सूरह बकरा हिंदी में (पेज 6)​

सूरह बकरा हिंदी में (पेज 6) Surah Al-Baqarah in Hindi

  1. व लम्मा जाअहुम् रसूलुम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुसद्दिक़ुल्-लिमा म-अहुम् न-ब-ज़ फरीक़ुम् मिनल्लज़ी-न ऊतुल्-किता-ब, किताबल्लाहि वरा-अ ज़ुहूरिहिम् क-अन्नहुम् ला यअ्लमून
    और जब उनके पास अल्लाह की तरफ से रसूल (मोहम्मद) आया और उस किताब (तौरेत) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करता है तो उन अहले किताब के एक गिरोह ने अल्लाह की पुस्तक को ऐसे पीछे डाल दिया, जैसे वह लोग कुछ जानते ही नहीं और उस मंत्र के पीछे पड़ गए।
  2. वत्त-बअू मा तत्लुश्शयातीनु अ़ला मुल्कि सुलैमा-न, वमा क-फ़-र सुलैमानु व लाकिन्नश्शयाती-न क-फरू युअल्-लि-मूनन्-नासस्-सिह-र, वमा उन्ज़ि-ल अलल् म-ल-कैनि बिबाबि-ल हारू-त व मारू-त, वमा युअल्लिमानि मिन् अ-हदिन् हत्ता यक़ूला इन्नमा नह्नू फ़ित्नतुन् फ़ला तक्फुर, फ़-य-तअल्लमू-न मिन्हुमा मा युफ़र्रिक़ू-न बिही बैनल-मरइ व ज़ौजिही, वमा हुम् बिज़ार्री-न बिही मिन् अ-हदिन इल्ला बि-इज़्निल्लाहि, व य-तअल्लमू-न मा यज़ुर्रूहुम् वला यन्फ़अुहुम, व लक़द् अलिमू ल-मनिश्तराहु मा लहू फ़िल्आख़िरति मिन् ख़लाकिन्, व लबिअ्-स मा शरौ बिही अन्फु-सहुम, लौ कानू यअ्लमून
    जिसको सुलेमान के ज़माने की सलतनत में शैतान जपा करते थे हालाँकि सुलेमान ने कुफ्र नहीं इख़तेयार किया लेकिन शैतानों ने कुफ्र एख़तेयार किया कि वह लोगों को जादू सिखाया करते थे और वह चीजें जो हारूत और मारूत दोनों फ़रिश्तों पर बाइबिल में नाज़िल की गई थी हालाँकि ये दोनों फ़रिश्ते किसी को सिखाते न थे जब तक ये न कह देते थे कि हम दोनों तो फ़क़त (ज़रियाए आज़माइश) है फ़िर तो (इस पर अमल करके) बेईमान न हो जाना उस पर भी उनसे वह (टोटके) सीखते थे जिनकी वजह से मिया बीवी में मन-मुटाव डालते हालाँकि बगैर इज्ने खुदावन्दी वह अपनी इन बातों से किसी को ज़रर नहीं पहँचा सकते थे और ये लोग ऐसी बातें सीखते थे जो खुद उन्हें नुक़सान पहुँचाती थी और कुछ (नफा) पहुँचाती थी बावजूद कि वह यक़ीनन जान चुके थे कि जो शख्स इन (बुराईयों) का ख़रीदार हुआ वह आख़िरत में बेनसीब हैं और बेशुबह (मुआवज़ा) बहुत ही बड़ा है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेचा काश (उसे कुछ) सोचे समझे होते।
  3. व लौ अन्नहुम् आमनू वत्तक़ौ ल-मसू-बतुम् मिन् अिन्दिल्लाहि ख़ैरून्, लौ कानू यअ्लमून○ *
    और अगर वह ईमान लाते और जादू वगैरह से बचकर परहेज़गार बनते तो अल्लाह की दरगाह से जो सवाब मिलता वह उससे कहीं बेहतर होता काश ये लोग (इतना तो) समझते।
  4. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तक़ूलू राअिना व क़ूलुन्ज़ुर्ना वस्मअू, व लिल्काफ़िरी-न अज़ाबुन अलीम
    ऐ ईमानवालों! तुम (रसूल को अपनी तरफ मुतावज्जे करना चाहो तो) रआना (हमारी रिआयत कर) न कहा करो बल्कि उनजुरना (हम पर नज़रे तवज्जो रख) कहा करो और (जी लगाकर) सुनते रहो और काफिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है।
  5. मा यवद्दुल्लज़ी-न क-फरू मिन् अहलिल्-किताबि व लल्मुश्रिकी-न अंय्यु नज़्ज़-ल अलैकुम् मिन् ख़इरिम्-मिर्रब्बिकुम, वल्लाहु यख़्तस्सु बिरहमतिहि मंय्यशा-उ, वल्लाहु ज़ुलफ़ज़्लिल्-अज़ीम
    ऐ रसूल! अहले किताब में से जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया वह और मुशरेकीन ये नहीं चाहते हैं कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से भलाई (वही) नाज़िल की जाए और (उनका तो इसमें कुछ इजारा नहीं) अल्लाह जिसको चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है और अल्लाह बड़ा दानशील है।
  6. मा नन्सख़् मिन् आयतिन् औ नुन्सिहा नअ्ति बिख़ैरिम् मिन्हा औ मिस्लिहा, अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    (ऐ रसूल!) हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही (और) नाज़िल भी कर देते हैं क्या तुम नहीं जानते कि यकीनन अल्लाह जो चाहे, कर सकता है?
  7. अलम् तअ्लम् अन्नल्ला-ह लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, वमा लकुम् मिन् दुनिल्लाहि मिंव्वलिय्यिंव वला नसीर
    क्या तुम नहीं जानते कि आसमान की सलतनत यकीनन ख़ास अल्लाह ही के लिए है और अल्लाह के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है न मददगार।
  8. अम् तुरीदू-न अन् तस्अलू रसूलकुम्
    कमा सुइ-ल मूसा मिन् क़ब्लु, वमंय्-य-तबद्दलिल्-कुफ्-र बिल्ईमानि फ़-क़द् ज़ल-ल सवाअस्सबील

    (मुसलमानों!) क्या तुम चाहते हो कि तुम भी अपने रसूल से वैसै ही (बेढंगे) सवालात करो? जिस तरह साबिक़ (पहले) ज़माने में मूसा से (बेतुके) सवालात किए गए थे। और जिस शख्स ने ईमान के बदले कुफ्र एख़तेयार किया वह तो यक़ीनी सीधे रास्ते से भटक गया।
  9. वद्-द कसीरूम् मिन् अहलिल्-किताबि लौ यरूद्दूनकुम् मिम्-बअ्दि ईमानिकुम् कुफ्फारन्, ह-सदम् मिन् अिन्दि अन्फुसिहिम् मिम्-बअ्दि मा तबय्य-न लहुमुल-हक़्क़ु, फ़अ्फू वस्फ़हू हत्ता यअ्तियल्लाहु बिअम्रिही, इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर○•
    (मुसलमानों!) अहले किताब में से अक्सर लोग अपने दिली हसद की वजह से ये ख्वाहिश रखते हैं कि तुमको ईमान लाने के बाद फिर काफ़िर बना दें जबकि सत्य उनके लिए उजागर हो गया।  उसके बाद भी (ये तमन्ना बाक़ी है) फ़िर तुम माफ करो और दरगुज़र करो। यहाँ तक कि अल्लाह अपना (कोई और) हुक्म भेजे। बेशक अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  10. व अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त, वमा तुक़द्दिमू लिअन्फुसिकुम मिन् ख़ैरिन् तजिदूहु अिन्दल्लाहि, इन्नल्ला-ह बिमा तअ्मलू-न बसीर
    और नमाज़ पढ़ते रहो और ज़कात दिये जाओ और जो कुछ भलाई अपने लिए (अल्लाह के यहाँ) पहले से भेज दोगे उस (के सवाब) को मौजूद पाआगे, जो कुछ तुम करते हो उसे अल्लाह ज़रूर देख रहा है।
  11. व क़ालू लंय्यदख़ुलल् जन्न-त इल्ला मन् का-न हूदन् औ नसारा, तिल-क अमानिय्युहुम, क़ुल हातू बुरहानकुम् इन् कुन्तुम् स्वादिक़ीन
    और (यहूद) कहते हैं कि यहूद (के सिवा) और (नसारा कहते हैं कि) नसारा के सिवा कोई स्वर्ग में जाने ही न पाएगा ये उनके ख्याली पुलाव है। (ऐ रसूल!) तुम उन से कहो कि भला अगर तुम सच्चे हो कि हम ही स्वर्ग में जाएँगे तो अपनी प्रमाण पेश करो।
  12. बला, मन् अस्ल-म वज्हहू लिल्लाहि व हु-व मुह्सिनुन् फ़-लहू अज्रूहू अिन्-द रब्बिही, वला ख़ौफुन अलैहिम व ला हुम् यह्ज़नून्○ *
    अलबत्ता जिस शख्स ने अल्लाह के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला (मौजूद) है और (आखिरत में) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मगीन होगे।
  13. व क़ालतिल यहूदु लैसतिन्नसारा अला शैइवं व क़ालतिन्नसारा लैसतिल यहूदु अला शैइंव् व हुम् यतलूनल्किता-ब, कज़ालि-क क़ालल्लज़ी-न ला यअ्लमू-न मिस्-ल क़ौलिहिम्, फ़ल्लाहु यह्कुमु बैनहुम् यौमल्-क़ियामति फ़ीमा कानू फ़ीहि यख़्तलिफून
    और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे (अल्लाह) पढ़ते रहते हैं। इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह (मुशरेकीन अरब) भी किया करते हैं जो (अल्लाह के एहकाम) कुछ नहीं जानते। तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं (दुनिया में तो तय न होगा) क़यामत के दिन अल्लाह उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा।
  14. व मन् अज़्लमु मिम्मम्-म-न-अ मसाजिदल्लाहि अंय्युज़्क-र फ़ीहस्मुहू व-सआ फी ख़राबिहा, उलाइ-क मा-का-न लहुम् अय्यद्ख़ुलूहा इल्ला ख़ा-इफ़ी-न, लहुम् फ़िद्दुन्या ख़िज़्युंव् व-लहुम् फ़िल् आख़िरति अ़ज़ाबुन अज़ीम
    और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह की मस्जिदों में उसका नाम लिए जाने से (लोगों को) रोके और उन्हें उजाड़ने का प्रयत्न करे, ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आखिरत में बड़ा भारी अज़ाब है।
  15. व लिल्लाहिल् मश्रिक़ु वल्-मग़्रिबु, फ़-अैनमा तुवल्लू फ़-सम्-म वज्हुल्लाहि, इन्नल्ला-ह वासिउन् अलीम
    (तुम्हारे मस्जिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन) अल्लाह ही की है। (क्या) पूरब (क्या) पश्चिम बस जहाँ कहीं क़िब्ले की तरफ रूख़ करो वही अल्लाह का सामना है। बेशक अल्लाह बड़ी गुन्जाइश वाला और खूब वाक़िफ है।
  16. व क़ालुत्-तख़ज़ल्लाहु व लदन, सुब्हानहू, बल-लहू मा फिस्समावाति वल्अर्ज़ि, कुल्लुल्लहू क़ानितून
    और यहूद कहने लगे कि अल्लाह औलाद रखता है हालाँकि वह (इस बखेड़े से) पाक है बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है और सब उसी के फरमाबरदार हैं।
  17. बदीउस्समावाति वल्अर्ज़ि, व इज़ा कज़ा अम्रन् फ़-इन्नमा यक़ूलु लहू कुन् फ़-यकून
    (वही) आसमान व ज़मीन का अविष्कारक है और जब किसी काम का करना ठान लेता है, तो उसके लिए बस ये आदेश देता है कि ”हो जा” फ़िर वह (खुद ब खुद) हो जाता है।
  18. व क़ालल्लज़ी-न ला यअ्लमू-न लौ ला युकल्लिमुनल्लाहु औ तअ्तीना आयतुन्, कज़ालि-क क़ालल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् मिस्-ल क़ौलिहिम्, तशा-बहत् क़ुलू बुहुम, क़द् बय्यन्नल्-आयाति लिक़ौमिंय्यूक़िनून्
    और जो (मुश्रिकिन) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि अल्लाह हमसे (खुद) कलाम क्यों नहीं करता, या हमारे पास (खुद) कोई निशानी क्यों नहीं आती, इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे उन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके।
  19. इन्ना अरसल्ना-क बिल्हक़्क़ि बशीरंव् व-नज़ीरंव् वला तुस्अलु अन् अस्हाबिल जहीम
    (ऐ रसूल!) हमने तुमको दीने हक़ के साथ (स्वर्ग की) खुशख़बरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है और दोज़ख़ियों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा।
  20. व लन् तर्ज़ा अन्कल्-यहूदु व लन्-नसारा हत्ता तत्तबि-अ मिल्ल-तहुम, क़ुल इन्-न हुदल्लाहि हुवल्-हुदा, व-ल-इनित्त-बअ्-त अहवा-अहुम् बअ्दल्लज़ी जाअ-क मिनल-अिल्मि मा ल-क मिनल्लाहि मिव्वलिय्यिंव् वला नसीर
    और (ऐ रसूल!) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो (ऐ रसूल! उनसे) कह दो कि बस अल्लाह ही की हिदायत तो हिदायत है (बाक़ी ढकोसला है) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म (कुरान) आ चुका है उनकी ख्वाहिशों पर चले तो (याद रहे कि फिर) तुमको अल्लाह (के ग़ज़ब) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार।

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