09 सूरह अत तौबा हिंदी में पेज 2

सूरह अत तौबा हिंदी में | Surat At-Tawbah in Hindi

  1. युबश्शिरूहुम् रब्बुहुम् बिरह़्मतिम् मिन्हु व रिज़्वानिंव्-व जन्नातिल् लहुम् फ़ीहा नईमुम्-मुक़ीम
    उनका परवरदिगार उनको अपनी मेहरबानी और प्रसन्नता और ऐसे (हरे भरे) बाग़ों की ख़ुशख़बरी देता है जिसमें उनके लिए स्थायी सुख के साधन हैं।
  2. ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, इन्नल्ला-ह अिन्दहू अज्रुन् अज़ीम
    और ये लोग उन बाग़ों में हमेशा-हमेशा तक रहेंगे। बेशक अल्लाह के पास तो बड़ा बड़ा अज्र व (सवाब) है।
  3. या अय्युहल्लज़ीन आमनू ला तत्तख़िज़ू आबा-अकुम् व इख़्वानकुम् औलिया-अ इनिस्त हब्बुल् कुफ्-र अलल् ईमानि, व मंय्य-तवल्लहुम् मिन्कुम् फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
    ऐ ईमानदारों! अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ्र को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) हमदर्द न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे मित्रता रखेगा तो यही लोग ज़ालिम है।
  4. क़ुल् इन् का-न आबाउकुम् व अब्-नाउकुम् व इख़्वानुकुम् व अज़्वाजुकुम् व अ़शीरतुकुम् व अम्वालु -निक़्त-रफ्तुमूहा व तिजारतुन् तख़्शौ न कसादहा व मसाकिनु तरज़ौनहा अहब्-ब इलैकुम मिनल्लाहि व रसूलिही व जिहादिन् फी सबीलिही फ़ तरब्बसू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअम्रिही, वल्लाहु ला यह़्दिल क़ौमल्-फ़ासिक़ीन *
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो, तुम्हारे बाप, दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे रिश्ते-नातेवाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें भय है और वह घर जिन्हें तुम पसन्द करते हो, अगर तुम्हें अल्लाह से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा पसन्द है, तो तुम ज़रा ठहरो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला (अज़ाब) ले आए और अल्लाह नाफरमान लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।
  5. ल-क़द् न-स-रकुमुल्लाहु फ़ी मवाति-न कसीरतिंव् व यौ-म हुनैनिन्, इज़् अअ्-जबत्कुम् कस्-रतुकुम् फ़-लम् तुग़्नि अन्कुम् शैअंव्-व ज़ाक़त् अ़लैकुमुल् अरज़ु बिमा रहुबत् सुम्-म वल्लैतुम् मुद्-बिरीन
    (मुसलमानों!) अल्लाह बहुत-से अवसरों पर तुम्हारी सहायता कर चुका है और हुनैन (की लड़ाई) के दिन भी, जब तुम अपनी अधिकता पर फूल गए, तो वह तुम्हारे कुछ काम न आई और धरती अपनी विशालता के बावजूद तुम पर तंग हो गई। फिर तुम पीठ कर भाग निकले।
  6. सुम्-म अन्ज़लल्लाहु सकीन-तहू अ़ला रसूलिही व अ़लल्-मुअ्मिनी-न व अन्ज़-ल जुनूदल्लम् तरौहा व अज़्ज़बल्लज़ी-न क-फ़रू, व ज़ालि-क जज़ाउल-काफ़िरीन
    तब अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमान वालों पर शान्ति उतारी और (रसूल की ख़ातिर से) फरिश्तों के लश्कर भेजे जिन्हें तुम देखते भी नहीं थे और इनकार करनेवालों को यातना दी, और इनकार करनेवालों की यही सज़ा है।
  7. सुम्-म यतूबुल्लाहु मिम्-बअ्दि ज़ालि-क अ़ला मंय्यशा-उ, वल्लाहु ग़फूरुर्रहीम
    उसके बाद अल्लाह जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और अल्लाह बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।
  8. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल-मुश्रिकू-न न-जसुन् फ़ला यक़्रबुल् मस्जिदल्-हरा म बअ्-द आ़मिहिम् हाज़ा, व इन् ख़िफ़्तुम् ऐल-तन् फ़सौ-फ़ युग़्नीकुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही इन् शा-अ, इन्नल्ला-ह अलीमुन् हकीम
    ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही हैं। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे-हराम के पास न आएँ। और अगर तुम (उनसे जुदा होने में) निर्धनता से डरते हो तो अनकरीब ही अल्लाह तुमको अगर चाहेगा तो अपने फज़ल (करम) से धनी कर देगा। वास्तव में, अल्लाह बड़ा सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।
  9. क़ातिलुल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्लाहि व ला बिल्यौमिल्-आख़िरि व ला युहर्रिमू-न मा हर्रमल्लाहु व रसूलुहू व ला यदीनू-न दीनल्-हक़्क़ि मिनल्लज़ी-न ऊतुल्किता-ब हत्ता युअ्तुल जिज़्य-त अंय्यदिंव्-व हुम् साग़िरून *
    एहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) अल्लाह ही पर ईमान रखते हैं और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल की हराम की हुयी चीज़ों को हराम समझते हैं और, न सत्धर्म को अपना धर्म बनाते हैं, उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग सत्ता से विलग होकर (अपने) हाथ से जिज़्या देने लगें।
  10. व क़ालतिल्-यहूदु अुज़ैरू-निब्नुल्लाहि व क़ालतिन्नसारल्-मसीहुब्नुल्लाहि, ज़ालि-क क़ौलुहुम् बिअफ्वाहिहिम्, युज़ाहिऊ-न क़ौलल्लज़ी-न क-फ़रू मिन् क़ब्लु, क़ात-लहुमुल्लाहु, अन्ना युअ्फ़कून
    यहूद तो कहते हैं कि उज़ैर अल्लाह के बेटे हैं और नसारा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) अल्लाह के बेटे हैं। ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफ़िरों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं उनपर अल्लाह की मार! वे कहाँ बहके जा रहे हैं?
  11. इत्त-ख़जू अह़्बारहुम् व रूह़्बानहुम् अर्बाबम् मिन् दूनिल्लाहि वल्मसीहब्-न मर्य-म, व मा उमिरू इल्ला लियअ्बुदू इलाहंव्वाहिदन्, ला इला-ह इल्ला हु-व, सुब्हानहू अम्मा युश्रिकून
    उन लोगों ने तो अपने अल्लाह को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाकि उन्होनें सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ अल्लाह) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं)। जिस चीज़ को ये लोग उसका शरीक़ बनाते हैं वह उससे पाक व पाक़ीजा है।
  12. युरीदून अंय्युत्फ़िऊ नूरल्लाहि बिअफ़्वाहिहिम् व यअ्बल्लाहु इल्ला अंय्युतिम्-म नूरहु व लौ करिहल् काफिरून
    ये लोग चाहते हैं कि अपने मुँह से (फूंक मारकर) अल्लाह के नूर को बुझा दें और अल्लाह इसके सिवा कुछ मानता ही नहीं कि अपने नूर को पूरा ही करके रहे, यद्यपि काफ़िरों को बुरा लगे।
  13. हुवल्लज़ी अर्स-ल रसूलहू बिल्हुदा व दीनिल्-हक़्क़ि लियुज़्हि-रहू अलद्दीनि कुल्लिही, व लौ करिहल् मुश्रिकून
    वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा ताकि उसको तमाम दीनो पर ग़ालिब(प्रभुत्व) करे यद्यपि मुशरिकों बुरा माना करे।
  14. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्-न कसीरम् मिनल् अह़्बारि वर्रूह़्बानि ल-यअ्कुलू-न अम्वालन्नासि बिल्बातिलि व यसुद्दू-न अन् सबीलिल्लाहि, वल्लज़ी -न यक्निज़ूनज़्ज़-ह-ब वल्-फिज़्ज़-त व ला युन्फिक़ूनहा फी सबीलिल्लाहि, फ़-बश्शिरहुम् बिअ़ज़ाबिन् अलीम
    ऐ ईमान लानेवालो! इसमें उसमें शक नहीं कि (यहूद व नसारा के) बहुतेरे धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी संत, लोगों का धन अवैध खा जाते है, और (लोगों को) अल्लाह की राह से रोकते हैं, और जो लोग सोना और चाँदी जमा करते जाते हैं और उसको अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते, तो (ऐ रसूल!) उन को दर्दनाक यातना की शुभ सूचना सुना दो।
  15. यौ-म युह़्मा अलैहा फी नारि जहन्न-म फतुक्-वा बिहा जिबाहुहुम् व जुनूबुहुम् व ज़ुहूरूहुम्, हाज़ा मा कनज़्तुम् लिअन्फुसिकुम् फ़जूक़ू मा कुन्तुम् तक्निज़ून
    जिस दिन वह (सोना चाँदी) जहन्नुम की आग में गर्म (और लाल) किया जाएगा फिर उससे उनके ललाटों और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएगी (और उनसे कहा जाएगा) ये वह है जिसे तुमने अपने लिए (दुनिया में) जमा करके रखा था तो (अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो!
  16. इन्-न अिद्द-तश्शुहूरि अिन्दल्लाहिस्-ना अ-श-र शह्-रन् फी किताबिल्लाहि यौ-म ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ मिन्हा अर्ब-अतुन् हुरूमुन्, ज़ालिकद्दीनुल-क़य्यिमु, फ़ला तज़्लिमू फीहिन्-न अन्फु-सकुम्, व क़ातिलुल, मुश्रिकी-न काफ्फ़-तन् कमा युक़ातिलूनकुम् काफ्फ़ तन्, वअ्लमू अन्नल्ला-ह मअ़ल्मुत्तक़ीन
    इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया (उसी दिन से) अल्लाह के नज़दीक अल्लाह की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की गिनती बारह महीने है उनमें से चार महीने (अदब व) हुरमत के हैं यही दीन सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (मार काट) करके ज़़ुल्म न करो और मुशरिकीन जिस तरह तुम से सबके बस मिलकर लड़ते हैं तुम भी उसी तरह सबके सब मिलकर उन से लड़ों और ये जान लो कि अल्लाह तो यक़ीनन डर रखनेवालों के साथ है।
  17. इन्नमन्नसी-उ ज़ियादतुन् फ़िल्कुफ्रि युज़ल्लु बिहिल्लज़ी-न क-फरू युहिल्लूनहू आमंव्-व युहर्रिमूनहू आमल्-लियुवातिऊ अिद्द-त मा हर्रमल्लाहु फयुहिल्लू मा हर्रमल्लाहु, ज़ुय्यि-न लहुम् सू-उ अअ्मालिहिम्, वल्लाहु ला यह्दिल क़ौमल्-काफ़िरीन *
    महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ़्र ही की ज़्यादती है। कि उनकी बदौलत कुफ़्फ़ार (और) बहक जाते हैं। एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं। ताकि अल्लाह ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और अल्लाह की हराम की हुयी चीज़ को हलाल कर लें। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए हैं और अल्लाह काफिर लोगो को सीधा मार्ग नहीं दिखाता।
  18. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू मा लकुम् इज़ा क़ी-ल लकुमुन्फिरू फ़ी सबीलिल्लाहिस्सा क़ल्तुम् इलल्-अर्ज़ि, अ-रज़ीतुम् बिल्हयातिद्दुन्या मिनल्-आख़िरति, फ़मा मताअुल्-हयातिद्दुन्या फिल्आख़िरति इल्ला क़लील
    ऐ ईमान वालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि अल्लाह की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम ढीले हो कर ज़मीन की तरफ झुके पड़ते हो, क्या तुम आख़िरत (परलोक) की अपेक्षा सांसारिक जीवन से प्रसन्न हो गये हो? तो (समझ लो कि) दुनिया की ज़िन्दगी का साज़ो सामान (परलोक के) ऐश व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है।
  19. इल्ला तन्फिरू युअ़ज़्ज़िब़्कुम् अ़ज़ाबन् अलीमंव्-व यस्तब्दिल् क़ौमन् ग़ैरकुम् व ला तज़ुर्रूहु शैअन्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    अगर (अब भी) तुम न निकलोगे, तो तुम्हें अल्लाह दुःखदायी यातना देगा, और तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और अल्लाह जो चाहे कर सकता है।
  20. इल्ला तन्सुरूहू फ़-क़द् न-सरहुल्लाहु इज़् अख़्र-जहुल्लज़ी-न क-फरू सानियस्नैनी इज़् हुमा फ़िल्ग़ारि इज़् यक़ूलु लिसाहिबिही ला तह़्ज़न् इन्नल्ला-ह म अना, फ़-अन्ज़ लल्लाहु सकीन-तहू अलैहि व अय्य-दहू बिजुनूदिल्लम् तरौहा व ज-अ-ल कलि-मतल्लज़ी-न क-फ़रूस्सुफ्ला, व कलि-मतुल्लाहि हियल्-अुल्या, वल्लाहु अ़ज़ीज़ुन् हकीम
    अगर तुम उस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह् नहीं अल्लाह मददगार है) उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर से) निकल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब वह दोनो गुफा में थे। जब अपने साथी को (उसकी गिरिया व रोने) पर) समझा रहे थे कि घबराओ नहीं अल्लाह यक़ीनन हमारे साथ है तो अल्लाह ने उन पर अपनी (तरफ से) शान्ति उतार दी और (फरिश्तों के) ऐसी सेनाओं से उनकी मदद की जिनको तुम लोगों ने देखा तक नहीं और इनकार करनेवालों का बोल नीचा कर दिया, और अल्लाह ही का बोल बाला है और अल्लाह तो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।

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