11 सूरह हूद हिंदी में पेज 4

सूरह हूद हिंदी में | Surat Hud in Hindi

  1. व इला समू-द अख़ाहुम् सालिहन्, क़ा-ल या क़ौमिअ्बुदुल्ला-ह मा लकुम् मिन् इलाहिन् ग़ैरूहू, हु-व अन्श-अकुम् मिनल्अर्ज़ि वस्तअ्म-रकुम् फ़ीहा फ़स्तग़्फिरूहु सुम्-म तूबू इलैहि, इन्-न रब्बी क़रीबुम् मुजीब
    और (हमने) क़ौमे समूद के पास उनके भाई सालेह को (पैग़म्बर बनाकर भेजा) तो उन्होंने (अपनी क़ौम से) कहा ऐ मेरी क़ौम अल्लाह ही की परसतिश करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं उसी ने तुमको ज़मीन (की मिट्टी) से पैदा किया और तुमको उसमें बसाया तो उससे मग़फिरत की दुआ माँगों फिर उसकी बारगाह में तौबा करो (बेशक मेरा परवरदिगार (हर शख़्स के) क़रीब और सबकी सुनता और दुआ क़ुबूल करता है।
  2. क़ालू या सालिहु क़द् कुन्-त फ़ीना मरजुव्वन् क़ब्-ल हाज़ा अतन्हाना अन्-नअ्बु-द मा यअ्बुदु आबाउना व इन्नना लफ़ी शक्किम् मिम्मा तद्अूना इलैहि मुरीब
    वह लोग कहने लगे ऐ सालेह इसके पहले तो तुमसे हमारी उम्मीदें वाबस्ता थी तो क्या अब तुम जिस चीज़ की परसतिश हमारे बाप दादा करते थे उसकी परसतिश से हमें रोकते हो और जिस दीन की तरफ तुम हमें बुलाते हो हम तो उसकी निस्बत ऐसे शक में पड़े हैं।
  3. क़ा-ल या क़ौमि अ-रऐतुम् इन् कुन्तु अला बय्यि – नतिम् मिर्रब्बी व आतानी मिन्हु रह्-मतन् फ़ मंय्यन्सुरूनी मिनल्लाहि इन् अ़सैतुहू, फ़मा तज़ीदू -ननी ग़ै-र तख़्सीर
    कि उसने हैरत में डाल दिया है सालेह ने जवाब दिया ऐ मेरी क़ौम भला देखो तो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से रौशन दलील पर हूँ और उसने मुझे अपनी (बारगाह) मे रहमत (नबूवत) अता की है इस पर भी अगर मै उसकी नाफ़रमानी करुँ तो अल्लाह (के अज़ाब से बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा-फिर तुम सिवा नुक़सान के मेरा कुछ बढ़ा दोगे नहीं।
  4. व या क़ौमि हाज़िही नाक़तुल्लाहि लकुम् आयतन् फ़-ज़रूहा तअ्कुल् फी अरज़िल्लाहि व ला तमस्सूहा बिसूइन् फ़-यअ्ख़ु-ज़कुम् अ़ज़ाबुन क़रीब
    ऐ मेरी क़ौम ये अल्लाह की (भेजी हुयी) ऊँटनी है तुम्हारे वास्ते (मेरी नबूवत का) एक मौजिज़ा है तो इसको (उसके हाल पर) छोड़ दो कि अल्लाह की ज़मीन में (जहाँ चाहे) खाए और उसे कोई तकलीफ न पहुँचाओ।
  5. फ़-अ़-क़रूहा फ़क़ा-ल तमत्तअू फ़ी दारिकुम् सलास -त अय्यामिन्, ज़ालि-क वअ्दुन ग़ैरू मक्ज़ूब
    (वरना) फिर तुम्हें फौरन ही (अल्लाह का) अज़ाब ले डालेगा इस पर भी उन लोगों ने उसकी कूँचे काटकर (मार) डाला तब सालेह ने कहा अच्छा तीन दिन तक (और) अपने अपने घर में चैन (उड़ा लो)।
  6. फ़-लम्मा जा-अ अम्रुना नज्जैना सालिहंव्-वल्लज़ी-न आमनू म-अ़हू बिरह्-मतिम्-मिन्ना व मिन् ख़िज़्यि यौमिइज़िन्, इन्-न रब्ब-क हुवल् क़विय्युल अ़ज़ीज़
    यही अल्लाह का वादा है जो कभी झूठा नहीं होता फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने सालेह और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दी और उस दिन की रुसवाई से बचा लिया इसमें शक नहीं कि तेरा परवरदिगार ज़बरदस्त ग़ालिब है।
  7. व अ-ख़ज़ल्लज़ी न ज़ लमुस्सैहतु फ़-अस्बहू फी दियारिहिम् जासिमीन
    और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक सख़्त चिघाड़ ने ले डाला तो वह लोग अपने अपने घरों में औंधें पड़े रह गये।
  8. कअल्लम् य़ग़्नौ फ़ीहा, अला इन्-न समू-द क-फरू रब्बहुम, अला बुअ्दल् लि-समूद *
    और ऐसे मर मिटे कि गोया उनमें कभी बसे ही न थे तो देखो क़ौमे समूद ने अपने परवरदिगार की नाफरमानी की और (सज़ा दी गई) सुन रखो कि क़ौमे समूद (उसकी बारगाह से) धुत्कारी हुई है।
  9. व ल-क़द् जाअत् रूसुलुना इब्राही-म बिल्बुश्रा क़ालू सलामन्, क़ा-ल सलामुन् फ़मा लबि-स अन् जा-अ बिअिज्लिन् हनीज़
    और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इब्राहीम के पास खुशखबरी लेकर आए और उन्होंने (इब्राहीम को) सलाम किया (इब्राहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इब्राहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आए।
  10. फ़-लम्मा रआ ऐदि-यहुम् ला तसिलु इलैहि नकि-रहुम् व औज-स मिन्हुम् ख़ीफ़-तन्, क़ालू ला तख़फ् इन्ना उरसिल्ना इला क़ौमि लूत
    (और साथ खाने बैठें) फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी तरफ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ से बदगुमान हुए और जी ही जी में डर गए (उसको वह फरिश्ते समझे) और कहने लगे आप डरे नहीं हम तो क़ौम लूत की तरफ (उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं।
  11. वम्र अतुहू क़ाइ-मतुन् फ़-ज़हिकत् फ़-बश्शर्नाहा बि-इस्हा-क, व मिंव्वरा-इ इस्हा-क़ यअ्क़ूब
    और इब्राहीम की बीबी (सायरा) खड़ी हुयी थी वह (ये ख़बर सुनकर) हँस पड़ी तो हमने (उन्हें फरिशतों के ज़रिए से) इसहाक़ के पैदा होने की खुशख़बरी दी और इसहाक़ के बाद याक़ूब की।
  12. क़ालत् या वैलता अ-अलिदु व अ-ना अ़जूजुंव् व हाज़ा बअ्ली शैख़न्, इन्-न हाज़ा लशैउन् अ़जीब
    वह कहने लगी ऐ है क्या अब मै बच्चा जनने बैठॅूगी मैं तो बुढि़या हूँ और ये मेरे मियाँ भी बूढे़ है ये तो एक बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है।
  13. क़ालू अतअ्जबी-न मिन् अमरिल्लाहि रह्-मतुल्लाहि व ब-रकातुहू अ़लैकुम् अह़्लल्बैति, इन्नहू हमीदुम्-मजीद
    वह फरिश्ते बोले (हाए) तुम अल्लाह की कुदरत से तअज्जुब करती हो ऐ एहले बैत (नबूवत) तुम पर अल्लाह की रहमत और उसकी बरकते (नाज़िल हो) इसमें शक नहीं कि वह क़ाबिल हम्द (वासना) बुज़ुर्ग हैं।
  14. फ़-लम्मा ज़-ह-ब अन् इब्राहीमर्-रौअु व जाअत्हुल्-बुशरा युजादिलुना फ़ी क़ौमि लूत
    फिर जब इब्राहीम (के दिल) से ख़ौफ जाता रहा और उनके पास (औलाद की) खुशख़बरी भी आ चुकी तो हम से क़ौमे लूत के बारे में झगड़ने लगे।
  15. इन्-न इब्राही-म ल-हलीमुन् अव्वाहुम् मुनीब
    बेशक इब्राहीम बुर्दबार नरम दिल (हर बात में अल्लाह की तरफ) रुजू (ध्यान) करने वाले थे।
  16. या इब्राहीमु अअ्-रिज़् अन् हाज़ा, इन्नहू क़द् जा-अ अम्रु रब्बि-क, व इन्नहुम् आतीहिम् अ़ज़ाबुन ग़ैरू मरदूद
    (हमने कहा) ऐ इब्राहीम इस बात में हट मत करो (इस बार में) जो हुक्म तुम्हारे परवरदिगार का था वह क़तअन आ चुका और इसमें शक नहीं कि उन पर ऐसा अज़ाब आने वाले वाला है।
  17. व लम्मा जाअत् रूसुलुना लूतन् सी-अ बिहिम् व ज़ा-क़ बिहिम् ज़रअंव्-व क़ा-ल हाज़ा यौमुन् अ़सीब
    जो किसी तरह टल नहीं सकता और जब हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते (लड़को की सूरत में) लूत के पास आए तो उनके ख़्याल से रजीदा हुए और उनके आने से तंग दिल हो गए और कहने लगे कि ये (आज का दिन) सख़्त मुसीबत का दिन है।
  18. व जा-अहू क़ौमुहू युह्-रअू-न इलैहि, व मिन् क़ब्लु कानू यअ्मलूनस्-सय्यिआति, क़ा-ल या क़ौमि हा-उला-इ बनाती हुन्-न अत्हरू लकुम् फत्तक़ुल्ला-ह व ला तुख़्ज़ूनि फी ज़ैफी, अलै-स मिन्कुम् रजुलुर्रशीद
    और उनकी क़ौम (लड़को की आवाज़ सुनकर बुरे इरादे से) उनके पास दौड़ती हुयी आई और ये लोग उसके क़ब्ल भी बुरे काम किया करते थे लूत ने (जब उनको) आते देखा तो कहा ऐ मेरी क़ौम ये हमारी क़ौम की बेटियाँ (मौजूद हैं) उनसे निकाह कर लो ये तुम्हारी वास्ते जायज़ और ज़्यादा साफ सुथरी हैं तो अल्लाह से डरो और मुझे मेरे मेहमान के बारे में रुसवा न करो क्या तुम में से कोई भी समझदार आदमी नहीं है।
  19. क़ालू ल-क़द् अलिम्-त मा लना फ़ी बनाति-क मिन् हक़्क़िन व इन्न-क ल-तअ्लमु मा नुरीद
    उन (कम्बख़्तो) न जवाब दिया तुम को खूब मालूम है कि तुम्हारी क़ौम की लड़कियों की हमें कुछ हाजत (जरूरत) नही है और जो बात हम चाहते है वह तो तुम ख़ूब जानते हो।
  20. क़ा-ल लौ अन्-न ली बिकुम् क़ुव्वतन् औ आवी इला रूक्निन् शदीद
    लूत ने कहा काश मुझमें तुम्हारे मुक़ाबले की कूवत होती या मै किसी मज़बूत किले मे पनाह ले सकता।

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