तुम को) कोई आदमी क़ुरान सिखा दिया करता है हालॅाकि बिल्कुल ग़लत है क्योंकि जिस शख़्स की तरफ से ये लोग निस्बत देते हैं उसकी ज़बान तो अजमी है और ये तो साफ साफ अरबी ज़बान है।
  4. इन्नल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिआयातिल्लाहि ला यह्दीहिमुल्लाहु व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    इसमें तो शक ही नहीं कि जो लोग अल्लाह की आयतों पर इमान नहीं लाते अल्लाह भी उनको मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाएगा और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है।
  5. इन्नमा यफ़्तरिल्-कज़िबल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिआयातिल्लाहि व उलाइ-क हुमुल्-काज़िबून
    झूठ बोहतान तो बस वही लोग बांधा करते हैं जो अल्लाह की आयतों पर इमान नहीं रखतें।
  6. मन् क-फ़-र बिल्लाहि मिम्-बअ्दि ईमानिही इल्ला मन् उक्रि-ह व क़ल्बुहू मुत्मइन्नुम्-बिल्ईमानि व लाकिम्-मन् श-र-ह बिल्कुफ्रि सद्रन फ़-अलैहिम् ग़-ज़बुम्-मिनल्लाहि, व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
    और हक़ीक़त अम्र ये है कि यही लोग झूठे हैं उस शख़्स के सिवा जो (कलमाए कुफ्र) पर मजबूर किया जाए और उसका दिल इमान की तरफ से मुतमइन हो जो शख़्स भी इमान लाने के बाद कुफ्र एख़्तियार करे बल्कि खूब सीना कुशादा (जी खोलकर) कुफ्र करे तो उन पर अल्लाह का ग़ज़ब है और उनके लिए बड़ा (सख़्त) अज़ाब है।
  7. ज़ालि-क बिअन्नहुमुस्त हब्बुल्-हयातद्दुन्या अ़लल्-आख़िरति व अन्नल्ला-ह ला यह्दिल् क़ौमल्-काफिरीन
    ये इस वजह से कि उन लोगों ने दुनिया की चन्द रोज़ा ज़िन्दगी को आखि़रत पर तरजीह दी और इस वजह से की अल्लाह काफिरों को हरगिज़ मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता।
  8. उलाइ-कल्लज़ी-न त-बअ़ल्लाहु अ़ला क़ुलूबिहिम् व सम्अिहिम् व अब्सारिहिम्, व उलाइ-क हुमुल्ग़ाफ़िलून
    ये वही लोग हैं जिनके दिलों पर और उनके कानों पर और उनकी आँखों पर अल्लाह ने अलामात मुक़र्रर कर दी है।
  9. ला ज-र-म अन्नहुम् फ़िल्आख़िरति हुमुल्-ख़ासिरून
    (कि इमान न लाएँगे) और यही लोग (इस सिरे के) बेखबर हैं कुछ शक नहीं कि यही लोग आखि़रत में भी यक़ीनन घाटा उठाने वाले हैं।
  10. सुम्-म इन्-न रब्ब-क लिल्लज़ी-न हाजरू मिम्-बअ्दि मा फुतिनू सुम्-म जाहदू व स-बरू, इन्-न रब्ब-क मिम् बअ्दिहा ल-ग़फूरुर्रहीम *
    फिर इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उन लोगों को जिन्होने मुसीबत में मुब्तिला होने क बाद घर बार छोडे़ फिर (अल्लाह की राह में) जिहाद किए और तकलीफों पर सब्र किया इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इन सब बातों के बाद अलबत्ता बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  11. यौ-म तअ्ति कुल्लु नफ्सिन् तुजादिलु अ़न् नफ़्सिहा व तुवफ्फ़ा कुल्लु नफ़्सिम्-मा अ़मिलत् व हुम् ला युज़्लमून
    और (उस दिन को याद) करो जिस दिन हर शख़्स अपनी ज़ात के बारे में झगड़ने को आ मौजूद होगा।
  12. व ज़-रबल्लाहु म-सलन् क़र्-यतन् कानत् आमि-नतम् -मुत्मइन्नतंय्-यअ्तीहा रिज़्क़ुहा र-ग़दम्-मिन् कुल्लि मकानिन् फ़-क-फरत् बिअन्अु मिल्लाहि फ़-अज़ा-क़हल्लाहु लिबासल्-जूअि वल्ख़ौफ़ि बिमा कानू यस्-न अून
    और हर शख़्स को जो कुछ भी उसने किया था उसका पूरा पूरा बदला मिलेगा और उन पर किसी तरह का जु़ल्म न किया जाएगा अल्लाह ने एक गाँव की मसल बयान फरमाई जिसके रहने वाले हर तरह के चैन व इत्मेनान में थे हर तरफ से बाफराग़त (बहुत ज़्यादा) उनकी रोज़ी उनके पास आई थी फिर उन लोगों ने अल्लाह की नूअमतों की नाशुक्री की तो अल्लाह ने उनकी करतूतों की बदौलत उनको मज़ा चखा दिया।
  13. व ल-क़द् जाअहुम् रसूलुम्-मिन्हुम् फ़-कज़्ज़बूहु फ़-अ-ख़ ज़हुमुल्-अ़ज़ाबु व हुम् ज़ालिमून
    कि भूक और ख़ौफ को ओढ़ना (बिछौना) बना दिया और उन्हीं लोगों में का एक रसूल भी उनके पास आया तो उन्होंने उसे झुठलाया।
  14. फ़कुलू मिम्मा र-ज़-क़कुमुल्लाहु हलालन् तय्यिबंव्-वश्कुरू निअ्-मतल्लाहि इन् कुन्तुम् इय्याहु तअ्बुदून
    फिर अज़ाब (अल्लाह) ने उन्हें ले डाला और वह ज़ालिम थे ही तो अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें हलाल तय्यब (ताहिर) रोज़ी दी है उसको (शक़ से) खाओ और अगर तुम अल्लाह ही की परसतिश (का दावा करते हो)।
  15. इन्नमा हर्र-म अलैकुमुल् मैत-त वद्द-म व लह़्मल्-ख़िन्जीरि व मा उहिल्-ल लिग़ैरिल्लाहि बिही, फ़ -मनिज़्तुर्-र ग़ै-र बागिंव्-व ला आदिन फ़-इन्नल्ला-ह ग़फूरूर्रहीम
    उसकी नेअमत का शुक्र अदा किया करो तुम पर उसने मुरदार और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर (ज़बाह के वक़्त) अल्लाह के सिवा (किसी) और का नाम लिया जाए हराम किया है फिर जो शख़्स (मारे भूक के) मजबूर हो अल्लाह से सरतापी (नाफरमानी) करने वाला हो और न (हद ज़रुरत से) बढ़ने वाला हो और (हराम खाए) तो बेशक अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है।
  16. व ला तक़ूलू लिमा तसिफु अल्सि-नतुकुमुल्-कज़ि-ब हाज़ा हलालुंव्-व हाज़ा हरामुल्-लितफ़्तरू अ़लल्लाहिल्-कज़ि-ब, इन्नल्लज़ी-न यफ़्तरू-न अ़लल्लाहिल्-कज़ि-ब ला युफ्लिहून
    और झूट मूट जो कुछ तुम्हारी ज़बान पर आए (बे समझे बूझे) न कह बैठा करों कि ये हलाल है और हराम है ताकि इसकी बदौलत अल्लाह पर झूठ बोहतान बाँधने लगो इसमें शक नहीं कि जो लोग अल्लाह पर झूठ बोहतान बाधते हैं वह कभी कामयाब न होगें।
  17. मताअुन् क़लीलुंव्-व लहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    (दुनिया में) फायदा तो ज़रा सा है और (आख़िरत में) दर्दनाक अज़ाब है।
  18. व अ़लल्लज़ी-न हादू हर्रम्ना मा क़सस्ना अ़लै-क मिन् क़ब्लु, व मा ज़लम्-नाहुम् व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
    और यहूदियों पर हमने वह चीज़े हराम कर दीं थी जो तुमसे पहले बयान कर चुके हैं और हमने तो (इस की वजह से) उन पर कुछ ज़ुल्म नहीं किया।
  19. सुम्-म इन्-न रब्ब-क लिल्लज़ी-न अमिलुस्सू-अ बि-जहालतिन् सुम्-म ताबू मिम्-बअ्दि ज़ालि-क व अस्लहू, इन्-न रब्ब-क मिम्-बअ्दिहा ल-ग़फूरूर्रहीम*
    मगर वह लोग खुद अपने ऊपर सितम तोड़ रहे हैं फिर इसमे शक नहीं कि जो लोग नादानी से गुनाह कर बैठे उसके बाद सदक़ दिल से तौबा कर ली और अपने को दुरुस्त कर लिया तो (ऐ रसूल) इसमें शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार इसके बाद बख़्शने वाला मेहरबान है।
  20. इन्-न इब्राही-म का-न उम्म-तन् क़ानितल्-लिल्लाहि हनीफ़न्, व लम् यकु मिनल्-मुश्रिकीन
    इसमें शक नहीं कि इब्राहीम (लोगों के) पेशवा अल्लाह के फरमाबरदार बन्दे और बातिल से कतरा कर चलने वाले थे और मुशरेकीन से हरगिज़ न थे।
  21. शाकिरल्-लिअन् अुमिही, इज्तबाहु व हदाहु इला सिरातिम् मुस्तक़ीम
    उसकी नेअमतों के शुक्र गुज़ार उनको अल्लाह ने मुनतखि़ब कर लिया है और (अपनी) सीधी राह की उन्हें हिदायत की थी।
  22. व आतैनाहु फ़िद्दुन्या ह-स नतन्, व इन्नहू फ़िल-आख़िरति लमिनस्-सालिहीन
    और हमने उन्हें दुनिया में भी (हर तरह की) बेहतरी अता की थी।
  23. सुम्-म औहैना इलै-क अनित्तबिअ् मिल्ल-त इब्राही-म हनीफ़न्, व मा का-न मिनल्-मुश्रिकीन
    और वह आखि़रत में भी यक़ीनन नेको कारों से होगें ऐ रसूल फिर तुम्हारे पास वही भेजी कि इब्राहीम के तरीक़े की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरे कीन से नहीं थे।
  24. इन्नमा जुअिलस्सब्तु अलल्लज़ीनख़्त-लफू फ़ीहि, व इन्-न रब्ब-क ल-यह्कुमु बैनहुम् यौमल्-क़ियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून
    (ऐ रसूल!) हफ्ते (के दिन) की ताज़ीम तो बस उन्हीं लोगों पर लाजि़म की गई थी (यहूद व नसारा इसके बारे में) एख़्तिलाफ करते थे और कुछ शक नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनके दरम्यिान जिस अग्र में वह झगड़ा करते थे, क़यामत के दिन फैसला कर देगा।
  25. उद्अु इला सबीलि रब्बि-क बिल्हिक्मति वल्मौअि-ज़तिल ह-स-नति व जादिल्हुम् बिल्लती हि-य अह्सनु, इन्-न रब्ब-क हु-व अअ्लमु बिमन् ज़ल-ल अन् सबीलिही व हु-व अअ्लमु बिल्मुह्तदीन
    (ऐ रसूल) तुम (लोगों को) अपने परवरदिगार की राह पर हिकमत और अच्छी अच्छी नसीहत के ज़रिए से बुलाओ और बहस व मुबाश करो भी तो इस तरीक़े से जो लोगों के नज़दीक सबसे अच्छा हो इसमें शक नहीं कि जो लोग अल्लाह की राह से भटक गए उनको तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है।
  26. व इन् आ़क़ब्तुम् फ़आ़क़िबू बिमिस्लि मा ऊक़िब्तुम् बिही, व ल-इन् सबरतुम् लहु-व ख़ैरूल्-लिस्साबिरीन
    और हिदायत याफ़ता लोगों से भी खूब वाकि़फ है और अगर (मुख़ालिफीन के साथ) सख़्ती करो भी तो वैसी ही सख़्ती करो जैसे सख़्ती उन लोगों ने तुम पर की थी और अगर तुम सब्र करो तो सब्र करने वालों के वास्ते बेहतर हैं।
  27. वस्बिर् व मा सब्रु-क इल्ला बिल्लाहि व ला तह्ज़न अ़लैहिम् व ला तकु फ़ी ज़ैक़िम्-मिम्मा यम्कुरून
    और (ऐ रसूल!) तुम सब्र ही करो (और अल्लाह की (मदद) बग़ैर तो तुम सब्र कर भी नहीं सकते और उन मुख़ालिफीन के हाल पर तुम रंज न करो और जो मक्कारीयाँ ये लोग करते हैं उससे तुम तंग दिल न हो।
  28. इन्नल्ला-ह मअ़ल्लज़ीनत्तक़ौ वल्लज़ी-न हुम् मुह्सिनून*
    जो लोग परहेज़गार हैं और जो लोग नेको कार हैं अल्लाह उनका साथी है। (पारा 14 समाप्त)

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