39 सूरह अज़ जुमर हिंदी में पेज 3

सूरह अज़ जुमर हिंदी में | Surat Az Zumar in Hindi

  1. फ़-असा-बहुम् सय्यिआतु मा क-सबू, वल्लज़ी-न ज़-लमू मिन् हाउला-इ सयुसीबुहुम् सय्यिआतु मा क-सबू व मा हुम् बिमुअ्जिज़ीन
    फिर जो कुछ उन्होंने कमाया, उसकी बुराइयाँ उनपर आ पड़ीं और इनमें से भी जिन लोगों ने ज़ुल्म किया, उनपर भी जो कुछ उन्होंने कमाया उसकी बुराइयाँ जल्द ही आ पड़ेंगी। और वे क़ाबू से बाहर निकलनेवाले नहीं।
  2. अ-व लम् यअ्लम् अन्नल्ला-ह यब्सुतुर्रिज़्- क़ लिमंय्यशा – उ व यक़्दिरु, इन्-न फ़ी ज़ालि-क ल-आयातिल् लिकौमिंय्युअ्मिनून
    क्या उन लोगों को इतनी बात भी मालूम नहीं कि अल्लाह ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी फैलाता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग करता है। इसमें शक नहीं कि क्या इसमें इमानदार लोगों के (कुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं।
  3. क़ुल् या अिबादि-यल्लज़ी-न अस्-रफ़ू अ़ला अन्फुसिहिम्’ ला तक़्नतू मिर्रह्मतिल्लाहि, इन्नल्ला-ह यग़्फ़िरुज़्-ज़ुनू-ब जमीअ़न्, इन्नहू हुवल्-ग़फ़ूरुर्रहीम
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि ऐ मेरे (ईमानदार) बन्दों जिन्होने (गुनाह करके) अपनी जानों पर अत्याचार किये हैं तुम लोग अल्लाह की दया से निराश न होना। बेशक अल्लाह (तुम्हारे) कुल गुनाहों को क्षमा देगा वह बेशक बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है।
  4. व अनीबू इला रब्बिकुम् व अस्लिमू लहू मिन् क़ब्लि अंय्यअ्ति-यकुमुल्-अ़ज़ाबु सुम्-म ला तुन्सरून
    और अपने परवरदिगार की तरफ झुक पड़ो और उसी के आज्ञाकारी बन जाओ, इससे पूर्व कि तुमपर यातना आ जाये, फिर तुम्हारी सहायता न की जाये।
  5. वत्तबिअू अह्स-न मा उन्ज़ि-ल इलैकुम् मिर्रब्बिकुम् मिन् क़ब्लि अंय्यअ्ति-यकुमुल्-अ़ज़ाबु बग़्-ततंव्-व अन्तुम् ला तश्अुरून
    और जो जो अच्छी बातें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर अवतरित हुई हैं उन पर चलो (मगर), इससे पूर्व कि आ पड़े तुमपर यातना और तुम्हें ज्ञान न हो।
  6. अन् तक़ू-ल नफ़्सुंय्या-हस्-रता अ़ला मा फ़र्रत्तु फ़ी जम्बिल्लाहि व इन् कुन्तु ल- मिनस्साख़िरीन
    कहीं ऐसा न हो कि कोई व्यक्ति कहने लगे, “हाय अफ़सोस उस पर! जो कोताही अल्लाह के हक़ में मैंने की। और मैं तो परिहास करनेवालों में ही सम्मिलित रहा।”
  7. औ तक़ू-ल लौ अन्नल्ला-ह हदानी लकुन्तु मिनल्-मुत्तक़ीन
    या ये कहने लगे कि अगर अल्लाह मुझे मार्ग दिखाता तो मैं ज़रूर डर रखनेवालों में से होता।
  8. औ तक़ू-ल ही-न तरल्-अ़ज़ा-ब लौ अन्-न ली कर्र-तन् फ़- अकू-न मिनल-मुह्सिनीन
    या जब अज़ाब को (आते) देखें तो कहने लगे कि काश मुझे (दुनिया में) फिर दोबारा जाना मिले तो मैं अवश्य सदाचारियों में से हो जाऊँगा।
  9. बला क़द् जाअत्-क आयाती फ़-कज़्ज़ब्-त बिहा वस्तक्बर्-त व कुन्-त मिनल्-काफ़िरीन
    उस वक़्त अल्लाह कहेगा (हाँ) हाँ तेरे पास मेरी आयतें पहुँची तो तूने उन्हें झुठलाया और अभिमान कर बैठा और तू भी इनकार करनेवालों में से था (अब तेरी एक न सुनी जाएगी)।
  10. व यौमल्-क़ियामति तरल्लज़ी-न क-ज़बू अ़लल्लाहि वुजूहुहुम् मुस्वद्द-तुन्, अलै-स फ़ी जहन्न-म मस्वल्-लिल्मु – तकब्बिरीन
    और जिन लोगों ने अल्लाह पर झूठे बोहतान बाँधे। तुम क़यामत के दिन देखोगे उनके चेहरे सियाह होंगें क्या अभिमान करने वालों का ठिकाना नरक में नहीं है (ज़रूर है)।
  11. व युनज्जिल्लाहुल्-लज़ीनत्तक़ौ बि-मफ़ा-ज़तिहिम् ला यमस्सुहुमुस्सू-उ व ला हुम् यह्ज़नून
    और जो लोग आज्ञाकारी हैं अल्लाह उन्हें उनकी कामयाबी (और सआदत) के सबब बचा लेगा कि उन्हें दुःख छुएगा भी नहीं और न यह लोग (किसी तरह) उदासीन होंगे।
  12. अल्लाहु ख़ालिक़ु क़ुल्लि शैइंव्-व हु-व अ़ला कुल्लि शैइंव् – वकील
    अल्लाह ही हर चीज़ का जानने वाला है और वही हर चीज़ का निगेहबान है।
  13. लहू मक़ालीदुस्- समावाति वल्अर्ज़ि, वल्लज़ी-न क-फ़रू बि-आयातिल्लाहि उलाइ-क हुमुल्-ख़ासिरून
    सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास है तथा जिन्होंने नकार दिया अल्लाह की आयतों को, वही क्षति में रहेंगे।
  14. क़ुल् अ-फ़ ग़ैरल्लाहि तअ्मुरून्नी अअ्बुदु अय्युहल्-जाहिलून
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि हे अज्ञानो! भला तुम मुझसे ये कहते हो कि मैं अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की वंदना करूँ।
  15. व ल-क़द् ऊहि-य इलै-क व इलल्लज़ी-न मिन् क़ब्लि-क ल-इन् अश्रक्-त ल-यहू-बतनू-न अ़-मलु-क व ल-तकूनन्-न मिनल्- ख़ासिरीन
    और (ऐ रसूल!) तुम्हारी तरफ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ जो तुमसे पहले हो चुके हैं यक़ीनन ये वह़्यी  भेजी जा की है कि अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे कर्म व्यर्थ हो जाएँगे। और तुम तो ज़रूर घाटे में आ जाओगे।
  16. बलिल्ला-ह फ़अ्बुद् व कुम् मिनश्-शाकिरीन
    बल्कि तुम अल्लाह ही कि इबादत करो और तथा कृज्ञयों में रहो।
  17. व मा क़-दरुल्ला-ह हक़्-क़ क़द्रिही वल्अर्ज़ु जमीअ़न् क़ब्-ज़तुहू यौमल्-क़ियामति वस्समावातु मत्विय्यातुम् बि-यमीनिही, सुब्हानहू व लआ़ला अ़म्मा युश्रिकून
    और उन लोगों ने अल्लाह का जैसा सम्मान करना चाहिए थी उसका (कुछ भी) सम्मान न किया हालाँकि क़यामत के दिन सारी ज़मीन उसकी मुट्ठी में होगी और सारे आसमान (जैसे) उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए हैं। जिसे ये लोग उसका शरीक बनाते हैं वह उससे  महान और उच्च है।
  18. व नुफ़ि-ख़ फ़िस्सूरि फ़-सअि-क़ मन् फ़िस्समावाति व मन् फिल्अर्ज़ि इल्ला मन् शा-अल्लाहु, सुम्-म नुफ़ि-ख़ फ़ीहि उख़्रा फ़-इज़ा हुम् कियामुंय् – यन्ज़ुरून
    और जब (पहली बार) सूर फूंका जाएगा तो जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं (मौत से) बेहोश होकर गिर पड़ेंगें)। मगर (हाँ) जिस को अल्लाह चाहे वह अलबत्ता बच जाएगा) फिर जब दोबारा सूर फूँका जाएगा तो फौरन सब के सब खड़े हो कर देखने लगेंगें।
  19. व अश्र-क़तिल्-अर्जु बिनूरि रब्बिहा व वुज़िअल्-किताबु व जी-अ बिन्नबिय्यी-न वश्शु-हदा-इ व क़ुज़ि-य बैनहुम् बिल्हक़्क़ि व हुम् ला युज़्लमून
    और ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगाने लगेगी और (कर्म लेख की) किताब (लोगों के सामने) रख दी जाएगी। और पैग़म्बर और गवाह ला हाजिर किए जाएँगे और उनमें इन्साफ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर (ज़रा सा भी) अत्याचार नहीं किया जाएगा।
  20. व वुफ़्फ़ि-यत् कुल्लु नफ़्सिम्-मा अ़मिलत् व हु-व अअ्लमु बिमा यफ़्अ़लून
    और जिस शख्स ने जैसा किया हो उसे उसका पूरा पूरा बदला मिल जाएगा, और जो कुछ ये लोग करते हैं वह उससे भली-भाँति जानने वाला है।
  21. व सीक़ल्लज़ी-न क-फ़रू इला जहन्न म ज़ु-मरन्, हत्ता इज़ा जाऊहा फ़ुतिहत् अब्वाबुहा व क़ा-ल लहुम् ख़-ज़-नतुहा अलम् यअ्तिकुम् रुसुलुम्-मिन्कुम् यत्लू-न अ़लैकुम् आयाति रब्बिकुम् व युन्ज़िरू – नकुम् लिक़ा-अ यौमिकुम् हाज़ा, क़ालू बला व लाकिन् हक़्क़त् कलि-मतुल्-अ़ज़ाबि अ़लल्- काफ़िरीन
    और जिन लोगों ने इनकार किया उनके झुण्ड के झुण्ड नरक की तरफ हॅकाए जाएँगे और यहाँ तक की जब नरक के पास पहुँचेगें तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएगें। और उसके रक्षक उनसे पूछेंगे कि क्या तुम लोगों के पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुमको तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते और तुमको इस रोज़ (बद) के पेश आने से डराते थे। वह लोग जवाब देगें कि हाँ (आए तो थे) मगर (हमने न माना) और यातना का हुक्म काफिरों के बारे में पूरा हो कर रहेगा।
  22. क़ीलद्ख़ुलू अब्वा-ब जहन्न-म ख़ालिदी-न फ़ीहा फ़-बिअ्-स मस्वल्-मु-तकब्बिरीन
    (तब उनसे) कहा जाएगा कि नरक के दरवाज़ों में प्रवेश कर जाओ और हमेशा इसी में रहो। तो घमंड करने वाले का (भी) क्या बुरा ठिकाना है।
  23. व सीक़ल्लज़ीनत्तक़ौ रब्बहुम् इलल्-जन्नति ज़ु-मरन्, हत्ता इज़ा जाऊहा व फ़ुतिहत् अब्वाबुहा व क़ा-ल लहुम् ख़-ज़ – नतुहा सलामुन् अ़लैकुम् तिब्तुम् फ़द्खुलूहा ख़ालिदीन
    और जो लोग अपने पालनहार से डरते थे वह झुण्ड बनाकर स्वर्ग की तरफ़ बुलाए जाएगें यहाँ तक कि जब उसके पास पहुँचेगें और स्वर्ग के दरवाज़े खोल दिये जाएँगें और उसके रक्षक उन से कहेंगें सलाम अलै कुम- तुम प्रसन्न रहो, तुम स्वर्ग में हमेशा के लिए दाखिल हो जाओ।
  24. व क़ालुल्-हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी स-द-क़ना वअ्दहू व और- सनल्-अर्-ज़ न-तबव्व-उ मिनल्-जन्नति हैसु नशा-उ फ़निअ्-म अज् रुल्-आ़मिलीन
    और ये लोग कहेंगें अल्लाह का शुक्र जिसने अपना वायदा हमसे सच्चा कर दिखाया और हमें (जन्नत की) धरती का मालिक बनाया कि हम बहिश्त में जहाँ चाहें रहें तो नेक चलन वालों की भी क्या ख़ूब प्रतिफल है।
  25. व तरल्-मलाइ-क-त हाफ़्फ़ी-न मिन् हौलिल्-अ़र्शि युसब्बिहू-न बि-हम्दि रब्बिहिम् व क़ुज़ि-य बैनहुम् बिल्हक़्क़ि व क़ीलल्-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल्-आ़लमीन
    और (उस दिन) फरिश्तों को देखोगे कि अर्श के गिर्द घेरे हुए डटे होंगे और अपने रब की तारीफ की (गुणगान) कर रहे होंगे और लोगों के दरम्यिान ठीक फैसला कर दिया जाएगा तथा कह दिया जायेगा कि सब प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के पालनहार के लिए है।

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