13 सूरह अर रअद हिंदी में पेज 2

सूरह अर रअद हिंदी में | Surat Ar-Rad in Hindi

  1. जन्नातु अ़द्-निंय्यद्ख़ुलू-नहा व मन् स-ल-ह मिन् आबाइहिम् व अज़्वाजिहिम् व जुर्रिय्यातिहिम् वल्मलाइ -कतु यद्ख़ुलू-न अ़लैहिम् मिन कुल्लि बाब
    (यानि) हमेश रहने के बाग़ जिनमें वह आप जाएंगे और उनके बाप, दादाओं, बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेको कार है (वह सब भी) और फरिश्ते बहिश्त के हर दरवाजे़ से उनके पास आएगें।
  2. सलामुन् अलैकुम् बिमा सबर्तुम् फ़निअ्-म अुक़्बद्दार
    और सलाम अलैकुम (के बाद कहेगें) कि (दुनिया में) तुमने सब्र किया (ये उसी का सिला है देखो) तो आख़िरत का घर कैसा अच्छा है।
  3. वल्लज़ी न यन्क़ुज़ू-न अ़ह्दल्लाहि मिम्-बअ्दि मीसाक़िही व यक़्तअू-न मा अ-मरल्लाहु बिही अंय्यूस -ल व युफ्सिदू-न फ़िल्अर्ज़ि, उलाइ-क लहुमुल्लअ् – नतु व लहुम् सूउद्दार
    और जो लोग अल्लाह से एहद व पैमान को पक्का करने के बाद तोड़ डालते हैं और जिन (तालुकात बाहमी) के क़ायम रखने का अल्लाह ने हुक्म दिया है उन्हें क़तआ (तोड़ते) करते हैं और रुए ज़मीन पर फ़साद फैलाते फिरते हैं ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए लानत है और ऐसे ही लोगों के वास्ते बड़ा घर (जहन्नुम) है।
  4. अल्लाहु यब्सुतुर्रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक़्दिरू, व फ़रिहू बिल्हयातिद्दुन्या, व मल्हयातुद्दुन्या फ़िल -आख़िरति इल्ला मताअ् *
    और अल्लाह ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी को बढ़ा देता है और जिसके लिए चाहता है तंग करता है और ये लोग दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी पर बहुत निहाल हैं हालांकि दुनियावी जि़न्दगी (नईम) आखि़रत के मुक़ाबिल में बिल्कुल बेहकीक़त चीज़ है।
  5. व यक़ूलुल्लज़ी-न क-फरू लौ ल उन्ज़ि-ल अ़लैहि आयतुम् मिर्रब्बिही, क़ुल इन्नल्ला-ह युज़िल्लु मंय्यशा-उ व यह्दी इलैहि मन् अनाब
    और जिन लोगों ने कुफ्र अख़तियार किया वह कहते हैं कि उस (शख़्स यानि तुम) पर हमारी ख़्वाहिश के मुवाफिक़ कोई मौजिज़ा उसके परवरदिगार की तरफ से क्यों नहीं नाजि़ल होता तुम उनसे कह दो कि इसमें शक नहीं कि अल्लाह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है।
  6. अल्लज़ी-न आमनू व तत्मइन्नु क़ुलूबुहुम् बिज़िक् रिल्लाहि, अला बिज़िक् रिल्लाहि तत्मइन्नुल-क़ुलूब
    और जिसने उसकी तरफ रुज़ू की उसे अपनी तरफ पहुँचने की राह दिखाता है (ये) वह लोग हैं जिन्होंने इमान कुबूल किया और उनके दिलों को अल्लाह की चाह से तसल्ली हुआ करती है।
  7. अल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति तूबा लहुम् व हुस्-नु मआब
    जिन लोगों ने इमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनके वास्ते (बहिश्त में) तूबा (दरख़्त) और ख़ुशहाली और अच्छा अन्जाम है।
  8. कज़ालि-क अर्सल्ना-क फ़ी उम्मतिन् क़द् खलत् मिन् क़ब्लिहा उ-ममुल्-लितत्लु-व अलैहिमुल्लज़ी औहैना इलै-क व हुम् यक्फुरू-न बिर्रह़्मानि, क़ुल हु-व रब्बी ला इला-ह इल्ला हु-व, अलैहि तवक्कल्तु व इलैहि मताब
    (ऐ रसूल! जिस तरह हमने और पैग़म्बर भेजे थे) उसी तरह हमने तुमको उस उम्मत में भेजा है जिससे पहले और भी बहुत सी उम्मते गुज़र चुकी हैं -ताकि तुम उनके सामने जो क़ुरान हमने वही के ज़रिए से तुम्हारे पास भेजा है उन्हें पढ़ कर सुना दो और ये लोग (कुछ तुम्हारे ही नहीं बल्कि सिरे से) अल्लाह ही के मुन्किर हैं तुम कह दो कि वही मेरा परवरदिगार है उसके सिवा कोई माबूद नहीं मै उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी तरफ रुजू करता हूँ।
  9. व लौ अन्-न क़ुरआनन् सुय्यिरत् बिहिल्-जिबालु औ क़ुत्तिअ़त् बिहिल्-अर्-ज़ु औ कुल्लि-म बिहिल्मौता, बल् लिल्लाहिल्-अम्रु जमीअ़न्, अ-फ़लम् यऐ असिल्लज़ी-न आमनू अल्- लौ यशाउल्लाहु ल-हदन्ना स जमीअ़न्, व ला यज़ालुल्लज़ी-न क-फरू तुसीबुहुम् बिमा स नअू क़ारि अतुन् औ तहुल्लु क़रीबम् मिन् दारिहिम् हत्ता यअ्ति-य वअ्दुल्लाहि, इन्नल्ला-ह ला युख़्लिफुल-मीआ़द *
    और अगर कोई ऐसा क़ुरान (भी नाजि़ल हेाता) जिसकी बरकत से पहाड़ (अपनी जगह) चल खड़े होते या उसकी वजह से ज़मीन (की मुसाफ़त (दूरी)) तय की जाती और उसकी बरकत से मुर्दे बोल उठते (तो भी ये लोग मानने वाले न थे) बल्कि सच यूँ है कि सब काम का एख़्तेयार अल्लाह ही को है तो क्या अभी तक इमानदारों को चैन नहीं आया कि अगर अल्लाह चाहता तो सब लोगों की हिदायत कर देता और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तेयार किया उन पर उनकी करतूत की सज़ा में कोई (न कोई) मुसीबत पड़ती ही रहेगी या (उन पर पड़ी) तो उनके घरों के आस पास (ग़रज़) नाजि़ल होगी (ज़रुर) यहाँ तक कि अल्लाह का वायदा (फतेह मक्का) पूरा हो कर रहे और इसमें शक नहीं कि अल्लाह हरगिज़ खि़लाफ़े वायदा नहीं करता।
  10. वल-क़दिस्तुह्ज़ि-अ बिरूसुलिम् मिन् क़ब्लि-क फ़ अम्लैतु लिल्लज़ी न क फरू सुम् म अख़ज़्तुहुम्, फ़कै-फ़ का-न अिक़ाब
    और (ऐ रसूल!) तुमसे पहले भी बहुतेरे पैग़म्बरों की हँसी उड़ाई जा चुकी है तो मैने (चन्द रोज़) काफिरों को मोहलत दी फिर (आखि़र कार) हमने उन्हें ले डाला फिर (तू क्या पूछता है कि) हमारा अज़ाब कैसा था।
  11. अ-फ मन् हु-व क़ाइमुन् अला कुल्लि नफ़्सिम्-बिमा क सबत्, व ज-अलू लिल्लाहि शु-रका-अ, क़ुल् सम्मूहुम्, अम् तुनब्बिऊनहू बिमा ला यअ्लमु फिल्अर्ज़ि अम् बिज़ाहिरिम्-मिनल्क़ौलि, बल् ज़ुय्यि-न लिल्लज़ी-न क -फरू मक्-रूहुम् व सुद्दू अनिस्सबीलि, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फमा लहू मिन् हाद
    क्या जो (अल्लाह) हर एक शख़्स के आमाल की ख़बर रखता है (उनको यूं ही छोड़ देगा हरगिज़ नहीं) और उन लोगों ने अल्लाह के (दूसरे दूसरे) शरीक ठहराए (ऐ रसूल तुम उनसे कह दो कि तुम आखि़र उनके नाम तो बताओं या तुम अल्लाह को ऐसे शरीक़ो की ख़बर देते हो जिनको वह जानता तक नहीं कि वह ज़मीन में (किधर बसते) हैं या (निरी ऊपर से बातें बनाते हैं बल्कि (असल ये है कि) काफिरों को उनकी मक्कारियाँ भली दिखाई गई है और वह (गोया) राहे रास्त से रोक दिए गए हैं और जिस शख़्स को अल्लाह गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई हिदायत करने वाला नहीं।
  12. लहुम् अ़ज़ाबुन् फ़िल्हयातिद्दुन्या व ल-अ़ज़ाबुल – आख़िरति अशक़्क़ु व मा लहुम् मिनल्लाहि मिंव्वाक़
    इन लोगों के वास्ते दुनियावी ज़िन्दगी में (भी) अज़ाब है और आख़िरत का अज़ाब तो यक़ीनी और बहुत सख़्त खुलने वाला है (और) (फिर) अल्लाह (के ग़ज़ब) से उनको कोई बचाने वाला (भी) नहीं।
  13. म-स लुल-जन्नतिल्लती वुअिदल् मुत्तक़ू-न, तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारू, उकुलुहा दाइमुंव्व ज़िल्लुहा, तिल्-क अुक़्बल्लज़ीनत्तक़ौ, व उक़्बल् काफ़िरीनन्नार
    जिस बाग़ (बहिश्त) का परहेज़गारों से वायदा किया गया है उसकी सिफत ये है कि उसके नीचे नहरें जारी होगी उसके मेवे सदाबहार और ऐसे ही उसकी छांव भी ये अन्जाम है उन लोगों को जो (दुनिया में) परहेज़गार थे और काफिरों का अन्जाम (जहन्नुम की) आग है।
  14. वल्लज़ी-न आतैनाहुमुल्-किता-ब यफ्-रहू-न बिमा उन्ज़ि-ल इलै-क व मिनल्-अह्ज़ाबि मंय्युन्किरू बअ्ज़हू, क़ुल इन्नमा उमिर्तु अन् अअ्बुदल्ला-ह व ला उश्रि-क बिही, इलैहि अद्अू व इलैहि मआब
    और (ए रसूल) जिन लोगों को हमने किताब दी है वह तो जो (एहकाम) तुम्हारे पास नाजि़ल किए गए हैं सब ही से खुश होते हैं और बाज़ फिरके़ उसकी बातों से इन्कार करते हैं तुम (उनसे) कह दो कि (तुम मानो या न मानो) मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मै अल्लाह ही की इबादत करु और किसी को उसका शरीक न बनाऊ मै (सब को) उसी की तरफ बुलाता हूँ और हर शख़्स को हिर फिर कर उसकी तरफ जाना है।
  15. व कज़ालि-क अन्ज़ल्नाहु हुक्मन् अ-रबिय्यन्, व ल-इनित्त बअ्-त अह़्वा-अहुम् बअ्-द मा जाअ-क मिनल्- अिल्मि, मा ल-क मिनल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव्-व ला वाक़*
    और यूँ हमने उस क़ुरान को अरबी (ज़बान) का फरमान नाज़िल फरमाया और (ऐ रसूल) अगर कहीं तुमने इसके बाद को तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका उन की नफसियानी ख़्वाहिशों की पैरवी कर ली तो (याद रखो कि) फिर अल्लाह की तरफ से न कोई तुम्हारा सरपरस्त होगा न कोई बचाने वाला।
  16. व ल-क़द् अरसल्ना रूसुलम् मिन् क़ब्लि-क व जअ़ल्ना लहुम् अज़्वाजंव्-व ज़ुर्रिय्य तन्, व मा का-न लि-रसूलिन् अंय्यअ्ति-य बिआयतिन् इल्ला बि- इज़्निल्लाहि, लिकुल्लि अ-जलिन् किताब
    और हमने तुमसे पहले और (भी) बहुतेरे पैग़म्बर भेजे और हमने उनको बीवियाँ भी दी और औलाद (भी अता की) और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि कोई मौजिज़ा अल्लाह की इजाज़त के बगैर ला दिखाए हर एक वक़्त (मौऊद) के लिए (हमारे यहाँ) एक (कि़स्म की) तहरीर (होती) है।
  17. यम्हुल्लाहु मा यशा-उ व युस्बितु, व अिन्दहू उम्मुल् – किताब
    फिर इसमें से अल्लाह जिसको चाहता है मिटा देता है और (जिसको चाहता है बाक़ी रखता है और उसके पास असल किताब (लौहे महफूज़) मौजूद है।
  18. व इम्मा नुरियन्न-क बअ्ज़ल्लज़ी नअिदुहुम् औ न-तवफ़्फ़-यन्न-क फ-इन्नमा अ़लैकल्-बलाग़ु व अ़लैनल् -हिसाब
    और (ए रसूल!) जो जो वायदे (अज़ाब वगै़रह के) हम उन कुफ्फारों से करते हैं चाहे, उनमें से बाज़ तुम्हारे सामने पूरे कर दिखाएँ या तुम्हें उससे पहले उठा लें बहर हाल तुम पर तो सिर्फ एहकाम का पहुचा देना फर्ज़ है।
  19. अ-व लम् यरौ अन्ना नअ्तिल् अर्-ज़ नन्क़ुसुहा मिन् अत्राफ़िहा, वल्लाहु यह्कुमु ला मुअ़क़्क़ि-ब लिहुक्मिही, व हु-व सरीअुल्-हिसाब
    और उनसे हिसाब लेना हमारा काम है क्या उन लोगों ने ये बात न देखी कि हम ज़मीन को (फ़ुतुहाते इस्लाम से) उसके तमाम एतराफ (चारो ओर) से (सवाह कुफ्र में) घटाते चले आते हैं और अल्लाह जो चाहता है हुक्म देता है उसके हुक्म का कोई टालने वाला नहीं और बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है।
  20. व क़द् म-करल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़लिल्लाहिल्- मक्-रू जमीअ़न्, यअ्लमु मा तक्सिबु कुल्लु नफ्सिन्, व स-यअ्लमुल्-कुफ़्फ़ारू लिमन् अुक़बद्दार
    और जो लोग उन (कुफ्फार मक्के) से पहले हो गुज़रे हैं उन लोगों ने भी पैग़म्बरों की मुख़ालफत में बड़ी बड़ी तदबीरे की तो (ख़ाक न हो सका क्योंकि) सब तदबीरे तो अल्लाह ही के हाथ में हैं जो शख़्स जो कुछ करता है वह उसे खूब जानता है और अनक़रीब कुफ्फार को भी मालूम हो जाएगा कि आखि़रत की खूबी किस के लिए है।
  21. व यक़ूलुल्लज़ी-न क फरू लस् त मुर्सलन्, क़ुल् कफ़ा बिल्लाहि शहीदम्-बैनी व बैनकुम्, व मन् अिन्दहू अिल्मुल्-किताब *
    और (ऐ रसूल!) काफिर लोग कहते हैं कि तुम पैग़म्बर नही हो तो तुम (उनसे) कह दो कि मेरे और तुम्हारे दरम्यिान मेरी रिसालत की गवाही के वास्ते अल्लाह और वह शख़्स जिसके पास (आसमानी) किताब का इल्म है काफी है।

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