39 सूरह अज़ जुमर हिंदी में पेज 1

39 सूरह अज़ जुमर | Surah Az Zumar

सूरह अज़ जुमर में 75 आयतें और 8 रुकू  हैं। यह सूरह पारा 23, पारा 24 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम आयत 71 और 73 “वे लोग जिन्होंने इन्कार किया था नरक की ओर गिरोह-के-गिरोह (जुमरा) हाँके जाएँगे” और “और जो लोग प्रभु की अवज्ञा से बचते थे उन्हें गिरोह के गिरोह (जुमरा) जन्नत की ओर ले जाया जाएगा” से लिया गया है।

सूरह अज़ जुमर हिंदी में | Surat Az Zumar in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. तन्ज़ीलुल्-किताबि मिनल्लाहिल् अ़ज़ीज़ल्-हकीम
    (इस) किताब (क़ुरान) का अवतरण उस अल्लाह की ओर से है जो (सब पर) अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।
  2. इन्ना अन्ज़ल्ना इलैकल्-किता-ब बिल्-हक़्क़ि फ़अ्बुदिल्ला-ह मुख़्लिसल्-लहुद्दीन
    (ऐ रसूल!) हमने किताब (कु़रान) को तुम्हारी ओर सत्य के साथ अवतरित की है। अतः, इबादत (वंदना) करो अल्लाह की शुध्द करते हुए उसके लिए धर्म को।
  3. अला लिल्लाहिद्- दीनुल्-ख़ालिसु, वल्लज़ीनत्त-ख़ज़ू मिन् दूनिही औलिया-अ. मा नअ्बुदुहुम् इल्ला लियुक़र्रिबूना इलल्लाहि जुल्फा, इन्नल्ला-ह यह्कुमु बैनहुम् फ़ीमा हुम् फ़ीहि यख़्तलिफ़ू-न, इन्नल्ला-ह ला यह्दी मन् हु-व काज़िबुन् कफ़्फ़ार
    आगाह रहो कि इबादत तो ख़ास अल्लाह ही के लिए है और जिन लोगों ने अल्लाह के सिवा (औरों को अपना) संरक्षक बना रखा है और कहते हैं कि हम तो उनकी वंदना सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि वह हमें अल्लाह से समीप कर देंगें। इसमें शक नहीं कि जिस बात में ये लोग झगड़ते हैं (क़यामत के दिन) अल्लाह उनके दरम्यिान इसमें फै़सला कर देगा। वास्तव में, अल्लाह उसे मार्ग नहीं दिखाता जो बड़ा झूठा, कृतघ्न हो।
  4. लौ अरादल्लाहु अंय्यत्तख़ि-व-लदल्लस्तफ़ा मिम्मा यख़्लुक़ु मा यशा-उ सुब्हानहू, हुवल्लाहुल्-वाहिदुल् क़ह्हार
    अगर अल्लाह अपनी कोई सन्तान बनाना चाहता तो वह उनमें से चुन लेता जिन्हें वह पैदा कर रहा है। (मगर) वह तो उससे पवित्र है। वह अल्लाह तो अकेला बड़ा ज़बरदस्त है।
  5. ख़-लक़स्समावाति वल्अर्ज़ बिल्हक़्क़ि युकव्विरुल्-लै-ल अ़लन्नहारि व युकव्विरुन्-नहा-र अ़ललू-लैलि व सख़्ख़-रश्-शम्-स वल्क़-म-र, कुल्लुंय्-यज्री लि-अ-जलिम् मुसम्मन्, अला हुवल्-अ़ज़ीज़ुल्-ग़फ़्फ़ार
    उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को सत्य के आधार पर पैदा किया वही रात को दिन पर ऊपर तले लपेटता है। और वही दिन को रात पर तह ब तह लपेटता है और उसी ने सूर्य और चन्द्रमा को अपने बस में कर लिया है कि ये सबके सब अपने (अपने) निर्धारित अवधि तक चलते रहेगें। आगाह रहो कि वही प्रभुत्वशाली, बड़ा क्षमाशील है।
  6. ख़-ल-क़कुम् मिन् नफ्सिंव्वाहि-दतिन् सुम्-म ज-अ़-ल मिन्हा ज़ौ-जहा व अन्ज़-ल लकुम् मिनल्-अन्आ़मि समानि-य-त अज़्वाजिन्, यख़्लुक़ुकुम् फ़ी बुतूनि उम्म- हातिकुम् ख़ल्क़म्-मिम्बअ्दि ख़ल्क़िन् फ़ी ज़ुलुमातिन् सलासिन्, ज़ालिकुमुल्लाहु रब्बुकुम् लहुल्- मुल्कु, ला इला-ह इल्ला हु-व फ़-अन्ना तुस्रफ़ून
    उसी ने तुम सबको एक ही शख़्स से पैदा किया फिर उस (की बाक़ी मिट्टी) से उसकी बीबी (हौव्वा) को पैदा किया। और उसी ने तुम्हारे लिए आठ किस्म के चौपायों पैदा किए। वह तुम्हारी माँओं के पेटों में तीन अँधेरों के भीतर तुम्हें एक सृजनरूप के पश्चात अन्य एक सृजनरूप देता चला जाता है। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है उसी की बादशाही है कोई ( सच्चा) वंदनीय नहीं, उसके सिवा। तो तुम लोग कहाँ फिरे जाते हो।
  7. इन् तक्फ़ुरु फ़-इन्नल्ला-ह ग़निय्युन् अ़न्कुम्, व ला यर्ज़ा लिअिबादिहिल्-कुफ़्-र व इन् तश्कुरू यर्-ज़हु लकुम्, व ला तज़िरु वाज़ि-रतुंव्-विज़्-र उख़्रा, सुम्- म इला रब्बिकुम् मर्जिअुकुम् फ़-युनब्बिउकुम् बिमा कुन्तुम् तअ्मलू-न, इन्नहू अ़लीमुम्-बिज़ातिस्सुदूर
    अगर तुम इनकार करोगे तो (याद रखो कि) अल्लाह तुमसे बिल्कुल बेपरवाह है। और अपने भक्तों की कृतघ्नता को पसन्द नहीं करता और अगर तुम कृतज्ञता करोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते पसन्द करता है। और (क़यामत में) कोई किसी (के गुनाह) का बोझ (अपनी गर्दन पर) नहीं उठाएगा फिर तुमको अपने रब की तरफ लौटना है। तो (दुनिया में) जो कुछ (भला बुरा) करते थे। वह तुम्हें बता देगा। वह यक़ीनन दिलों के राज़ (तक) से खू़ब वाकि़फ है।
  8. व इज़ा मस्सल्-इन्सा-न ज़ुर्रुन् दआ़ रब्बहू मुनीबन् इलैहि सुम्-म इज़ा ख़व्व-लहू निअ्-मतम् मिन्हु नसि-य मा का-न यद्अू इलैहि मिन् क़ब्लु व ज-अ़-ल लिल्लाहि अन्दादल् लियुज़िल्-ल अ़न् सबीलिही, क़ुल् त-मत्तअ् बिकुफ़्रि-क क़लीलन् इन्न-क मिन् अस्हाबिन्नार
    और आदमी (की हालत तो ये है कि) जब उसको कोई तकलीफ पहुँचती है तो उसी की तरफ  ध्यानमग्न होकर अपने पालनहार से दुआ करता है (मगर) फिर जब अल्लाह अपनी तरफ से उसे कोई सुख देता है तो जिस काम के लिए पहले उससे दुआ करता था उसे भुला देता है। और बल्कि अल्लाह का शरीक बनाने लगता है ताकि उसकी राह से गुमराह कर दे। (ऐ रसूल! ऐसे शख़्स से) कह दो कि थोड़े दिनों और अपने कुफ्र (की हालत) में चैन कर लो।
  9. अम्मन् हु-व क़ानितुन् आना-अल्लैलि साजिदंव्-व क़ाइमंय्यहू-ज़रुल्-आख़िर-त व यर्जू रह्म-त रब्बिही, क़ुल् हल् यस्तविल्-लज़ी-न-यलमू-न वल्लजी-न ला यअ्लमू-न, इन्नमा य-तज़क्करु उलुल्-अल्बाब
    (आखि़र) तू यक़ीनी जहन्नुमियों में होगा क्या जो शख़्स रात के अवक़ात में सजदा करके और खड़े-खड़े (अल्लाह की) इबादत करता हो। और परलोक से डरता हो अपने अल्लाह की दया का उम्मीदवार हो (नाशुक्रे) काफिर के बराबर हो सकता है। (ऐ रसूल!) तुम पूछो तो कि भला कहीं जानने वाले और न जानने वाले लोग बराबर हो सकते हैं (मगर) शिक्षा तो बस अक़्लमन्द ही लोग मानते हैं।
  10. क़ुल् या अिबादिल्लज़ी-न आमनुत्तक़ू रब्बकुम्, लिल्लज़ी-न अह्सनू फ़ी हाज़िहिद्-दुन्या ह-स-नतुन्, व अर्जुल्लाहि वासि-अ़तुन्, इन्नमा युवफ़्फ़स्- साबिरू-न अज्रहुम् बिग़ैरि हिसाब
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ मेरे ईमानदार भक्तों अपने पालनहार (ही) से डरते रहो (क्योंकि) जिन लोगों ने इस दुनिया में नेकी की उन्हीं के लिए (परलोक में) भलाई है। और अल्लाह की ज़मीन तो विस्तृत है (जहाँ इबादत न कर सको उसे छोड़ दो) सब्र करने वालों ही की तो उनका भरपूर बेहिसाब बदला दिया जाएगा।
  11. क़ुल् इन्नी उमिर्तु अन् अअ्बुदल्ला-ह मुख़्लिसल्-लहुद्दीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मुझे तो ये आदेश दिया गया है कि मैं इबादत को उसके लिए ख़ास करके अल्लाह ही की वंदना करो।
  12. व उमिर्तु लि-अन् अकू-न अव्वलल्-मुस्लिमीन
    और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहले आज्ञाकारी हो जाऊँ।
  13. क़ुल् इन्नी अख़ाफ़ु इन् अ़सैतु रब्बी अ़ज़ा-ब यौमिन् अ़ज़ीम
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि अगर मैं अपने रब की अवज्ञा  करूँ तो मैं एक बड़ी (सख़्त) दिन (क़यामत) की यातना से डरता हूँ।
  14. कुलिल्ला-ह अअ्बुदु मुख़्लिसल्-लहू दीनी
    कहो, “मैं तो अल्लाह ही की बन्दगी करता हूँ, अपने धर्म को उसी के लिए विशुद्ध करते हुए।
  15. फ़अ्बुदू मा शिअ्तुम् मिन् दूनिही, क़ुल् इन्नल्-ख़ासिरीनल्लज़ी-न ख़ासिरू अन्फ़ु-सहुम् व अह्लीहिम् यौमल्- क़ियामति, अला ज़ालि क हुवल् ख़ुस्रानुल्-मुबीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि फिल हक़ीक़त घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने अपना और अपने लड़के वालों का क़यामत के दिन घाटे में डाल दिया। जान रखो, यही खुला घाटा है।
  16. लहुम् मिन् फ़ौक़िहिम् ज़ु-ललुम्-मिनन्नारि व मिन् तह्तिहिम् ज़ु-ललुन्, ज़ालि-क युख़व्विफ़ुल्लाहु बिही अिबादहू, या अिबादि फ़त्तक़ून
    उनके लिए उनके ऊपर से भी आग की छतरियाँ होंगी और उनके नीचे से भी छतरियाँ होंगी। यही वह चीज़ है, जिससे अल्लाह अपने बन्दों को डराता है, तो ऐ मेरे बन्दों मुझी से डरते रहो।
  17. वल्लज़ीनज्-त-नबुत्ताग़ू-त अंय्यअ्बुदूहा व अनाबू इलल्लाहि लहुमुल्- बुशरा फ़-बश्शिर् अिबाद
    और जो लोग ताग़ूत(अल्लाह के अतिरिक्त मिथ्या पूज्यों से) से उनके पूजने से बचे रहे। अतः, आप शुभ सूचना सुना दें मेरे भक्तों को।
  18. अल्लज़ी-न यस्तमिअूनल्-क़ौ-ल फ़-यत्तबिअू न अह्स-नहू, उलाइ-कल्लज़ी-न हदाहुमुल्लाहु व उलाइ-क हुम् उलुल्-अल्बाब
    तो (ऐ रसूल!) तुम मेरे उन बन्दों को खु़शख़बरी दे दो जो बात को जी लगाकर सुनते हैं और फिर उसमें से अच्छी बात पर अमल करते हैं। यही वह लोग हैं जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया है और यही लोग अक़्लमन्द हैं।
  19. अ-फ़-मन् हक्-क़ अ़लैहि कलि-मतुल्- अ़ज़ाबि, अ-फ़ अन्-त तुन्क़िज़ु मन् फ़िन्नार
    तो (ऐ रसूल!) भला जिस शख़्स पर अज़ाब का वायदा पूरा हो चुका हो, क्या आप निकाल सकेंगे उसे, जो नरक में हैं?
  20. लाकिनिल्लज़ीनत्तक़ौ रब्बहुम् लहुम् ग़ु-रफ़ुम् – मिन् फ़ौक़िहा ग़ु-रफ़ुम् – मब्निय्यतुन् तज्री मिन् तह्तिहल्-अन्हारु, वअ्दल्लाहि, ला युख़्लिफ़ुल्लाहुल- मीआ़द
    जो आग में (पड़ा) हो मगर जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे उन्हीं के लिए उच्च भवन हैं, जिनके ऊपर भी निर्मित कक्ष होंगे। जिनके नीचे नहरें जारी हैं। ये अल्लाह का वायदा है। अल्लाह अपने वादे का उल्लंघन नहीं करता।
  21. अलम् त-र अन्नल्ला-ह अन्ज़-ल मिनस्समा-इ मा-अन् फ़-स-ल-कहू यनाबी-अ़ फ़िल्अर्ज़ि सुम्- म युख़्-रिजु बिही ज़र्अम्-मुख़्तलिफ़न् अल्वानुहू सुम्-म यहीजु फ़-तराहु मुस्फ़र्रन् सुम्-म यज्-अ़लुहू हुतामन्, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लज़िक्रा लि-उलिल्-अल्बाब
    क्या तुमने इस पर ग़ौर नहीं किया कि अल्लाह ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर धरती में उसके स्रोत प्रवाहित कर दिए। फिर उसके ज़रिए से विभिन्न रंग (के गल्ले) की खेती उगाता है फिर (पकने के बाद) सूख जाती है तो तुम को वह पीली दिखायी देती है। फिर अल्लाह उसे चूर-चूर भूसा कर देता है। निश्चय इसमें बड़ी शिक्षा है अक़्लमन्दों के लिए।
  22. अ-फ़ मन् श-रहल्लाहु सद्- रहू लिल्इस्लामि फ़हु-व अ़ला नूरिम्-मिर्रब्बिही, फ़-वैलुल्-लिल्क़ासि-यति क़ुलूबुहुम् मिन् ज़िक्रिल्लाहि, उलाइ-क फ़ी ज़लालिम्-मुबीन
    तो क्या वह शख़्स जिस के सीने को अल्लाह ने (क़ुबूल) इस्लाम के लिए खोल दिया। तो वह अपने परवरदिगार (की हिदायत) की रौशनी पर (चलता) है मगर गुमराहों के बराबर हो सकता है। अफसोस तो उन लोगों पर है जिनके दिल अल्लाह की याद से (भूल कर) कठोर हो गए हैं।
  23. अल्लाहु नज़्ज़-ल अह्स-नल्-हदीसि किताबम्-मु-तशाबिहम्-मसानि-य तक़्शअिर्रु मिन्हु जुलूदुल्लज़ी – न यख़्शौ-न रब्बहुम् सुम्-म तलीनु जुलूदुहुम् व क़ुलूबुहुम् इला ज़िक्रिल्लाहि, ज़ालि-क हुदल्लाहि यह्दी बिही मंय्यशा-उ, व मंय्युज़्लिलिल्लाहु फ़मा लहू मिन् हाद
    ये लोग खुली गुमराही में (पड़े) हैं अल्लाह ने बहुत ही अच्छा कलाम (यानी ये) किताब नाजि़ल फरमाई (जिसकी आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती हैं। और (एक बात कई-कई बार) दोहराई गयी है उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जो अपने रब से डरते हैं फिर उनके जिस्म नरम हो जाते हैं। और उनके दिल नर्म होकर अल्लाह की याद की ओर झुक जाते हैं। ये अल्लाह की मार्गदर्शन है इसी से जिसको चाहता है सीधे मार्ग पर ले आता है। और अल्लाह जिसको कुपथ में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं है।
  24. अ-फ़ मंय्-यत्तक़ी बिवज्हिही सूअल्-अ़ज़ाबि यौमल्- क़ियामति, व क़ी-ल लिज़्ज़ालिमी न ज़ूक़ू मा कुन्तुम् तक्सिबून
    तो क्या जो शख़्स क़यामत के दिन अपनी रक्षा करेगा अपने मुख से, बुरी यातना से, प्रलय के दिन? (इस लिये कि उस के हाथ पीछे बंधे होंगे।) और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनिया में) जैसा कुछ करते थे अब उसके मज़े चखो।
  25. कज़्ज़बल्-लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् फ़-अताहुमुल्-अ़ज़ाबु मिन् हैसु ला यश्अु‍रून
    जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया। तो उन पर यातना इस तरह आ पहुँचा कि उन्हें अनुमान (भी) न था।

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