43 सूरह अज-जुखरूफ हिंदी में पेज 2

सूरह अज-जुखरूफ हिंदी में | Surah Az-Zukhruf in Hindi

  1. व क़ालू लौ ला नुज़्ज़ि-ल हाज़ल्-कुर्आनु अ़ला रजुलिम्-मिनल क़र्-यतैनि अ़ज़ीम
    और कहने लगे कि ये क़़ुरआन इन दो बस्तियों (मक्के ताएफ) में से किसी बड़े आदमी पर क्यों नहीं नाजि़ल किया गया।
  2. अ-हुम् यक़्सिमू-न रह्म-त रब्बि-क, नह्नु क़सम्ना बैनहुम् मई-श-तहुम् फ़िल् हयातिद्-दुन्या व रफ़अ्ना बअ्-ज़हुम् फ़ौ- क़ बअ्ज़िन् द रजातिल् – लि- यत्तख़ि-ज़ बअ्ज़ुहुम् बअ्ज़न् सुख़्-रिय्यन्, व रह्मतु रब्बि-क ख़ैरुम्-मिम्मा यज्मअून
    ये लोग तुम्हारे परवरदिगार की रहमत को (अपने तौर पर) बाँटते हैं हमने तो इनके दरमियान उनकी रोज़ी दुनयावी जि़न्दगी में बाँट ही दी है और एक के दूसरे पर दर्जे बुलन्द किए हैं ताकि इनमें का एक दूसरे से खि़दमत ले और जो माल (मतआ) ये लोग जमा करते फिरते हैं अल्लाह की रहमत (पैग़म्बर) इससे कहीं बेहतर है।
  3. व लौ ला अंय्यकूनन्नासु उम्म-तंव्वहि-दतल् ल-जअ़ल्ना लिमंय्यक्फ़ुरु बिर्रह्मानि लि-बुयूतिहिम् सुक़ुफम्-मिन् फ़िज़्ज़तिंव् व मआ़रि-ज अ़लैहा यज़्हरून
    और अगर ये बात न होती कि (आखि़र) सब लोग एक ही तरीक़े के हो जाएँगे तो हम उनके लिए जो अल्लाह से इन्कार करते हैं उनके घरों की छतें और वही सीढि़याँ जिन पर वह चढ़ते हैं (उतरते हैं)।
  4. व लिबुयूतिहिम् अब्वाबंव्-व सुरुरन् अ़लैहा यत्तकिऊन
    और उनके घरों के दरवाज़े और वह तख़्त जिन पर तकिये लगाते हैं चाँदी और सोने के बना देते।
  5. व जुख़्-रुफ़न्, व इन् कुल्लु ज़ालि क लम्मा मताअुल्- हयातिद्-दुन्या, वल्- आख़िरतु अिन्- द रब्बि-क लिल्-मुत्तकीन
    ये सब साज़ो सामान, तो बस दुनियावी जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) साज़ो सामान हैं (जो मिट जाएँगे) और आख़ेरत (का सामान) तो तुम्हारे परवरदिगार के यहाँ ख़ास परहेज़गारों के लिए है।
  6. व मंय्यअ्शु अ्न् ज़िक्रिर्-रह्मानि नुक़य्यिज़् लहू शैतानन् फ़हु-व लहू क़रीन
    और जो शख़्स अल्लाह की चाह से अन्धा बनता है हम (गोया ख़ुद) उसके वास्ते शैतान मुक़र्रर कर देते हैं तो वही उसका (हर दम का) साथी है।
  7. व इन्नहुम् ल-यसुद्द्नहुम् अ़निस्सबीलि व यह्सबू-न अन्नहुम् मुह्तदून
    और वह (शयातीन) उन लोगों को (अल्लाह की) राह से रोकते रहते हैं बावजूद इसके वह उसी ख़्याल में हैं कि वह यक़ीनी राहे रास्त पर हैं।
  8. हत्ता इज़ा जा-अना क़ा-ल या लै-त बैनी व बैन-क बुअ्दल्-मश्रिक़ैनि फ़-बिअ्सल्-क़रीन
    यहाँ तक कि जब (क़यामत में) हमारे पास आएगा तो (अपने साथी शैतान से) कहेगा काश मुझमें और तुममें पूरब पष्चिम का फ़ासला होता ग़रज़ (शैतान भी) क्या ही बुरा रफीक़ है।
  9. व लंय्यन्फ़-अ़कुमुल्-यौ-म इज़् ज़लम्तुम् अन्नकुम् फ़िल्- अ़ज़ाबि मुश्तरिकून
    और जब तुम नाफ़रमानियाँ कर चुके तो (शैयातीन के साथ) तुम्हारा अज़ाब में शरीक होना भी आज तुमको (अज़ाब की कमी में) कोई फायदा नहीं पहुँचा सकता।
  10. अ-फ़-अन्-त तुस्मिअुस्सुम्-म औ तह्दिल्-अुम्-य व मन् का-न फ़ी ज़लालिम् – मुबीन
    तो (ऐ रसूल) क्या तुम बहरों को सुना सकते हो या अन्धे को और उस शख़्स को जो सरीही गुमराही में पड़ा हो रास्ता दिखा सकते हो (हरगिज़ नहीं)।
  11. फ़-इम्मा नज़्ह-बन्-न बि-क फ़-इन्ना मिन्हुम् मुन्तक़िमून
    तो अगर हम तुमको (दुनिया से) ले भी जाएँ तो भी हमको उनसे बदला लेना ज़रूरी है।
  12. औ नूरि-यन्नकल्लज़ी व-अ़द्नाहुम् फ़-इन्ना अ़लैहिम् मुक़्तदिरून
    या (तुम्हारी जि़न्दगी ही में) जिस अज़ाब का हमने उनसे वायदा किया है तुमको दिखा दें तो उन पर हर तरह क़ाबू रखते हैं।
  13. फ़स्तम्सिक् बिल्लज़ी ऊहि-य इलै-क इन्न-क अ़ला सिरातिम्- मुस्तक़ीम
    तो तुम्हारे पास जो वही भेजी गयी है तुम उसे मज़बूत पकड़े रहो इसमें शक नहीं कि तुम सीधी राह पर हो।
  14. व इन्नहू ल-ज़िक्रुल्-ल-क व लिक़ौमि-क व सौ-फ़ तुस्अलून
    और ये (क़ुरआन) तुम्हारे लिए और तुम्हारी क़ौम के लिए नसीहत है और अनक़रीब ही तुम लोगों से इसकी बाज़पुर्स की जाएगी।
  15. वस्अल् मन् अर्सल्ना मिन् क़ब्लि-क मिर्रुसुलिना, अ-जअ़ल्ना मिन् दूनिर्रह्मानि आलि-हतंय्-युअ्बदून*
    और हमने तुमसे पहले अपने जितने पैग़म्बर भेजे हैं उन सब से दरियाफ्त कर देखो क्या हमने अल्लाह कि सिवा और माबूद बनाएा थे कि उनकी इबादत की जाए।
  16. व ल-क़द् अर्सल्ना मूसा बिआयातिना इला फिर्-औ़-न व म-लइही फ़क़ा-ल इन्नी रसूलु रब्बिल्-आ़लमीन
    और हम ही ने यक़ीनन मूसा को अपनी निशानियाँ देकर फ़िरऔन और उसके दरबारियों के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा था तो मूसा ने कहा कि मैं सारे जहाँन के पालने वाले (अल्लाह) का रसूल हूँ।
  17. फ़-लम्मा जा-अहुम् बिआयातिना इज़ा हुम् मिन्हा यज़्हकून
    तो जब मूसा उन लोगों के पास हमारे मौजिज़े लेकर आए तो वह लोग उन मौजिज़ों की हँसी उड़ाने लगे।
  18. व मा नुरीहिम् मिन् आ-यतिन् इल्ला हि-य अक्बरु मिन् उख़्तिहा व अख़ज़्नाहुम् बिल्अ़ज़ाबि लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
    और हम जो मौजिज़ा उन को दिखाते थे वह दूसरे से बढ़ कर होता था और आखि़र हमने उनको अज़ाब में गिरफ़्तार किया ताकि ये लोग बाज़ आएँ।
  19. व क़ालू या अय्युहस्-साहिरुद्अु लना रब्ब-क बिमा अ़हि-द अिन्द-क इन्नना ल-मुह्तदून
    और (जब) अज़ाब में गिरफ़्तार हुए तो (मूसा से) कहने लगे ऐ जादूगर इस एहद के मुताबिक़ जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुमसे किया है हमारे वास्ते दुआ कर।
  20. फ़-लम्मा कशफ़्ना अ़न्हुमुल्-अ़ज़ा-ब इज़ा हुम् यन्कुसून
    (अगर अब की छूटे) तो हम ज़रूर ऊपर आ जाएँगे फिर जब हमने उनसे अज़ाब को हटा दिया तो वह फौरन (अपना) अहद तोड़ बैठे।
  21. व नादा फिर्औनु फ़ी क़ौमिही क़ा-ल या क़ौमि अलै-स ली मुल्कु मिस्-र व हाज़ि हिल-अन्हारु तज्रि मिन् तह्ती अ- फ़ला तुब्सिरून
    और फ़िरऔन ने अपने लोगों में पुकार कर कहा ऐ मेरी क़ौम क्या (ये) मुल्क मिस्र हमारा नहीं और (क्या) ये नहरें जो हमारे (शाही महल के) नीचे बह रही हैं (हमारी नहीं) तो क्या तुमको इतना भी नहीं सूझता।
  22. अम् अ-न ख़ैरुम् मिन् हाज़ल्लज़ी हु-व महीनुंव-व ला यकादु युबीन
    या (सूझता है कि) मैं इस शख़्स (मूसा) से जो एक ज़लील आदमी है और (हकले पन की वजह से) साफ़ गुफ़्तगू भी नहीं कर सकता।
  23. फ़-लौ ला उल्क़ि-य अ़लैहि अस्वि-रतुम् मिन् ज़-हबिन् औ जा-अ म अ़हुल् मलाइ-कतु मुक़्तरिनीन
    कहीं बहुत बेहतर हूँ (अगर ये बेहतर है तो इसके लिए सोने के कंगन) (अल्लाह के हाँ से) क्यों नहीं उतारे गये या उसके साथ फ़रिश्ते जमा होकर आते।
  24. फ़स्तख़फ़्-फ़ क़ौमहू फ़-अताअूहु, इन्नहुम् कानू क़ौमन् फ़ासिकी-न
    ग़रज़ फ़िरऔन ने (बातें बनाकर) अपनी क़ौम की अक़ल मार दी और वह लोग उसके ताबेदार बन गये बेशक वह लोग बदकार थे ही।
  25. फ़-लम्मा आ-सफ़ूनन्- त-क़म्ना मिन्हुम् फ़-अग़्रक़्नाहुम् अज्मईन
    ग़रज़ जब उन लोगों ने हमको झुझंला दिया तो हमने भी उनसे बदला लिया तो हमने उन सब (के सब) को डुबो दिया।
  26. फ़-जअ़ल्लाहुम् स-लफ़ंव्-व म- सलल्-लिल्आख़िरीन
    फिर हमने उनको गया गुज़रा और पिछलों के वास्ते इबरत बना दिया।
  27. व लम्मा ज़ुरिबब्नु मर्य-म म-सलन् इज़ा क़ौमु-क मिन्हु यसिद् दून
    और(ऐ रसूल!) जब मरियम के बेटे (ईसा) की मिसाल बयान की गयी तो उससे तुम्हारी क़ौम के लोग खिलखिला कर हंसने लगे।
  28. व क़ालू अ-आलि-हतुना ख़ैरुन् अम् हु-व, मा ज़-रबूहु ल-क इल्ला ज-दलन्, बल् हुम् क़ौमुन् ख़सिमून
    और बोल उठे कि भला हमारे माबूद अच्छे हैं या वह (ईसा) उन लोगों ने जो ईसा की मिसाल तुमसे बयान की है तो सिर्फ़ झगड़ने को।
  29. इन् हु-व इल्ला अ़ब्दुन् अन्अ़म्ना अ़लैहि व ज-अ़ल्नाहु म-सलल्-लि-बनी इस्राईल
    बल्कि (हक़ तो यह है कि) ये लोग हैं झगड़ालू ईसा तो बस हमारे एक बन्दे थे जिन पर हमने एहसान किया (नबी बनाया और मौजिज़े दिये) और उनको हमने बनी इसराईल के लिए (अपनी क़ुदरत का) नमूना बनाया।
  30. व लौ नशा-उ ल-जअ़ल्ना मिन्कुम् मलाइ-कतन् फ़िल्अर्ज़ि यख़्लुफ़ून
    और अगर हम चाहते तो तुम ही लोगों में से (किसी को) फ़रिश्ते बना देते जो तुम्हारी जगह ज़मीन में रहते।

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