सूरह बकरा हिंदी में (पेज 12)​

सूरह बकरा हिंदी में (पेज 12) Surah Al-Baqarah in Hindi

  1. व ला तन्किहुल मुश्रिकाति हत्ता युअ्मिन्-न, व ल-अ-मतुम् मुअ्मि-नतुन् ख़ैरूम्-मिम्-मुश्रि-कतिव् व लौ अअ्-जबत्कुम्, व ला तुन्किहुल मुश्रिकी-न हत्ता युअ्मिनू , व ल-अब्दुम्-मुअ्मिनुन् ख़ैरूम् मिम्-मुश्रिकिंव वलौ अअ्ज-बकुम, उलाइ-क यदअू-न इलन्नारि, वल्लाहु यद्अू इलल्-जन्नति वल्-मग़्फ़िरति बि-इज़्निही, व युबय्यिनु आयातिही लिन्नासि लअल्लहुम् य-तज़क्करून○ *
    और (मुसलमानों!) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है। और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो। और मुशरिक तुम्हे कैसा ही अच्छा क्यो न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है। और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो। और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है। ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं और अल्लाह अपनी इनायत से बहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते।
  2. व यस्अलून-क अनिल-महीज़ि, क़ुल हु-व अ-ज़न्, फअ्तज़िलुन्निसा-अ फ़िल-महीज़ि, वला तक़्रबूहुन्-न हत्ता यत्हुर्-न फ़-इज़ा त-तह्हर् न फ़अ्तूहुन्-न मिन् हैसु अ-म-रकुमुल्लाहु, इन्नल्ला-ह युहिब्बुत्तव्वाबी-न व युहिब्बुल् मु-त-तह्हिरीन
    (ऐ रसूल!) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं तुम उनसे कह दो कि ये गन्दगी और घिन की बीमारी है तो (अय्यामे हैज़) में तुम औरतों से अलग रहो और जब तक वह पाक न हो जाएँ उनके पास न जाओ। फ़िर जब वह पाक हो जाएँ तो जिधर से तुम्हें अल्लाह ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ। बेशक अल्लाह तौबा करने वालो और सुथरे लोगों को पसन्द करता है।
  3. निसाउकुम् हरसुल्लकुम्, फ़अ्तू हर्सकुम् अन्ना शिअ्तुम्, व क़द्दिमू लि-अन्फुसिकुम, वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नकुम् मुलाक़ूहु, व बश्शिरिल्-मुअ्मिनीन
    तुम्हारी बीवियाँ (गोया) तुम्हारी खेती हैं तो तुम्हें अनुमति है कि जैसे चाहो, अपनी खेतियों में जाओ; परन्तु भविष्य के लिए भी सत्कर्म करो तथा अल्लाह से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है और ऐ रसूल! ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो।
  4. व ला तज्अलुल्ला-ह अुर्-ज़तल् लिऐमानिकुम् अन् तबर्रू व तत्तकू व तुस्लिहू बैनन्नासि, वल्लाहु समीअुन अलीम
    और (मुसलमानों) तुम अपनी क़समों (के हीले) से अल्लाह (के नाम) को लोगों के साथ सुलूक करने और अल्लाह से डरने और लोगों में मिलाप कराने के लिए रोक न बनाओ और अल्लाह सबकी सुनता और सब को जानता है।
  5. ला युआख़िजु़कुमुल्लाहु बिल्लग़्वि फ़ी ऐमानिकुम् व लाकिंय्युआख़िज़ुकुम बिमा क-सबत् क़ुलूबुकुम, वल्लाहु ग़फूरून् हलीम
    तुम्हारी निरर्थक शपथों पर जो बेइख्तियार ज़बान से निकल जाए अल्लाह तुम से गिरफ्तार नहीं करने का मगर उन कसमों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ्त करेगा जो तुमने जान कर दिल से खायीं हो और अल्लाह बख्शने वाला सहनशील है।
  6. लिल्लज़ी-न युअ्लू-न मिन्निसा-इहिम् तरब्बुसु अर्-ब-अति अश्हुरिन्, फ़-इन् फाऊ फ़-इन्नल्ला-ह गफूरूर्रहीम
    जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खायें उन के लिए चार महीने की मोहलत है फ़िर अगर (वह अपनी क़सम से उस मुद्दत में बाज़ आए) और उनकी तरफ तवज्जो करें तो बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  7. व इन् अ-ज़मुत्तला-क़ फ़-इन्नल्ला-ह समीअुन् अलीम
    और अगर तलाक़ ही की ठान ले तो (भी) बेशक अल्लाह सबकी सुनता और सब कुछ जानता है।
  8. वल्मुतल्लक़ातु य-तरब्बस्-न बि-अन्फुसिहिन्-न सलास-त कुरूइन्, व ला यहिल्लु लहुन्-न अय्यक्तुम्-न मा ख़-लक़ल्लाहु फ़ी अरहामिहिन्-न इन् कुन्-न युअ्मिन्-न बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि, व बु-लतुहुन्-न अहक़्क़ु बि-रद्दिहिन्-न फ़ी ज़ालि-क इन् अरादू इस्लाहन्, व लहुन्-न मिस्लुल्लज़ी अलैहिन्-न बिल्मअ्-रूफ़ि, व लिर्रिजालि अलैहिन्-न द-र-जतुन्, वल्लाहु अज़ीज़ुन् हकीम
    और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके और अगर वह औरतें अल्लाह और रोजे आख़िरत पर ईमान लायीं हैं तो उनके लिए जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी अल्लाह ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएँ और अगर उन के शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उन के वापस बुला लेने के ज्यादा हक़दार हैं और शरीयत मुवाफिक़ औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है हाँ अलबत्ता मर्दों को (फ़जीलत में) औरतों पर फौक़ियत ज़रुर है और अल्लाह ज़बरदस्त हिक़मत वाला है।
  9. अत्तलाकु मर्रतानि फ़-इम्साकुम् बिमअ्-रूफिन् औ तसरीहुम् बि इह्सानिन्, व ला यहिल्लु लकुम् अन् तअ्ख़ुज़ू मिम्मा आतइतुमूहुन्-न शैअन् इल्ला अंय्यख़ाफ़ा अल्ला युक़ीमा हुदूदल्लाहि, फ़-इन् ख़िफ्तुम् अल्ला युक़ीमा हुदूदल्लाहि, फ़ला जुना-ह अलैहिमा फ़ीमफ्तदत् बिही, तिल-क हुदूदुल्लाहि फ़ला तअ्तदूहा, व मय्य-तअद्-द हुदूदल्लाहि फ़-उलाइ-क हुमुज़्ज़ालिमून
    तलाक़ दो बार है; फिर नियमानुसार स्त्री को रोक लिया जाये या भली-भाँति विदा कर दिया जाये और तुम्हारे लिए ये ह़लाल (वैध) नहीं है कि उन्हें जो कुछ तुमने दिया है, उसमें से कुछ वापिस लो। मगर जब दोनों को इसका ख़ौफ़ हो कि अल्लाह ने जो हदें मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनो मिया बीवी क़ायम न रख सकेंगे फिर अगर तुम्हे (ऐ मुसलमानो!) ये ख़ौफ़ हो कि यह दोनो अल्लाह की मुकर्रर की हुई हदो पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देकर अपना पीछा छुड़ाए (खुला कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है ये अल्लाह की मुक़र्रर की हुई हदें हैं बस उन से आगे न बढ़ो और जो अल्लाह की मुक़र्रर की हुईहदों से आगे बढ़ते हैं वह ही लोग तो ज़ालिम हैं।
  10. फ़-इन् तल्ल-क़हा फ़ला तहिल्लु लहू मिम्-बअ्दु हत्ता तन्कि-ह ज़ौजन् ग़ैरहू, फ़-इन् तल्ल-क़हा फला जुना-ह अलैहिमा अंय्य-तरा जआ इन् ज़न्ना अंय्युक़ीमा हुदूदल्लाहि, व तिल-क हुदूदुल्लाहि युबय्यिनुहा लिक़ौमिंय्यअ्लमून
    फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि अल्लाह हदों को क़ायम रख सकेंगें और ये अल्लाह की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है।
  11. व इज़ा तल्लक़्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज-लहुन्-न फ़-अम्सिकूहुन्-न बिमअ्-रूफ़िन औ सर्रिहूहुन्-न बिमअ्-रूफिंव्-व ला तुम्सिकूहुन्-न ज़िरारल् लितअ्-तदू, व मंय्यफ्अल् ज़ालि-क फ़-क़द् ज़-ल-म नफ्सहू, व ला तत्तख़िजू आयातिल्लाहि हुज़ुवंव-वज़्कुरू निअ्-मतल्लाहि अलैकुम् व मा अन्ज़-ल अलैकुम् मिनल-किताबि वल्हिक्मति यअिज़ुकुम् बिही, वत्तक़ुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह बिकुल्लि शैइन् अलीम○ *
    और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा और अल्लाह के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो और अल्लाह ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है और अल्लाह से डरते रहो और समझ रखो कि अल्लाह हर चीज़ को ज़रुर जानता है।
  12. व इज़ा तल्लक़्तुमुन्निसा-अ फ़-बलग्-न अ-ज लहुन्-न फला तअ् ज़ुलूहुन्-न अंय्यन किह-न अज़्वाजहुन्-न इज़ा तराज़ौ बैनहुम् बिल्मअ्-रूफ़ि, ज़ालि-क यू-अज़ू बिही मन् का-न मिन्कुम् युअ्मिनु बिल्लाहि वल्यौमिल-आख़िरि, ज़ालिकुम् अज़्का लकुम् व अत्हरू, वल्लाहु यअ्लमु व अन्तुम् ला तअ्लमून
    और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह अपनी मुद्दत (इद्दत) पूरी कर लें तो उन्हें अपने शौहरों के साथ निकाह करने से न रोकों जब आपस में दोनों मिया बीवी शरीयत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएँ ये उसी शख्स को नसीहत की जाती है जो तुम में से अल्लाह और रोजे आखेरत पर ईमान ला चुका हो यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात है और उसकी ख़ूबी अल्लाह खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो।
  13. वल-वालिदातु युर ज़िअ्-न औलादहुन्-न हौलइनि कामिलइनि लि-मन् अरा-द अंय्यु तिम्मर्र ज़ा-अ-त, व अलल्-मौलूदि लहू रिज़्क़ुहुन्-न व किस्वतुहुन्-न बिल्मअ्-रूफ़ि, ला तुकल्लफु नफ्सुन् इल्ला वुस्अहा, ला तुज़ार-र वालि-दतुम् बि-व-लदिहा व ला मौलूदुल्लहू बि-व-लदिहा, व अलल्-वारिसि मिस्लु ज़ालि-क, फ़-इन् अरादा फ़िसालन् अन् तराज़िम् मिन्हुमा व तशावुरिन् फला जुना-ह अलैहिमा, व इन् अरत्तुम अन् तस्तऱज़िअू औलादकुम् फ़ला जुना-ह अलैकुम् इज़ा सल्लम्तुम् मा आतैतुम् बिल्मअ्-रूफ़ि, वत्तकुल्ला-ह वअ्लमू अन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर
    और (तलाक़ देने के बाद) जो शख्स अपनी औलाद को पूरी मुद्दत तक दूध पिलवाना चाहे तो उसकी ख़ातिर से माएँ अपनी औलाद को पूरे दो बरस दूध पिलाएँ और जिसका वह लड़का है (बाप) उस पर माओं का खाना कपड़ा दस्तूर के मुताबिक़ लाज़िम है किसी शख्स को ज़हमत नहीं दी जाती मगर उसकी गुन्जाइश भर न माँ का उस के बच्चे की वजह से नुक़सान गवारा किया जाए और न जिस का लड़का है (बाप) उसका (बल्कि दस्तूर के मुताबिक़ दिया जाए) और अगर बाप न हो तो दूध पिलाने का हक़ उसी तरह वारिस पर लाज़िम है फिर अगर दो बरस के क़ब्ल माँ बाप दोनों अपनी मरज़ी और मशवरे से दूध बढ़ाई करना चाहें तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं और अगर तुम अपनी औलाद को (किसी अन्ना से) दूध पिलवाना चाहो तो उस में भी तुम पर कुछ गुनाह नहीं है बशर्ते कि जो तुमने दस्तूर के मुताबिक़ मुक़र्रर किया है उन के हवाले कर दो और अल्लाह से डरते रहो और जान रखो कि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह ज़रुर देखता है।
  14. वल्लज़ी-न यु-तवफ्फ़ौ-न मिन्कुम् व य-ज़रू-न अज़्वाजंय्य-तरब्बस्-न बिअन्फुसिहिन्-न अर्ब-अ-त अश्हुरिवं-व अश्रन्, फ़-इज़ा बलग़्-न अ-ज-लहुन्-न फला जुना-ह अलैकुम् फ़ीमा फ़-अल्-न फ़ी अन्फुसिहिन्-न बिल्मअ्-रूफि, वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न ख़बीर
    और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें) फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उस से ख़बरदार है।
  15. व ला जुना-ह अलैकुम फ़ीमा अर्रज़्तुम् बिही मिन् ख़ित्बतिन्निसा-इ औ अक्नन्तुम् फी अन्फु सिकुम, अलिमल्लाहु अन्नकुम् स-तज़्कुरूनहुन्-न व लाकिल्ला तुवाअिदूहुन्-न सिर्रन् इल्ला अन् तक़ूलू क़ौलम्-मअ् -रूफ़न्, व ला तअ्ज़िमू अुक़्दतन्निकाहि हत्ता यब्लुग़ल-किताबु अ-ज लहू, वअ्लमू अन्नल्ला-ह यअ्लमु मा फ़ी अन्फुसिकुम् फ़ह्-ज़रूहु, वअ्लमू अन्नल्ला-ह ग़फूरून् हलीम○*
    और अगर तुम (उस ख़ौफ से कि शायद कोई दूसरा निकाह कर ले) उन औरतों से इशारतन निकाह की (कैद इद्दा) ख़ास्तगारी (उम्मीदवारी) करो या अपने दिलो में छिपाए रखो तो उसमें भी कुछ तुम पर इल्ज़ाम नहीं हैं (क्योंकि) अल्लाह को मालूम है कि (तुम से सब्र न हो सकेगा और) उन औरतों से निकाह करने का ख्याल आएगा लेकिन चोरी छिपे से निकाह का वायदा न करना मगर ये कि उन से अच्छी बात कह गुज़रों (तो मज़ाएक़ा नहीं) और जब तक मुक़र्रर मियाद गुज़र न जाए निकाह का क़सद (इरादा) भी न करना और समझ रखो कि जो कुछ तुम्हारी दिल में है अल्लाह उस को ज़रुर जानता है तो उस से डरते रहो और (ये भी) जान लो कि अल्लाह बड़ा बख्शने वाला बुर्दबार है।
  16. ला जुना-ह अलैकुम् इन् तल्लक़्तुमुन्निसा-अ मा लम् तमस्सूहुन्-न औ तफ़रिज़ू लहुन्-न फ़री-ज़ तंव-व मत्तिअ़ू हुन्-न, अलल्-मूसिअि क़-दरूहू व अलल्-मुक़्तिरि क़-दरूहू, मताअम् बिल्मअ्-रूफ़ि, हक़्क़न् अलल-मुह्सिनीन
    और अगर तुम ने अपनी बीवियों को हाथ तक न लगाया हो और न महर मुअय्युन किया हो और उसके क़ब्ल ही तुम उनको तलाक़ दे दो (तो इस में भी) तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है हाँ उन औरतों के साथ (दस्तूर के मुताबिक़) मालदार पर अपनी हैसियत के मुआफिक़ और ग़रीब पर अपनी हैसियत के मुवाफिक़ (कपड़े रुपए वग़ैरह से) कुछ सुलूक करना लाज़िम है नेकी करने वालों पर ये भी एक हक़ है।
  17. व इन् तल्लक़्तुमूहुन्-न मिन् क़ब्लि अन् तमस्सूहुन्-न व क़द् फ़रज़्तुम् लहुन्-न फ़री-ज़तन् फ़-निस्फु मा फ़रज़्तुम् इल्ला अंय्यअ्फू-न औ यअ्फुवल्लज़ी बि-यदिही उक़्दतुन्निकाहि, व अन् तअ्फू अक़्रबु लित्तक़् वा, व ला तन्सवुल-फ़ज़-ल बैनकुम, इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर
    और अगर तुम उन औरतों का मेहर तो मुअय्यन कर चुके हो मगर हाथ लगाने के क़ब्ल ही तलाक़ दे दो तो उन औरतों को मेहर मुअय्यन का आधा दे दो मगर ये कि ये औरतें ख़ुद माफ कर दें या उन का वली जिसके हाथ में उनके निकाह का एख्तेयार हो माफ़ कर दे (तब कुछ नही) और अगर तुम ही सारा मेहर बख्श दो तो परहेज़गारी से बहुत ही क़रीब है और आपस की बुर्ज़ुगी तो मत भूलो और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह ज़रुर देख रहा है।
  18. हाफ़िज़ू अलस् स-ल-वाति वस्सलातिल-वुस्ता, व क़ूमू लिल्लाहि क़ानितीन
    और (मुसलमानों!) तुम तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन बीच वाली नमाज़ सुबह या ज़ोहर या अस्र की पाबन्दी करो और ख़ास अल्लाह ही वास्ते नमाज़ में क़ुनूत पढ़ने वाले हो कर खड़े हो फिर अगर तुम ख़ौफ की हालत में हो।
  19. फ़-इन् ख़िफ्तुम् फ़-रिजालन् औ रूक्बानन्, फ़-इज़ा अमिन्तुम् फ़ज़्कुरूल्ला-ह कमा अल्-ल-म-कुम् मा लम् तकूनू तअ्लमून
    और पूरी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पैदल जिस तरह बन पड़े पढ़ लो फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह अल्लाह ने तुम्हें अपने रसूल की मार्फत इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे।
  20. वल्लज़ी-न यु-तवफ्फ़ौ-न मिन्कुम् व य-ज़-रू-न अज़्वाजंव्-वसिय्यतल् लि-अज़्वाजिहिम् मताअन् इलल-हौलि ग़ै-र इख्राजिन्, फ़-इन ख़रज्-न फ़ला जुना-ह अलैकुम् फी मा फ़-अल्-न फ़ी अन्फुसिहिन्-न मिम्-मअ्-रूफ़िन्, वल्लाहु अज़ीज़ुन हकीम
    उसी तरह अल्लाह को याद करो और तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाएँ उन पर अपनी बीबियों के हक़ में साल भर तक के नान व नुफ्के (रोटी कपड़ा) और (घर से) न निकलने की वसीयत करनी (लाज़िम) है फ़िर अगर औरतें ख़ुद निकल खड़ी हो तो जायज़ बातों (निकाह वगैरह) से कुछ अपने हक़ में करे उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नही है और अल्लाह हर शै पर ग़ालिब और हिक़मत वाला है।

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