16 सूरह अन नहल हिंदी में पेज 4

सूरह अन नहल हिंदी में | Surat An-Nahl in Hindi

  1. व ज़-रबल्लाहु म-सलर्रजुलैनि अ-हदुहुमा अब्कमु ला यक़्दिरू अ़ला शैइंव्-व हु-व कल्लुन् अ़ला मौलाहु, ऐ-नमा युवज्जिह्हु ला यअ्ति बिख़ैरिन्, हल् यस्तवी हु-व, व मंय्यअ्मुरू बिल-अ़द्लि, व हु-व अ़ला सिरातिम्-मुस्तक़ीम*
    और अल्लाह एक दूसरी मसल बयान फरमाता है दो आदमी हैं कि एक उनमें से बिल्कुल गूँगा उस पर गुलाम जो कुछ भी (बात वग़ैरह की) कुदरत नहीं रखता और (इस वजह से) वह अपने मालिक को दूभर हो रहा है कि उसको जिधर भेजता है (ख़ैर से) कभी भलाई नहीं लाता क्या ऐसा ग़ुलाम और वह शख़्स जो (लोगों को) अदल व मियाना रवी का हुक्म करता है वह खुद भी ठीक सीधी राह पर क़ायम है (दोनों बराबर हो सकते हैं (हरगिज़ नहीं)।
  2. व लिल्लाहि ग़ैबुस्समावाति वल्अर्ज़ि व मा अम्रूस्सा-अ़ति इल्ला क-लम्हिल्-ब-सरि औ हु-व अक़्रबु, इन्नल्ला-ह अ़ला कुल्लि शैइन् क़दीर
    और सारे आसमान व ज़मीन की ग़ैब की बातें अल्लाह ही के लिए मख़सूस हैं और अल्लाह क़यामत का वाकेए होना तो ऐसा है जैसे पलक का झपकना बल्कि इससे भी जल्दी बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ुदरत कामेला रखता है।
  3. वल्लाहु अख़्र-जकुम् मिम्-बुतूनि उम्महातिकुम् ला तअ्लमू-न शैअंव्-व ज-अ-ल लकुमुस्सम्-अ़ वल्अब्सा-र वल्-अफ्इ-द-त, लअल्लकुम् तश्कुरून
    और अल्लाह ही ने तुम्हें तुम्हारी माओं के पेट से निकाला (जब) तुम बिल्कुल नासमझ थे और तुम को कान दिए और आँखें (अता की) दिल (इनायत किए) ताकि तुम शुक्र करो।
  4. अलम् यरौ इलत्तैरि मुसख़्ख़रातिन् फ़ी जव्विस्समा-इ, मा युम्सिकुहुन्-न इल्लल्लाहु, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल्-लिकौमिंय्युअ्मिनून
    क्या उन लोगों ने परिन्दों की तरफ ग़ौर नहीं किया जो आसमान के नीचे हवा में घिरे हुए (उड़ते रहते हैं) उनको तो बस अल्लाह ही (गिरने से) रोकता है बेशक इसमें भी (कुदरते अल्लाह की) इमानदारों के लिए बहुत सी निशानियाँ हैं।
  5. वल्लाहु ज-अ-ल लकुम् मिम्-बुयूतिकुम् स-कनंव्-व ज-अ-ल लकुम् मिन् जुलूदिल्-अन्आ़मि बुयूतन् तस्तख़िफ्फूनहा यौ-म ज़अ्निकुम् व यौ-म इक़ामतिकुम्, व मिन् अस्वाफ़िहा व औबारिहा व अश्आ़रिहा असासंव्-व मताअ़न् इला हीन
    और अल्लाह ही ने तुम्हारे घरों को तुम्हारा ठिकाना क़रार दिया और उसी ने तुम्हारे वास्ते चैपायों की खालों से तुम्हारे लिए (हलके फुलके) डेरे (ख़ेमे) बना जिन्हें तुम हलका पाकर अपने सफर और हजर (ठहरने) में काम लाते हो और इन चारपायों की ऊन और रुई और बालो से एक वक़्त ख़ास (क़यामत तक) के लिए तुम्हारे बहुत से असबाब और अबकार आमद (काम की) चीज़े बनाई।
  6. वल्लाहु ज-अ-ल लकुम् मिम्मा ख़-ल-क़ ज़िलालंव्-व ज-अ-ल लकुम् मिनल् जिबालि अक्नानंव्-व ज-अ़-ल लकुम् सराबी-ल तक़ीकुमुल्हर्-र व सराबी-ल तक़ीकुम् बअ्सकुम्, कज़ालि-क युतिम्मु निअ्-मतहू अ़लैकुम् लअ़ल्लकुम् तुस्लिमून
    और अल्लाह ही ने तुम्हारे आराम के लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों के साए बनाए और उसी ने तुम्हारे (छिपने बैठने) के वास्ते पहाड़ों में घरौन्दे (ग़ार वग़ैरह) बनाए और उसी ने तुम्हारे लिए कपड़े बनाए जो तुम्हें (सर्दी) गर्मी से महफूज़ रखें और (लोहे) के कुर्ते जो तुम्हें हाथियों की ज़द (मार) से बचा लें यूँ अल्लाह अपनी नेअमत तुम पर पूरी करता है।
  7. फ-इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैकल्-बलाग़ुल-मुबीन
    तुम उसकी फरमाबरदारी करो उस पर भी अगर ये लोग (इमान से) मुँह फेरे तो तुम्हारा फर्ज़ सिर्फ (एहकाम का) साफ पहुँचा देना है।
  8. यअ्-रिफू-न निअ्-मतल्लाहि सुम्-म युन्किरूनहा व अक्सरूहुमुल् काफिरून *
    (बस) ये लोग अल्लाह की नेअमतों को पहचानते हैं फिर (जानबुझ कर) उनसे मुकर जाते हैं और इन्हीं में से बहुतेरे नाशुक्रे हैं।
  9. व यौ-म नब्असु मिन् कुल्लि उम्मतिन् शहीदन् सुम्-म ला युअ्ज़नु लिल्लज़ी-न क-फ़रू व ला हुम् युस्तअ्तबून
    और जिस दिन हम एक उम्मत में से (उसके पैग़म्बरों को) गवाह बनाकर क़ब्रों से उठा खड़ा करेगे फिर तो काफिरों को न (बात करने की) इजाज़त दी जाएगी और न उनका उज्र (जवाब) ही सुना जाएगा।
  10. व इज़ा रअल्लजी-न ज़-लमुल्-अ़ज़ा-ब फ़ला युखफ़्फ़फु अ़न्हुम् व ला हुम् युन्ज़रून
    और जिन लोगों ने (दुनिया में) शरारतें की थी जब वह अज़ाब को देख लेगें तो उनके अज़ाब ही में तख़फ़ीफ़ की जाएगी और न उनको मोहलत ही दी जाएगी।
  11. व इज़ा रअल्लज़ी-न अश्रकू शु-रका-अहुम् क़ालू रब्बना हाउला-इ शु-रकाउनल्लज़ी-न कुन्ना नद्अू मिन् दूनि-क, फ़अल्क़ौ इलैहिमुल्क़ौ-ल इन्नकुम् लकाज़िबून•
    और जिन लोगों ने दुनिया में अल्लाह का शरीक (दूसरे को) ठहराया था जब अपने (उन) शरीकों को (क़यामत में) देखेंगे तो बोल उठेगें कि ऐ हमारे परवरदिगार यही तो हमारे शरीक हैं जिन्हें हम (मुसीबत) के वक़्त तुझे छोड़ कर पुकारा करते थे तो वह शरीक उन्हीं की तरफ बात को फेंक मारेगें कि तुम निरे झूठे हो।
  12. व अल्क़ौ इलल्लाहि यौमइज़ि निस्स-ल-म व ज़ल्-ल अ़न्हुम् मा कानू यफ़्तरून
    और उस दिन अल्लाह के सामने सर झुका देंगे और जो इफ़तेरा परदाजि़याँ दुनिया में किया करते थे उनसे गायब हो जाएँगें।
  13. अल्लज़ी-न क-फरू व सद्दू अन् सबीलिल्लाहि ज़िद्-ना हुम् अ़ज़ाबन् फ़ौक़ल्-अ़ज़ाबि बिमा कानू युफ्सिदून
    जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया और लोगों को अल्लाह की राह से रोका उनके फ़साद वाले कामों के बदले में उनके लिए हम अज़ाब पर अज़ाब बढ़ाते जाएँगें।
  14. व यौ-म नब्असु फ़ी कुल्लि उम्मतिन् शहीदन् अ़लैहिम् मिन् अन्फुसिहिम् व जिअ्ना बि-क शहीदन् अ़ला हाउला-इ, व नज़्ज़ल्ना अ़लैकल्-किता-ब तिब्यानल्-लिकुल्लि शैइंव्-व हुदंव्-व रह़्मतंव्-व बुश्रा लिल्मुस्लिमीन *
    और वह दिन याद करो जिस दिन हम हर एक गिरोह में से उन्हीं में का एक गवाह उनके मुक़ाबिल ला खड़ा करेगें और (ऐ रसूल) तुम को उन लोगों पर (उनके) सामने गवाह बनाकर ला खड़ा करेंगें और हमने तुम पर किताब (क़ुरान) नाजि़ल की जिसमें हर चीज़ का (शाफी) बयान है और मुसलमानों के लिए (सरमापा) हिदायत और रहमत और खुशख़बरी है।
  15. इन्नल्ला-ह यअ्मुरू बिल-अ़द्लि वल्-इह़्सानि व ईता-इ ज़िल्क़ुरबा व यन्हा अनिल्-फ़ह्शा-इ वल्मुन्करि वल्बग़्यि, यअिज़ुकुम् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून
    इसमें शक नहीं कि अल्लाह इन्साफ और (लोगों के साथ) नेकी करने और क़राबतदारों को (कुछ) देने का हुक्म करता है और बदकारी और नाशएस्ता हरकतों और सरकशी करने को मना करता है (और) तुम्हें नसीहत करता है ताकि तुम नसीहत हासिल करो।
  16. व औफू बि-अ़ह़्दिल्लाहि इज़ा आ़हत्तुम् व ला तन्क़ुज़ुल् -ऐमा-न बअ्-द तौकीदिहा व क़द् जअ़ल्तुमुल्ला-ह अ़लैकुम् कफ़ीलन्, इन्नल्ला-ह यअ्लमु मा तफ़्अलून
    और जब तुम लोग बाहम क़ौल व क़रार कर लिया करो तो अल्लाह के एहदो पैमान को पूरा करो और क़समों को उनके पक्का हो जाने के बाद न तोड़ा करो हालाँकि तुम तो अल्लाह को अपना ज़ामिन बना चुके हो जो कुछ भी तुम करते हो अल्लाह उसे ज़रुर जानता है।
  17. व ला तकूनू कल्लती न-क़ज़त् ग़ज़्लहा मिम्-बअ्दि क़ुव्वतिन् अन्कासन्, तत्तख़िज़ू-न ऐमानकुम् द-ख़लम्-बैनकुम् अन् तकू-न उम्मतुन् हि-य अरबा मिन् उम्मतिन्, इन्नमा यब्लूकुमुल्लाहु बिही, व लयुबय्यिनन्-न लकुम् यौमल्-क़ियामति मा कुन्तुम फ़ीहि तख़्तलिफून
    और तुम लोग (क़समों के तोड़ने में) उस औरत के ऐसे न हो जो अपना सूत मज़बूत कातने के बाद टुकड़े टुकड़े करके तोड़ डाले कि अपने एहदो को आपस में उस बात की मक्कारी का ज़रिया बनाने लगो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से (ख़्वामख़वाह) बढ़ जाए इससे बस अल्लाह तुमको आज़माता है (कि तुम किसी की पालाइश करते हो) और जिन बातों में तुम दुनिया में झगड़ते थे क़यामत के दिन अल्लाह खुद तुम से साफ साफ बयान कर देगा।
  18. व लौ शा-अल्लाहु ल-ज-अ़-लकुम् उम्मतंव्-वाहि -दतंव्-व लाकिंय्-युज़िल्लू मंय्यशा-उ, व यह्दी मंय्यशा-उ, व लतुस्अलुन्-न अ़म्मा कुन्तुम् तअ्मलून
    और अगर अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही (किस्म के) गिरोह बना देता मगर वह तो जिसको चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसकी चाहता है हिदायत करता है और जो कुछ तुम लोग दुनिया में किया करते थे उसकी बाज़ पुर्स (पुछ गछ) तुमसे ज़रुर की जाएगी।
  19. व ला तत्तख़िज़ू ऐमानकुम् द-ख़लम् बैनकुम् फ़-तज़िल्-ल क़-दमुम्-बअ्-द सुबूतिहा व तज़ूक़ुस्सू अ बिमा सदत्तुम् अ़न् सबीलिल्लाहि, व लकुम् अ़ज़ाबुन अज़ीम
    और तुम अपनी क़समों को आपस में के फसाद का सबब न बनाओ ताकि (लोगों के) क़दम जमने के बाद (इस्लाम से) उखड़ जाएँ और फिर आखिरकार क़यामत में तुम्हें लोगों को अल्लाह की राह से रोकने की पादाष (रोकने के बदले) में अज़ाब का मज़ा चखना पड़े और तुम्हारे वास्ते बड़ा सख़्त अज़ाब हो।
  20. व ला तश्तरू बि-अ़ह्दिल्लाहि स-मनन् क़लीलन्, इन्नमा जिन्दल्लाहि हु-व ख़ैरुल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून
    और अल्लाह के एहदो पैमान के बदले थोड़ी क़ीमत (दुनयावी नफा) न तो अगर तुम जानते (बूझते) हो तो (समझ लो कि) जो कुछ अल्लाह के पास है वह उससे कहीं बेहतर है।
  21. मा अिन्दकुम् यन्फ़दु व मा अिन्दल्लाहि बाक़िन्, व ल-नज़्ज़ियन्नल्लज़ी-न स-बरू अज्रहुम् बि-अह्सनि मा कानू यअ्मलून
    (क्योंकि माल दुनिया से) जो कुछ तुम्हारे पास है एक न एक दिन ख़त्म हो जाएगा और (अज्र) अल्लाह के पास है वह हमेशा बाक़ी रहेगा (96) और जिन लोगों ने दुनिया में सब्र किया था उनको (क़यामत में) उनके कामों का हम अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता करेंगें।
  22. मन अ़मि-ल सालिहम्-मिन् ज़-करिन् औ उन्सा व हु-व मुअ्मिनुन् फ़-लनुह़्यि-यन्नहू हयातन् तय्यि-बतन्, व लनज्ज़ियन्नहुम् अज्रहुम् बिअह्सनि मा कानू यअ्मलून
    मर्द हो या औरत जो शख़्स नेक काम करेगा और वह इमानदार भी हो तो हम उसे (दुनिया में भी) पाक व पाकीज़ा जिन्दगी बसर कराएँगें और (आख़िरत में भी) जो कुछ वह करते थे उसका अच्छे से अच्छा अज्र व सवाब अता फरमाएँगें।
  23. फ़-इज़ा क़रअ्तल् क़ुरआ-न फ़स्तअिज़् बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम
    और जब तुम क़ुरान पढ़ने लगो तो शैतान मरदूद (के वसवसो) से अल्लाह की पनाह तलब कर लिया करो।
  24. इन्नहू लै-स लहू सुल्तानुन् अलल्लज़ी-न आमनू व अ़ला रब्बिहिम् य-तवक्कलून
    इसमें शक नहीं कि जो लोग इमानदार हैं और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं उन पर उसका क़ाबू नहीं चलता।
  25. इन्नमा सुल्तानुहू अ़लल्लज़ी-न य-तवल्लौनहू वल्लज़ी-न हुम् बिही मुश्रिकून *
    उसका क़ाबू चलता है तो बस उन्हीं लोगों पर जो उसको दोस्त बनाते हैं और जो लोग उसको अल्लाह का शरीक बनाते हैं।

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