34 सूरह सबा हिंदी में पेज 1

34 सूरह सबा | Surah Saba

सूरह सबा में 54 आयतें हैं। यह सूरह पारा 22 में है। यह सूरह मक्के में नाजिल हुई।

इस सूरह का नाम आयत 15 के वाक्यांश, “सबा के लिए उनके अपने निवास स्थान ही में एक निशानी मौजूद थी” से लिया गया है।

सूरह सबा हिंदी में | Surah Saba in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अल्हम्दु लिल्लाहिल्लज़ी लहू मा फ़िस्समावाति व मा फ़िल्अर्ज़ि व लहुल्- हम्दु फ़िल्- आख़िरति, व हुवल् हकीमुल् – ख़बीर
    हर कि़स्म की तारीफ उसी अल्लाह के लिए (दुनिया में भी) सज़ावार है कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है और आख़ेरत में (भी हर तरफ) उसी की तारीफ है और वही वाकि़फकार हकीम है।
  2. यअ्लमु मा यलिजु फ़िल्अर्ज़ि व मा यख़्रुजु मिन्हा व मा यन्ज़िलु मिनस्समा – इ व मा यअ्-रूजु फ़ीहा, व हुवर्रहीमुल् – ग़फ़ूर
    (जो) चीज़ें (बीज वग़ैरह) ज़मीन में दाखि़ल हुयी है और जो चीज़ (दरख़्त वग़ैरह) इसमें से निकलती है और जो चीज़ (पानी वग़ैरह) आसामन से नाजि़ल होती है और जो चीज़ (नज़ारात फरिश्ते वग़ैरह) उस पर चढ़ती है (सब) को जानता है और वही बड़ा बख़्शने वाला है।
  3. व क़ालल्लज़ी-न क- फ़रू ला तअ्तीनस्सा – अ़तु क़ुल् बला व रब्बी ल-तअ्ति-यन्नकुम् आ़लिमिल्-ग़ैबि ला यअ्ज़ुबु अ़न्हु मिस्क़ालु ज़र्रतिन् फिस्समावाति व ला फ़िल्अर्ज़ि व ला अस्-ग़रु मिन् ज़ालि-क व ला अक्बरु इल्ला फ़ी किताबिम् – मुबीन
    और कुफ्फार कहने लगे कि हम पर तो क़यामत आएगी ही नहीं (ऐ रसूल) तुम कह दो हाँ (हाँ) मुझ को अपने उस आलेमुल ग़ैब परवरदिगार की क़सम है जिससे ज़र्रा बराबर (कोई चीज़) न आसमान में छिपी हुयी है और न ज़मीन में कि क़यामत ज़रूर आएगी और ज़र्रे से छोटी चीज़ और ज़र्रे से बडी (ग़रज़ जितनी चीज़े हैं सब) वाजे़ए व रौशन किताब लौहे महफूज़ में महफूज़ हैं।
  4. लि-यज्ज़ियल्लज़ी-न आमनू व अ़मिलुस्सालिहाति, उलाइ-क लहुम् मग़्फ़ि-रतुंव्-व रिज़्क़ुन् करीम
    ताकि जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और (अच्छे) काम किए उनको अल्लाह जज़ाए खै़र दे यही वह लोग हैं जिनके लिए (गुनाहों की) मग़फेरत और (बहुत ही) इज़्ज़त की रोज़ी है।
  5. वल्लज़ी-न सऔ़ फ़ी आयातिना मुआ़जिज़ी – न उलाइ-क लहुम् अ़ज़ाबुम् मिर्रिज्ज़िन् अलीम
    और जिन लोगों ने हमारी आयतों (के तोड़) में मुक़ाबिले की दौड़-धूप की उन ही के लिए दर्दनाक अज़ाब की सज़ा होगी।
  6. व यरल्लज़ी- न ऊतुल्-अिल्मल्लज़ी उन्ज़ि-ल इलै-क मिर्रब्बि-क हुवल् – हक़् क़ व यह्दी इला सिरातिल् अ़ज़ीज़िल्-हमीद
    और (ऐ रसूल) जिन लोगों को (हमारी बारगाह से) इल्म अता किया गया है वह जानते हैं कि जो (क़ुरान) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाजि़ल हुआ है बिल्कुल ठीक है और सज़ावार हम्द (व सना) ग़ालिब (अल्लाह) की राह दिखाता है।
  7. व क़ालल्लज़ी – न क-फ़रू हल् नदुल्लुकुम् अ़ला रजुलिंय् – युनब्बिउकुम् इज़ा मुज़्ज़िक़् तुम् कुल्-ल मुमज़्ज़क़िन् इन्नकुम् लफ़ी ख़ाल्क़िन् जदीद
    और कुफ़्फ़ार (मसख़रेपन से बाहम) कहते हैं कि कहो तो हम तुम्हें ऐसा आदमी (मोहम्मद) बता दें जो तुम से बयान करेगा कि जब तुम (मर कर सड़़ गल जाओगे और) बिल्कुल रेज़ा रेज़ा हो जाओगे तो तुम यक़ीनन एक नए जिस्म में आओगे।
  8. अफ़्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन् अम् बिही जिन्नतुन्, बलिल्लज़ी – न ला युअ्मिनू-न बिल्- आख़िरति फिल्अज़ाबि वज़्ज़लालिल्- बईद
    क्या उस शख़्स (मोहम्मद) ने अल्लाह पर झूठ तूफान बाँधा है या उसे जुनून (हो गया) है (न मोहम्मद झूठा है न उसे जुनून है) बल्कि खु़द वह लोग जो आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते अज़ाब और पहले दरजे की गुमराही में पड़े हुए हैं।
  9. अ – फ़लम् यरौ इला मा बै-न ऐदीहिम् व मा ख़ल्फ़हुम् मिनस्- समा- इ वल्अज़ि, इन्न- शअ् नख़्सिफ़् बिहिमुल् – अर्-ज़ औ नुस्क़ित् अ़लैहिम् कि- सफ़म् मिनस्समा – इ, इन्-न फ़ी ज़ालि-क लआ-यतल् – लिकुल्लि अ़ब्दिम्- मुनीब
    तो क्या उन लोगों ने आसमान और ज़मीन की तरफ भी जो उनके आगे और उनके पीछे (सब तरफ से घेरे) हैं ग़ौर नहीं किया कि अगर हम चाहे तो उन लोगों को ज़मीन में धँसा दें या उन पर आसमान का कोई टुकड़ा ही गिरा दें इसमें शक नहीं कि इसमें हर रुझू करने वाले बन्दे के लिए यक़ीनी बड़ी इबरत है।
  10. व ल-क़द् आतैना दावू-द मिन्ना फ़ज़्लन्, या जिबालु अव्विबी म- अहू वत्तै-र व अलन्ना लहुल्-हदीद
    और हमने यक़ीनन दाऊद को अपनी बारगाह से बुज़ुर्गी इनायत की थी (और पहाड़ों को हुक्म दिया) कि ऐ पहाड़ों तसबीह करने में उनका साथ दो और परिन्द को (ताबेए कर दिया) और उनके वास्ते लोहे को (मोम की तरह) नरम कर दिया था।
  11. अनिअ्मल् साबिग़ातिंव् – व कद्-दिर् फ़िस्सर्दि वअ्मलू सालिहन्, इन्नी बिमा तअ्मलू – न बसीर
    कि फँराख़ व कुशादा जिरह बनाओ और (कडि़यों के) जोड़ने में अन्दाज़े का ख़्याल रखो और तुम सब के सब अच्छे (अच्छे) काम करो वो कुछ तुम लोग करते हो मैं यक़ीनन देख रहा हूँ।
  12. व लि- सुलैमानर्-री-ह ग़ुदुव्वुहा शह्-रूंव – व रवाहुहा शह्-रून् व असल्ना लहू ऐनल् – कित्रि, व मिनल् जिन्नि मंय्यअ्मलु बै-न यदैहि बि-इज़्नि रब्बिही, व मंय्यज़िग् मिन्हुम् अ़न् अम्रिना नुज़िक़्हु मिन् अ़ज़ाबिस् – सईर
    और हवा को सुलेमान का (ताबेइदार बना दिया था) कि उसकी सुबह की रफ़्तार एक महीने (मुसाफ़त) की थी और इसी तरह उसकी शाम की रफ़्तार एक महीने (के मुसाफत) की थी और हमने उनके लिए तांबे (को पिघलाकर) उसका चश्मा जारी कर दिया था और जिन्नात (को उनका ताबेदार कर दिया था कि उन) में कुछ लोग उनके परवरदिगार के हुक्म से उनके सामने काम काज करते थे और उनमें से जिसने हमारे हुक्म से इनहराफ़ किया है उसे हम (क़यामत में) जहन्नुम के अज़ाब का मज़ा चख़ाँएगे।
  13. यअ्-मलू-न लहू मा यशा-उ मिम्-महारी-ब व तमासी-ल व जिफ़ानिन् कल्जवाबि व क़ुदूरिर्- रासियातिन्, इअ्मलू आ-ल दावू-द शुक्रन्, व क़लीलुम् मिन् अिबादि-यश्शकूर
    ग़रज़ सुलेमान को जो बनवाना मंज़ूर होता ये जिन्नात उनके लिए बनाते थे (जैसे) मस्जिदें, महल, कि़ले और (फरिश्ते अम्बिया की) तस्वीरें और हौज़ों के बराबर प्याले और (एक जगह) गड़ी हुयी (बड़ी बड़ी) देग़ें (कि एक हज़ार आदमी का खाना पक सके) ऐ दाऊद की औलाद शुक्र करते रहो और मेरे बन्दों में से शुक्र करने वाले (बन्दे) थोड़े से हैं।
  14. फ़-लम्मा क़ज़ैना अ़लैहिल् – मौ-त मा दल्लहुम् अ़ला मौतिही इल्ला दाब्बतुल् – अर्ज़ि तअ्कुलु मिन्स-अ-तहू फ़-लम्मा ख़र्-र तबय्य – नतिल् – जिन्नु अल्लौ कानू यअ्लमूनल्-ग़ै-ब मा लबिसू फ़िल्-अ़ज़ाबिल् मुहीन
    फिर जब हमने सुलेमान पर मौत का हुक्म जारी किया तो (मर गए) मगर लकड़ी के सहारे खड़े थे और जिन्नात को किसी ने उनके मरने का पता न बताया मगर ज़मीन की दीमक ने कि वह सुलेमान के असा को खा रही थी फिर (जब खोखला होकर टूट गया और) सुलेमान (की लाश) गिरी तो जिन्नात ने जाना कि अगर वह लोग ग़ैब वा (ग़ैब के जानने वाले) होते तो (इस) ज़लील करने वाली (काम करने की) मुसीबत में न मुब्तिला रहते।
  15. ल-क़द् का-न लि-स-बइन् फ़ी मस्कनिहिम् आ-यतुन् जन्नतानि अंय्यमीनिंव्-व शिमालिन्, कुलू मिर्रज़्कि- रब्बिकुम् वश्कुरू लहू, बल्दतुन् तय्यि-बतुंव्-व रब्बुन् ग़फ़ूर
    और (क़ौम) सबा के लिए तो यक़ीनन ख़ुद उन्हीं के घरों में (कु़दरते अल्लाह की) एक बड़ी निशानी थी कि उनके शहर के दोनों तरफ दाहिने बाऐ (हरे-भरे) बाग़ात थे (और उनको हुक्म था) कि अपने परवरदिगार की दी हुयी रोज़ी खाओ (पियो) और उसका शुक्र अदा करो (दुनिया में) ऐसा पाकीज़ा शहर और (आख़ेरत में) परवरदिगार सा बख़्शने वाला।
  16. फ़-अअ्-रज़ू फ़-अर्सल्ना अ़लैहिम् सैलल्-अ़रिमि व बद्दल्नाहुम् बिजन्नतैहिम् जन्नतैनि ज़वातै उकुलिन् ख़म्तिंव्-व अस्लिंव् व शैइम् – मिन् सिद्रिन् क़लील
    इस पर भी उन लोगों ने मुँह फेर लिया (और पैग़म्बरों का कहा न माना) तो हमने (एक ही बन्द तोड़कर) उन पर बड़े ज़ोरों का सैलाब भेज दिया और (उनको तबाह करके) उनके दोनों बाग़ों के बदले ऐसे दो बाग़ दिए जिनके फल बदमज़ा थे और उनमें झाऊ था और कुछ थोड़ी सी बेरियाँ थी।
  17. ज़ालि-क जज़ैनाहुम् बिमा क-फ़रू, व हल् नुजाज़ी इल्लल् – कफ़ूर
    ये हमने उनकी नाशुक्री की सज़ा दी और हम तो बड़े नाशुक्रों ही की सज़ा किया करते हैं।
  18. व जअ़ल्ना बैनहुम् व बैनल्- क़ुरल्लती बारक्ना फ़ीहा क़ुरन् ज़ाहि- रतंव् व क़द्दर्ना फ़ीहस्सै-र, सीरू फ़ीहा लयालि-य व अय्यामन् आमिनीन
    और हम अहले सबा और (शाम) की उन बस्तियों के दरम्यिान जिनमें हमने बरकत अता की थी और चन्द बस्तियाँ (सरे राह) आबाद की थी जो बाहम नुमाया थीं और हमने उनमें आमद व रफ्त की राह मुक़र्रर की थी कि उनमें रातों को दिनों को (जब जी चाहे) बेखटके चलो फिरो।
  19. फ़क़ालू रब्बना बाज़िद् बै-न अस्फ़ारिना व ज़-लमू अन्फ़ु – सहुम् फ़-जअ़ल्नाहुम् अहादी – स व मज़्ज़क़्नाहुम् कुल्-ल मुमज़्ज़क़िन्, इन्-न फ़ी ज़ालि – क लआयातिल् लिकुल्लि सब्बारिन् शकूर
    तो वह लोग ख़ुद कहने लगे परवरदिगार (क़रीब के सफर में लुत्फ नहीं) तो हमारे सफ़रों में दूरी पैदा कर दे और उन लोगों ने खु़द अपने ऊपर ज़ुल्म किया तो हमने भी उनको (तबाह करके उनके) अफसाने बना दिए – और उनकी धज्जियाँ उड़ा के उनको तितिर बितिर कर दिया बेशक उनमें हर सब्र व शुक्र करने वालों के वास्ते बड़ी इबरते हैं।
  20. व ल-कुद् सद्द -क़ अलैहिम् इब्लीसु ज़न्नहू फ़त्त- बअूहु इल्ला फ़रीक़म् मिनल् – मुअ्मिनीन
    और शैतान ने अपने ख्याल को (जो उनके बारे में किया था) सच कर दिखाया तो उन लोगों ने उसकी पैरवी की मगर इमानवालों का एक गिरोह (न भटका)।

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