10 सूरह यूनुस हिंदी में पेज 5

सूरह यूनुस हिंदी में | Surat Yunus in Hindi

  1. फ़ – लम्मा अल्क़ौ का – ल मूसा मा जिअ्तुम् बिहिस् – सिहरू, इन्नल्ला – ह सयुब्तिलुहू, इन्नल्ला – ह ला युस्लिहु अ – मलल् – मुफ़्सिदीन
    फिर जब वह लोग (रस्सियों को साँप बनाकर) डाल चुके तू मूसा ने कहा जो कुछ तुम (बनाकर) लाए हो (वह तो सब) जादू है-इसमें तो ्यक ही नहीं कि ख़़ुदा उसे फौरन मिटियामेट कर देगा (क्योंकर) ख़ुदा तो हरगिज़ मफ़सिदों (फसाद करने वालों) का काम दुरुस्त नहीं होने देता (81)
  2. व युहिक़्कुल्लाहुल्-हक्-क बि-कलिमातिही व लौ करिहल् – मुज्रिमून *
    और ख़़ुदा सच्ची बात को अपने कलाम की बरकत से साबित कर दिखाता है अगरचे गुनाहगारों को ना गॅवार हो (82)
  3. फ़मा आम-न लिमूसा इल्ला जुर्रिय्यतुम् – मिन् क़ौमिही अ़ला ख़ौफ़िम् मिन् फिरऔ-न व म-लइहिम् अंय्यफ्ति-नहुम, व इन् – न फ़िरऔ-न लआ़लिन् फ़िल्अर्जि व इन्नहू लमिनल् मुस्रिफ़ीन
    अलग़रज़ मूसा पर उनकी क़ौम की नस्ल के चन्द आदमियों के सिवा फिरआऊन और उसके सरदारों के इस ख़ौफ से कि उन पर कोई मुसीबत डाल दे कोई ईमान न लाया और इसमें शक नहीं कि फिरआऊन रुए ज़मीन में बहुत बढ़ा चढ़ा था और इसमें शक नहीं कि वह यक़ीनन ज़्यादती करने वालों में से था (83)
  4. व का-ल मूसा या क़ौमि इन् कुन्तुम् आमन्तुम् बिल्लाहि फ़ -अ़लैहि तवक्कलू इन् कुन्तुम् मुस्लिमीन
    और मूसा ने कहा ऐ मेरी क़ौम अगर तुम (सच्चे दिल से) ख़ुदा पर इमान ला चुके तो अगर तुम फरमाबरदार हो तो बस उसी पर भरोसा करो (84)
  5. फ़क़ालू अ़लल्लाहि तवक्कल्ना रब्बना ला तज्अल्ना फित्नतल् लिल्फ़ौमिज़्ज़ालिमीन
    उस पर उन लोगों ने अजऱ् की हमने तो ख़़ुदा ही पर भरोसा कर लिया है और दुआ की कि ऐ हमारे पालने वाले तू हमें ज़ालिम लोगों का (ज़रिया) इम्तिहान न बना (85)
  6. व नज्जिना बिरह्मति – क मिनल क़ौमिल् काफ़िरीन
    और अपनी रहमत से हमें इन काफि़र लोगों (के नीचे) से नजात दे (86)
  7. व औहैना इला मूसा व अख़ीहि अन् तबव्वआ लिक़ौमिकुमा बिमिस् – र बुयूतंव्वज्अ़लू बुयू – तकुम किब्लतंव् – व अक़ीमुस्सला – त, व बश्शिरिल मुअ्मिनीन
    और हमने मूसा और उनके भाई (हारुन) के पास ‘वही’ भेजी कि मिस्र में अपनी क़ौम के (रहने सहने के) लिए घर बना डालो और अपने अपने घरों ही को मस्जिदें क़रार दे लो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ों और मोमिनीन को (नजात का) खुशख़बरी दे दो (87)
  8. व का – ल मूसा . रब्बना इन्न-क आतै-त फ़िरऔ-न व म-ल- अहू ज़ीनतंव-व अम्वालन् फ़िल्हयातिद्दुन्या रब्बना लियुज़िल्लू अन् सबीलि – क रब्बनत्मिस् अ़ला अम्वालिहिम् वश्दुद् अला कुलूबिहिम् फला युअ्मिनू हत्ता-य-र-वुल् अ़ज़ाबल – अलीम
    और मूसा ने अजऱ् की ऐ हमारे पालने वाले तूने फिरआऊन और उसके सरदारों को दुनिया की जि़न्दगी में (बड़ी) आराइश और दौलत दे रखी है (क्या तूने ये सामान इस लिए अता किया है) ताकि ये लोग तेरे रास्तें से लोगों को बहकाए परवरदिगार तू उनके माल (दौलत) को ग़ारत (बरबाद) कर दे और उनके दिलों पर सख़्ती कर (क्योंकि) जब तक ये लोग तकलीफ देह अज़ाब न देख लेगें ईमान न लाएगें (88)
  9. का – ल कद् उजीबद् – दअ्वतुकुमा फ़स्तकीमा व ला तत्तबिआन्नि सबीलल्लज़ी-न ला यअ्लमून
    (ख़ुदा ने) फरमाया तुम दोनों की दुआ क़ुबूल की गई तो तुम दोनों साबित कदम रहो और नादानों की राह पर न चलो (89)
  10. व जावज् ना, बि- बनी इस्राईलल् -बह् -रफ़अत्ब – अ़हुम् फ़िरऔनु व जुनूदुहू बग्यंव-व अद्वन्, हत्ता इज़ा अद्र कहुल-ग-रकु का-ल आमन्तु अन्नहू ला इला-ह इल्लल्लज़ी आ – मनत् बिही बनू इस्राई-ल व अ-न मिनल्- मुस्लिमीन
    और हमने बनी इसराइल को दरिया के उस पार कर दिया फिर फिरआऊन और उसके लश्कर ने सरकशी की और शररारत से उनका पीछा किया-यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो कहने लगा कि जिस ख़ुदा पर बनी इसराइल इमान लाए हैं मै भी उस पर ईमान लाता हूँ उससे सिवा कोई माबूद नहीं और मैं फरमाबरदार बन्दों से हूँ (90)
  11. आल्आ-न व कद् असै-त क़ब्लु व कुन्-त मिनल्- मुफ्सिदीन
    अब (मरने) के वक़्त ईमान लाता है हालाकि इससे पहले तो नाफ़रमानी कर चुका और तू तो फ़सादियों में से था (91)
  12. फ़ल्यौ – म नुनज्जी – क बि-ब-दनि-क लितकू – न लिमन् ख़ल्फ़ – क आयतन्, व इन्-न कसीरम् मिनन्नासि अ़न् आयातिना लगाफ़िलून *
    तो हम आज तेरी रुह को तो नहीं (मगर) तेरे बदन को (तह नशीं होने से) बचाएँगें ताकि तू अपने बाद वालों के लिए इबरत का (बाइस) हो और इसमें तो शक नहीं कि तेरे लोग हमारी निशानियों से यक़ीनन बेख़बर हैं (92)
  13. व ल-कद् बव्वअ्ना बनी इस्राई-ल मुबव्व-अ सिद्किंव् – व रज़क़्नाहुम् मिनत्तय्यिबाति फ़मख़्त लफू हत्ता जा – अहुमुल् – अिल्मु, इन् – न रब्ब-क यक़्ज़ी बैनहुम् यौमल् – क़ियामति फीमा कानू फीहि यख़्तलिफून
    और हमने बनी इसराइल को (मालिक शयाम में) बहुत अच्छी जगह बसाया और उन्हं अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी तो उन लोगों के पास जब तक इल्म (न) आ चुका उन लोगों ने एख़्तेलाफ़ नहीं किया इसमें तो शासक ही नहीं जिन बातों में ये (दुनिया में) बाहम झगड़े रहे है क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार इसमें फैसला कर देगा (93)
  14. फ़-इन् कुन्-त फी शक्किम् मिम्मा अन्ज़ल्ना इलै-क फ़स् अलिल्लज़ी – न यक्रऊनल-किता-ब मिन् कब्लि -क ल -क़द् जा – अकल हक़्कु मिर्रब्बि – क फ़ला तकूनन् – न मिनल – मुम्तरीन
    पस जो कु़रान हमने तुम्हारी तरफ नाजि़ल किया है अगर उसके बारे में तुम को कुछ शक हो तो जो लोग तुम से पहले से किताब (ख़़ुदा) पढ़ा करते हैं उन से पूछ के देखों तुम्हारे पास यक़ीनन तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ किताब आ चुकी तो तू न हरगिज़ शक करने वालों से होना (94)
  15. व ला तकूनन् – न मिनल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिल्लाहि फ़- तकू-न मिनल्ख़ासिरीन
    न उन लोगों से होना जिन्होंने ख़ुदा की आयतों को झुठलाया (वरना) तुम भी घाटा उठाने वालों से हो जाओगे (95)
  16. इन्नल्लज़ी – न हक़्क़त् अ़लैहिम् कलि – मतु रब्बि-क ला युअ्मिनून
    (ऐ रसूल) इसमें शक नहीं कि जिन लोगों के बारे में तुम्हारे परवरदिगार को बातें पूरी उतर चुकी हैं (कि ये मुस्तहके़ अज़ाब हैं) (96)
  17. व लौ जाअत्हुम् कुल्लु आयतिन् हत्ता य- रवुल अ़ज़ाबल – अलीम
    वह लोग जब तक दर्दनाक अज़ाब देख (न) लेगें इमान न लाएगें अगरचे इनके सामने सारी (ख़ुदाई के) मौजिज़े आ मौजूद हो (97)
  18. फ़लौ ला कानत् कर्यतुन् आम-नत् फ़-न-फ़-अ़हा ईमानुहा इल्ला कौ – म यूनु-स लम्मा आमनू कशफ़्ना अन्हुम् अ़ज़ाबल – खिज्यि फ़िल्हयातिद्दुन्या व मत्तअ्नाहुम् इला हीन
    कोई बस्ती ऐसी क्यों न हुयी कि इमान क़ुबूल करती तो उसको उसका इमान फायदे मन्द होता हाँ यूनूस की क़ौम जब (अज़ाब देख कर) इमान लाई तो हमने दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी में उनसे रुसवाई का अज़ाब दफा कर दिया और हमने उन्हें एक ख़ास वक़्त तक चैन करने दिया (98)
  19. व लौ शा-अ रब्बु-क लआम – न मन् फ़िल्अर्ज़ि कुल्लुहुम् जमीअ़न्, अ- फ़अन् त तुक्रिहुन्ना – स हत्ता यकूनू मुअ्मिनीन
    और (ऐ पैग़म्बर) अगर तेरा परवरदिगार चाहता तो जितने लोग रुए ज़मीन पर हैं सबके सब इमान ले आते तो क्या तुम लोगों पर ज़बरदस्ती करना चाहते हो ताकि सबके सब इमानदार हो जाएँ हालाकि किसी शख़्स को ये एख़्तेयार नहीं (99)
  20. व मा का-न लिनफ्सिन् अन् तुअ्मि-न इल्ला बि-इज्निल्लाहि, व यज्अलुर्रिज्-स अलल्लज़ी-न ला यअ्किलून
    कि बगै़र ख़़ुदा की इजाज़त ईमान ले आए और जो लोग (उसूले दीन में) अक़ल से काम नहीं लेते उन्हीं लेागें पर ख़़ुदा (कुफ्ऱ) की गन्दगी डाल देता है (100)
  21. कुलिन्जुरू माज़ा फिस्समावाति वल्अर्जि, व मा तुग्निल आयातु वन्नुजुरू अन् कौमिल ला युअ्मिनून
    (ऐ रसूल) तुम कहा दो कि ज़रा देखों तो सही कि आसमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की निशानियाँ क्या) क्या कुछ हैं (मगर सच तो ये है) और जो लोग ईमान नहीं क़़ुबूल करते उनको हमारी निशानियाँ और डरावे कुछ भी मुफीद नहीं (101)
  22. फ़-हल् यन्तज़िरू न इल्ला मिस्-ल अय्यामिल्लज़ी-न ख़लौ मिन् कब्लिहिम्, कुल् फ़न्तज़िरू इन्नी म-अ़कुम् मिनल् – मुन्तज़िरीन
    तो ये लोग भी उन्हें सज़ाओं के मुन्तिज़र (इन्तजार में) हैं जो उनसे क़ब्ल (पहले) वालो पर गुज़र चुकी हैं (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अच्छा तुम भी इन्तज़ार करो मैं भी तुम्हारे साथ यक़ीनन इन्तज़ार करता हूँ (102)
  23. सुम् – म नुनज्जी रूसु – लना वल्लज़ी-न -आमनू कज़ालि-क हक़्कन् अ़लैना नुन्जिल् -मुअ्मिनीन *
    फिर (नुज़ूले अज़ाब के वक़्त) हम अपने रसूलों को और जो लोग ईमान लाए उनको (अज़ाब से) तलूउ बचा लेते हैं यूँ ही हम पर लाजि़म है कि हम इमान लाने वालों को भी बचा लें (103)
  24. कुल या अय्युहन्नासु इन् कुन्तुम् फी शक्किम् मिन् दीनी फला अअ्बुदुल्लज़ी – न तअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि व लाकिन् अअ्बुदुल्लाहल्लज़ी य – तवफ़्फाकुम् व उमिर्तु अन् अकू – न मिनल् – मुअ्मिनीन
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर तुम लोग मेरे दीन के बारे में शक में पड़े हो तो (मैं भी तुमसे साफ कहें देता हूँ) ख़़ुदा के सिवा तुम भी जिन लेागों की परसतिश करते हो मै तो उनकी परसतिश नहीं करने का मगर (हाँ) मै उस ख़ुदा की इबादत करता हूँ जो तुम्हें (अपनी कुदरत से दुनिया से) उठा लेगा और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मोमिन हूँ (104)
  25. कुल या अय्युहन्नासु इन् कुन्तुम् फी शक्किम् मिन् दीनी फला अअ्बुदुल्लज़ी – न तअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि व लाकिन् अअ्बुदुल्लाहल्लज़ी य – तवफ़्फाकुम् व उमिर्तु अन् अकू – न मिनल् – मुअ्मिनीन
    और (मुझे) ये भी (हुक्म है) कि (बातिल) से कतरा के अपना रुख़ दीन की तरफ कायम रख और मुशरेकीन से हरगिज़ न होना (105)
  26. व ला तद्अु मिन् दूनिल्लाहि मा ला यन्फ़अु – क व ला यजुर्रू-क फ़ – इन् फ़ अल -त फ़-इन्न-क इज़म् मिनज़्ज़ालिमीन
    और ख़ुदा को छोड़ ऐसी चीज़ को पुकारना जो न तुझे नफा ही पहुँचा सकती हैं न नुक़सान ही पहुँचा सकती है तो अगर तुमने (कहीं ऐसा) किया तो उस वक़्त तुम भी ज़ालिमों में (षुमार) होगें (106)
  27. व इंय्यम्सस्कल्लाहु बिजुर्रिन् फ़ला काशि- फ़ लहू इल्ला हु – व व इंय्युरिद् – क बिखैरिन् फ़ला राद् – द लिफ़ज्लिही, युसीबु बिही मंय्यशा – उ मिन् अिबादिही, व हुवल् गफूरुर्रहीम
    और (याद रखो कि) अगर ख़ुदा की तरफ से तुम्हें कोई बुराई छू भी गई तो फिर उसके सिवा कोई उसका दफा करने वाला नहीं होगा और अगर तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो फिर उसके फज़ल व करम का लपेटने वाला भी कोई नहीं वह अपने बन्दों में से जिसको चाहे फायदा पहुँचाएँ और वह बड़ा बख़्षने वाला मेहरबान है (107)
  28. कुल या अय्यु हन्नासु कद् जा – अकुमुल् – हक्कु मिर्रब्बिकुम् फ़ – मनिह़्तदा फ़ – इन्नमा यह़्तदी लिनफ्सिही व मन् ज़ल् – ल फ़- इन्नमा यज़िल्लु अलैहा, व मा अ-न अलैकुम् बि – वकील
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ लोगों तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास हक़ (क़ुरान) आ चुका फिर जो शख़्स सीधी राह पर चलेगा तो वह सिर्फ अपने ही दम के लिए हिदायत एख़्तेयार करेगा और जो गुमराही एख़्तेयार करेगा वह तो भटक कर कुछ अपना ही खोएगा और मैं कुछ तुम्हारा जि़म्मेदार तो हूँ नहीं (108)
  29. वत्तबिअ् मा यूहा इलै-क वस्बिर् हत्ता यह़्कुमल्लाहु व हु-व खैरूल् –हाकिमीन *
    और (ऐ रसूल) तुम्हारे पास जो ‘वही’ भेजी जाती है तुम बस उसी की पैरवी करो और सब्र करो यहाँ तक कि ख़ुदा तुम्हारे और काफिरों के दरम्यिान फैसला फरमाए और वह तो तमाम फैसला करने वालों से बेहतर है (109)

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