- जन्नातु अ़निंय्यद्खुलू – नहा व मन् स -ल -ह मिन् आबाइहिम् व अज़्वाजिहिम् व जुर्रिय्यातिहिम् वल्मलाइ – कतु यद्ख़ुलू – न अ़लैहिम् मिन कुल्लि बाब
(यानि) हमेश रहने के बाग़ जिनमें वह आप जाएंगे और उनके बाप, दादाओं, बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेको कार है (वह सब भी) और फरिश्ते बेहशत के हर दरवाजे़ से उनके पास आएगें (23) - सलामुन् अलैकुम् बिमा सबरतुम् फ़निअ् -म अुक्बद्दार
और सलाम अलैकुम (के बाद कहेगें) कि (दुनिया में) तुमने सब्र किया (ये उसी का सिला है देखो) तो आखि़रत का घर कैसा अच्छा है (24) - वल्लज़ी न यन्कुजू-न अ़ह्दल्लाहि मिम् – बअ्दि मीसाकिही व यक्तअू -न मा अ -मरल्लाहु बिही अंय्यूस -ल व युफ्सिदू -न फ़िल्अर्ज़ि उलाइ -क लहुमुल्लअ् – नतु व लहुम् सूउद्दार
और जो लोग ख़ुदा से एहद व पैमान को पक्का करने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन (तालुकात बाहमी) के क़ायम रखने का ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन्हें क़तआ (तोड़ते) करते हैं और रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाते फिरते हैं ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए लानत है और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा घर (जहन्नुम) है (25) - अल्लाहु यब्सुतुर्रिज् -क लिमंय्यशा-उ व यक्दिरू, व फ़रिहू बिल्हयातिद्दुन्या व मल्हयातुद्दुन्या फ़िल -आख़िरति इल्ला मताअ् *
और ख़ुदा ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी को बढ़ा देता है और जिसके लिए चाहता है तंग करता है और ये लोग दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी पर बहुत निहाल हैं हालांकि दुनियावी जि़न्दगी (नईम) आखि़रत के मुक़ाबिल में बिल्कुल बेहकीक़त चीज़ है (26) - व यकूलुल्लज़ी – न क – फरू लौ ल उन्ज़ि – ल अ़लैहि आयतुम् मिर्रब्बिही कुल इन्नल्ला-ह युज़िल्लु मंय्यशा – उ व यह्दी इलैहि मन् अनाब
और जिन लोगों ने कुफ्र अख़तियार किया वह कहते हैं कि उस (शख़्स यानि तुम) पर हमारी ख़्वाहिश के मुवाफिक़ कोई मौजिज़ा उसके परवरदिगार की तरफ से क्यों नहीं नाजि़ल होता तुम उनसे कह दो कि इसमें शक नहीं कि ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है (27) - अल्लज़ी-न आमनू व तत्मइन्नु कुलूबुहुम् बिज़िक्रिल्लाहि, अला बिज़िक्रिल्लाहि तत्मइन्नुल-कुलूब
और जिसने उसकी तरफ रुज़ू की उसे अपनी तरफ पहुँचने की राह दिखाता है (ये) वह लोग हैं जिन्होंने इमान कुबूल किया और उनके दिलों को ख़ुदा की चाह से तसल्ली हुआ करती है (28) - अल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति तूबा लहुम् व हुस्नु मआब
जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनके वास्ते (बेहिश्त में) तूबा (दरख़्त) और ख़ुशहाली और अच्छा अन्जाम है (29) - कज़ालि- क अर्सल्ना – क फ़ी उम्मतिन् क़द् खलत् मिन् कब्लिहा उ – ममुल् – लितत्लु – व अलैहिमुल्लज़ी औहैना इलै – क व हुम् यक्फुरू- न बिर्रह़्मानि कुल हु -व रब्बी ला इला -ह इल्ला हु -व अलैहि तवक्कल्तु व इलैहि मताब
(ऐ रसूल जिस तरह हमने और पैग़म्बर भेजे थे) उसी तरह हमने तुमको उस उम्मत में भेजा है जिससे पहले और भी बहुत सी उम्मते गुज़र चुकी हैं -ताकि तुम उनके सामने जो क़ुरान हमने वही के ज़रिए से तुम्हारे पास भेजा है उन्हें पढ़ कर सुना दो और ये लोग (कुछ तुम्हारे ही नहीं बल्कि सिरे से) ख़ुदा ही के मुन्किर हैं तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मै उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी तरफ रुजू करता हूँ (30) - व लौ अन् – न कुरआनन् सुय्यिरत् बिहिल् – जिबालु औ कुत्तिअ़त् बिहिल्-अर्-जु औ कुल्लि – म बिहिल्मौता, बल् लिल्लाहिल् – अम्रु जमीअ़न्, अ- फ़लम् यै असिल्लज़ी-न आमनू अल्- लौ यशाउल्लाहु ल – हदन्ना स जमीअ़न्, व ला यज़ालुल्लज़ी – न क-फरू तुसीबुहुम् बिमा स नअू कारि अतुन् औ तहुल्लु क़रीबम् मिन् दारिहिम् हत्ता यअ्ति-य वअ्दुल्लाहि, इन्नल्ला – ह ला युख़्लिफुल – मीआ़द *
और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाजि़ल हेाता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख़्तेयार ख़ुदा ही को है तो क्या अभी तक इमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर ख़ुदा चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाजि़ल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि ख़ुदा का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक नहीं कि ख़ुदा हरगिज़ खि़लाफ़े वायदा नहीं करता (31) - वल – क़दिस्तुह्ज़ि – अ बिरूसुलिम् मिन् कब्लि-क फ़ अम्लैतु लिल्लज़ी न क फरू सुम् म अख़ज़्तुहुम् फ़कै-फ़ का-न अिकाब
और (ऐ रसूल) तुमसे पहले भी बहुतेरे पैग़म्बरों की हॅसी उड़ाई जा चुकी है तो मैने (चन्द रोज़) काफिरों को मोहलत दी फिर (आखि़र कार) हमने उन्हें ले डाला फिर (तू क्या पूछता है कि) हमारा अज़ाब कैसा था (32) - अ-फ मन् हु -व काइमुन् अला कुल्लि नफ़्सिम् – बिमा क सबत् व ज – अलू लिल्लाहि शु-रका-अ, कुल् सम्मूहुम् अम् तुनब्बिऊनहू बिमा ला यअ्लमु फिल्अर्ज़ि अम् बिज़ाहिरिम् – मिनल्क़ौलि बल् जुय्यि-न लिल्लज़ी-न क -फरू मक्रुहुम् व सुद्दू अनिस्सबीलि, व मंय्युज्लिलिल्लाहु फमा लहू मिन् हाद
क्या जो (ख़ुदा) हर एक शख़्स के आमाल की ख़बर रखता है (उनको यूं ही छोड़ देगा हरगिज़ नहीं) और उन लोगों ने ख़ुदा के (दूसरे दूसरे) शरीक ठहराए (ऐ रसूल तुम उनसे कह दो कि तुम आखि़र उनके नाम तो बताओं या तुम ख़ुदा को ऐसे शरीक़ो की ख़बर देते हो जिनको वह जानता तक नहीं कि वह ज़मीन में (किधर बसते) हैं या (निरी ऊपर से बातें बनाते हैं बल्कि (असल ये है कि) काफिरों को उनकी मक्कारियाँ भली दिखाई गई है और वह (गोया) राहे रास्त से रोक दिए गए हैं और जिस शख़्स को ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं (33) - लहुम् अ़ज़ाबुन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व ल-अ़ज़ाबुल – आख़िरति अशक़्कु व मा लहुम् मिनल्लाहि मिंव्वाक़
इन लोगों के वास्ते दुनियावी जि़न्दगी में (भी) अज़ाब है और आखि़रत का अज़ाब तो यक़ीनी और बहुत सख़्त खुलने वाला है (और) (फिर) ख़ुदा (के ग़ज़ब) से उनको कोई बचाने वाला (भी) नहीं (34) - म- स लुल- जन्नतिल्लती वुअिदल मुत्तकू-न तज्री मिन् तह्तिहल – अन्हारू, उकुलुहा दाइमुंव्व जिल्लुहा, तिल् – क अक्बल्लज़ीनत्तक़ौ व उक्बल् काफ़िरीनन्नार
जिस बाग़ (बेहिश्त) का परहेज़गारों से वायदा किया गया है उसकी सिफत ये है कि उसके नीचे नहरें जारी होगी उसके मेवे सदाबहार और ऐसे ही उसकी छांव भी ये अन्जाम है उन लोगों को जो (दुनिया में) परहेज़गार थे और काफिरों का अन्जाम (जहन्नुम की) आग है (35) - वल्लज़ी – न आतैनाहुमुल् – किता-ब यफ्रहू – न बिमा उन्ज़ि – ल इलै – क व मिनल – अह्ज़ाबि मंय्युन्किरू बअज़हू, कुल इन्नमा उमिर्तु अन् अअ़बुदल्ला – ह व ला उश्रि- क बिही, इलैहि अद्अू व इलैहि मआब
और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाजि़ल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके़ उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै ख़ुदा ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्स को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है (36) - व कज़ालि – क अन्ज़ल्नाहु हुक्मन् अ-रबिय्यन्, व ल – इनित्त बअ् – त अह़्वा – अहुम् बअ् – द मा जाअ-क मिनल्- अिल्मि मा ल – क मिनल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव् – व ला वाक़ *
और यूँ हमने उस क़ुरान को अरबी (ज़बान) का फरमान नाजि़ल फरमाया और (ऐ रसूल) अगर कहीं तुमने इसके बाद को तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका उन की नफसियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) फिर ख़ुदा की तरफ से न कोई तुम्हारा सरपरस्त होगा न कोई बचाने वाला (37) - व ल – क़द् अरसल्ना रूसुलम् मिन् कब्लि – क व जअ़ल्ना लहुम् अज़्वाजंव् – व जुर्रिय्य तन्, व मा का-न लि – रसूलिन् अंय्यअ्ति-य बिआयतिन् इल्ला बि- इज़्निल्लाहि, लिकुल्लि अ – जलिन् किताब
और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुतेरे पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की) और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि कोई मौजिज़ा ख़ुदा की इजाज़त के बगैर ला दिखाए हर एक वक़्त (मौऊद) के लिए (हमारे यहाँ) एक (कि़स्म की) तहरीर (होती) है (38) - यम्हुल्लाहु मा यशा- उ व युस्बितु व अिन्दहू उम्मुल् – किताब
फिर इसमें से ख़ुदा जिसको चाहता है मिटा देता है और (जिसको चाहता है बाक़ी रखता है और उसके पास असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है (39) - व इम्मा नुरियन्न – क बअ्ज़ल्लज़ी नअिदुहुम् औ न-तवफ़्फ़ – यन्न – क फ – इन्नमा अ़लैकल् – बलागु व अ़लैनल् – हिसाब
और (ए रसूल) जो जो वायदे (अज़ाब वगै़रह के) हम उन कुफ्फारों से करते हैं चाहे, उनमें से बाज़ तुम्हारे सामने पूरे कर दिखाएँ या तुम्हें उससे पहले उठा लें बहर हाल तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज़ है (40) - अ – व लम् यरौ अन्ना नअ्तिल् अर्-ज़ नन्कुसुहा मिन् अत्राफ़िहा वल्लाहु यह्कुमु ला मुअ़क्कि – ब लिहुक्मिही, व हु – व सरीअुल्- हिसाब
और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है क्या उन लोगों ने ये बात न देखी कि हम ज़मीन को (फ़ुतुहाते इस्लाम से) उसके तमाम एतराफ (चारो ओर) से (सवाह कुफ्र में) घटाते चले आते हैं और ख़ुदा जो चाहता है हुक्म देता है उसके हुक्म का कोई टालने वाला नहीं और बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है (41) - व कद् म-करल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम् फ़लिल्लाहिल् – मक्रु जमीअ़न्, यअ्लमु मा तक्सिबु कुल्लु नफ्सिन्, व स-यअ्लमुल – कुफ़्फ़ारू लिमन् अुक़बद्दार
और जो लोग उन (कुफ्फार मक्के) से पहले हो गुज़रे हैं उन लोगों ने भी पैग़म्बरों की मुख़ालफत में बड़ी बड़ी तदबीरे की तो (ख़ाक न हो सका क्योंकि) सब तदबीरे तो ख़ुदा ही के हाथ में हैं जो शख़्स जो कुछ करता है वह उसे खूब जानता है और अनक़रीब कुफ्फार को भी मालूम हो जाएगा कि आखि़रत की खूबी किस के लिए है (42) - व यकूलुल्लज़ी – न क फरू लस् त मुर्सलन्, कुल कफ़ा बिल्लाहि शहीदम् – बैनी व बैनकुम् व मन् अिन्दहू अिल्मुल् – किताब *
और (ऐ रसूल) काफिर लोग कहते हैं कि तुम पैग़म्बर नही हो तो तुम (उनसे) कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान मेरी रिसालत की गवाही के वास्ते ख़ुदा और वह शख़्स जिसके पास (आसमानी) किताब का इल्म है काफी है (43)
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