11 सूरह हूद हिंदी में पेज 6

सूरह हूद हिंदी में | Surat Hud in Hindi

  1. व मा ज़लम्नाहुम् व लाकिन् ज़ – लमू अन्फु – सहुम् फ़मा अग्नत् अन्हुम् आलि – हतुहुमुल्लती यद्अू – न मिन् दूनिल्लाहि मिन् शैइल् – लम्मा जा – अ अम्रू रब्बि-क, वमा जादूहुम् गै-र तत्बीब
    और हमने किसी तरह उन पर ज़ल्म नहीं किया बल्कि उन लोगों ने आप अपने ऊपर (नाफरमानी करके) ज़ुल्म किया फिर जब तुम्हारे परवरदिगार का (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो न उसके वह माबूद ही काम आए जिन्हें ख़ुदा को छोड़कर पुकारा करते थें और न उन माबूदों ने हलाक करने के सिवा कुछ फायदा ही पहुँचाया बल्कि उन्हीं की परसतिश की बदौलत अज़ाब आया (101)
  2. व कज़ालि – क अख़्जु रब्बि-क इज़ा अ -ख़ज़ल्-कुरा व हि-य ज़ालि-मतुन्, इन् – न अख़्ज़हू अलीमुन् शदीद
    और (ऐ रसूल) बस्तियों के लोगों की सरकशी से जब तुम्हारा परवरदिगार अज़ाब में पकड़ता है तो उसकी पकड़ ऐसी ही होती है बेशक पकड़ तो दर्दनाक (और सख़्त) होती है (102)
  3. इन-न फ़ी ज़ालि-क लआयतल् लिमन् ख़ा – फ़ अ़ज़ाबल आख़िरति ज़ालि-क यौमुम मज्मूअुल लहुन्नासु व ज़ालि-क यौमुम् – मश्हूद
    इसमें तो शक नहीं कि उस शख़्स के वास्ते जो अज़ाब आखि़रत से डरता है (हमारी कुदरत की) एक निशानी है ये वह रोज़ होगा कि सारे (जहाँन) के लोग जमा किए जायंगे और यही वह दिन होगा कि (हमारी बारगाह में) सब हाजि़र किए जायंगे (103)
  4. व मा नु – अख्खिरूहू इल्ला लि- अ जलिम् मअदूद
    और हम बस एक मुअय्युन मुद्दत तक इसमें देर कर रहे है (104)
    जिस दिन वह आ पहुँचेगा तो बग़ैर हुक्मे ख़़ुदा कोई शख़्स बात भी तो नहीं कर सकेगा फिर
  5. यौ – म यअ्ति ला तकल्लमु नफ्सुन् इल्ला बि – इज्निही फ़ – मिन्हुम् शकिय्युंव व सईद
    कुछ लोग उनमे से बदबख़्त होगें और कुछ लोग नेक बख़्त (105)
  6. फ़- अम्मल्लज़ी न शकू फ़फ़िन्नारि लहुम् फ़ीहा ज़फ़ीरूंव – व शहीक़
    तो जो लोग बदबख़्त है वह दोज़ख़ में होगें और उसी में उनकी हाए वाए और चीख़ पुकार होगी (106)
  7. खालिदी न फीहा मा दामतिस्समावातु वलअर्जु इल्ला मा शा-अ रब्बु – क, इन् – न रब्ब-क फ़अ्आलुल्लिमा युरीद
    वह लोग जब तक आसमान और ज़मीन में है हमेशा उसी मे रहेगें मगर जब तुम्हारा परवरदिगार (नजात देना) चाहे बेशक तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है कर ही डालता है (107)
  8. व अम्मल्लज़ी – न सुअिदू फ़फ़िल् – जन्नति ख़ालिदी – न फ़ीहा मा दामतिस्समावातु वल् अर्जु इल्ला मा शा – अ रब्बु – क, अताअन् गै-र मज्जूज़
    और जो लोग नेक बख़्त हैं वह तो बेहेशत में होगें (और) जब तक आसमान व ज़मीन (बाक़ी) है वह हमेशा उसी में रहेगें मगर जब तेरा परवरदिगार चाहे (सज़ा देकर आखि़र में जन्नत में ले जाए (108)
  9. फला तकु फ़ी मिर्यतिम् मिम्मा यअ्बुदु हा-उला-इ मा यअ्बुदू-न इल्ला कमा यअ्बुदु आबाउहुम् मिन् कब्लु, व इन्ना लमुवफ्फूहुम् नसीबहुम् ग़ै-र मन्कूस *
    ये वह बख़्शिश है जो कभी मनक़तआ (खत्म) न होगी तो ये लोग (ख़ुदा के अलावा) जिसकी परसतिश करते हैं तुम उससे शक में न पड़ना ये लोग तो बस वैसी इबादत करते हैं जैसी उनसे पहले उनके बाप दादा करते थे और हम ज़रुर (क़यामत के दिन) उनको (अज़ाब का) पूरा पूरा हिस्सा बग़ैर कम किए देगें (109)
  10. व ल – कद् आतैना मूसल् किता-ब फ़ख़्तुलि-फ़ फ़ीहि, वलौ ला कलि-मतुन् स-बक़त् मिर्रब्बि-क लकुजि-य बैनहुम, व इन्नहुम् लफ़ी शक्किम मिन्हु मुरीब
    और हमने मूसा को किताब तौरैत अता की तो उसमें (भी) झगड़े डाले गए और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हुक्म कोइ पहले ही न हो चुका होता तो उनके दरमियान (कब का) फैसला यक़ीनन हो गया होता और ये लोग (कुफ़्फ़ारे मक्का) भी इस (क़ुरान) की तरफ से बहुत गहरे शक में पड़े हैं (110)
  11. व इन्-न कुल्लल्-लम्मा लयुवफ्फियन्नहुम् रब्बु-क अअ्मालहुम, इन्नहू बिमा यअ्मलू-न ख़बीर
    और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार उनकी कारस्तानियों का बदला भरपूर देगा (क्यूंकि) जो उनकी करतूतें हैं उससे वह खूब वाकि़फ है (111)
  12. फ़स्तकिम् कमा उमिर्-त व मन् ता-ब म-अ-क वला तत्गौ इन्नहू बिमा तअ्मलू-न बसीर
    तो (ऐ रसूल) जैसा तुम्हें हुक्म दिया है तुम और वह लोग भी जिन्होंने तुम्हारे साथ (कुफ्र से) तौबा की है ठीक साबित क़दम रहो और सरकशी न करो (क्योंकि) तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह यक़ीनन देख रहा है (112)
  13. व ला तर्कनू इलल्लज़ी-न ज़-लमू फ़-तमस्सकुमुन्नारू वमा लकुम् मिन् दूनिल्लाहि मिन् औलिया-अ सुम्-म ला तुन्सरून
    और (मुसलमानों) जिन लोगों ने (हमारी नाफरमानी करके) अपने ऊपर ज़ुल्म किया है उनकी तरफ माएल (झुकना) न होना और वरना तुम तक भी (दोज़ख़) की आग आ लपटेगी और ख़ुदा के सिवा और लोग तुम्हारे सरपरस्त भी नहीं हैं फिर तुम्हारी मदद कोई भी नहीं करेगा (113)
  14. व अकिमिस्सला-त त-र फयिन्नहारि व जु-लफम् मिनल्लैलि, इन्नल-ह-सनाति युज्हिब्नस् सय्यिआति, जालि-क ज़िक्रा लिज़्ज़ाकिरीन
    और (ऐ रसूल) दिन के दोनो किनारे और कुछ रात गए नमाज़ पढ़ा करो (क्योंकि) नेकियाँ यक़ीनन गुनाहों को दूर कर देती हैं और (हमारी) याद करने वालो के लिए ये (बातें) नसीहत व इबरत हैं (114)
  15. वस्बिर् फ़-इन्नल्ला-ह ला युज़ीअु अज्रल्-मुह़्सिनीन
    और (ऐ रसूल) तुम सब्र करो क्योंकि ख़ुदा नेकी करने वालों का अज्र बरबाद नहीं करता (115)
  16. फ़लौ ला का-न मिनल्कुरूनि मिन् कब्लिकुम् उलू बकिय्यतिंय्यन्हौ – न अनिल्फ़सादि फिल्अर्जि इल्ला कलीलम् मिम्-मन् अन्जैना मिन्हुम् वत्त- बअ़ल्लज़ी-न ज़-लमू मा उत्रिफू फ़ीहि व कानू मुज्रिमीन
    फिर जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनमें कुछ लोग ऐसे अक़ल वाले क्यों न हुए जो (लोगों को) रुए ज़मीन पर फसाद फैलाने से रोका करते (ऐसे लोग थे तो) मगर बहुत थोड़े से और ये उन्हीं लोगों से थे जिनको हमने अज़ाब से बचा लिया और जिन लोगों ने नाफरमानी की थी वह उन्हीं (लज़्ज़तों) के पीछे पड़े रहे और जो उन्हें दी गई थी और ये लोग मुजरिम थे ही (116)
  17. वमा का-न रब्बु-क लियुह़्लिकल् – कुरा बिजुल्मिंव् – व अह्लुहा मुस्लिहून
    और तुम्हारा परवरदिगार ऐसा (बे इन्साफ) कभी न था कि बस्तियों को जबरदस्ती उजाड़ देता और वहाँ के लोग नेक चलन हों (117)
  18. व लौ शा-अ रब्बु-क ल-ज अ़लन्ना-स उम्मतंव्-वाहि-दतंव्-व ला यज़ालू – न मुख्तलिफ़ीन
    और अगर तुम्हारा परवरदिगार चाहता तो बेशक तमाम लोगों को एक ही (किस्म की) उम्मत बना देता (मगर) उसने न चाहा इसी (वजह से) लोग हमेषा आपस में फूट डाला करेगें (118)
  19. इल्ला मर्राहि-म रब्बु-क, व लिज़ालि-क ख-ल-क़हुम्, व तम्मत् कलि- मतु रब्बि-क ल-अम्ल-अन्-न जहन्न-म मिनल्-जिन्नति वन्नासि अज्मईन
    मगर जिस पर तुम्हारा परवरदिगार रहम फरमाए और इसलिए तो उसने उन लोगों को पैदा किया (और इसी वजह से तो) तुम्हारा परवरदिगार का हुक्म क़तई पूरा होकर रहा कि हम यक़ीनन जहन्नुम को तमाम जिन्नात और आदमियों से भर देगें (119)
  20. व कुल्लन् नकुस्सु अ़लै-क मिन् अम्बाइर्रूसुलि मा नुसब्बितु बिही फुआद-क व जाअ-क फी हाज़िहिल्-हक़्कु व मौअि-ज़तुंव-व ज़िक्रा लिल्मुअ्मिनीन
    और (ऐ रसूल) पैग़म्बरों के हालत में से हम उन तमाम कि़स्सों को तुम से बयान किए देते हैं जिनसे हम तुम्हारे दिल को मज़बूत कर देगें और उन्हीं कि़स्सों में तुम्हारे पास हक़ (क़ुरान) और मोमिनीन के लिए नसीहत और याद दहानी भी आ गई (120)
  21. व कुल लिल्लज़ी-न ला युअ्मिनून अ्मलू अ़ला मकानतिकुम्, इन्ना आ़मिलून
    और (ऐ रसूल) जो लोग ईमान नहीं लाते उनसे कहो कि तुम बजाए ख़ुद अमल करो हम भी कुछ (अमल) करते हैं (121)
  22. वन्तज़िरू इन्ना मुन्तज़िरून
    (नतीजे का) तुम भी इन्तज़ार करो हम (भी) मुन्तिजि़र है (122)
  23. व लिल्लाहि ग़ैबुस्समावाति वल्अर्जि व इलैहि युर्जअुल् -अम्रू कुल्लुहू फ़अ्बुदहु व तवक्कल् अ़लैहि व मा रब्बु-क बिग़ाफ़िलिन् अम्मा तअ्मलून
    और सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों का इल्म ख़ास ख़ुदा ही को है और उसी की तरफ हर काम हिर फिर कर लौटता है तुम उसी की इबादत करो और उसी पर भरोसा रखो और जो कुछ तुम लोग करते हो उससे ख़ुदा बेख़बर नहीं (123)

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