- युबश्शिरूहुम् रब्बुहुम् बिरह़्मतिम् मिन्हु व रिज्वानिंव् – व जन्नातिल लहुम् फ़ीहा नईमुम्-मुक़ीम
उनका परवरदिगार उनको अपनी मेहरबानी और ख़ुषनूदी और ऐसे (हरे भरे) बाग़ों की ख़ुशख़बरी देता है जिसमें उनके लिए दाइमी ऐश व (आराम) होगा (21) - ख़ालिदी-न फ़ीहा अ-बदन्, इन्नल्ला-ह अिन्दहू अज्रुन् अज़ीम
और ये लोग उन बाग़ों में हमेशा अब्दआलाबाद (हमेशा हमेशा) तक रहेंगे बेशक ख़ुदा के पास तो बड़ा बड़ा अज्र व (सवाब) है (22) - या अय्युहल्लज़ीन आमनू ला तत्तखिजू आबा – अकुम् व इख़्वानकुम् औलिया – अ इनिस्त हब्बुल् कुफ् – र अलल् ईमानि, व मंय्य – तवल्लहुम् मिन्कुम् फ़ – उलाइ – क हुमुज़्ज़ालिमून
ऐ ईमानदारों अगर तुम्हारे माँ बाप और तुम्हारे (बहन) भाई ईमान के मुक़ाबले कुफ्ऱ को तरजीह देते हो तो तुम उनको (अपना) ख़ैर ख़्वाह (हमदर्द) न समझो और तुममें जो शख़्स उनसे उलफ़त रखेगा तो यही लोग ज़ालिम है (23) - कुल् इन् का- न आबाउकुम् व अब्नाउकुम् व इख़्वानुकुम् व अज़्वाजुकुम् व अ़शीरतुकुम् व अम्वालु – निक्त – रफ्तुमूहा व तिजारतुन् तख्शौ न कसादहा व मसाकिनु तरजौनहा अहब् – ब इलैकुम मिनल्लाहि व रसूलिही व जिहादिन् फी सबीलिही फ़ तरब्बसू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअमरिही, वल्लाहु ला यह़्दिल कौमल्-फ़ासिकीन *
(ऐ रसूल) तुम कह दो तुम्हारे बाप दादा और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई बन्द और तुम्हारी बीबियाँ और तुम्हारे कुनबे वाले और वह माल जो तुमने कमा के रख छोड़ा हैं और वह तिजारत जिसके मन्द पड़ जाने का तुम्हें अन्देशा है और वह मकानात जिन्हें तुम पसन्द करते हो अगर तुम्हें ख़ुदा से और उसके रसूल से और उसकी राह में जिहाद करने से ज़्यादा अज़ीज़ है तो तुम ज़रा ठहरो यहाँ तक कि ख़ुदा अपना हुक्म (अज़ाब) मौजूद करे और ख़ुदा नाफरमान लोगों की हिदायत नहीं करता (24) - ल-कद् न-स-रकुमुल्लाहु फ़ी मवाति-न कसीरतिंव् व यौ-म हुनैनिन् इज् अअ् – जबत्कुम् कस् – रतुकुम् फ़ – लम् तुग्नि अन्कुम् शैअंव् – व ज़ाक़त् अ़लैकुमुल अरजु बिमा रहुबत् सुम् -म वल्लैतुम् मुदबिरीन
(मुसलमानों) ख़ुदा ने तुम्हारी बहुतेरे मक़ामात पर (ग़ैबी) इमदाद की और (ख़ासकर) जंग हुनैन के दिन जब तुम्हें अपनी क़सरत (तादाद) ने मग़रूर कर दिया था फिर वह क़सरत तुम्हें कुछ भी काम न आयी और (तुम ऐसे घबराए कि) ज़मीन बावजूद उस वसअत (फैलाव) के तुम पर तंग हो गई तुम पीठ कर भाग निकले (25) - सुम्-म अन्ज़लल्लाहु सकीन-तहू अ़ला रसूलिही व अ़लल-मुअ्मिनी-न व अन्ज़-ल जुनूदल्लम् तरौहा व अज़्ज़बल्लज़ी – न क-फ़रू, व ज़ालि – क जज़ाउल – काफ़िरीन
तब ख़़ुदा ने अपने रसूल पर और मोमिनीन पर अपनी (तरफ से) तसकीन नाजि़ल फरमाई और (रसूल की ख़ातिर से) फरिश्तों के लश्कर भेजे जिन्हें तुम देखते भी नहीं थे और कुफ़्फ़ार पर अज़ाब नाजि़ल फरमाया और काफिरों की यही सज़ा है (26) - सुम् – म यतूबुल्लाहु मिम् – बअ्दि ज़ालि-क अ़ला मंय्यशा-उ, वल्लाहु गफूरुर्रहीम
उसके बाद ख़़ुदा जिसकी चाहे तौबा क़ुबूल करे और ख़़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है (27) - या अय्युहल्लज़ी-न आमनू इन्नमल-मुश्रिकू-न न-जसुन् फ़ला यक्रबुल् मस्जिदल् – हरा म बअ्-द आ़मिहिम् हाज़ा व इन् ख़िफ़्तुम् ऐल -तन् फ़सौ -फ़ युग्नीकुमुल्लाहु मिन् फ़ज्लिही इन् शा -अ, इन्नल्ला-ह अलीमुन् हकीम
ऐ ईमानदारों मुशरेकीन तो निरे नजिस हैं तो अब वह उस साल के बाद मस्जिदुल हराम (ख़ाना ए काबा) के पास फिर न फटकने पाएँ और अगर तुम (उनसे जुदा होने में) फक़रों फाक़ा से डरते हो तो अनकरीब ही ख़ुदा तुमको अगर चाहेगा तो अपने फज़ल (करम) से ग़नीकर देगा बेशक ख़ुदा बड़ा वाकि़फकार हिकमत वाला है (28) - कातिलुल्लज़ी-न ला युअ्मिनू – न बिल्लाहि व ला बिल्यौमिल – आखिरि व ला युहर्रिमू – न मा हर्रमल्लाहु व रसूलुहू व ला यदीनू – न दीनल् -हक्कि मिनल्लज़ी-न ऊतुल्किता -ब हत्ता युअ्तुल जिज्य -त अंय्यदिंव् – व हुम् सागिरून *
एहले किताब में से जो लोग न तो (दिल से) ख़ुदा ही पर इमान रखते हैं और न रोज़े आखि़रत पर और न ख़ुदा और उसके रसूल की हराम की हुयी चीज़ों को हराम समझते हैं और न सच्चे दीन ही को एख़्तियार करते हैं उन लोगों से लड़े जाओ यहाँ तक कि वह लोग ज़लील होकर (अपने) हाथ से जजि़या दे (29) - व कालतिल् – यहूदु अुज़ैरू – निब्नुल्लाहि व कालतिन्नसारल-मसीहुब्नुल्लाहि, ज़ालि – क कौलुहुम् बिअफ्वाहिहिम् युज़ाहिऊ – न कौलल्लज़ी – न क – फ़रू मिन् कब्लु, कात – लहुमुल्लाहु अन्ना युअ्फ़कून
यहूद तो कहते हैं कि अज़ीज़ ख़़ुदा के बेटे हैं और नुसैरा कहते हैं कि मसीहा (ईसा) ख़़ुदा के बेटे हैं ये तो उनकी बात है और (वह ख़ुद) उन्हीं के मुँह से ये लोग भी उन्हीं काफि़रों की सी बातें बनाने लगे जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं ख़़ुद उनको क़त्ल (तहस नहस) करके (देखो तो) कहाँ से कहाँ भटके जा रहे हैं (30) - इत्त – ख़जू अह़्बारहुम् व रूह़्बानहुम् अर्बाबम् मिन् दूनिल्लाहि वल्मसीहब् – न मर्य – म व मा उमिरू इल्ला लियअ्बुदू इलाहंव्वाहिदन् ला इला-ह इल्ला हु-व, सुब्हानहू अम्मा युश्रिकून
उन लोगों ने तो अपने ख़़ुदा को छोड़कर अपनी आलिमों को और अपने ज़ाहिदों को और मरियम के बेटे मसीह को अपना परवरदिगार बना डाला हालाकि उन्होनें सिवाए इसके और हुक्म ही नहीं दिया गया कि ख़़ुदाए यकता (सिर्फ़ ख़ुदा) की इबादत करें उसके सिवा (और कोई क़ाबिले परसतिश नहीं) (31) - युरीदू न अंय्युत्फ़िऊ नूरल्लाहि बिअफ़्वाहिहिम् व यअ्बल्लाहु इल्ला अंय्युतिम् – म नूरहु व लौ करिहल् काफिरून
जिस चीज़ को ये लोग उसका शरीक़ बनाते हैं वह उससे पाक व पाक़ीजा है ये लोग चाहते हैं कि अपने मुँह से (फूंक मारकर) ख़़ुदा के नूर को बुझा दें और ख़़ुदा इसके सिवा कुछ मानता ही नहीं कि अपने नूर को पूरा ही करके रहे (32) - हुवल्लज़ी अर्स -ल रसूलहू बिल्हुदा व दीनिल् – हक्कि लियुज्हि – रहू अलद्दीनि कुल्लिही व लौ करिहल् मुश्रिकून
अगरचे कुफ़्फ़ार बुरा माना करें वही तो (वह ख़़ुदा) है कि जिसने अपने रसूल (मोहम्मद) को हिदायत और सच्चे दीन के साथ ( मबऊस करके) भेजता कि उसको तमाम दीनो पर ग़ालिब करे अगरचे मुषरेकीन बुरा माना करे (33) - या अय्युहल्लज़ी – न आमनू इन् – न कसीरम् मिनल् अह़्बारि वर्रूह़्बानि ल-यअ्कुलू – न अम्वालन्नासि बिल्बातिलि व यसुद्दू – न अन् सबीलिल्लाहि, वल्लज़ी -न यक्निजूनज़्ज़ -ह -ब वल् -फिज़्ज़-त व ला युन्फिकूनहा फी सबीलिल्लाहि फ़ – बश्शिरहुम् बिअ़ज़ाबिन् अलीम
ऐ ईमानदारों इसमें उसमें शक नहीं कि (यहूद व नसारा के) बहुतेरे आलिम ज़ाहिद लेागों के मालेनाहक़ (नाहक़) चख जाते है और (लोगों को) ख़़ुदा की राह से रोकते हैं और जो लोग सोना और चाँदी जमा करते जाते हैं और उसको ख़़ुदा की राह में खर्च नहीं करते तो (ऐ रसूल) उन को दर्दनाक अज़ाब की ख़ुषखबरी सुना दो (34) - यौ-म युह़्मा अलैहा फी नारि जहन्न-म फतुक्वा बिहा जिबाहुहुम् व जुनूबुहुम् व जुहूरूहुम्, हाज़ा मा कनज्तुम् लिअन्फुसिकुम् फ़जूकू मा कुन्तुम् तक्निजून
(जिस दिन वह (सोना चाँदी) जहन्नुम की आग में गर्म (और लाल) किया जाएगा फिर उससे उनकी पेषानियाँ और उनके पहलू और उनकी पीठें दाग़ी जाएगी (और उनसे कहा जाएगा) ये वह है जिसे तुमने अपने लिए (दुनिया में) जमा करके रखा था तो (अब) अपने जमा किए का मज़ा चखो (35) - इन् – न अिद्द – तश्शुहूरि अिन्दल्लाहिस्ना अ-श-र शहरन् फी किताबिल्लाहि यौ-म ख-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ मिन्हा अरब-अतुन् हुरूमुन्, जालिकद्दीनुल – कय्यिमु फ़ला तज्लिमू फीहिन् – न अन्फु-सकुम्, व कातिलुल, मुश्रिकी-न काफ्फ़-तन् कमा युक़ातिलूनकुम् काफ्फ़ तन्, वअ्लमू अन्नल्ला – ह मअ़ल्मुत्तकीन
इसमें तो शक ही नहीं कि ख़ुदा ने जिस दिन आसमान व ज़मीन को पैदा किया (उसी दिन से) ख़ुदा के नज़दीक ख़़ुदा की किताब (लौहे महफूज़) में महीनों की गिनती बारह महीने है उनमें से चार महीने (अदब व) हुरमत के हैं यही दीन सीधी राह है तो उन चार महीनों में तुम अपने ऊपर (कुष्त व ख़ून (मार काट) करके) ज़़ुल्म न करो और मुषरेकीन जिस तरह तुम से सबके बस मिलकर लड़ते हैं तुम भी उसी तरह सबके सब मिलकर उन से लड़ों और ये जान लो कि ख़़ुदा तो यक़ीनन परहेज़गारों के साथ है (36) - इन्नमन्नसी – उ ज़ियादतुन् फ़िल्कुफ्रि युज़ल्लु बिहिल्लज़ी – न क- फरू युहिल्लूनहू आमंव् – व युहर्रिमूनहू आमल् – लियुवातिऊ अिद्द-त मा हर्रमल्लाहु फयुहिल्लू मा हर्रमल्लाहु, जुय्यि – न लहुम् सू – उ अअ्मालिहिम्, वल्लाहु ला यह्दिल कौमल् -काफ़िरीन *
महीनों का आगे पीछे कर देना भी कुफ्ऱ ही की ज़्यादती है कि उनकी बदौलत कुफ़्फ़ार (और) बहक जाते हैं एक बरस तो उसी एक महीने को हलाल समझ लेते हैं और (दूसरे) साल उसी महीने को हराम कहते हैं ताकि ख़़ुदा ने जो (चार महीने) हराम किए हैं उनकी गिनती ही पूरी कर लें और ख़ुदा की हराम की हुयी चीज़ को हलाल कर लें उनकी बुरी (बुरी) कारस्तानिया उन्हें भली कर दिखाई गई हैं और खुदा काफिर लोगो को मंजि़ले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता (37) - या अय्युहल्लज़ी – न आमनू मा लकुम् इज़ा की-ल लकुमुन्फिरू फ़ी सबीलिल्लाहिस्साकल्तुम् इलल् – अर्जि, अ- रजीतुम् बिल्हयातिद्दुन्या मिनल् – आखिरति फ़मा मताअुल् – हयातिद्दुन्या फिल्आख़िरति इल्ला क़लील
ऐ ईमानदारों तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि ख़़ुदा की राह में (जिहाद के लिए) निकलो तो तुम लदधड़ (ढीले) हो कर ज़मीन की तरफ झुके पड़ते हो क्या तुम आखि़रत के बनिस्बत दुनिया की (चन्द रोज़ा) जिन्दगी को पसन्द करते थे तो (समझ लो कि) दुनिया की जि़न्दगी का साज़ो सामान (आखि़र के) ऐश व आराम के मुक़ाबले में बहुत ही थोड़ा है (38) - इल्ला तन्फिरू युअ़ज़्ज़िबकुम् अ़ज़ाबन् अलीमंव् – व यस्तब्दिल् कौमन् गैरकुम् व ला तजुर्रूहु शैअन्, वल्लाहु अला कुल्लि शैइन् क़दीर
अगर (अब भी) तुम न निकलोगे तो ख़़ुदा तुम पर दर्दनाक अज़ाब नाजि़ल फरमाएगा और (ख़़ुदा कुछ मजबरू तो है नहीं) तुम्हारे बदले किसी दूसरी क़ौम को ले आएगा और तुम उसका कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते और ख़़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (39) - इल्ला तन्सुरूहू फ़ – कद् न-सरहुल्लाहु इज् अख़र – जहुल्लज़ी – न क – फरू सानियस्नैनी इज़् हुमा फ़िल्गारि इज् यकूलु लिसाहिबिही ला तह़्ज़न् इन्नल्ला – ह म अना फ़-अन्ज़ लल्लाहु सकीन-तहू अलैहि व अय्य – दहू बिजुनूदिल्लम् तरौहा व ज – अ – ल कलि- मतल्लज़ी – न क – फ़रूस्सुफ्ला, व कलि – मतुल्लाहि हियल् – अुल्या, वल्लाहु अ़ज़ीजुन् हकीम
अगर तुम उस रसूल की मदद न करोगे तो (कुछ परवाह् नहीं ख़़ुदा मददगार है) उसने तो अपने रसूल की उस वक़्त मदद की जब उसकी कुफ़्फ़ार (मक्का) ने (घर से) निकल बाहर किया उस वक़्त सिर्फ (दो आदमी थे) दूसरे रसूल थे जब वह दोनो ग़ार (सौर) में थे जब अपने साथी को (उसकी गिरिया व ज़ारी (रोने) पर) समझा रहे थे कि घबराओ नहीं ख़़ुदा यक़ीनन हमारे साथ है तो ख़़ुदा ने उन पर अपनी (तरफ से) तसकीन नाजि़ल फरमाई और (फरिश्तों के) ऐसे लष्कर से उनकी मदद की जिनको तुम लोगों ने देखा तक नहीं और ख़ुदा ने काफिरों की बात नीची कर दिखाई और ख़़ुदा ही का बोल बाला है और ख़़ुदा तो ग़ालिब हिकमत वाला है (40)
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