16 सूरह अन नहल हिंदी में पेज 3

सूरह अन नहल हिंदी में | Surat An-Nahl in Hindi

  1. व कालल्लाहु ला तत्तखिजू इलाहैनिस् – नैनि इन्नमा हु – व इलाहुंव- वाहिदुन फ़-इय्या-य फ़रहबून
    और ख़ुदा ने फरमाया था कि दो दो माबूद न बनाओ माबूद तो बस वही यकता ख़ुदा है सिर्फ मुझी से डरते रहो (51)
  2. व लहू मा फ़िस्समावाति वलअर्ज़ि व लहुद्दीनु वासिबन् अ – फ़ग़ैरल्लाहि तत्तकून
    और जो कुछ आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में हैं (ग़रज़) सब कुछ उसी का है और ख़ालिस फरमाबरदारी हमेशा उसी को लाजि़म (जरूरी) है तो क्या तुम लोग ख़ुदा के सिवा (किसी और से भी) डरते हो (52)
  3. व मा बिकुम् मिन् निअ्मतिन् फमिनल्लाहि सुम् – म इज़ा मस्सकुमुज्-जुर्रू फ़-इलैहि तज् अरून
    और जितनी नेअमतें तुम्हारे साथ हैं (सब ही की तरफ से हैं) फिर जब तुमको तकलीफ छू भी गई तो तुम उसी के आगे फरियाद करने लगते हो (53)
  4. सुम् – म इज़ा क- शफ़ज़्ज़ुर्-र अन्कुम् इज़ा फ़रीकुम् – मिन्कुम् बिरब्बिहिम् युश्रिकून
    फिर जब वह तुमसे तकलीफ को दूर कर देता है तो बस फौरन तुममें से कुछ लोग अपने परवरदिगार को शरीक ठहराते हैं (54)
  5. लियक्फुरु बिमा आतैनाहुम्, फ़-तमत्तअू, फ़सौ-फ़ तअ्लमून
    ताकि जो (नेअमतें) हमने उनको दी है उनकी नाशुक्री करें तो (ख़ैर दुनिया में चन्द रोज़ चैन कर लो फिर तो अनक़रीब तुमको मालूम हो जाएगा (55)
  6. व यज्अलू – न लिमा ला यअ्लमू – न नसीबम् मिम्मा रज़क़्नाहुम् तल्लाहि लतुस् अलुन् – न अ़म्मा कुन्तुम् तफ़्तरून
    और हमने जो रोज़ी उनको दी है उसमें से ये लोग उन बुतों का हिस्सा भी क़रार देते है जिनकी हक़ीकत नहीं जानते तो ख़ुदा की (अपनी) कि़स्म जो इफ़तेरा परदाजि़याँ तुम करते थे (क़यामत में) उनकी बाज़पुर्स (पूछ गछ) तुम से ज़रुर की जाएगी (56)
  7. व यज्अ़लू-न लिल्लाहिल्-बनाति सुब्हानहू व लहुम् मा यश्तहून
    और ये लोग ख़ुदा के लिए बेटियाँ तजवीज़ करते हैं (सुबान अल्लाह) वह उस से पाक व पाकीज़ा है (57)
  8. व इज़ा बुश्शि-र अ-हदुहुम् बिल्उन्सा ज़ल्-ल वज्हुहू मुस्वद्दंव्-व हु-व कज़ीम
    और अपने लिए (बेटे) जो मरग़ूब (दिल पसन्द) हैं और जब उसमें से किसी एक को लड़की पैदा होने की जो खुशख़बरी दीजिए रंज के मारे मुँह काला हो जाता है (58)
  9. य-तवारा मिनल्-कौमि मिन् सू-इ मा बुश्शि-र बिही, अयुम्सिकुहू अला हूनिन् अम् यदुस्सुहू फित्तुराबि, अला सा-अ मा यह्कुमून
    और वह ज़हर का सा घूँट पीकर रह जाता है (बेटी की) जिसकी खुशखबरी दी गई है अपनी क़ौम के लोगों से छिपा फिरता है (और सोचता है) कि क्या इसको जि़ल्लत उठाके जि़न्दा रहने दे या (जि़न्दा ही) इसको ज़मीन में गाड़ दे-देखो तुम लोग किस क़दर बुरा एहकाम (हुक्म) लगाते हैं (59)
  10. लिल्लज़ी-न ला युअ्मिनू – न बिल्आखिरति म – सलुस्सौइ व लिल्लाहिल् म-सलुल्-अअ्ला व हुवल अ़ज़ीजुल हकीम *
    बुरी (बुरी) बातें तो उन्हीं लोगों के लिए ज़्यादा मुनासिब हैं जो आखि़रत का यक़ीन नहीं रखते और ख़ुदा की शान के लायक़ तो आला सिफते (बहुत बड़ी अच्छाइया) हैं और वही तो ग़ालिब है (60)
  11. व लौ युआखिजुल्लाहुन्ना – स बिजुल्मिहिम् मा त-र-क अ़लैहा मिन् दाब्बतिंव् – व लाकिंय्युअख्खिरूहुम् इला अ-जलिम् मुसम्मन् फ़-इज़ा जा-अ अ-जलुहुम् ला यस्तअ्खिरू-न सा- अंतंव्-व ला यस्तक्दिमून
    और अगर (कहीं) ख़ुदा अपने बन्दों की नाफरमानियों की गिरफ़त करता तो रुए ज़मीन पर किसी एक जानदार को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुक़र्रर वक़्त तक उन सबको मोहलत देता है फिर जब उनका (वह) वक़्त आ पहुँचेगा तो न एक घड़ी पीछे हट सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं (61)
  12. व यज्अ़लू-न लिल्लाहि मा यक्रहू-न व तसिफु अल्सिनतुहुमुल् – कज़िब अन्न लहुमुल् – हुस्ना, ला ज-र-म अन्-न लहुमुन्ना – र व अन्नहुम् मुफ्रतून
    और ये लोग खुद जिन बातों को पसन्द नहीं करते उनको ख़ुदा के वास्ते क़रार देते हैं और अपनी ही ज़बान से ये झूठे दावे भी करते हैं कि (आखि़रत में भी) उन्हीं के लिए भलाई है (भलाई तो नहीं मगर) हाँ उनके लिए जहन्नुम की आग ज़रुरी है और यही लोग सबसे पहले (उसमें) झोंके जाएँगें (62)
  13. तल्लाहि ल – क़द् अर्सल्ना इला उ-ममिम् मिन् क़ब्लि-क फ़-ज़य्य – न लहुमुश्शैतानु अअ्मालहुम् फहु -व वलिय्युहुमुल् – यौ – म व लहुम् अज़ाबुन् अलीम
    (ऐ रसूल) ख़ुदा की (अपनी) कसम तुमसे पहले उम्मतों के पास बहुतेरे पैग़म्बर भेजे तो शैतान ने उनकी कारस्तानियों को उम्दा कर दिखाया तो वही (शैतान) आज भी उन लोगों का सरपरस्त बना हुआ है हालाँकि उनके वास्ते दर्दनाक अज़ाब है (63)
  14. व मा अन्ज़ल्ना अ़लैकल्-किता-ब इल्ला लितुबय्यि – न लहुमुल्लज़िख़्त – लफू फ़ीहि व हुदंव् – व रह़्म-तल लिक़ौमिंय्युअ्मिनून
    और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) तो इसी लिए नाजि़ल की ताकि जिन बातों में ये लोग बाहम झगड़ा किए हैं उनको तुम साफ साफ बयान करो (और यह किताब) इमानदारों के लिए तो (अज़सरतापा) हिदायत और रहमत है (64)
  15. वल्लाहु अन्ज़ – ल मिनस्समा इ मा-अन् फ़-अह़्या बिहिल्अर् – ज़ बअ् – द मौतिहा, इन् – न फ़ी ज़ालि- क लआ-यतल् लिकौमिंय्यस्मअून *
    और ख़ुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया तो उसके ज़रिए ज़मीन को मुर्दा होने के बाद जि़न्दा (षादाब) (हरी भरी) किया क्या कुछ शक नहीं कि इसमें जो लोग बसते हैं उनके वास्ते (कु़दरते ख़ुदा की) बहुत बड़ी निशानी है (65)
  16. व इन्-न लकुम् फ़िल्-अन्आमि लअिब्र-तन् नुस्कीकुम् मिम्मा फ़ी बुतूनिही मिम्-बैनि फ़रसिंव्-व दमिल्-ल-बनन् खालिसन् साइग़ल – लिश्शारिबीन
    और इसमें शक नहीं कि चैपायों में भी तुम्हारे लिए (इबरत की बात) है कि उनके पेट में ख़ाक, बला, गोबर और ख़ून (जो कुछ भरा है) उसमें से हमे तुमको ख़ालिस दूध पिलाते हैं जो पीने वालों के लिए खुशगवार है (66)
  17. व मिन् स – मरातिन्नख़ीलि वल्अअ्नाबि तत्तखिजू – न मिन्हु स-करंव् – व रिज्कन् ह – सनन्, इन् – न फ़ी ज़ालि- क लआ-यतल् लिकौमिंय्यअ्किलून
    और इसी तरह खुरमें और अंगूर के फल से (हम तुमको शीरा पिलाते हैं) जिसकी (कभी तो) तुम शराब बना लिया करते हो और कभी अच्छी रोज़ी (सिरका वगै़रह) इसमें शक नहीं कि इसमें भी समझदार लोगों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बड़ी निशानी है (67)
  18. व औहा रब्बु-क इलन्नह़्लि अनित्तखिजी मिनल्-जिबालि बुयूतंव्-व मिनश्श-जरि व मिम्मा यअ्-रिशून
    और (ऐ रसूल) तुम्हारे परवरदिगार ने शहद की मक्खियों के दिल में ये बात डाली कि तू पहाड़ों और दरख़्तों और ऊँची ऊँची ट्ट्टियाँ (और मकानात पाट कर) बनाते हैं (68)
  19. सुम्-म कुली मिन् कुल्लिस्स-मराति फ़स्लुकी सुबु-ल रब्बिकि जुलुलन्, यख़्रुजु मिम्-बुतू निहा शराबुम् – मुख़्तलिफुन् अल्वानुहू फ़ीहि शिफ़ाउल्-लिन्नासि इन्-न फ़ी जालि-क लआ-यतल् लिकौमिंय्य-तफ़क्करून
    उनमें अपने छत्ते बना फिर हर तरह के फलों (के पूर से) (उनका अकऱ्) चूस कर फिर अपने परवरदिगार की राहों में ताबेदारी के साथ चली मक्खियों के पेट से पीने की एक चीज़ निकलती है (शहद) जिसके मुख़्तलिफ रंग होते हैं इसमें लोगों (के बीमारियों) की शिफ़ा (भी) है इसमें शक नहीं कि इसमें ग़ौर व फि़क्र करने वालों के वास्ते (क़ुदरते ख़ुदा की बहुत बड़ी निशानी है) (69)
  20. वल्लाहु ख़-ल-क़कुम् सुम्-म य-तवफ़्फ़ाकुम् व मिन्कुम् मंय्युरद्दु इला अरज़लिल्-अुमुरि लिकै ला यअ्ल-म बअ्-द अिल्मिन् शैअन्, इन्नल्ला-ह अ़लीमुन् क़दीर *
    और ख़ुदा ही ने तुमको पैदा किया फिर वही तुमको (दुनिया से) उठा लेगा और तुममें से बाज़ ऐसे भी हैं जो ज़लील जि़न्दगी (सख़्त बुढ़ापे) की तरफ लौटाए जाते हैं (बहुत कुछ) जानने के बाद (ऐसे सड़ीले हो गए कि) कुछ नहीं जान सके बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता और (हर तरह की) कुदरत रखता है (70)
  21. वल्लाहु फ़ज़्ज़-ल बअ्ज़कुम् अ़ला बअ्ज़िन् फ़िर्रिज्कि फ़-मल्लज़ी-न फुज़्ज़िलू बिराद्दी रिज्किहिम् अ़ला मा म-लकत् ऐमानुहुम् फ़हुम् फीहि सवाउन्, अ-फ़बिनिअ्-मतिल्लाहि यज्हदून
    और ख़ुदा ही ने तुममें से बाज़ को बाज़ पर रिज़क (दौलत में) तरजीह दी है फिर जिन लोगों को रोज़ी ज़्यादा दी गई है वह लोग अपनी रोज़ी में से उन लोगों को जिन पर उनका दस्तरस (इख़्तेयार) है (लौन्डी ग़ुलाम वग़ैरह) देने वाला नहीं (हालाँकि इस माल में तो सब के सब मालिक गुलाम वग़ैरह) बराबर हैं तो क्या ये लोग ख़ुदा की नेअमत के मुन्किर हैं (71)
  22. वल्लाहु ज-अ़-ल लकुम् मिन् अन्फुसिकुम् अज़्वाजंव-व ज-अ-ल लकुम् मिन् अज़्वाजिकुम् बनी-न व ह-फ-दतंव्-व र-ज़-क़ कुम् मिनत्तय्यिबाति, अ-फ़बिल्बातिलि युअ्मिनू-न व बिनिअ् – मतिल्लाहि हुम् यक्फुरून
    और ख़ुदा ही ने तुम्हारे लिए बीबियाँ तुम ही में से बनाई और उसी ने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी बीवियों से बेटे और पोते पैदा किए और तुम्हें पाक व पाकीज़ा रोज़ी खाने को दी तो क्या ये लोग बिल्कुल बातिल (सुल्तान बुत वग़ैरह) पर इमान रखते हैं और ख़ुदा की नेअमत (वहदानियत वग़ैरह से) इन्कार करते हैं (72)
  23. व यअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि मा ला यम्लिकु लहुम रिज़्कम् – मिनस्समावाति वल्अर्जि शैअंव्-व ला यस्ततीअून
    और ख़ुदा को छोड़कर ऐसी चीज़ की परसतिश करते हैं जो आसमानों और ज़मीन में से उनको रिज़क़ देने का कुछ भी न एख़्तियार रखते हैं और न कुदरत हासिल कर सकते हैं (73)
  24. फ़ला तज्रिबू लिल्लाहिल्- अम्सा-ल, इन्नल्ला-ह यअ़लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून
    तो तुम (दुनिया के लोगों पर कयास करके ख़ुद) मिसालें न गढ़ो बेशक ख़ुदा (सब कुछ) जानता है और तुम नहीं जानते (74)
  25. ज़-रबल्लाहु म-सलन् अ़ब्दम्- मम्लूकल्-ला यक्दिरू अ़ला शैइंव् – व मर्रज़क़्नाहु मिन्ना रिज़्क़न् ह-सनन् फ़हु-व युन्फ़िकु मिन्हु सिर्रंव्-व जहरन्, हल् यस्तवू-न, अल्हम्दु लिल्लाहि, बल् अक्सरूहुम् ला यअ्लमून
    एक मसल ख़ुदा ने बयान फरमाई कि एक ग़ुलाम है जो दूसरे के कब्जे़ में है (और) कुछ भी एख़्तियार नहीं रखता और एक शख़्स वह है कि हमने उसे अपनी बारगाह से अच्छी (खासी) रोज़ी दे रखी है तो वह उसमें से छिपा के दिखा के (ग़रज़ हर तरह ख़ुदा की राह में) ख़र्च करता है क्या ये दोनो बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं) अल्हमदोलिल्लाह (कि वह भी उसके मुक़र्रर हैं) मगर उनके बहुतेरे (इतना भी) नहीं जानते (75)

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