40 सूरह अल मोमिन(अल-गाफिर) हिंदी में पेज 4

सूरह अल मोमिन(सूरह अल-गाफिर) हिंदी में | Surah Al-Momin(Surah Ghafir) in Hindi

  1. हुवल्लज़ी ख़-ल-क़कुम् मिन् तुराबिन् सुम्- म मिन् नुत्फ़तिन् सुम्-म मिन् अ़-ल-क़तिन् सुम्-म युख़िरजुकुम् तिफ़्लन् सुम्-म लितब्लुग़ू अशुद्-दकुम् सुम्-म लि-तकूनू शुयूख़न् व मिन्कुम् मंय्यु-तवफ़्फ़ा मिन् क़ब्लु व लि- तब्लुग़ू अ- जलम् – मुसम्मंव्-व लअ़ल्लकुम् तअ्क़िलून
    वही वह अल्लाह है जिसने तुमको पहले (पहल) मिटटी से पैदा किया फिर नुत्फे से, फिर जमे हुए ख़ून फिर तुमको बच्चा बनाकर (माँ के पेट) से निकलता है (ताकि बढ़ों) फिर (जि़न्दा रखता है) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो। फिर (और जि़न्दा रखता है ताकि तुम बूढ़े हो जाओ और तुममें से कोई ऐसा भी है जो (इससे) पहले मर जाता है ग़रज़ (तुमको उस वक़्त तक जि़न्दा रखता है) की तुम (मौत के) मुकर्रर वक़्त तक पहुँच जाओ।
  2. हुवल्लज़ी युह्यी व युमीतु फ़-इज़ा क़ज़ा अम्ररन् फ़-इन्नमा यफ़लु लहू कुन् फ़-यकून
    और ताकि तुम (उसकी क़ुदरत को समझो) वह वही (अल्लाह) है जो जिलाता और मारता है, फिर जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उससे कह देता है कि ‘हो जा’ तो वह फ़ौरन हो जाता है।
  3. अलम् त-र इलल्लज़ी-न युजादिलू-न फ़ी आयातिल्लाहि, अन्ना युस्रफ़ून
    (ऐ रसूल!) क्या तुमने उन लोगों (की हालत) पर ग़ौर नहीं किया जो अल्लाह की आयतों में झगड़े निकाला करते हैं।
  4. अल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिल्किताबि व बिमा अर्सल्ना बिही रुसु-लना, फ़सौ-फ़ यअ्लमून
    ये कहाँ भटके चले जा रहे हैं, जिन लोगों ने किताबे (अल्लाह) और उन बातों को जो हमने पैग़म्बरों को देकर भेजा था झुठलाया तो बहुत जल्द उसका नतीजा उन्हें मालूम हो जाएगा।
  5. इज़िल्-अग़्लालु फ़ी अअ्नाक़िहिम् वस्सलासिलु युस्हबून
    जब (भारी भारी) तौक़ और ज़ंजीरें उनकी गर्दनों में होंगी (और पहले) खौलते हुए पानी में घसीटे जाएँगे।
  6. फ़िल्हमीमि सुम्-म फ़िन्नारि युस्जरून
    फिर (जहन्नुम की) आग में झोंक दिए जाएँगे।
  7. सुम्-म क़ी-ल लहुम् ऐ-न मा कुन्तुम् तुश्रिकून
    फिर उनसे पूछा जाएगा कि अल्लाह के सिवा जिनको (उसका) शरीक बनाते थे।
  8. मिन् दूनिल्लाहि, क़ालू ज़ल्लू अ़न्ना बल्-लम् नकुन्- नद्अू मिन् क़ब्लु शैअन्, कज़ालि-क युज़िल्लुल्लाहुल्-काफ़िरीन
    (इस वक़्त) कहाँ हैं वह कहेंगे अब तो वह हमसे जाते रहे बल्कि (सच यूँ है कि) हम तो पहले ही से (अल्लाह के सिवा) किसी चीज़ की परसतिश न करते थे यूँ अल्लाह काफ़िरों को बौखला देगा।
  9. ज़ालिकुम् बिमा कुन्तुम् तफ़्रहू-न फ़िल्अर्ज़ि बिग़ैरिल्-हक़्क़ि व बिमा कुन्तुम् तम्रहून
    (कि कुछ समझ में न आएगा) ये उसकी सज़ा है कि तुम दुनिया में नाहक (बात पर) निहाल थे और इसकी सज़ा है कि तुम इतराया करते थे।
  10. उद्ख़ुलू अब्वा-ब जहन्न-म ख़ालिदी-न फ़ीहा फ़बिअ्-स मस्वल्- मु-तकब्बिरीन
    अब जहन्नुम के दरवाज़े में दाखि़ल हो जाओ (और) हमेशा उसी में (पड़े) रहो, ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का भी (क्या) बुरा ठिकाना है।
  11. फ़स्बिर् इन्-न वअ्दल्लाहि हक़्क़ुन् फ़-इम्मा नुरि-यन्न-क बअ्ज़ल्लज़ी नअिदुहुम् औ न तवफ़्फ़-यन्न-क फ़-इलैना युर्जअून
    तो (ऐ रसूल!) तुम सब्र करो अल्लाह का वायदा यक़ीनी सच्चा है तो जिस (अज़ाब) की हम उन्हें धमकी देते हैं अगर हम तुमको उसमें कुछ दिखा दें या तुम ही को (इसके क़ब्ल) दुनिया से उठा लें तो (आखि़र फिर) उनको हमारी तरफ़ लौट कर आना है।
  12. व ल-क़द् अर्सल्ना रुसुलम् – मिन् क़ब्लि-क मिन्हुम् मन् क़सस्ना अ़लै-क व मिन्हुम् मल्लम् नक़्सुस् अ़लै-क, व मा का-न लि- रसूलिन् अंय्यअ्ति-य बिआ-यतिन् इल्ला बि-इज़्निल्लाहि फ़-इज़ा जा- अ अम्रुल्लाहि क़ुज़ि-य बिल्-हक़्क़ि व ख़सि-र हुनालिकल्- मुब्तिलून
    और तुमसे पहले भी हमने बहुत से पैग़म्बर भेजे उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके हालात हमने तुमसे बयान कर दिए, और कुछ ऐसे हैं जिनके हालात तुमसे नहीं दोहराए और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि अल्लाह के ऐख़्तेयार दिए बग़ैर कोई मौजिज़ा दिखा सकें। फिर जब अल्लाह का हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा तो ठीक ठीक फैसला कर दिया गया और अहले बातिल ही इस घाटे में रहे।
  13. अल्लाहुल्लज़ी ज-अ़-ल लकुमुल्- अन्आ़-म लि-तर्कबू मिन्हा व मिन्हा तअ्कुलून
    अल्लाह ही तो वह है जिसने तुम्हारे लिए चारपाए पैदा किए ताकि तुम उनमें से किसी पर सवार होते हो और किसी को खाते हो।
  14. व लकुम् फ़ीहा मनाफ़िअु व लि-तब्लुग़ू अ़लैहा हा-जतन् फ़ी सुदूरिकुम् व अ़लैहा व अ़लल्-फ़ुल्कि तुह्मलून
    और तुम्हारे लिए उनमें (और भी) फायदे हैं और ताकि तुम उन पर (चढ़ कर) अपनी दिली मक़सद तक पहुँचो और उन पर और (नीज़) कश्तियों पर सवार फिरते हो।
  15. व युरीकुम् आयातिही फ़-अय्-य आयातिल्लाहि तुन्किरून
    और वह तुमको अपनी (कुदरत की) निशानियाँ दिखाता है तो तुम अल्लाह की किन किन निशानियों को न मानोगे।
  16. अ-फ़ लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-यन्ज़ुरू कै-फ़ का-न आ़क़ि बतुल्लज़ी – न मिन् क़ब्लिहिम्, कानू अक्स-र मिन्हुम् व अशद्-द क़ुव्वतंव् व आसारन् फ़िल्अर्ज़ि फ़मा अ़ग्ना अ़न्हुम् मा कानू यक्सिबून
    तो क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं, तो देखते कि जो लोग इनसे पहले थे उनका क्या अंजाम हुआ, जो उनसे (तादाद में) कहीं ज़्यादा थे और क़ूवत और ज़मीन पर (अपनी) निशानियाँ (यादगारें) छोड़ने में भी कहीं बढ़ चढ़ कर थे तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया था उनके कुछ भी काम न आया।
  17. फ़-लम्मा जा-अत्हुम् रुसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति फ़रिहू बिमा अिन्दहुम् मिनल्-अिल्मि व हा-क़ बिहिम् मा कानू बिही यस्तह्ज़िऊन
    फिर जब उनके पैग़म्बर उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए तो जो इल्म (अपने ख़्याल में) उनके पास था उस पर नाजि़ल हुए और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाते थे उसी ने उनको चारों तरफ से घेर लिया।
  18. फ़- लम्मा रऔ बअ्-सना क़ालू आमन्ना बिल्लाहि वह्-दहू व क-फर्ना बिमा कुन्ना बिही मुश्रि कीन
    तो जब इन लोगों ने हमारे अज़ाब को देख लिया तो कहने लगे, हम यकता अल्लाह पर ईमान लाए और जिस चीज़ को हम उसका शरीक बनाते थे हम उनको नहीं मानते।
  19. फ़-लम् यकु यन्फ़अुहुम् ईमानुहुम् लम्मा रऔ बअ्-सना, सुन्नतल्लाहिल्लती क़द् ख़-लत् फ़ी अिबादिही व ख़सि-र हुनालिकल्-काफ़िरून
    तो जब उन लोगों ने हमारा (अज़ाब) आते देख लिया तो अब उनका ईमान लाना कुछ भी फायदेमन्द नहीं हो सकता (ये) अल्लाह की आदत (है) जो अपने बन्दों के बारे में (सदा से) चली आती है और काफि़र लोग इस वक़्त घाटे मे रहे

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