10 सूरह यूनुस हिंदी में पेज 5

सूरह यूनुस हिंदी में | Surat Yunus in Hindi

  1. फ़-लम्मा अल्क़ौ क़ा-ल मूसा मा जिअ्तुम् बिहिस् – सिहरू, इन्नल्ला-ह सयुब्तिलुहू, इन्नल्ला-ह ला युस्लिहु अ-मलल्-मुफ़्सिदीन
    फिर जब वह लोग (रस्सियों को साँप बनाकर) डाल चुके तो मूसा ने कहा, जो कुछ तुम (बनाकर) लाए हो (वह तो सब) जादू है-इसमें तो शक ही नहीं कि अल्लाह उसे फौरन मिटियामेट कर देगा (क्योंकर) अल्लाह तो हरगिज़ बिगाड़ पैदा करनेवालों के काम फलीभूत नहीं होने देता।
  2. व युहिक़्क़ुल्लाहुल्-हक़्-क़ बि-कलिमातिही व लौ करिहल्-मुज्रिमून *
    और अल्लाह सत्य को, अपने आदेशों के अनुसार, सत्य कर दिखायेगा। यद्यपि अपराधियों को बुरा लगे।
  3. फ़मा आम-न लिमूसा इल्ला ज़ुर्रिय्यतुम्-मिन् क़ौमिही अ़ला ख़ौफ़िम् मिन् फिरऔ-न व म-लइहिम् अंय्यफ्ति-नहुम, व इन्-न फ़िरऔ-न लआ़लिन् फ़िल्अर्ज़ि, व इन्नहू लमिनल् मुस्रिफ़ीन
    फिर मूसा पर उनकी क़ौम की नस्ल के चन्द आदमियों के सिवा, फिरौन और उसके सरदारों के इस ख़ौफ से कि उन पर कोई मुसीबत डाल दे, कोई ईमान न लाया। वास्तव में, फिरौन का धरती में बड़ा प्रभुत्व था और इसमें शक नहीं कि वह यक़ीनन ज़्यादती करने वालों में से था।
  4. व क़ा-ल मूसा या क़ौमि इन् कुन्तुम् आमन्तुम् बिल्लाहि फ़-अ़लैहि तवक्कलू इन् कुन्तुम् मुस्लिमीन
    और मूसा ने कहा, ऐ मेरी क़ौम! अगर तुम (सच्चे दिल से) अल्लाह पर ईमान ला चुके तो अगर तुम आज्ञाकारी हो तो बस उसी पर भरोसा करो।
  5. फ़क़ालू अ़लल्लाहि तवक्कल्ना, रब्बना ला तज्अल्ना फित्-न तल् लिल्फ़ौमिज़्ज़ालिमीन
    इसपर वे बोले, हमने तो अल्लाह ही पर भरोसा कर लिया है और दुआ की कि ऐ हमारे पालने वाले! तू हमें अत्याचारी के लिए परीक्षा का साधन न बना।
  6. व नज्जिना बिरह् मति-क मिनल् क़ौमिल् काफ़िरीन
    और अपनी दया से हमें इन काफिर लोगों से बचा ले।
  7. व औहैना इला मूसा व अख़ीहि अन् तबव्वआ लिक़ौमिकुमा बिमिस्-र बुयूतंव्वज्अ़लू बुयू-तकुम क़िब्लतंव्-व अक़ीमुस्सला-त, व बश्शिरिल मुअ्मिनीन
    और हमने मूसा और उनके भाई (हारुन) के पास ‘वही’ भेजी कि मिस्र में अपनी जाति के लिए घर बनाओ और अपने घरों को क़िब्ला बना लो (“क़िब्ला” उस दिशा को कहा जाता है जिस की ओर मुख कर के नमाज़ पढ़ी जाती है।) और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ों और ईमान वालों को (मोक्ष की) खुशख़बरी दे दो।
  8. व क़ा-ल मूसा रब्बना इन्न-क आतै-त फ़िरऔ-न व म-ल-अहू ज़ीनतंव्-व अम्वालन् फ़िल्हयातिद्दुन्या, रब्बना लियुज़िल्लू अन् सबीलि-क, रब्बनत्मिस् अ़ला अम्वालिहिम् वश्दुद् अला क़ुलूबिहिम् फला युअ्मिनू हत्ता-य-र-वुल् अ़ज़ाबल्-अलीम
    और मूसा ने कहा, ऐ हमारे पालने वाले! तूने फिरौन और उसके सरदारों को दुनिया की ज़िन्दगी में (बड़ी) शोभा-सामग्री और दौलत दे रखी है (क्या तूने ये सामान इस लिए अता किया है) ताकि ये लोग तेरे रास्तें से लोगों को भटकाएँ। परवरदिगार! तू उनके दौलत को बरबाद कर दे और उनके दिलों पर सख़्ती कर (क्योंकि) जब तक ये लोग दुःखदायी यातना न देख लेगें ईमान न लाएगें।
  9. क़ा-ल क़द् उजीबद्-दअ्वतुकुमा फ़स्तक़ीमा व ला तत्तबिआन्नि सबीलल्लज़ी-न ला यअ्लमून
    (अल्लाह ने) कहाः तुम दोनों की दुआ स्वीकार कर ली गयी तो तुम दोनों अडिग रहो और नादानों की राह पर न चलो।
  10. व जावज़् ना, बि-बनी इस्राईलल्-बह्-रफ़अत्ब-अ़हुम् फ़िरऔनु व जुनूदुहू बग़्यंव्-व अद्-वन्, हत्ता इज़ा अद्र कहुल-ग़-रक़ु, क़ा-ल आमन्तु अन्नहू ला इला-ह इल्लल्लज़ी आ-मनत् बिही बनू इस्राई-ल व अ-ना मिनल्-मुस्लिमीन
    और हमने इसराईलियों को समुद्र पार करा दिया फिर फिरौन और उसके लश्कर ने सरकशी की और ज़्यादती से उनका पीछा किया, यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो कहने लगा कि जिस अल्लाह पर बनी इसराइल ईमान लाए हैं, मै भी उस पर ईमान लाता हूँ उससे सिवा कोई माबूद नहीं, और मैं फरमाबरदार बन्दों से हूँ।
  11. आल्आ-न व क़द् असै-त क़ब्लु व कुन्-त मिनल्- मुफ्सिदीन
    अब (मरने) के वक़्त ईमान लाता है हालाकि इससे पहले तो अवज्ञा करता रहा और तू तो उपद्रवियों में से था।
  12. फ़ल्यौ-म नुनज्जी-क बि-ब-दनि-क लितकू-न लिमन् ख़ल्फ़-क आयतन्, व इन्-न कसीरम् मिनन्नासि अ़न् आयातिना लग़ाफ़िलून *
    अतः आज हम तेरे शव को बचा लेगें, ताकि तू उनके लिए, जो तेरे पश्चात होंगे, एक (शिक्षाप्रद) निशानी हो जाए। और इसमें तो शक नहीं कि तेरे लोग हमारी निशानियों से यक़ीनन असावधान हैं।
  13. व ल-क़द् बव्वअ्ना बनी इस्राई-ल मुबव्व-अ सिद्किंव्-व रज़क़्नाहुम् मिनत्तय्यिबाति, फ़मख़्त लफू हत्ता जा-अहुमुल्-अिल्मु, इन्-न रब्ब-क यक़्ज़ी बैनहुम् यौमल्-क़ियामति फीमा कानू फीहि यख़्तलिफून
    और हमने बनी इसराइल को (मिस्र और शाम में) बहुत अच्छी जगह बसाया और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी तो उन लोगों के पास जब तक इल्म (न) आ चुका उन लोगों ने परस्पर विभेद नहीं किया। इसमें तो शक ही नहीं जिन बातों में ये (दुनिया में) आपस में झगड़ रहे है, प्रलय के दिन अल्लाह इसमें फैसला कर देगा।
  14. फ़-इन् कुन्-त फी शक्किम् मिम्मा अन्ज़ल्ना इलै-क फ़स् अलिल्लज़ी-न यक़्रऊनल्-किता-ब मिन् क़ब्लि -क, ल-क़द् जा-अकल हक़्क़ु मिर्रब्बि-क फ़ला तकूनन्-न मिनल्-मुम्तरीन
    अतः जो कु़रान हमने तुम्हारी तरफ उतारा है अगर उसके बारे में तुम को कुछ शक हो तो जो लोग तुम से पहले से किताब (अल्लाह) पढ़ा करते हैं उन से पूछ के देखों।आपके पास, आपके पालनहार की ओर से सत्य आ गया है। अतः आप, कदापि संदेह करने वालों में न हों।
  15. व ला तकूनन्-न मिनल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिल्लाहि फ़-तकू-न मिनल्ख़ासिरीन
    और आप कदापि उनमें से न हों, जिन्होंने अल्लाह की आयतों को झुठलाया (वरना) तुम भी घाटा उठाने वालों से हो जाओगे।
  16. इन्नल्लज़ी-न हक़्क़त् अ़लैहिम् कलि-मतु रब्बि-क ला युअ्मिनून
    (ऐ रसूल!) इसमें शक नहीं कि जिन लोगों के विषय में तुम्हारे रब की बात सच्ची होकर रही वे ईमान नहीं लाएँगे,
  17. व लौ जाअत्हुम् कुल्लु आयतिन् हत्ता य-रवुल अ़ज़ाबल्-अलीम
    वह लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब देख (न) लेगें ईमान न लाएगें चाहे इनके सामने सारी (दैवी) निशानियाँ आ जायें।
  18. फ़लौ ला कानत् क़र्यतुन् आम-नत् फ़-न-फ़-अ़हा ईमानुहा इल्ला क़ौ-म यूनु-स, लम्मा आमनू कशफ़्ना अन्हुम् अ़ज़ाबल्-ख़िज़्यि फ़िल्हयातिद्दुन्या व मत्तअ्नाहुम् इला हीन
    कोई बस्ती ऐसी क्यों न हुयी कि ईमान क़ुबूल करती तो उसको उसका ईमान फायदे मन्द होता, हाँ यूनूस की जाति जब (अज़ाब देख कर) ईमान लाई तो हमने दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी में उनसे अपमानजनक यातना दूर कर दिया और हमने उन्हें एक अवधि तक सुखोपभोग का अवसर प्रदान किया।
  19. व लौ शा-अ रब्बु-क लआम-न मन् फ़िल्अर्ज़ि कुल्लुहुम् जमीअ़न्, अ-फ़अन् त तुक्रिहुन्ना-स हत्ता यकूनू मुअ्मिनीन
    और (ऐ पैग़म्बर!) अगर तेरा पालनहार चाहता तो जितने लोग धरती पर हैं, सबके सब ईमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब ईमानदार हो जाएँ, हालाकि किसी शख़्स को ये एख़्तेयार नहीं।
  20. व मा का-न लिनफ्सिन् अन् तुअ्मि-न इल्ला बि-इज़्निल्लाहि, व यज्अलुर्रिज्-स अलल्लज़ी-न ला यअ्क़िलून
    हालाँकि किसी व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं कि अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई व्यक्ति ईमान लाए। और जो लोग (दीन में) अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लोगे पर अल्लाह (कुफ्र) की गन्दगी डाल देता है।
  21. क़ुलिन्ज़ुरू माज़ा फिस्समावाति वल्अर्ज़ि, व मा तुग़्निल् आयातु वन्नुज़ुरू अन् क़ौमिल् ला युअ्मिनून
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ज़रा देखों तो सही कि आसमानों और ज़मीन में (अल्लाह की निशानियाँ क्या) क्या कुछ हैं (मगर सच तो ये है) और जो लोग ईमान नहीं क़़ुबूल करते उनको हमारी निशानियाँ और चेतावनियाँ कुछ भी काम नहीं आती।
  22. फ़-हल् यन्तज़िरून इल्ला मिस्-ल अय्यामिल्लज़ी-न ख़लौ मिन् क़ब्लिहिम्, क़ुल् फ़न्तज़िरू इन्नी म-अ़कुम् मिनल्-मुन्तज़िरीन
    तो ये लोग भी उन्हीं सज़ाओं के इन्तजार में हैं जो उनसे पहले वालो पर आ चुकी हैं (ऐ रसूल! उनसे) कह दो कि अच्छा तुम भी इन्तज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ यक़ीनन इन्तज़ार करता हूँ।
  23. सुम्-म नुनज्जी रूसु-लना वल्लज़ी-न-आमनू कज़ालि-क, हक़्कन् अ़लैना नुन्जिल्-मुअ्मिनीन *
    फिर (अज़ाब के वक़्त) हम अपने रसूलों को और जो लोग ईमान लाए उनको (अज़ाब से) बचा लेते हैं। यूँ ही हम पर अपरिहार्य है कि हम ईमान लाने वालों को भी बचा लें।
  24. क़ुल या अय्युहन्नासु इन् कुन्तुम् फी शक्किम् मिन् दीनी फला अअ्बुदुल्लज़ी-न तअ्बुदू-न मिन् दूनिल्लाहि व लाकिन् अअ्बुदुल्लाहल्लज़ी य-तवफ़्फाकुम्, व उमिर्तु अन् अकू-न मिनल्-मुअ्मिनीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि अगर तुम लोग मेरे दीन के बारे में शक में पड़े हो तो (मैं भी तुमसे साफ कहें देता हूँ) अल्लाह के सिवा तुम भी जिन लेागों की परसतिश करते हो मै तो उनकी परसतिश नहीं करने का मगर (हाँ) मै उस अल्लाह की इबादत करता हूँ जो तुम्हें (अपनी कुदरत से दुनिया से) उठा लेगा और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि ईमान वालों में रहूँ।
  25. व अन् अक़िम् वज्ह-क लिद्दीनि हनीफन्, वला तकूनन्-न मिनल्-मुश्रिकीन
    और यह कि हर ओर से एकाग्र होकर अपना रुख़ इस धर्म की ओर कर लो और मुशरिकों में कदापि सम्मिलित न हो,
  26. व ला तद्अु मिन् दूनिल्लाहि मा ला यन्फ़अु-क व ला यज़ुर्रू-क, फ़-इन् फ़ अल्-त फ़-इन्न-क इज़म् मिनज़्ज़ालिमीन
    और अल्लाह को छोड़ ऐसी चीज़ को पुकारना जो न तुझे लाभ ही पहुँचा सकती हैं न नुक़सान ही पहुँचा सकती है तो अगर तुमने (कहीं ऐसा) किया तो उस वक़्त आप भी अत्याचारियों में हो जायेंगे।
  27. व इंय्यम्सस्कल्लाहु बिज़ुर्रिन् फ़ला काशि-फ़ लहू इल्ला हु-व, व इंय्युरिद्-क बिख़ैरिन् फ़ला राद्-द लिफ़ज़्लिही, युसीबु बिही मंय्यशा-उ मिन् अिबादिही, व हुवल् ग़फूरुर्रहीम
    और (याद रखो कि) अगर अल्लाह की तरफ से तुम्हें कोई बुराई छू भी गई तो फिर उसके सिवा कोई उसको दूर करने वाला नहीं होगा और अगर तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे , तो कोई उसकी भलाई को रोकने वाला नहीं। वह अपने भक्तों में से जिसको चाहे फायदा पहुँचाएँ और वह बड़ा क्षमाशील दयावान है।
  28. क़ुल या अय्यु हन्नासु क़द् जा-अकुमुल्-हक़्क़ु मिर्रब्बिकुम्, फ़-मनिह़्तदा फ़-इन्नमा यह़्तदी लिनफ्सिही, व मन् ज़ल्-ल फ़-इन्नमा यज़िल्लु अलैहा, व मा अ-ना अलैकुम् बि-वकील
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ लोगों! तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास सत्य (क़ुरान) आ चुका फिर जो शख़्स सीधी राह पर चलेगा, तो उसी के लिए लाभदायक है और जो कोई पथभ्रष्ट होगा, तो उसका कुपथ उसी के लिए नाशकारी है और मैं कुछ तुम्हारा जिम्मेदार नहीं हूँ।
  29. वत्तबिअ् मा यूहा इलै-क वस्बिर् हत्ता यह़्कुमल्लाहु, व हु-व ख़ैरूल्-हाकिमीन *
    और (ऐ रसूल!) तुम्हारे पास जो ‘वही’ भेजी जाती है तुम बस उसी का अनुसरण करो और सब्र करो यहाँ तक कि अल्लाह तुम्हारे और काफिरों के बीच फैसला फरमाए और वह तो तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है।

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