12 सूरह यूसुफ़ हिंदी में पेज 5

सूरह यूसुफ़ हिंदी में | Surat Yusuf in Hindi

  1. का-ल हल् अलिम्तुम् मा फ़अ़ल्तुम् बियूसु-फ़ व अख़ीहि इज् अन्तुम् जाहिलून
    (अब तो यूसुफ से न रहा गया) कहा तुम्हें कुछ मालूम है कि जब तुम जाहिल हो रहे थे तो तुम ने यूसुफ और उसके भाई के साथ क्या क्या सुलूक किए (89)
  2. कालू अ-इन्न-क ल-अन्-त यूसुफु का-ल अ-न यूसुफु व हाज़ा अख़ी, कद् मन्नल्लाहु अ़लैना, इन्नहू मंय्यत्तकि व यस्बिर् फ़- इन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल-मुह्सिनीन
    (उस पर वह लोग चैके) और कहने लगे (हाए) क्या तुम ही यूसुफ हो, यूसुफ ने कहा हाँ मै ही यूसुफ हूँ और यह मेरा भाई है बेशक ख़ुदा ने मुझ पर अपना फज़ल व (करम) किया है क्या इसमें शक नहीं कि जो शख़्स (उससे) डरता है (और मुसीबत में) सब्र करे तो ख़ुदा हरगिज़ (ऐसे नेको कारों का) अज्र बरबाद नहीं करता (90)
  3. कालू तल्लाहि ल-कद् आस-रकल्लाहु अ़लैना व इन् कुन्ना लख़ातिईन
    वह लोग कहने लगे ख़ुदा की क़सम तुम्हें ख़ुदा ने यक़ीनन हम पर फज़ीलत दी है और बेशक हम ही यक़ीनन (अज़सरतापा) ख़तावार थे (91)
  4. का-ल ला तसरी-ब अ़लैकुमुल्-यौ-म यग्फिरूल्लाहु लकुम् व हु-व अर्हमुर् राहिमीन
    यूसुफ ने कहा अब आज से तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं ख़ुदा तुम्हारे गुनाह माफ फरमाए वह तो सबसे ज़्यादा रहीम है ये मेरा कुर्ता ले जाओ (92)
  5. इज़्हबू बि-क़मीसी हाज़ा फ़अल्कूहु अ़ला वज्हि – अबी यअ्ति बसीरन् वअ्तूनी बिअह़्लिकुम् अज्मईन *
    और उसको अब्बा जान के चेहरे पर डाल देना कि वह फिर बीना हो जाएगें (देखने लगेंगे) और तुम लोग अपने सब लड़के बालों को लेकर मेरे पास चले आओ (93)
  6. व लम्मा फ़-स-लतिल्-ईरू का-ल अबूहुम् इन्नी ल-अजिदु री-ह यूसु-फ़ लौ ला अन् तुफ़न्निदून
    और जो ही ये काफि़ला मिस्र से चला था कि उन लोगों के वालिद (याक़ूब) ने कहा दिया था कि अगर मुझे सठिया या हुआ न कहो तो बात कहूँ कि मुझे यूसुफ की बू मालूम हो रही है (94)
  7. कालू तल्लाहि इन्न-क लफ़ी ज़लालिकल क़दीम
    वह लोग कुनबे वाले (पोते वग़ैराह) कहने लगे आप यक़ीनन अपने पुराने ख़याल (मोहब्बत) में (पड़े हुए) हैं (95)
  8. फ़ – लम्मा अन् जाअल्- बशीरू अल्क़ाहु अ़ला वज्हिही फ़र्तद् – द बसीरन्, का-ल अलम् अकुल लकुम् इन्नी अअ्लमु मिनल्लाहि मा ला तअ्लमून
    फिर (यूसुफ की) खुशखबरी देने वाला आया और उनके कुर्ते को उनके चेहरे पर डाल दिया तो याक़ूब फौरन फिर दोबारा आँख वाले हो गए (तब याक़ूब ने बेटों से) कहा क्यों मै तुमसे न कहता था जो बातें खु़दा की तरफ से मै जानता हूँ तुम नहीं जानते (96)
  9. कालू या अबानस्तग्फिर् लना जुनूबना इन्ना कुन्ना ख़ातिईन
    उन लोगों ने अज्र की ऐ अब्बा हमारे गुनाहों की मग़फिरत की (ख़ुदा की बारगाह में) हमारे वास्ते दुआ माँगिए हम बेशक अज़सरतापा गुनेहगार हैं (97)
  10. का-ल सौ-फ़ अस्तग्फिरू लकुम् रब्बी, इन्नहू हुवल् ग़फूरुर्रहीम
    याक़ूब ने कहा मै बहुत जल्द अपने परवरदिगार से तुम्हारी मग़फिरत की दुआ करुगाँ बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (98)
  11. फ़- लम्मा द – ख़लू अ़ला यूसु-फ़ आवा इलैहि अ-बवैहि व कालद्खुलू मिस्-र इन्शा-अल्लाहु आमिनीन
    (ग़रज़) जब फिर ये लोग (मय याकू़ब के) चले और यूसुफ शहर के बाहर लेने आए तो जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूफ ने अपने माँ बाप को अपने पास जगह दी और (उनसे) कहा कि अब इनशा अल्लाह बड़े इत्मिनान से मिस्र में चलिए (99)
  12. व र-फ़-अ अ-बवैहि अ़लल् -अर्शि व ख़र्रू लहू सुज्जदन् व का-ल या अ – बति हाज़ा तअ्वीलु रूअ्या – य मिन् कब्लु, कद् ज-अ़ – लहा रब्बी हक़्क़न्, व कद् अह्स – न बी इज् अखर – जनी मिनस्सिज्नि व जा-अ बिकुम् मिनल्बदवि मिम् – बअ्दि अन् न – ज़ग़श्शैतानु बैनी व बै-न इख़्वती, इन्- न रब्बी लतीफुल्लिमा यशा-उ, इन्नहू हुवल् अ़लीमुल् – हकीम
    (ग़रज़) पहुँचकर यूसुफ ने अपने माँ बाप को तख़्त पर बिठाया और सब के सब यूसुफ की ताज़ीम के वास्ते उनके सामने सजदे में गिर पड़े (उस वक़्त) यूसुफ ने कहा ऐ अब्बा ये ताबीर है मेरे उस पहले ख़्वाब की कि मेरे परवरदिगार ने उसे सच कर दिखाया बेशक उसने मेरे साथ एहसान किया जब उसने मुझे क़ैद ख़ाने से निकाला और बावजूद कि मुझ में और मेरे भाईयों में शैतान ने फसाद डाल दिया था उसके बाद भी आप लोगों को गाँव से (शहर में) ले आया (और मुझसे मिला दिया) बेशक मेरा परवरदिगार जो कुछ करता है उसकी तद्बीर खूब जानता है बेशक वह बड़ा वाकिफकार हकीम है (100)
  13. रब्बि कद् आतैतनी मिनल्मुल्कि व अ़ल्लम्तनी मिन् तअ्वीलिल् – अहादीसि फ़ातिरस्समावाति वल्अर्जि, अन्-त वलिय्यी फ़िद्दुन्या वल्आख़िरति तवफ़्फ़नी मुस्लिमंव् – व अल्हिक्नी बिस्सालिहीन
    (उसके बाद यूसुफ ने दुआ की ऐ परवरदिगार तूने मुझे मुल्क भी अता फरमाया और मुझे ख्वाब की बातों की ताबीर भी सिखाई ऐ आसमान और ज़मीन के पैदा करने वाले तू ही मेरा मालिक सरपरस्त है दुनिया में भी और आखि़रत में भी तू मुझे (दुनिया से) मुसलमान उठाये और मुझे नेको कारों में शामिल फरमा (101)
  14. ज़ालि-क मिन् अम्बाइल्ग़ैबि नूहीहि इलै-क वमा कुन्-त लदैहिम् इज् अज्मअू अम्रहुम् व हुम् यम्कुरून
    (ऐ रसूल) ये किस्सा ग़ैब की ख़बरों में से है जिसे हम तुम्हारे पास वही के ज़रिए भेजते हैं (और तुम्हें मालूम होता है वरना जिस वक़्त यूसुफ के भाई बाहम अपने काम का मशवरा कर रहे थे और (हलाक की) तदबीरे कर रहे थे (102)
  15. व मा अक्सरून्नासि व लौ हरस्-त बिमुअ्मिनीन
    तुम उनके पास मौजूद न थे और कितने ही चाहो मगर बहुतेरे लोग इमान लाने वाले नहीं हैं (103)
  16. व मा तस्अलुहुम् अ़लैहि मिन् अज्रिन्, इन् हु-व इल्ला ज़िक्रुल् – लिल आ़लमीन *
    हालांकि तुम उनसे (तबलीगे़ रिसालत का) कोई सिला नहीं माँगते और ये (क़ुरान) तो सारे जहाँन के वास्ते नसीहत (ही नसीहत) है (104)
  17. व क-अय्यिम् – मिन् आयतिन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि यमुर्रू-न अ़लैहा व हुम् अन्हा मुअ्रिजून
    और आसमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की क़ुदरत की) कितनी निशनियाँ हैं जिन पर ये लोग (दिन रात) ग़ुज़ारा करते हैं और उससे मुँह फेरे रहते हैं (105)
  18. वमा युअ्मिनु अक्सरूहुम् बिल्लाहि इल्ला व हुम् मुश्रिकून
    और अक्सर लोगों की ये हालत है कि वह ख़ुदा पर इमान तो नहीं लाते मगर शिर्क किए जाते हैं (106)
  19. अ-फ़-अमिनू अन् तअ्ति – यहुम् गाशि – यतुम् मिन् अ़ज़ाबिल्लाहि औ तअ्ति-यहुमुस्साअ़तु ब़ग्त-तंव्-व हुम् ला यश्अुरून
    तो क्या ये लोग इस बात से मुतमइन हो बैठे हैं कि उन पर ख़ुदा का अज़ाब आ पड़े जो उन पर छा जाए या उन पर अचानक क़यामत ही आ जाए और उनको कुछ ख़बर भी न हो (107)
  20. कुल हाजिही सबीली अद्अू इलल्लाहि, अ़ला बसीरतिन् अ-न व मनित्त – ब अ़नी, व सुब्हानल्लाहि व मा अ-न मिनल्- मुश्रिकीन
    (ऐ रसूल) उन से कह दो कि मेरा तरीका तो ये है कि मै (लोगों) को ख़ुदा की तरफ बुलाता हूँ मैं और मेरा पैरव (पीछे चलने वाले) (दोनों) मज़बूत दलील पर हैं और ख़ुदा (हर ऐब व नुक़स से) पाक व पाकीज़ा है और मै मुशरेकीन से नहीं हूँ (108)
  21. व मा अर्सल्ना मिन् कब्लि-क इल्ला रिजालन् नूही इलैहिम् मिन् अहलिल्कुरा, अ फ़लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-यन्जुरू कै-फ़ का-न आ़कि- बतुल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम्, व लदारूल- आख़िरति ख़ैरूल – लिल्लज़ीनत्तक़ौ, अ-फ़ला तअ्किलून
    और (ऐ रसूल) तुमसे पहले भी हम गाँव ही के रहने वाले कुछ मर्दों को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा किए है कि हम उन पर वही नाजि़ल करते थे तो क्या ये लोग रुए ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि ग़ौर करते कि जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं उनका अन्जाम क्या हुआ और जिन लोगों ने परहेज़गारी एख़्तेयार की उनके लिए आखि़रत का घर (दुनिया से) यक़ीनन कहीं ज्यादा बेहतर है क्या ये लोग नहीं समझते (109)
  22. हत्ता इज़स्तै-असर्-रूसुलु व ज़न्नू अन्नहुम् कद् कुज़िबू जा अहुम् नस्रुना फ़नुज्जि-य मन् नशा-उ, व ला युरद्दु बअ्सुना अनिल कौमिल्- मुज्रिमीन
    पहले के पैग़म्बरो ने तबलीग़े रिसालत यहाँ वक कि जब (क़ौम के इमान लाने से) पैग़म्बर मायूस हो गए और उन लोगों ने समझ लिया कि वह झुठलाए गए तो उनके पास हमारी (ख़ास) मदद आ पहुँची तो जिसे हमने चाहा नजात दी और हमारा अज़ाब गुनेहगार लोगों के सर से तो टाला नहीं जाता (110)
  23. ल-क़द् का-न फ़ी क़-ससिहिम् अिब्रतुल्-लिउलिल्-अल्बाबि , मा का न हदीसंय्युफ्तरा व लाकिन् तस्दीक़ल्लज़ी बै-न यदैहि व तफ़्सी-ल कुल्लि शैइंव् – व हुदंव्-व रह़्म – तल् लिकौमिंय्युअ्मिनून *
    इसमें शक नहीं कि उन लोगों के किस्सों में अक़लमन्दों के वास्ते (अच्छी ख़ासी) इबरत (व नसीहत) है ये (क़ुरान) कोई ऐसी बात नहीं है जो (ख्वाहामा ख्वाह) गढ़ ली जाए बल्कि (जो आसमानी किताबें) इसके पहले से मौजूद हैं उनकी तसदीक़ है और हर चीज़ की तफसील और इमानदारों के वास्ते (अज़सरतापा) हिदायत व रहमत है (111)

Surah Yusuf Video

Share this:

Leave a Comment

error: Content is protected !!