12 सूरह यूसुफ़ हिंदी में पेज 1

12 सूरह यूसुफ़ | Surah Yusuf

सूरह यूसुफ़ में 111 आयतें हैं। यह सूरह पारा 12, पारा 13 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई।

इस सूरह में पैग़म्बर यूसुफ (अलै.) के बारे मे बयान हुआ है, इसी से इसका नाम यूसुफ रखा गया है।

सूरह यूसुफ़ हिंदी में | Surat Yusuf in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ्-लाम्-रा, तिल् क आयातुल्-किताबिल मुबीन
    अलिफ़ लाम रा, ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें है।
  2. इन्ना अन्ज़ल्नाहु क़ुरआनन् अ़-रबिय्यल् लअ्ल्लकुम् तअ्क़िलून
    हमने इस किताब (क़ुरान) को अरबी में नाजि़ल किया है ताकि तुम समझो।
  3. नह्नु नक़ुस्सु अ़लै-क अह् स-नल् क़-स-सि बिमा औहैना इलै-क हाज़ल-क़ुरआ-न, व इन् कुन-त मिन् क़ब्लिही लमिनल्-ग़ाफ़िलीन
    (ऐ रसूल!) हम तुम पर ये क़ुरान नाजि़ल करके तुम से एक निहायत उम्दा कि़स्सा बयान करते हैं अगरचे तुम इसके पहले (उससे) बिल्कुल बेख़बर थे।
  4. इज़् क़ा-ल यूसुफु लि-अबीहि या अ-बति इन्नी रऐतु अ-ह-द अ-श-र कौकबंव्-वश्शम् स वल् क़-म-र रऐतुहुम् ली साजिदीन
    (वह वक़्त याद करो) जब यूसूफ ने अपने बाप से कहा ऐ अब्बा मैने ग्यारह सितारों और सूरज चाँद को (ख़्वाब में) देखा है मैने देखा है कि ये सब मुझे सजदा कर रहे हैं।
  5. क़ा-ल या बुनय्-य ला तक़्सुस् रूअ्या-क अ़ला इख़्वति क फ़ यकीदू ल-क कैदन्, इन्नश्शैता-न लिल्इन्सानि अदुव्वुम् मुबीन
    याक़ूब ने कहा ऐ बेटा (देखो ख़बरदार) कहीं अपना ख़्वाब अपने भाईयों से न दोहराना (वरना) वह लोग तुम्हारे लिए मक्कारी की तदबीर करने लगेगें इसमें तो शक ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है।
  6. व कज़ालि-क यज्तबी-क रब्बु-क व युअ़ल्लिमु-क मिन् तअ्वीलिल्-अहादीसि व युतिम्मु निअ्म तहू अ़लै-क व अला आलि यअ्क़ू-ब कमा अ-तम्महा अ़ला अ-बवै-क मिन् क़ब्लु इब्राही-म व इस्हा-क़, इन्-न रब्ब-क अ़लीमुन् हकीम *
    और (जो तुमने देखा है) ऐसा ही होगा कि तुम्हारा परवरदिगार तुमको बरगुज़ीदा (इज़्जतदार) करेगा और तुम्हें ख़्वाबो की ताबीर सिखाएगा और जिस तरह इससे पहले तुम्हारे दादा परदादा इबराहीम और इसहाक़ पर अपनी नेअमत पूरी कर चुका है और इसी तरह तुम पर और याक़ूब की औलाद पर अपनी नेअमत पूरी करेगा बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा वाकि़फकार हकीम है।
  7. ल-क़द् का-न फी यूसु-फ़ व इख़्वतिही आयातुल् लिस्सा इलीन
    (ऐ रसूल) यूसुफ और उनके भाइयों के किस्से में पूछने वाले (यहूद) के लिए (तुम्हारी नुबूवत) की यक़ीनन बहुत सी निशनियाँ हैं।
  8. इज़् क़ालू ल-यूसुफु व अख़ूहु अहब्बु इला अबीना मिन्ना व नह्नु अुस्बतुन्, इन्-न अबाना लफ़ी ज़लालिम्-मुबीन
    कि जब (यूसूफ के भाइयों ने) कहा कि बावजूद कि हमारी बड़ी जमाअत है फिर भी यूसुफ़ और उसका हकीक़ी भाई (इब्ने यामीन) हमारे वालिद के नज़दीक बहुत ज़्यादा प्यारे हैं इसमें कुछ शक नहीं कि हमारे वालिद यक़ीनन सरीही (खुली हुयी) ग़लती में पड़े हैं।
  9. उक़्तुलू यूसु-फ अवित्रहूहु अर्ज़य्यख़्लु लकुम् वज्हु अबीकुम् व तकूनू मिम्-बअ्दिही क़ौमन् सालिहीन
    (ख़ैर तो अब मुनासिब ये है कि या तो) युसूफ को मार डालो या (कम से कम) उसको किसी जगह (चल कर) फेंक आओ तो अलबत्ता तुम्हारे वालिद की तवज्जो सिर्फ तुम्हारी तरफ हो जाएगा और उसके बाद तुम सबके सब (बाप की तवजज्जो से) भले आदमी हो जाओगें।
  10. क़ा-ल क़ाइलुम्-मिन्हुम् ला तक़्तुलू यूसु-फ व अल्क़ूहु फ़ी-ग़या-बतिल्-जुब्बि यल्तक़ित्हु बअ् ज़ुस्सय्यारति इन् कुन्तुम् फाअिलीन
    उनमें से एक कहने वाला बोल उठा कि यूसुफ को जान से तो न मारो हाँ अगर तुमको ऐसा ही करना है तो उसको किसी अन्धे कुएँ में (ले जाकर) डाल दो कोई राहगीर उसे निकालकर ले जाएगा (और तुम्हारा मतलब हासिल हो जाएगा)।
  11. क़ालू या अबाना मा ल-क ला तअ्मन्ना अ़ला यूसु-फ व इन्ना लहू लनासिहून
    सब ने (याक़ूब से) कहा अब्बा जान आखि़र उसकी क्या वजह है कि आप यूसुफ के बारे में हमारा ऐतबार नहीं करते।
  12. अरसिल्हु म अ़ना ग़दंय्-यर्-तअ् व यल्अ़ब् व इन्ना लहू लहाफिज़ून
    हालांकि हम लोग तो उसके ख़ैर ख़्वाह (भला चाहने वाले) हैं आप उसको कुल हमारे साथ भेज दीजिए कि ज़रा (जंगल) से फल वगै़रह् खाए और खेले कूदे।
  13. क़ाल इन्नी ल-यह्ज़ुनुनी अन् तज़्हबू बिही व अख़ाफु अंय्यअ्कु-लहुज्जिअ्बु व अन्तुम् अन्हु ग़ाफ़िलून
    और हम लोग तो उसके निगेहबान हैं ही याक़ूब ने कहा तुम्हारा उसको ले जाना मुझे सख़्त सदमा पहुँचाना है और मै तो इससे डरता हूँ कि तुम सब के सब उससे बेख़बर हो जाओ और (मुबादा) उसे भेडि़या फाड़ खाए।
  14. क़ालू ल-इन् अ-क-लहुज़्ज़िअ्बु व नह्नु अुस्बतुन् इन्ना इज़ल्-लख़ासिरून
    वह लोग कहने लगे जब हमारी बड़ी जमाअत है (इस पर भी) अगर उसको भेडि़या खा जाए तो हम लोग यक़ीनन बड़े घाटा उठाने वाले (निकलते) ठहरेगें।
  15. फ़-लम्मा ज़-हबू बिही व अज्मअू अंय्यज्-अ़लूहु फ़ी ग़या-बतिल-जुब्बि, व औहैना इलैहि लतुनब्बि-अन्नहुम् बिअम्-रिहिम् हाज़ा व हुम् ला यश्अुरून
    ग़रज़ यूसुफ को जब ये लोग ले गए और इस पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया कि उसको अन्धे कुएँ में डाल दें और (आखि़र ये लोग गुज़रे तो) हमने युसुफ़ के पास ‘वही’भेजी कि तुम घबराओ नहीं हम अनक़रीब तुम्हें मरतबे (उँचे मकाम) पर पहुँचाएगे (तब तुम) उनके उस फेल (बद) से तम्बीह (आग़ाह) करोगे।
  16. व जाऊ अबाहुम् अिशाअंय्-यब्कून
    जब उन्हें कुछ ध्यान भी न होगा और ये लोग रात को अपने बाप के पास (बनवट) से रोते पीटते हुए आए।
  17. क़ालू या अबाना इन्ना ज़हब्ना नस्तबिक़ु व तरक्ना यूसु-फ़ अिन्-द मताअिना फ़-अ-क-लहुज़्-ज़िअ्बु, व मा अन्-त बिमुअ्मिनिल्लना व लौ कुन्ना सादिक़ीन
    और कहने लगे ऐ अब्बा हम लोग तो जाकर दौड़ने लगे और यूसुफ को अपने असबाब के पास छोड़ दिया इतने में भेडि़या आकर उसे खा गया हम लोग अगर सच्चे भी हो मगर आपको तो हमारी बात का यक़ीन आने का नहीं।
  18. व जाऊ अ़ला क़मीसिही बि-दमिन कज़िबिन, क़ा-ल बल् सव्व-लत् लकुम अन्फुसुकुम् अम्रन्, फ़-सब्-रून् जमीलुन्, वल्लाहुल्-मुस्तआ़नु अ़ला मा तसिफून
    और ये लोग यूसुफ के कुरते पर झूठ मूठ (भेड़) का खून भी (लगा के) लाए थे, याक़ूब ने कहा (भेडि़या ने ही खाया (बल्कि) तुम्हारे दिल ने तुम्हारे बचाओ के लिए एक बात गढ़ी वरना कुर्ता फटा हुआ ज़रुर होता फिर सब्र व शुक्र है और जो कुछ तुम बयान करते हो उस पर अल्लाह ही से मदद माँगी जाती है।
  19. व जाअत् सय्यारतुन् फ़-अरसलू वारि-दहुम् फ़-अद्ला दल्वहू, क़ा-ल या बुश्रा हाज़ा ग़ुलामुन्, व अ-सर्रूहु बिज़ा-अतन्, वल्लाहु अ़लीमुम्-बिमा यअ्मलून
    और (अल्लाह की शान देखो) एक काफ़ला (वहाँ) आकर उतरा उन लोगों ने अपने सक़्के (पानी भरने वाले) को (पानी भरने) भेजा ग़रज़ उसने अपना डोल डाला ही था (कि यूसुफ उसमें बैठे और उसने ख़ीचा तो निकल आए) वह पुकारा आहा ये तो लड़का है और काफला वालो ने यूसुफ को क़ीमती सरमाया समझकर छिपा रखा हालांकि जो कुछ ये लोग करते थे अल्लाह उससे ख़ूब वाकिफ था।
  20. व शरौहु बि-स-मनिम् बख़्सिन् दराहि-म मअ्दू – दतिन् व कानू फ़ीहि मिनज़्ज़ाहिदीन *
    (जब यूसुफ के भाइयों को ख़बर लगी तो आ पहुँचे और उनको अपना ग़ुलाम बताया और उन लोगों ने यूसुफ को गिनती के खोटे चन्द दरहम (बहुत थोड़े दाम पर बेच डाला) और वह लोग तो यूसुफ से बेज़ार हो ही रहे थे।
  21. व क़ालल्लज़िश्तराहु मिम् मिस्-र लिम्र-अतिही अक्रिमी मस्वाहु असा अंय्यन्फ़-अना औ नत्तखि-ज़हू व-लदन्, व कज़ालि-क मक्कन्ना लियूसु-फ़ फिल्अर्ज़ि, व लिनुअ़ल्लि-महू मिन् तअ्वीलिल्-अहादीसि, वल्लाहु ग़ालिबुन् अ़ला अम्रिही व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
    (यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे और वहाँ उसे बड़े नफे़ में बेच डाला) और मिस्र के लोगों से (अज़ीजे़ मिस्र) जिसने (उनको ख़रीदा था अपनी बीवी (ज़ुलेख़ा) से कहने लगा इसको इज़्ज़त व आबरु से रखो अजब नहीं ये हमें कुछ नफा पहुँचाए या (शायद) इसको अपना बेटा ही बना लें और यू हमने यूसुफ को मुल्क (मिस्र) में (जगह देकर) क़ाबिज़ बनाया और ग़रज़ ये थी कि हमने उसे ख़्वाब की बातों की ताबीर सिखायी और अल्लाह तो अपने काम पर (हर तरह के) ग़ालिब व क़ादिर है मगर बहुतेरे लोग (उसको) नहीं जानते।
  22. व लम्मा ब-ल-ग़ अशुद्-दहू आतैनाहु हुक्मंव्-व अिल्मन्, व कज़ालि क नज्ज़िल-मुह़्सिनीन
    और जब यूसुफ अपनी जवानी को पहुँचे तो हमने उनको हुक्म (नुबूवत) और इल्म अता किया और नेकी कारों को हम यूँ ही बदला दिया करते हैं।

Surah Yusuf Video

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