04 सूरह अन-निसा हिंदी में पेज 4

सूरह अन-निसा हिंदी में | Surah An-Nisa in Hindi

  1. व इज़ा क़ी-ल लहुम् तआलौ इला मा अन्ज़लल्लाहु व इलर्रसूलि रअय्तल्-मुनाफ़िक़ी-न यसुद्दू-न अन्-क सुदूदा
    और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो किताब उतारी है उसकी तरफ़ और रसूल की तरफ़ आओ तो तुम मुनाफिक़ीन को देखते हो कि तुमसे किस तरह मुँह फेर लेते हैं।
  2. फ़कै-फ़ इज़ा असाबत्हुम् मुसीबतुम् बिमा क़द्दमत् ऐदीहिम् सुम्-म जाऊ-क यहलिफू-न, बिल्लाहि इन् अरद्ना इल्ला इहसानंव्-व तौफीक़ा
    कि जब उनपर उनके करतूत की वजह से कोई मुसीबत पड़ती है तो क्योंकि तुम्हारे पास अल्लाह की क़समें खाते हैं कि हमारा मतलब नेकी और मेल मिलाप के सिवा कुछ न था, ये वह लोग हैं कि कुछ अल्लाह ही उनके दिल की हालत ख़ूब जानता है।
  3. उलाइ-कल्लज़ी-न यअ् लमुल्लाहु मा फ़ी क़ुलूबिहिम्, फ़-अअ्-रिज़् अन्हुम् व अिज़्हुम् व क़ुल्-लहुम् फ़ी अन्फुसिहिम् क़ौलम् बलीग़ा
    तो तुम उन्हें जाने दो और उनको नसीहत करो और उनसे उनके दिल में असर करने वाली बात कहो और हमने कोई रसूल नहीं भेजा मगर इस वास्ते कि अल्लाह की अनुमति से उसकी आज्ञा का पालन किया जाए।
  4. व मा अरसल्ना मिर्रसूलिन् इल्ला लियुता-अ बि- इज़्निल्लाहि, व लौ अन्नहुम् इज़्-ज़-लमू अन्फु-सहुम् जाऊ-क फ़स्तग़्फरूल्ला-ह वस्तग़्फ-र लहुमुर्रसूलु ल-व-जदुल्ला-ह तव्वाबर्रहीमा
    और (रसूल) जब उन लोगों ने (नाफ़रमानी करके) अपनी जानों पर जु़ल्म किया था अगर तुम्हारे पास चले आते और अल्लाह से माफ़ी माँगते और रसूल भी इनके लिये क्षमा की प्रार्थना करते तो निश्चय ही वह लोग अल्लाह को बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान पाते।
  5. फ़ला व रब्बि-क ला युअ्मिनू-न हत्ता युहक्किमू-क फ़ीमा श-ज-र बैनहुम् सुम्-म ला यजिदू फ़ी अन्फुसिहिम् ह-रजम्-मिम्मा क़ज़ै-त व युसल्लिमू तस्लीमा
    बस (ऐ रसूल!) तुम्हारे परवरदिगार की क़सम ये लोग सच्चे ईमान वाले न होंगे जब तक कि अपने आपस के झगड़ों में तुमको अपना निर्णायक (न) बनाएं फिर (यही नहीं बल्कि) जो कुछ तुम फै़सला करो उससे अपने दिलों में तनिक भी संकीर्णता (तंगी) का अनुभव न करें बल्कि ख़ुशी ख़ुशी उसको मान लें।
  6. व लौ अन्ना कतब् ना अलैहिम् अनिक़्तुलू अन्फु-सकुम् अविख़्रूजू मिन् दियारिकुम् मा फ़-अलूहु इल्ला क़लीलुम्-मिन्हुम, व लौ अन्नहुम् फ़-अलू मा यू-अज़ू-न बिही लका-न ख़ैरल्लहुम् व अशद् -द तस्बीता
    (इस्लामी शरीयत में तो उनका ये हाल है) और अगर हम बनी इसराइल की तरह उनपर ये आदेश जारी कर देते कि तुम अपने आपको क़त्ल कर डालो या शहर बदर हो जाओ तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा ये लोग तो उसको न करते और अगर ये लोग इस बात पर अमल करते जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है तो उनके हक़ में बहुत बेहतर होता और (दीन में भी) बहुत साबित क़दमी से जमे रहते।
  7. व इज़ल-लआतैनाहुम् मिल्लदुन्ना अज्रन् अज़ीमा
     और इस सूरत में हम भी अपनी तरफ़ से ज़रूर बड़ा अच्छा बदला देते।
  8. वल-हदैनाहुम् सिरातम् मुस्तक़ीमा
    और उन्हें सीधे मार्ग पर भी लगा देते।
  9. व मंय्युतिअिल्ला-ह वर्रसू-ल फ-उलाइ-क मअ़ल्लज़ी-न अन् अ-मल्लाहु अलैहिम् मिनन्-नबिय्यी-न वसिद्दीक़ी-न वश्शु-हदा-इ वस्सालिही-न, व हसु-न उलाइ-क रफ़ीक़ा
    और जिस शख़्स ने अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन किया तो ऐसे लोग उन (मक़बूल) बन्दों के साथ होंगे जिनपर अल्लाह ने पुरस्कार किया है अर्थात नबियों, सत्यवादियों, शहीदों और सदाचारियों के साथ और ये लोग क्या ही अच्छे साथी हैं।
  10. ज़ालिकल्-फज़्लु मिनल्लाहि, व कफ़ा बिल्लाहि अलीमा *
    यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है। और काफ़ी है अल्लाह, इस हाल में कि वह भली-भाँति जानता है।
  11. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ख़ुज़ू हिज़्रकुम फ़न्फिरू सुबातिन् अविन्फ़िरू जमीआ
    ऐ ईमानवालों! (जिहाद के वक़्त) अपने (शत्रु से) बचाव के साधन तैयार रखो, फिर गिरोहों में अथवा एक साथ निकल पड़ो।
  12. व इन्-न मिन्कुम् ल-मल्लयुबत्तिअन्-न फ़-इन् असाबत्कुम् मुसीबतुन् क़ा-ल क़द् अन्अ-मल्लाहु अलय्-य इज़् लम् अकुम् म-अहुम् शहीदा
    और तुममें से कुछ ऐसे भी हैं जो (जेहाद से) ज़रूर पीछे रहेंगे फिर अगर यदि तुमपर कोई मुसीबत आ पड़ी तो कहने लगे अल्लाह ने हमपर बड़ा उपकार किया कि मैं उन (मुसलमानों) के साथ मौजूद न हुआ।
  13. व ल-इन असाबकुम् फज़्लुम मिनल्लाहि ल-यक़ूलन्-न क-अल्लम् तकुम् बैनकुम् व बैनहू मवद्दतुंय-यालैतनी कुन्तु म-अहुम् फ़-अफू-ज़ फौज़न् अज़ीमा
    और अगर तुमपर अल्लाह ने उदार अनुग्रह किया (और दुश्मन पर ग़ालिब आए) तो इस तरह अजनबी बनके कि गोया तुममें उसमें कभी मोहब्बत ही न थी यूँ कहने लगा कि क्या ही अच्छा होता कि उनके साथ होता तो मैं भी बड़ी सफलता हासिल करता।
  14. फल्युक़ातिल् फी सबीलिल्लाहिल्लज़ी-न यश्रूनल् -हयातद्दुन्या बिल्आख़ि-रति, व मंय्युक़ातिल फी सबीलिल्लाहि फ-युक़्तल् औ यग़्लिब् फ़सौ-फ नुअ्तीहि अज्रन् अज़ीमा
    बस जो लोग दुनिया की जि़न्दगी (जान तक) आख़ेरत के वास्ते दे डालने को मौजूद हैं उनको अल्लाह की राह में जेहाद करना चाहिए और जिसने अल्लाह की राह में जेहाद किया फिर शहीद हुआ तो गोया ग़ालिब आया तो (बहरहाल) हम तो अनक़रीब ही उसको बड़ा प्रतिफल प्रदान करेंगे।
  15. व मा लकुम् ला तुक़ातिलू-न फी सबीलिल्लाहि वल्-मुस्तज़्अफ़ी न मिनर्रिजालि वन्निसा-इ वल्-विल्दानिल्लज़ी-न यक़ूलू-न रब्बना अख़्रिज्ना मिन् हाज़िहिल् क़रयतिज़्ज़ालिमि अह़्लुहा, वज्अल्लना मिल्लदुन्-क वलिय्यंव-वज्अल्लना मिल्लदुन्-क नसीरा
    (और मुसलमानों!) तुमको क्या हो गया है कि अल्लाह की राह में उन कमज़ोर और बेबस मर्दो और औरतों और बच्चों (को कुफ़्फ़ार के पंजे से छुड़ाने) के वास्ते जेहाद नहीं करते जो (हालते मजबूरी में) अल्लाह से दुआएं मांग रहे हैं कि ऐ हमारे पालने वाले! किसी तरह इस बस्ती (मक्का) से जिसके निवासी बड़े अत्याचारी हैं हमें निकाल और अपनी तरफ़ से किसी को हमारा रक्षक बना और तू ख़ुद ही किसी को अपनी तरफ़ से हमारा मददगार बना दे।
  16. अल्लज़ी-न आमनू युक़ातिलू-न फ़ी सबीलिल्लाहि, वल्लज़ी-न क-फरू युक़ातिलू-न फी सबीलित्ताग़ूति फ़क़ातिलू औलिया-अश्शैतानि, इन्-न कैद्श्शैतानि का-न ज़ईफ़ा*
    (बस देखो) ईमानवाले तो अल्लाह की राह में लड़ते हैं और कुफ़्फ़ार शैतान की राह में लड़ते मरते हैं। बस (मुसलमानों) तुम शैतान के साथियों (मानने वालों) से लड़ो और (कुछ परवाह न करो) क्योंकि शैतान का दाव तो बहुत ही निर्बल होती है।
  17. अलम् त-र इलल्लज़ी-न क़ी-ल लहुम् कुफ्फू ऐदी-यकुम् व अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त, फ़-लम्मा कुति-ब अलैहिमुल्-क़ितालु इज़ा फरीक़ुम् मिन्हुम् यख़्शौनन्ना-स क-ख़श् यतिल्लाहि औ अशद्-द ख़श्य -तन्, व क़ालू रब्बना लि-म कतब्-त अलैनल-क़िता-ल, लौ ला अख़्ख़र्तना इला अ-जलिन् क़रीबिन्, क़ुल मताअुद्दुन्या क़लीलुन्, वल आख़ि-रतु ख़ैरूल्-लि मनित्तक़ा, व ला तुज़्लमू-न फ़तीला
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने उन लोगों (के हाल) पर नज़र नहीं की जिनको (जेहाद की आरज़ू थी) और उनको हुक्म दिया गया था कि (अभी) अपने हाथ रोके रहो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात दिए जाओ। मगर जब जिहाद (उनपर वाजिब किया गया तो) उनमें से कुछ लोग लोगों से इस तरह डरने लगे जैसे कोई अल्लाह से डरे बल्कि उससे कहीं ज़्यादा और (घबराकर) कहने लगे ख़ुदाया तूने हमपर जेहाद क्यों वाजिब कर दिया। हमको कुछ दिनों की और मोहलत क्यों न दी। (ऐ रसूल!) उनसे कह दो कि सांसारिक सुख बहुत थोड़ा है और जो (अल्लाह से) डरता है उसकी परलोक उससे कहीं बेहतर है।
  18. ऐ-न मा तकूनू युद्रिक्कुमुल्-मौतु व लौ कुन्तुम् फ़ी बुरूजिम् मुशय्य- दतिन्, व इन् तुसिब्हुम् ह-स-नतुंय्यक़ूलू हाज़िही मिन् अिन्दिल्लाहि व इन् तुसिब्हुम् सय्यि-अतुंय्यक़ूलू हाज़िही मिन् अिन्दि-क, क़ुल कुल्लुम् मिन् अिन्दिल्लाहि, फ़मालि हा-उला इल्क़ौमि ला यकादू-न यफ़्क़हू-न हदीसा
    और वहां तो रेशा (बाल) बराबर भी तुम लोगों पर जु़ल्म नहीं किया जाएगा तुम चाहे जहाँ हो मौत तो तुमको ले डालेगी यद्यपि तुम कैसे ही मज़बूत पक्के गुम्बदों में जा छुपो और उनको अगर कोई भलाई पहुँचती है तो कहने लगते हैं कि ये अल्लाह की तरफ़ से है और अगर उनको कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो (शरारत से) कहने लगते हैं कि (ऐ रसूल) ये तुम्हारी बदौलत है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि सब अल्लाह की तरफ़ से है बस उन लोगों को क्या हो गया है कि कोई बात ही नहीं समझते।
  19. मा असाब-क मिन् ह-स-नतिन् फ़मिनल्लाहि, व मा असाब-क मिन सय्यि-अतिन् फ़-मिन्नफ्सि-क, व अरसल्ना-क लिन्नासि रसूलन, व कफ़ा बिल्लाहि शहीदा
    हालांकि (सच तो यू है कि) जब तुमको कोई फ़ायदा पहुचे तो (समझो कि) अल्लाह की तरफ़ से है और जब तुमको कोई तकलीफ़ पहुँचे तो (समझो कि) ख़ुद तुम्हारी बदौलत है और (ऐ रसूल!) हमने तुमको लोगों के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा है और (इसके लिए) अल्लाह की गवाही काफ़ी है।
  20. मंय्युतिअिर रसू-ल फ़-क़द् अताअल्ला-ह, व मन् तवल्ला फ़मा अरसल्ना-क अलैहिम् हफ़ीज़ा
    जिसने रसूल की आज्ञा का अनुपालन किया तो उसने अल्लाह की आज्ञा का अनुपालन की और जिसने मुँह फेर लिया, तो तुम कुछ ख़्याल न करो (क्योंकि) हमने तुम को प्रहरी करके तो भेजा नहीं है।

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