09 सूरह अत तौबा हिंदी में पेज 3

सूरह अत तौबा हिंदी में | Surat At-Tawbah in Hindi

  1. इन्फिरू ख़िफ़ाफंव्-व सिक़ालंव् व जाहिदू बिअम्वा लिकुम् व अन्फुसिकुम् फ़ी सबीलिल्लाहि, ज़ालिकुम् ख़ैरूल्लकुम् इन् कुन्तुम् तअ्लमून
    (मुसलमानों) चाहे आपके पास कम या अधिक सामान या धन हो। बहर हाल जब तुमको हुक्म दिया जाए, फौरन चल खड़े हो। और अपनी जानों से, अपने मालों से अल्लाह की राह में जिहाद करो। अगर तुम (कुछ जानते हो तो) समझ लो कि यही तुम्हारे लिए बेहतर है।
  2. लौ का-न अ-रज़न् क़रीबंव्-व स-फ़रन् क़ासिदल्लत्तबअू-क व लाकिम्-बअुदत् अलैहिमुश्शुक्कतु, व स-यह़्लि फू-न बिल्लाहि लविस्त-तअ्ना ल-ख़रज्-ना म-अ़कुम्, युह़्लिकू-न अन्फु-सहुम्, वल्लाहु यअ्लमु इन्नहुम् लकाज़िबून *
    (ऐ रसूल!) अगर लाभ समीप और सफर आसान होता, तो यक़ीनन ये लोग तुम्हारा साथ देते। किन्तु मार्ग की दूरी उन्हें कठिन और बहुत दीर्घ प्रतीत हुई। और अगर पीछे रह जाने की वज़ह से पूछोगे तो ये लोग फौरन अल्लाह की क़समें खाएगें कि अगर हम में सामर्थ्य होती तो हम भी ज़रूर तुम लोगों के साथ ही चल खड़े होते। ये लोग झूठी कसमें खाकर अपनी जान आप हलाक किए डालते हैं।और अल्लाह तो जानता है कि ये लोग बेशक झूठे हैं।
  3. अ़फ़ल्लाहु अन्-क, लि-म अज़िन्-त लहुम् हत्ता य -तबय्य-न लकल्लज़ी-न स-द-क़ू व तअ्-लमल् काज़िबीन
    (ऐ रसूल!) अल्लाह आपको क्षमा करे! तुमने उन्हें (पीछे रह जाने की) इजाज़त ही क्यों दी। ताकि (तुम) अगर ऐसा न करते तो) तुम पर सच बोलने वाले उजागर हो जाते और तुम झूटों को जान लेते।
  4. ला यस्तअ्ज़िनुकल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिल्लाहि वल्यौमिल्-आख़िरि अंय्युजाहिदू बिअम्वालिहिम् व अन्फुसिहिम्, वल्लाहु अलीमुम् बिल्मुत्तक़ीन
    (ऐ रसूल!) जो लोग (दिल से) अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते हैं, वह तो अपने माल से और अपनी जानों से जिहाद (न) करने की इजाज़त मागने के नहीं (बल्कि वह ख़ुद जाएगें) और अल्लाह डर रखनेवालों से खूब वाकि़फ है।
  5. इन्नमा यस्तअ्ज़िनुकल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्लाहि वलयौमिल्-आख़िरि वरताबत् क़ुलूबुहुम् फहुम् फी रैबिहिम् य-तरद्ददून
    (पीछे रह जाने की) इजाज़त तो बस वही लोग मागेंगे जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान नहीं रखते। और उनके दिल सन्देह में पड़े हैं, तो वह अपने सन्देह में डाँवाडोल हो रहे हैं। (कि क्या करें क्या न करें)
  6. व लौ अरादुल-खुरू-ज ल-अअ़द्दू लहू अुद्दतंव्-व लाकिन् करिहल्लाहुम् बिआ-सहुम् फ़ सब्ब तहुम् व क़ीलक़्अुदू मअल् क़ाअिदीन
    और अगर ये लोग (घर से) निकलने की ठान लेते, तो अवश्य उसके लिए कुछ तैयारी करते। मगर (बात ये है) कि अल्लाह ने उनके साथ भेजने को नापसन्द किया, अतः उन्हें आलसी बना दिया और उनसे कह दिया गया कि तुम बैठने वालों के साथ बैठे (मक्खी मारते) रहो।
  7. लौ ख़-रजू फ़ीकुम् मा ज़ादूकुम इल्ला ख़बालंव्-व ल-औज़अू ख़िलालकुम् यब्ग़ूनकुमुल् फ़ित् न-त, व फ़ीकुम् सम्माअू-न लहुम्, वल्लाहु अलीमुम्-बिज़्ज़ालिमीन 
    यदि वे तुम्हारे साथ निकलते भी तो तुम्हारे अन्दर ख़राबी के सिवा किसी और चीज़ की अभिवृद्धि नहीं करते। और तुम्हारे बीच उपद्रव के लिए दौड़ धूप करते। और तुममें वह भी हैं, जो उनकी बातों पर ध्यान देते हैं और अल्लाह अत्याचारियों को भली-भाँति जानता है।
  8. ल-क़दिब्त-ग़वुल फित् न-त मिन् क़ब्लु व क़ल्लबू ल-कल् उमू-र हत्ता जाअल्-हक़्क़ु व ज़-ह-र अम्रुल्लाहि व हुम् कारिहून
    (ए रसूल!) उन्होंने तो इससे पहले भी उपद्रव मचाना चाहा था। और वे तुम्हारे विरुद्ध घटनाओं और मामलों के उलटने-पलटने में लगे रहे, यहाँ तक कि हक़ आ पहुचा और अल्लाह का आदेश प्रकट होकर रहा, यद्यपि उन्हें अप्रिय ही लगता रहा।
  9. व मिन्हुम् मंय्यक़ूलुअ्ज़ल्ली व ला तफ़्तिन्नी, अला फ़िल्-फ़ित्-नति स-क़तू, व इन्-न जहन्न-म लमुही-ततुम् बिल्काफ़िरीन
    उन लोगों में से कुछ ऐसे भी हैं जो साफ कहते हैं कि मुझे तो (पीछे रह जाने की) अनुमति दे दीजिए और मुझ परीक्षा में न फॅसाइए। (ऐ रसूल!) परीक्षा में तो ये पहले ही से पड़े हुए हैं और जहन्नुम तो काफिरों का यक़ीनन घेरे हुए ही हैं।
  10. इन् तुसिब्-क ह-स-नतुन् तसुअ्हुम्, व इन् तुसिब्-क मुसीबतुंय्यक़ूलू क़द् अख़ज़्ना अम्-रना मिन् क़ब्लु व य -तवल्लौ व हुम् फ़रिहून
    तुमको कोई फायदा पहुचा तो उन को बुरा मालूम होता है और अगर तुम पर कोई मुसीबत आ पड़ती तो ये लोग कहते हैं कि (इस वजह से) हमने पहले ही अपनी सावधानी बरत ली थी और (ये कह कर) ख़ुश (तुम्हारे पास से उठकर) वापस लौटतें है।
  11. क़ुल् लंय्युसीबना इल्ला मा क-तबल्लाहु लना, हु-व मौलाना, व अ़लल्लाहि फ़ल्य-तवक्कलिल् मुअ्मिनून
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हम पर हरगिज़ कोई मुसीबत पड़ नही सकती मगर जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए (हमारी तक़दीर में) लिख दिया है। वही हमारा मालिक है और ईमानवालों को चाहिए भी कि अल्लाह ही पर भरोसा रखें।
  12. क़ुल हल् तरब्बसू-न बिना इल्ला इह़्दल हुस्-नयैनि, व नह़्नु न-तरब्बसु बिकुम् अंय्युसी-बकुमुल्लाहु बिअ़ज़ाबिम् मिन् अिन्दिही औ बिऐदीना, फ़-तरब्बसू इन्ना म-अ़कुम् मु-तरब्बिसून
    (ऐ रसूल!) तुम मुनाफिकों से कह दो कि तुम तो हमारे लिए (फतेह या शहादत) दो भलाइयों में से एक के अनावश्यक प्रतीक्षा कर रहे हो, और हम तुम्हारे बारे में इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि अल्लाह तुम पर (ख़ास) अपने ही से कोई यातना नाज़िल करे या हमारे हाथों से फिर (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो, हम भी तुम्हारे साथ  इन्तेज़ार करते हैं।
  13. क़ुल अन्फ़िक़ू तौअन् औ कर्हल्-लंय्यु तक़ब्ब-ल मिन्कुम्, इन्नकुम् कुन्तुम् क़ौमन् फ़ासिक़ीन
    (ऐ रसूल!) तुम चाहे स्वेच्छापूर्वक ख़र्च करो या अनिच्छापूर्वक, तुमसे कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। तुम यक़ीनन अवज्ञाकारी लोग हो।
  14. व मा म-न अहुम् अन् तुक़्ब-ल मिन्हुम् न-फक़ातुहुम् इल्ला अन्नहुम् क-फरू बिल्लाहि व बि-रसूलिही वला यअ् तू नस्सला-त इल्ला व हुम् कुसाला व ला युन्फिक़ू-न इल्ला व हुम् कारिहून
    और उनकी ख़ैरात के क़ुबूल किए जाने में और कोई वजह मायने नहीं मगर यही कि उन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी की। और वे नमाज़ के लिए आलसी होकर आते हैं और अल्लाह की राह में खर्च भी करते हैं तो अनिच्छा से।
  15. फ़ला तुअ्जिब्-क अम्वालुहुम् वला औलादुहुम्, इन्नमा युरीदुल्लाहु लियुअ़ज़्ज़ि-बहुम् बिहा फ़िल्हयातिद्दुन्या व तज़्ह-क़ अन्फुसुहुम् व हुम् काफ़िरून 
    (ऐ रसूल!) तुम को न तो उनके धन हैरत में डाले और न उनकी औलाद (क्योंकि) अल्लाह तो ये चाहता है कि उनको आल व माल की वजह से सांसारिक जीवन (ही) में यातना करे और जब उनकी जानें निकलें तब भी वह काफिर (के काफिर ही) रहें।
  16. व यह़्लिफू-न बिल्लाहि इन्नहुम् लमिन्कुम्, व मा हुम् मिन्कुम् व लाकिन्नहुम् क़ौमुंय्यफ्रक़ून
    और (मुसलमानों!) ये लोग अल्लाह की शपथ लेकर कहते हैं कि वे तुम में से हैं, हालांकि वह लोग तुममें के नहीं हैं मगर ये भयभीत लोग हैं।
  17. लौ यजिदू न मल्ज अन् औ मग़ारातिन् औ मुद्द-ख़लल -लवल्लौ इलैहि व हुम् यज्महून
    कि यदि कहीं ये लोग पनाह की जगह (कि़ले) या (छिपने के लिए) गुफा या घुस बैठने की कोई (और) जगह पा जाए तो उसी तरफ मुंह उठाते हुए भाग जाएँ।
  18. व मिन्हुम् मंय्यल्मिज़ु-क फ़िस्स दक़ाति, फ़-इन् उअ्तू मिन्हा रज़ू व इल्लम् युअ्तौ मिन्हा इज़ा हुम् यस्-ख़तून
    (ऐ रसूल!) उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं जो तुम्हें सदक़ों (की तक़सीम) में इल्ज़ाम देते हैं फिर अगर उनमे से कुछ (हिस्सा) दे दिया गया तो खुश हो गए और अगर उसमें से उन्हें कुछ नहीं दिया गया तो बस फौरन ही क्रोधित होने लगते हैं।
  19. व लौ अन्नहुम् रज़ू मा आताहुमुल्लाहु व रसूलुहू, व क़ालू हस्बुनल्लाहु सयुअ्तीनल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही व रसूलुहू, इन्ना इलल्लाहि राग़िबून *
    और जो कुछ अल्लाह ने और उसके रसूल ने उनको दिया था अगर ये लोग उस पर राज़ी रहते और कहते कि अल्लाह हमारे वास्ते काफी है। जल्द ही अल्लाह हमें अपने फज़ल व करम से और उसका रसूल दे ही देगा हम तो यक़ीनन अल्लाह ही की तरफ लौ लगाए बैठे हैं।
  20. इन्नमस्स दक़ातु लिल्फु-क़रा-इ वल्मसाकीनि वल्आ़मिली-न अलैहा वल्मुअल्ल-फ़ति क़ुलूबुहुम् व फ़िर्रिक़ाबि वल्ग़ारिमी-न व फ़ी सबीलिल्लाहि वब्-निस्सबीलि, फ़री-ज़तम् मिनल्लाहि, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
    सदक़े तो बस ग़रीबों, मुहताजों और उन लोगों के लिए हैं, जो इस काम पर नियुक्त हों और उनके लिए जिनके दिलों को आकृष्ट करना औऱ परचाना अभीष्ट हो और गर्दनों को छुड़ाने और क़र्ज़दारों और तावान भरनेवालों की सहायता करने में, अल्लाह के मार्ग में, मुसाफ़िरों की सहायता करने में लगाने के लिए हैं। ये हुकूक़ अल्लाह की तरफ से मुक़र्रर किए हुए हैं और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वज्ञ है।

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