35 सूरह फातिर हिंदी में पेज 2

सूरह फातिर हिंदी में | Surat Fatir in Hindi

  1. इन् अन्-त इल्ला नज़ीर
    तुम तो बस (एक अल्लाह से) डराने वाले हो।
  2. इन्ना अर्सल्ना-क बिल्हक़्क़ि बशीरंव्-व नज़ीरन्, व इम् – मिन् उम्म-तिन् इल्ला ख़ला फ़ीहा नज़ीर
    हम ही ने तुमको यक़ीनन कु़रान के साथ खु़शख़बरी देने वाला और डराने वाला ( पैग़म्बर) बनाकर भेजा और कोई उम्मत (दुनिया में)।
  3. व इंय्युकज़्ज़िबू-क फ़-क़द् क़ज़्ज़बल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् जाअत्हुम् रुसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति व बिज़्ज़ुबुरि व बिल्-किताबिल्-मुनीर
    ऐसी नहीं गुज़री कि उसके पास (हमारा) डराने वाला पैग़म्बर न आया हो और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो कुछ परवाह नहीं करो क्योंकि इनके अगलों ने भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया है (हालाँकि) उनके पास उनके पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिजे़ और सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए थे।
  4. सुम्-म अख़ज़्तुल्लज़ी-न क-फ़रु फ़-कै-फ़ का-न नकीर
    फिर हमने उन लोगों को जो काफि़र हो बैठे ले डाला तो (तुमने देखाकि) मेरा अज़ाब (उन पर) कैसा (सख्त हुआ।
  5. अलम् त-र अन्नल्ला-ह अन्ज़-ल मिनस्समा-इ मा-अन् फ़- अख़्रज्ना बिही स-मरातिम्-मुख्तलिफ़न् अल्वानुहा, व मिनल्-जिबालि जु-ददुम् बीजुंव्-व हुमुरुम् मुख्तलिफ़ुन् अल्वानुहा व ग़राबीबु सूद
    अब क्या तुमने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि यक़ीनन अल्लाह ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर हम (अल्लाह) ने उसके ज़रिए से तरह-तरह की रंगतों के फल पैदा किए और पहाड़ों में क़तआत (टुकड़े रास्ते) हैं जिनके रंग मुख़तलिफ है कुछ तो सफेद (बुर्राक़) और कुछ लाल (लाल) और कुछ बिल्कुल काले सियाह।
  6. व मिनन्नासि वद्दवाब्बि वल्-अन्आ़मि मुख़्तलिफ़ुन् अल्वानुहू कज़ालि-क, इन्नमा यख़्शल्ला-ह मिन् अिबादिहिल्-अु-लमा-उ, इन्नल्ला-ह अ़ज़ीज़ुन् ग़फ़ूर
    और इसी तरह आदमियों और जानवरों और चारपायों की भी रंगते तरह-तरह की हैं उसके बन्दों में अल्लाह का ख़ौफ करने वाले तो बस उलेमा हैं बेशक अल्लाह (सबसे) ग़ालिब और बख़्शने वाला है।
  7. इन्नल्लज़ी-न यत्लू-न किताबल्लाहि व अक़ामुस्सला-त व अन्फ़क़ू मिम्मा रज़क़्नाहुम् सिर्-रंव्-व अ़लानि-यतंय्-यर् जू -न तिजा-रतल् लन् तबूर
    बेशक जो लोग अल्लाह की किताब पढ़ा करते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (अल्लाह की राह में) देते हैं वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं।
  8. लियुवफ़्फ़ि-यहुम् उजू-रहुम् व यज़ी-दहुम् मिन् फ़ज़्लिही, इन्नहू ग़फ़ूरुन् शकूर
    जिसका कभी टाट न उलटेगा ताकि अल्लाह उन्हें उनकी मज़दूरियाँ भरपूर अता करे बल्कि अपने फज़ल (व करम) से उसे कुछ और बढ़ा देगा बेशक वह बड़ा बख़्शने वाला है (और) बड़ा क़द्रदान है।
  9. वल्लज़ी औहैना इलै-क मिनल्-किताबि हुवल्-हक़्क़ु मुसद्दिक़ल्लिमा बै-न यदैहि, इन्नल्ला-ह बिअिबादिही ल-ख़बीरुम्-बसीर
    और हमने जो किताब तुम्हारे पास “वही” के ज़रिए से भेजी वह बिल्कुल ठीक है और जो (किताबें इससे पहले की) उसके सामने (मौजूद) हैं उनकी तसदीक़ भी करती हैं – बेशक अल्लाह अपने बन्दों (के हालात) से खू़ब वाकि़फ है (और) देख रहा है।
  10. सुम्-म औरस्नल्- किताबल्लज़ीनस्तफ़ैना मिनू अिबादिना फ़मिन्हुम् ज़ालिमुल्-लिनफ़्सिही व मिन्हुम् मुक्तसिदुन् व मिन्हुम् साबिक़ुम् बिल्-ख़ैराति बि-इज़्निल्लाहि, ज़ालि-क हुवल् फ़ज़्लुल्-कबीर
    फिर हमने अपने बन्दगान में से ख़ास उनको कु़रान का वारिस बनाया जिन्हें (एहल समझकर) मुन्तखि़ब किया क्योंकि बन्दों में से कुछ तो (नाफरमानी करके) अपनी जान पर सितम ढाते हैं और कुछ उनमें से (नेकी बदी के) दरमियान हैं और उनमें से कुछ लोग अल्लाह के इख़तेयार से नेकों में (औरों से) गोया सबकत ले गए हैं (इन्तेख़ाब व सबक़त) तो अल्लाह का बड़ा फज़ल है।
  11. जन्नातु अ़द्निंय्-यद्ख़ुलूनहा युहल्लौ-न फ़ीहा मिन् असावि-र मिन्ज़-हबिंव्-व लुअ्लुअन् व लिबासुहुम् फ़ीहा हरीर
    (और उसका सिला बेहिश्त के) सदा बहार बाग़ात हैं जिनमें ये लोग दाखि़ल होंगे और उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएँगे और वहाँ उनकी (मामूली) पोशाक ख़ालिस रेशमी होगी।
  12. व क़ालुल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी अज़्ह-ब अ़न्नल्-ह-ज़-न, इन्-न रब्बना ल-ग़फ़ूरुन् शकूर
    और ये लोग (खु़शी के लहजे में) कहेंगे अल्लाह का शुक्र जिसने हम से (हर कि़स्म का) रंज व ग़म दूर कर दिया बेशक हमारा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला (और) क़दरदान है।
  13. अल्लज़ी अ-हल्लना दारल्-मुक़ामति मिन् फ़ज़्लिही ला यमस्सुना फ़ीहा न-सबुंव-व ला यमस्सुना फ़ीहा लुग़ूब
    जिसने हमको अपने फज़ल (व करम) से हमेशगी के घर (बेहिश्त) में उतारा (मेहमान किया) जहाँ हमें कोई तकलीफ छुयेगी भी तो नहीं और न कोई थकान ही पहुँचेगी।
  14. वल्लज़ी-न क-फ़रू लहुम् नारु जहन्न-म ला युक़्ज़ा अ़लैहिम् फ़-यमूतू व ला युख़फ़्फ़फ़ु अ़न्हुम् मिन् अ़ज़ाबिहा, कज़ालि-क नज्ज़ी कुल्-ल कफ़ूर
    और जो लोग काफिर हो बैठे उनके लिए जहन्नुम की आग है न उनकी कज़ा ही आएगी कि वह मर जाए और तकलीफ से नजात मिले और न उनसे उनके अज़ाब ही में तख़फीफ की जाएगी हम हर नाशुक्रे की सज़ा यूँ ही किया करते हैं।
  15. व हुम् यस्तरिख़ू-न फ़ीहा रब्बना अख़्-रिज्ना नअ्मल् सालिहन् ग़ैरल्लज़ी कुन्ना नअ्मलु, अ-व लम् नुअ़म्मिर्कुम् मा य-तज़क्करु फ़ीहि मनू तज़क्क-र व जा-अकुमुन्नज़ीरु, फ़ज़ूक़ू फ़मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् नसीर
    और ये लोग दोजख़ में (पड़े) चिल्लाया करेगें कि परवरदिगार अब हमको (यहाँ से) निकाल दे तो जो कुछ हम करते थे उसे छोड़कर नेक काम करेंगे (तो अल्लाह जवाब देगा कि) क्या हमने तुम्हें इतनी उमे्रं न दी थी कि जिनमें जिसको जो कुछ सोंचना समझना (मंज़ूर) हो खू़ब सोच समझ ले और (उसके अलावा) तुम्हारे पास (हमारा) डराने वाला (पैग़म्बर) भी पहुँच गया था तो (अपने किए का मज़ा) चखो क्योंकि सरकश लोगों का कोई मद्दगार नहीं।
  16. व हुम् यस्तरिख़ू-न फ़ीहा रब्बना अख़्-रिज्ना नअ्मल् सालिहन् ग़ैरल्लज़ी कुन्ना नअ्मलु, अ-व लम् नुअ़म्मिर्कुम् मा य-तज़क्करु फ़ीहि मनू तज़क्क-र व जा-अकुमुन्नज़ीरु, फ़ज़ूक़ू फ़मा लिज़्ज़ालिमी-न मिन् नसीर
    बेशक अल्लाह सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों से ख़ूब वाकि़फ है वह यक़ीनी दिलों के पोशीदा राज़ से बाख़बर है।
  17. हुवल्लज़ी ज-अ़-लकुम् ख़लाइ-फ़ फ़िल्अर्ज़ि, फ़-मन् क-फ़-र फ़-अ़लैहि कुफ़्-रूहू, व ला यज़ीदुल् काफ़िरी-न कुफ़्-रूहुम् अिन्- द रब्बिहिम् इल्ला मक़्तन् व ला यज़ीदुल्-काफ़िरी-न कुफ़्-रूहुम् इल्ला ख़सारा
    वह वही अल्लाह है जिसने रूए ज़मीन में तुम लोगों को (अगलों का) जानशीन बनाया फिर जो शख़्स काफि़र होगा तो उसके कुफ्र का वबाल उसी पर पड़ेगा और काफि़रों को उनका कुफ्र उनके परवरदिगार की बारगाह में ग़ज़ब के सिवा कुछ बढ़ाएगा नहीं और कुफ़्फ़ार को उनका कुफ्ऱ घाटे के सिवा कुछ नफ़ा न देगा।
  18. क़ुल् अ- रऐतुम् शु-रका-अकुमुल्लज़ी-न तद्अू-न मिनू दूनिल्लाहि, अरूनी माज़ा ख़-लक़ू मिनल्-अर्ज़ि अम् लहुम् शिर्कुन् फ़िस्समावाति अम् आतैनाहुम् किताबन् फ़हुम् अ़ला बय्यि-नतिम् मिन्हु बल् इंय्यअिदुज़्ज़ालिमू-न बअ्ज़ुहुम् बअ्ज़न् इल्ला ग़ुरूरा
    (ऐ रसूल) तुम (उनसे) पूछो तो कि अल्लाह के सिवा अपने जिन शरीकों की तुम क़यादत करते थे क्या तुमने उन्हें (कुछ) देखा भी मुझे भी ज़रा दिखाओ तो कि उन्होंने ज़मीन (की चीज़ों) से कौन सी चीज़ पैदा की या आसमानों में कुछ उनका आधा साझा है या हमने खु़द उन्हें कोई किताब दी है कि वह उसकी दलील रखते हैं (ये सब तो कुछ नहीं) बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे से (धोखे और) फरेब ही का वायदा करते हैं।
  19. इन्नल्ला-ह युम्सिकुस्समावाति वल्अर्-ज़ अन् तज़ूला, व ल-इन् ज़ा-लता इन् अम्-स-कहुमा मिन् अ-हदिम् मिम्बअ्दिही, इन्नहू का-न हलीमन् ग़फ़ूरा
    बेशक अल्लाह ही सारे आसमान और ज़मीन अपनी जगह से हट जाने से रोके हुए है और अगर (फजऱ् करे कि) ये अपनी जगह से हट जाए तो फिर तो उसके सिवा उन्हें कोई रोक नहीं सकता बेशक वह बड़ा बुर्दबर (और) बड़ा बख़्शने वाला है।
  20. व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम् ल-इन् जा-अहुम्-नज़ीरुल् ल-यकूनन्-न अह्दा मिन् इह्दल्-उ-ममि फ़-लम्मा जा- अहुम् नज़ीरुम् मा ज़ा-दहुम् इल्ला नुफ़ूरा
    और ये लोग तो अल्लाह की बड़ी-बड़ी सख़्त क़समें खा (कर कहते) थे कि बेशक अगर उनके पास कोई डराने वाला (पैग़म्बर) आएगा तो वह ज़रूर हर एक उम्मत से ज़्यादा रूबसह होंगे फिर जब उनके पास डराने वाला (रसूल) आ पहुँचा तो (उन लोगों को) रूए ज़मीन में सरकशी और बुरी-बुरी तद्बीरें करने की वजह से।
  21. इस्तिक्बारन् फ़िल्अर्ज़ी व मक्रस्सय्यि-इ व ला यहीक़ुल्-मक्रुस्सय्यि-उ इल्ला बि-अह्लिही, फ़-हल् यन्ज़ुरू – न इल्ला सुन्नतल्-अव्वली-न फ़-लन् तजि-द लिसुन्नतिल्लाहि तब्दीला, व लन् तजि-द लिसुन्नतिल्लाहि तह्वीला
    (उसके आने से) उनकी नफरत को तरक़्की ही होती गयी और बुदी तद्बीर (की बुराई) तो बुरी तद्बीर करने वाले ही पर पड़ती है तो (हो न हो) ये लोग बस अगले ही लोगों के बरताव के मुन्तजि़र हैं तो (बेहतर) तुम अल्लाह के दसतूर में कभी तब्दीली न पाओगे और अल्लाह की आदत में हरगिज़ कोई तग़य्युर न पाओगे।
  22. अ-व लम् यसीरू फ़िल्अर्ज़ि फ़-यन्ज़ुरू कै-फ़ का न आ़क़ि-बतुल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् व कानू अशद्-द मिन्हुम् क़ुव्वतन्, व मा कानल्लाहु लियुअ्जि-ज़हू मिन् शैइन् फ़िस्समावाति व ला फ़िल्अर्ज़ि, इन्नहू का-न अ़लीमन् क़दीरा
    तो क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनके पहले थे और उनसे ज़ोर व कूवत में भी कहीं बढ़-चढ़ के थे फिर उनका (नाफ़रमानी की वजह से) क्या (ख़राब) अन्जाम हुआ और अल्लाह ऐसा (गया गुज़रा) नहीं है कि उसे कोई चीज़ आजिज़ कर सके (न इतने) आसमानों में और न ज़मीन में बेशक वह बड़ा ख़बरदार (और) बड़ी (क़ाबू) कुदरत वाला है।
  23. व लौ युआख़िज़ुल्लाहुन्ना-स बिमा क-सबू मा त-र-क अ़ला जह्-रिहा मिन् दाब्बतिंव-व लाकिंय्-युअख़्खिरुहुम् इला अ-जलिम् मुसम्मन् फ़-इज़ा जा-अ अ-जलुहुम् फ़-इन्नल्ला-ह का-न बिअिबादिही बसीरा
    और अगर (कहीं) अल्लाह लोगों की करतूतों की गिरफ्त करता तो (जैसी उनकी करनी है) रूए ज़मीन पर किसी जानवर को बाक़ी न छोड़ता मगर वह तो एक मुक़र्रर मियाद तक लोगों को मोहलत देता है (कि जो करना हो कर लो) फिर जब उनका (वह) वक़्त आ जाएगा तो खु़दा यक़ीनी तौर पर अपने बन्दों (के हाल) को देख रहा है (जो जैसा करेगा वैसा पाएगा)।

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