39 सूरह अज़ जुमर हिंदी में पेज 2

सूरह अज़ जुमर हिंदी में | Surat Az Zumar in Hindi

  1. फ़-अज़ा-क़हुमुल्लाहुल्-ख़िज़्-य फ़िल्- हयातिद्दुन्या व ल-अ़ज़ाबुल्-आख़िरति अक्बरु. लौ कानू यअ्लमून
    तो अल्लाह ने उन्हें (इसी) दुनिया की जि़न्दगी में अपमान का मज़ा चखा दिया और परलोक की यातना तो यक़ीनी उससे कहीं बढ़कर है काश! ये लोग ये बात जानते।
  2. व ल-क़द् ज़रब्ना लिन्नासि फ़ी हाज़ल्-कुर्आनि मिन् कुल्लि म -सलिल्-लअ़ल्लहुम् य-तज़क्करून
    और हमने तो इस क़ुरान में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मिसाल बयान कर दी है ताकि ये लोग शिक्षा हासिल करें।
  3. क़ुर्आनन् अ़-रबिय्यन् ग़ै-र ज़ी अि-वजिल्-लअ़ल्लहुम् यत्तक़ून
    अरबी भाषा में क़ुर्आन, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है, ताकि वे अल्लाह से डरें।
  4. ज़-रबल्लाहु म-सलर्-रजुलन् फ़ीहि शु-रका-उ मु-तशाकिसू-न व रजुलन् स- लमल्-लि-रजुलिन्, हल् यस्तवियानि म-सलन्, अल्हम्दु लिल्लाहि, बल् अक्सरुहुम् ला यअ्लमून
    अल्लाह ने एक मिसाल पेश की है कि एक व्यक्ति है, जिसके मालिक होने में कई आपस में खींचातानी करनेवाले व्यक्ति साझी हैं, और एक व्यक्ति वह है जो पूरा का पूरा एक ही व्यक्ति का है। क्या दोनों का हाल एक जैसा होगा? सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, किन्तु उनमें से अधिकांश लोग नहीं जानते।
  5. इन्न-क मय्यितुंव् व इन्नहुम् मिय्यतून
    (ऐ रसूल!) बेशक तुम भी मरने वाले हो।
  6. सुम्-म इन्नकुम् यौमल्-क़ियामति अिन्-द रब्बिकुम् तख़्तसिमून*
    और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं। फिर तुम सभी प्रलय के दिन अल्लाह के समक्ष झगड़ोगे। (और वहाँ तुम्हारे झगड़े का निर्णय और सब का अन्त सामने आ जायेगा।) (पारा 23 समाप्त)

पारा 24 शुरू

  1. फ़-मन् अज़्लमु मिम्मन् क-ज़-ब अ़लल्लाहि व कज़्ज़-ब बिस्सिद्क़ि इज़् जा-अहू, अलै-स फ़ी जहन्न-म मस्वल्-लिल् – काफ़िरीन
  2. तो इससे बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर झूठ घड़कर थोपे और जब उसके पास सच्ची बात आए तो उसको झुठला दे क्या जहन्नुम में इनकार करनेवालों का ठिकाना नहीं है।
  3. वल्लज़ी जा-अ बिस्सिद्क़ि व सद्द-क़ बिही उलाइ-क हुमुल्-मुत्तक़ून (ज़रूर है) और याद रखो कि जो व्यक्ति (रसूल) सच्ची बात लेकर आया वह और जिसने उसकी पुष्टि की, यही लोग तो सदाचारी हैं।
  4. लहुम् मा यशाऊ-न अिन्- द रब्बिहिम्, ज़ालि-क जजाउल् – मुह्सिनीन ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए पालनहार के पास (मौजूद) है, ये नेकी करने वालों का प्रतिफल है।
  5. लि – युकफ़िफ़रल्लाहु अ़न्हुम् अस्व-अल्लज़ी अ़मिलू व यज्ज़ि -यहुम् अज्रहुम् बि- अह्सनिल्लज़ी कानू यअ्मलून ताकि अल्लाह उन लोगों की बुराइयों को जो उन्होने की हैं दूर कर दे और उनके अच्छे कामों के एवज़ जो वह कर चुके थे उसका उन्हें बदला प्रदान करे।
  6. अ-लैसल्लाहु बिकाफ़िन् अ़ब्दहू, व युख़व्विफ़ून-क बिल्लज़ी-न मिन् दूनिही, व मंय्युज़्लि-लिल्लाहु फ़मा लहू मिन् हाद क्या अल्लाह अपने बन्दों (की मदद) के लिए काफ़ी नहीं है (ज़रूर है) और (ऐ रसूल!) तुमको लोग अल्लाह के सिवा (दूसरे माबूदों) से डराते हैं और अल्लाह जिसे गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई राह पर लाने वाला नहीं है।
  7. व मंय्यदिल्लाहु फ़मा लहू मिम्-मुज़िल्लिन्, अ-लैसल्लाहु बि-अ़ज़ीज़िन् ज़िन्तिक़ाम और जिस शख़्स की हिदायत करे तो उसका कोई गुमराह करने वाला नहीं। क्या अल्लाह प्रभुत्वशाली और बदला लेने वाला नहीं है (ज़रूर है)।
  8. व ल-इन् स-अल्तहुम् मन् ख़-लक़स्समावाति वल्अर्-ज़ ल-यक़ूलुन्-नल्लाहु क़ुल् अ-फ़-रऐतुम् मा तद्अू-न मिन् दूनिल्लाहि इन् अरा-दनियल्लाहु बिज़ुर्रिन् हल् हुन्-न काशिफ़ातु ज़ुर्रिही औ अरा-दनी बिरह्मतिन् हल् हुन्-न मुम्सिकातु रह्मतिही, क़ुल् हस्बियल्लाहु अ़लैहि य-तवक्कलुलू- मु-तवक्किलून और (ऐ रसूल!) अगर तुम इनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो ये लोग यक़ीनन कहेंगे कि अल्लाह ने, तुम कह दो कि तो क्या तुमने ग़ौर किया है कि अल्लाह को छोड़ कर जिन लोगों की तुम इबादत करते हो अगर अल्लाह मुझे कोई तक़लीफ पहुँचाना चाहे तो क्या वह लोग उसके नुक़सान को (मुझसे) रोक सकते हैं या अगर अल्लाह मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उसकी मेहरबानी रोक सकते हैं (ऐ रसूल!) तुम कहो कि अल्लाह मेरे लिए काफ़ी है उसी पर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं।
  9. क़ुल् या क़ौमिअ्मलू अ़ला मकानतिकुम् इन्नी आ़मिलुन् फ़सौ-फ़ तअ्लमून (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) अमल किए जाओ मै भी (अपनी जगह) कुछ कर रहा हूँ,
  10. मंय्यअ्तीहि अ़ज़ाबुंय् – युख़्ज़ीहि व यहिल्लु अ़लैहि अ़ज़ाबुम्-मुक़ीम फिर शीघ्र ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि किस पर वह आफत आती है। जो उसको (दुनिया में) अपमानित कर देगी और (आख़िर में) उस पर स्थायी यातना भी नाजि़ल होगा।
  11. इन्ना अन्ज़ल्ना अ़लैकल्-किता-ब लिन्नासि बिल्हक़्क़ि फ़-मनिह्तदा फ़लिनफ़्सिही व मन् जल्-ल फ़-इन्नमा यज़िल्लु अ़लैहा व मा अन्-त अ़लैहिम् बि-वकील* (ऐ रसूल!) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरान) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के लिए नाज़िल की है, अतः जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो वह भटककर अपने ही को हानि पहुँचाता है। और फिर तुम कुछ उनके जिम्मेदार तो हो नहीं।
  12. अल्लाहु य-तवफ़्फ़ल्-अन्फ़ु-स ही-न मौतिहा वल्लती लम् तमुत् फ़ी मनामिहा फ़-युम्सिकुल्लती क़ज़ा अ़लैहल्-मौ-त व युर्सिलुल्-उख़्रा इला अ-जलिम्-मुसम्मन्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआयातिल् लिक़ौमिंय्य- तफ़क्करून अल्लाह ही प्राणों को उनकी मृत्यु के समय ग्रस्त कर लेता है और जिसकी मृत्यु नहीं आई उसे उसकी निद्रा की अवस्था में (ग्रस्त कर लेता है)। फिर जिसकी मृत्यु का फ़ैसला कर दिया है उसे रोक रखता है। और दूसरों को एक नियत समय तक के लिए छोड़ देता है। निश्चय ही इसमें कितनी ही निशानियाँ हैं सोच-विचार करनेवालों के लिए।
  13. अमित्त – ख़ज़ू मिनू दूनिल्लाहि शु-फ़आ़-अ, क़ुल् अ-व लौ कानू ला यम्लिकू-न शैअंव्-व ला यअ्किलून क्या उन लोगों ने अल्लाह के सिवा (दूसरे) सिफारिशी बना रखे है। (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि यद्यपि वह लोग न कुछ अधिकार रखते हों न कुछ समझते हों।
  14. क़ुल् लिल्लाहिश्-शफ़ा-अ़तु जमीअ़न्, लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, सुम्-म इलैहि तुर्जअून तुम कह दो कि सारी सिफारिश तो अल्लाह के अधिकार में है। सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत उसी के लिए ख़ास है, फिर तुम लोगों को उसकी तरफ लौट कर जाना है।
  15. व इज़ा ज़ुकिरल्लाहु वह्दहुश्-म-अज़्ज़त् क़ुलूबुल्लज़ी-न ला युअ्मिनू-न बिल्-आख़िरति व इज़ा ज़ुकिरल्लज़ी-न मिन् दूनिही इज़ा हुम् यस्तब्शिरून और जब सिर्फ अल्लाह का वर्णन किया जाता है तो जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल संकीर्ण हो जाते हैं। और जब अल्लाह के सिवा और (माबूदों) का ज़िक्र किया जाता है तो वे सहसा प्रसन्न हो जाते हैं।
  16. कुलिल्लाहुम्-म फ़ातिरस्-समावाति वल्अर्ज़ि आ़लिमल् – ग़ैबि वश्शहा-दति अन्-त तह्कुमु बै-न अिबादि-क फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफ़ून (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ अल्लाह! सारे आसमान और ज़मीन पैदा करने वाले, परोक्ष और प्रत्यक्ष के जानने वाले हक़ बातों में तेरे बन्दे आपस में झगड़ रहे हैं तू ही उनके दरमियान फैसला कर देगा।
  17. व लौ अन्-न लिल्लज़ी-न ज़-लमू मा फ़िल्-अर्ज़ि जमीअंव्-व मिस्-लहू म अ़हू – लफ़्तदौ बिही मिन् सूइल्-अज़ाबि यौमल् – क़ियामति, व बदा लहुम् मिनल्लाहि मा लम् यकूनू यह्तसिबून और यदि उनका, जिन्होंने अत्याचार किया है, जो कुछ धरती में है, सब हो जाये तथा उसके समान उसके साथ और आ जाये, तो वे उसे दण्ड में दे देंगे(परन्तु वह सब स्वीकार्य नहीं होगा) घोर यातना के बदले, प्रलय के दिन तथा खुल जायेगी उनके लिए अल्लाह की ओर, से वो बात, जिसे वे समझ नहीं रहे थे।
  18. व बदा लहुम् सय्यिआतु मा क-सबू व हा-क़ बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन और जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ उनपर प्रकट हो जाएँगी। और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसकी वे हँसी उड़ाया करते थे।
  19. फ़-इज़ा मस्सल्-इन्सा-न ज़ुर्रुन् दआ़ना सुम्-म इज़ा ख़व्वल्नाहु निअ्-मतम् मिन्ना क़ा-ल इन्नमा ऊतीतुहू अ़ला अिल्मिन्, बल् हि-य फ़ित्-नतुंव्-व लाकिन्-न अक्स रहुम् ला यअ्लमून और जब पहुँचता है मनुष्यों को कोई दुःख, तो हमें पुकारता है। फिर जब हम प्रदान करते हैं कोई सुख अपनी ओर से, तो कहता हैः ये तो मुझे प्रदान किया गया है ज्ञान के कारण। बल्कि, ये एक परीक्षा है। किन्तु, लोगों में से अधिक्तर (इसे) नहीं जानते।
  20. क़द् क़ा-लहल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़मा अग़्ना अ़न्हुम् मा कानू यक्सिबून जो लोग उनसे पहले थे वह भी ऐसी बातें बका करते थे। किन्तु जो कुछ कमाई वे करते थे, वह उनके कुछ काम न आई।

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