04 सूरह अन-निसा हिंदी में पेज 3

सूरह अन-निसा हिंदी में | Surah An-Nisa in Hindi

  1. फ़कै-फ़ इज़ा जिअ्ना मिन् कुल्लि उम्मतिम् बि-शहीदिंव्-व जिअ्ना बि-क अला हा-उला-इ शहीदा
    (ख़ैर दुनिया में तो जो चाहे करें) भला उस वक़्त क्या हाल होगा जब हम हर गिरोह के गवाह तलब करेंगे और (मोहम्मद (स०)) तुमको उन सब पर गवाह की हैसियत में तलब करेंगे।
  2. यौमइजिंय्-यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू व अ-सवुर्-रसू-ल लौ तुसव्वा बिहिमुल्-अर्ज़ु, व ला यक्तुमूनल्ला-ह हदीसा *
    उस दिन जिन लोगों ने इनकार किया होगा और रसूल की अवज्ञा की होगी, ये आरज़ू करेंगे कि किसी तरह उन्हें धरती में समोकर उसे बराबर कर दिया जाए और अफ़सोस ये लोग अल्लाह से कोई बात उस दिन छुपा भी न सकेंगे।
  3. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़्रबुस्सला-त व अन्तुम् सुकारा हत्ता तअ्लमू मा तक़ूलू-न व ला जुनुबन् इल्ला आबिरी सबीलिन् हत्ता तग़्तसिलू, व इन् कुन्तुम् मर्ज़ा औ अला स-फ़रिन् औ जा-अ अ-हदुम् मिन्कुम् मिनल्ग़ा-इति औ लामस्तुमुन्निसा-अ फ़-लम् तजिदू माअन् फ़-तयम्ममू सईदन् तय्यिबन् फम्सहू बिवुजूहिकुम् व ऐदीकुम्, इन्नल्ला-ह का-न अफुव्वन् ग़फूरा
    ऐ ईमानदारों! तुम नशे की हालत में नमाज़ के क़रीब न जाओ ताकि तुम जो कुछ मुँह से कहो समझो भी तो(यह आदेश इस्लाम के आरंभिक युग का है, जब मदिरा को वर्जित नहीं किया गया था।) और न वीर्यपात की हालत में यहाँ तक कि ग़ुस्ल कर लो मगर राह में हो (और गु़स्ल मुमकिन नहीं है तो अलबत्ता ज़रूरत नहीं) बल्कि अगर तुम मरीज़ हो और पानी नुक़सान करे या सफ़र में हो तुममें से किसी का पैख़ाना निकल आए या औरतों से सहवास की हो और तुम पानी न पाओ तो पाक मिट्टी पर तयम्मुम कर लो और (उस का तरीक़ा ये है कि) अपने मुँह और हाथों पर मिट्टी भरा हाथ फेरो तो बेशक अल्लाह माफ़ करने वाला है (और) बख़्शने वाला है।
  4. अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल किताबि यश्तरूनज़्ज़ला-ल-त व युरीदू-न अन् तज़िल्लुस्सबील
    (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों के हाल पर नज़र नहीं की जिन्हें किताबे अल्लाह का कुछ हिस्सा दिया गया था (मगर) वह लोग (हिदायत के बदले) गुमराही ख़रीदने लगे और चाहते हैं कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ।
  5. वल्लाहु अअ्लमु बि-अअ्दा-इकुम्, व कफ़ा बिल्लाहि वलिय्यंव्-व कफ़ा बिल्लाहि नसीरा
    और अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों से ख़ूब अवगत है और दोस्ती के लिए बस अल्लाह काफ़ी है और हिमायत के वास्ते भी अल्लाह ही काफ़ी है।
  6. मिनल्लज़ी-न हादू युहर्रिफूनल कलि-म अम्मवाज़िअिही व यक़ूलू-न समिअ्ना व असैना वस्मअ् ग़ै-र मुस्मअिव्-व राअिना लय्यम् बि अल्सिनतिहिम् व तअ्नन् फ़िद्दीनि, व लौ अन्नहुम क़ालू समिअ्ना व अतअ्-न वस्मअ् वन्ज़ुर्ना लका-न ख़ैरल्लहुम् व अक्-व म, वला किल्-ल-अ-नहुमुल्लाहु बिकुफ्रिहिम् फला युअ्मिनू-न इल्ला क़लीला
    (ऐ रसूल!) यहूद से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बातों में उनके महल व मौक़े से हेर फेर डाल देते हैं और अपनी ज़बानों को मरोड़कर और दीन पर तानाज़नी की राह से तुमसे समेअना व असैना (हमने सुना और नाफ़रमानी की) और वसमअ गै़रा मुसमइन (तुम मेरी सुनो अल्लाह  तुमको न सुनवाए) राअना (मेरा ख़्याल करो मेरे चरवाहे) कहा करते हैं और अगर वह इसके बदले समेअना व अताअना (हमने सुना और माना) और इसमाआ (मेरी सुनो) और (राअना) के एवज़ उनजुरना (हम पर निगाह रख) कहते तो उनके हक़ में कहीं बेहतर होता और बिल्कुल सीधी बात थी मगर उनपर तो उनके इनकार की वजह से अल्लाह की फटकार है।
  7. या अय्युहल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब आमिनू बिमा नज़्ज़ल्ना मुसद्दिक़ल्लिमा म-अकुम् मिन् क़ब्लि अन्नत्मि-स वुजूहन् फ़-नरूद्दहा अला अदबारिहा औ नल्अ नहुम् कमा ल-अन्ना अस्हाबस्सब्ति, व का-न अमरूल्लाहि मफ्अूला
    बस उनमें से चन्द लोगों के सिवा और लोग ईमान ही न लाएंगे ऐ एहले किताब! जो (किताब) हमने नाजि़ल की है और उस (किताब) की भी पुष्टि करती है जो तुम्हारे पास है, उस पर ईमान लाओ मगर इससे पहले कि हम कुछ लोगों के चेहरे बिगाड़कर उन्हें उनके पीछे की ओर फेर दें या जिस तरह हमने सब्तवालों पर लानत की थी वैसी ही लानत उनपर भी करें। और अल्लाह का आदेश तो लागू होकर ही रहता है।
  8. इन्नल्ला-ह ला यग़्फ़िरू अंय्युश्र क बिही व यग़्फ़िरू मा दू-न ज़ालि-क लिमंय्यशा-उ व मंय्युश्रिक् बिल्लाहि फ-क़दिफ्तरा इस्मन् अज़ीमा
    अल्लाह उस जुर्म को तो अलबत्ता नहीं माफ़ करता कि कि उसका साझी बनाया जाये, हाँ उसके सिवा जो गुनाह हो, जिसको चाहे माफ़ कर दे और जिसने (किसी को) अल्लाह का शरीक बनाया तो उसने महा पाप गढ़ लिया।
  9. अलम् त-र इलल्लज़ी-न युज़क्कू-न अन्फुसहुम, बलिल्लाहु युज़क्की मंय्यशा-उ वला युज़्लमू-न फतीला
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने उन लोगों के हाल पर नज़र नहीं की जो आप बड़े पवित्र बनते हैं (मगर इससे क्या होता है) बल्कि अल्लाह जिसे चाहता है पवित्र करता है और उनके साथ तनिक भी अत्याचार नहीं किया जाता।
  10. उन्ज़ुर कै-फ यफ्तरू-न अलल्लाहिल-कज़ि-ब, व कफा बिही इस्मम् मुबीना *
    (ऐ रसूल!) ज़रा देखो तो ये लोग अल्लाह पर कैसे कैसे झूठ मढ़ते हैं और खुल्लम खुल्ला गुनाह के वास्ते तो यही पर्याप्त है।
  11. अलम् त-र इलल्लज़ी-न ऊतू नसीबम् मिनल्-किताबि युअ्मिनू-न बिल-जिब्ति वत्ताग़ूति व यक़ूलू-न लिल्लज़ी-न क-फरू हा-उला-इ अह्दा मिनल्लज़ी-न आमनू सबीला
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने उन लोगों के (हाल पर) नज़र नहीं की जिन्हें किताबे अल्लाह का कुछ हिस्सा दिया गया था और (फिर) शैतान और बुतों का कलमा पढ़ने लगे और जिन लोगों ने कुफ़्र इख़्तेयार किया है उनके बारे में कहने लगे कि ये तो ईमान लाने वालों से ज़्यादा राहे रास्त पर हैं। (अर्थात मक्का के मूर्ति के पुजारियों के बारे में। मदीना के यहूदियों की यह दशा थी कि वह सदैव मूर्ति पूजा के विरोध रहे। और उस का अपमान करते रहे। परन्तु अब मुसलमानों के विरोध में उन की प्रशंसा करते और कहते कि मूर्ति पूजकों का आचरण स्वभाव अधिक अच्छा है।)
  12. उला-इकल्लज़ी-न ल-अ नहुमुल्लाहु, व मंय्यल अनिल्लाहु फ़-लन् तजि-द लहू नसीरा
    (ऐ रसूल!) यही वह लोग हैं जिनपर अल्लाह ने लानत की है। और जिसे अल्लाह धिक्कार दे, तुम उनका मददगार हरगिज़ किसी को न पाओगे।
  13. अम् लहुम् नसीबुम् मिनल-मुल्कि फ-इज़ल्ला युअ्तूनन्ना-स नक़ीरा
    क्या (दुनिया) की सल्तनत में कुछ उनका भी हिस्सा है कि इस वजह से लोगों को भूसी भर भी न देंगे।
  14. अम् यह़्सुदूनन्ना-स अला मा आताहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही, फ़-क़द् आतैना आ-ल इब्राहीमल्-किता-ब वल्हिक्म-त व आतैनाहुम् मुल्कन् अज़ीमा
    यह अल्लाह ने जो अपने फ़ज़ल से (तुम) लोगों को (कु़रान) प्रदान किया है इसके रश्क पर जले जाते हैं (तो उसका क्या इलाज है) हमने तो इब्राहीम की औलाद को किताब और अक़्ल की बातें प्रदान किया हैं और उनको विशाल राज्य भी दिया है।
  15. फ-मिन्हुम मन् आम-न बिही व मिन्हुम् मन् सद् -द अन्हु, व कफ़ा बि-जहन्न-म सईरा
    फिर कुछ लोग तो इस (किताब) पर ईमान लाए और कुछ लोगों ने उससे इन्कार किया और इसकी सज़ा के लिए जहन्नुम की दहकती हुयी आग काफ़ी है।
  16. इन्नल्लज़ी-न क-फरू बिआयातिना सौ-फ़ नुस्लीहिम् नारन्, कुल्लमा नज़िजत् जुलूदुहुम् बद्दल्नाहुम् जुलूदन ग़ै रहा लि-यज़ूक़ुल-अज़ा-ब, इन्नल्ला-ह का-न अज़ीज़न हकीमा
    (याद रहे) कि जिन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया उन्हें ज़रूर अनक़रीब जहन्नुम की आग में झोंक देंगे (और जब उनकी खालें जल कर) जल जाएंगी तो हम उनके लिए दूसरी खालें बदल कर पैदा करे देंगे ताकि वह अच्छी तरह अज़ाब का मज़ा चखें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  17. वल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति सनुद्ख़िलुहुम् जन्नातिन् तज्री मिन् तह़्तिहल-अन्हारू ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, लहुम् फ़ीहा अज़्वाजुम् मुतह़्ह-रतुंव्-व नुद्ख़िलुहुम् ज़िल्लन् ज़लीला
    और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम किए, हम उनको अनक़रीब ही (स्वर्ग के) ऐसे ऐसे (हरे भरे) बाग़ों में जा पहुँचाएंगे जिन के नीचे नहरें जारी होंगी और उनमें हमेशा रहेंगे वहां उनकी साफ़ सुथरी बीवियाँ होंगी और उन्हे घनी छाव में ले जाकर रखेंगे।
  18. इन्नल्ला-ह यअ्मुरूकुम् अन् तु-अद्दुल अमानाति इला अह़्लिहा, व इज़ा हकम्तुम् बैनन्नासि अन् तह़्कुमू बिल-अद्लि, इन्नल्ला-ह निअिम्मा यअिज़ुकुम बिही, इन्नल्ला-ह का-न समीअ़म् बसीरा
    ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतों को उनके हक़दारों तक पहुँचा दिया करो और जब लोगों के झगड़ों का फै़सला करने लगो तो इन्साफ़ से फै़सला करो (अल्लाह तुमको) इसकी क्या ही अच्छी नसीहत करता है इसमें तो शक नहीं कि अल्लाह सबकी सुनता है (और सब कुछ) देखता है।
  19. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू अतीअुल्ला-ह व अतीर्रसू-ल व उलिल्-अम्रि मिन्कुम्, फ़-इन् तनाज़अ्तुम् फी शैइन् फरूद्दूहु इलल्लाहि वर्रसूलि इन् कुन्तुम् तुअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि, ज़ालि-क खैरूंव्-व अह्सनु तअ्वीला *
    ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की और अपने शासकों की आज्ञापालन करो। और अगर तुम किसी बात में झगड़ा करो बस अगर तुम अल्लाह और अन्तिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखते हो तो इस अम्र में अल्लाह और रसूल की तरफ़ रूजू करो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है और अन्जाम की राह से बहुत अच्छा है।
  20. अलम् त-र इलल्लज़ी-न यज़्अुमू-न अन्नहुम् आमनू बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मा उन्ज़ि-ल मिन् क़ब्लि-क युरीदू-न अंय्य तहाकमू इलत्ताग़ूति व क़द् उमिरू अंय्यक्फुरु बिही, व युरीदुश्शैतानु अंय्युज़िल्लहुम् ज़लालम् बईदा
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने उन लोगों की (हालत) पर नज़र नहीं की जो ये ख़्याली पुलाओ पकाते हैं कि जो किताब तुझ पर नाज़िल की गयी और जो किताबें तुम से पहले नाज़िल की गयी (सब पर) ईमान लाए। और दिली तमन्ना ये है कि सरकशों को अपना हाकिम बनाएं। हालांकि उनको हुक्म दिया गया कि उसकी बात न मानें। और शैतान तो यह चाहता है कि उन्हें बहका के बहुत दूर ले जाए।

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