10 सूरह यूनुस हिंदी में पेज 1

10 सूरह यूनुस | Surah Yunus

सूरह यूनुस में 109 आयतें हैं। यह सूरह पारा 11 में है। यह सूरह मक्का में नाजिल हुई। 

इस सूरह का नाम आयत 98 से लिया गया है, जिसमें हज़रत यूनुस (अलै) का ज़िक्र हुआ है। सूरह का विषय हज़रत यूनुस (अलै.) की कहानी नहीं है।

सूरह यूनुस हिंदी में | Surat Yunus in Hindi

बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहिम
शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है
  1. अलिफ्- लाम् – रा तिल-क आयातुल् किताबिल् – हकीम
    अलिफ़ लाम रा। ये आयतें उस किताब की हैं जो अज़सरतापा (सर से पैर तक) हिकमत से मलूउ (भरी) है
  2. अका- न लिन्नासि अ – जबन् अन् औहैना इला रजुलिम् – मिन्हुम् अन् अन्ज़िरिन्ना – स व बश्शिरिल्लज़ी – न आमनू अन् – न लहुम् क़ -द-म सिद्किन् अिन्- द रब्बिहिम् क़ालल काफ़िरू-न इन्-न हाज़ा लसाहिरूम् – मुबीन
    क्या लोगों को इस बात से बड़ा ताज्जुब हुआ कि हमने उन्हीं लोगों में से एक आदमी के पास वही भेजी कि (बे ईमान) लोगों को डराओ और ईमानदारो को इसकी ख़ुश ख़बरी सुना दो कि उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में बुलन्द दर्जे है। (मगर) कुफ्फार (उन आयतों को सुनकर) कहने लगे कि ये (शख़्स तो यक़ीनन सरीही जादूगर) है।
  3. इन् – न रब्बकुमुल्लाहुल्लज़ी ख-लकस्समावाति वल् अर्-ज़ फ़ी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल् – अ़र्शि युदब्बिरूल् -अम्-र, मा मिन् शफ़ीअिन् इल्ला मिम्-बअ्दि इज्निही, ज़ालिकुमुल्लाहु रब्बुकुम् फ़अ्बुदूहु, अ-फ़ला तज़क्करून
    इसमें तो शक ही नहीं कि तुमरा परवरदिगार वही ख़ुदा है जिसने सारे आसमान व ज़मीन को 6 दिन में पैदा किया फिर उसने अर्श को बुलन्द किया वही हर काम का इन्तज़ाम करता है (उसके सामने) कोई (किसी का) सिफारिशी नहीं (हो सकता) मगर उसकी इजाज़त के बाद वही ख़ुदा तो तुम्हारा परवरदिगार है तो उसी की इबादत करो तो क्या तुम अब भी ग़ौर नही करते।
  4. इलैहि मर्जिअुकुम् जमीअ़न्, वअदल्लाहि हक़्क़न्, इन्नहू यब्दउल्-ख़ल्-क़ सुम् -म युईदुहू लियज्ज़ियल्लज़ी – न आमनू व अमिलुस्सालिहाति बिल्क़िस्ति, वल्लज़ी – न क – फरू लहुम् शराबुम् – मिन् हमीमिंव व अज़ाबुन् अलीमुम् – बिमा कानू यक्फुरून
    तुम सबको (आखि़र) उसी की तरफ लौटना है। ख़ुदा का वायदा सच्चा है। वही यक़ीनन मख़लूक को पहली मरतबा पैदा करता है फिर (मरने के बाद) वही दुबारा जिन्दा करेगा ताकि जिन लोगों ने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उनको इन्साफ के साथ जज़ाए (ख़ैर) अता फरमाएगा। और जिन लोगों ने कुफ्र एख़्तियार किया उन के लिए उनके कुफ्र की सज़ा में पीने को खौलता हुआ पानी और दर्दनाक अज़ाब होगा।
  5. हुवल्लज़ी-ज अलश्शम् स ज़ियाअंव्-वल्क-म र नूरंव् व कद्द – रहू मनाज़ि-ल लितअ्लमू अ़-ददस्सिनी – न वल्हिसा-ब, मा ख़-लकल्लाहु ज़ालि-क इल्ला बिल्हक़्क़ि युफस्सिलुल् – आयाति लिकौमिंय्यअ्लमून
    वही वह (ख़़ुदाए क़ादिर) है जिसने आफ़ताब को चमकदार और महताब को रौशन बनाया और उसकी मंजि़लें मुक़र्रर की ताकि तुम लोग बरसों की गिनती और हिसाब मालूम करो। ख़़ुदा ने उसे हिकमत व मसलहत से बनाया है वह (अपनी) आयतों का वाक़िफ़कार लोगों के लिए तफ़सीलदार बयान करता है।
  6. इन् -न फ़िख़् तिलाफ़िल्लैलि वन्नहारि व मा ख – लकल्लाहु फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि लआयातिल् लिकौमिय्यत्तकून
    इसमें ज़रा भी शक नहीं कि रात दिन के उलट फेर में और जो कुछ ख़़ुदा ने आसमानों और ज़मीन में बनाया है (उसमें) परहेज़गारों के वास्ते बहुतेरी निशानियाँ हैं।
  7. इन्नल्लज़ी-न ला यरजू-न लिक़ा-अना व रजू बिल्हयातिद्दुन्या वत्म-अन्नू बिहा वल्लज़ी-न हुम् अन् आयातिना ग़ाफ़िलून
    इसमें भी शक नहीं कि जिन लोगों को (क़यामत में) हमारी (बारगाह की) हुज़ूरी का ठिकाना नहीं और दुनिया की (चन्द रोज़) जि़न्दगी से निहाल हो गए और उसी पर चैन से बैठे हैं और जो लोग हमारी आयतों से ग़ाफिल हैं।
  8. उलाइ-क मअ्वाहुमुन्नारू बिमा कानू यक्सिबून
    यही वह लोग हैं जिनका ठिकाना उनकी करतूत की बदौलत जहन्नुम है।
  9. इन्नल्लज़ी-न आमनू व अमिलुस्सालिहाति यह़्दीहिम् रब्बुहुम् बिईमानिहिम् तज्री मिन् तह़्तिहिमुल-अन्हारू फ़ी जन्नातिन् – नईम
    बेशक जिन लोगों ने इमान कुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन्हें उनका परवरदिगार उनके इमान के सबब से मंजि़ल मक़सूद तक पहुँचा देगा कि आराम व आसाइश के बाग़ों में (रहेगें) और उन के नीचे नहरें जारी होगी उन बाग़ों में।
  10. दअ्वाहुम् फीहा सुब्हान -कल्लाहुम् – म व तहिय्यतुहुम् फ़ीहा सलामुन व आखिरू दअ्वाहुम् अनिल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल् – आलमीन *
    उन लोगों का बस ये कौल होगा ऐ ख़ुदा तू पाक व पाकीज़ा है और उनमें उनकी बाहमी (आपसी) खै़रसलाही (मुलाक़ात) सलाम से होगी और उनका आखि़री क़ौल ये होगा कि सब तारीफ ख़ुदा ही को सज़ावार है जो सारे जहाँन का पालने वाला है।
  11. व लौ युअ़ज्जिलुल्लाहु लिन्नासिश शर्रसतिअ्जा – लहुम बिल्ख़ैरि लकुजि – य इलैहिम् अ – जलुहुम्, फ़-न – ज़रूल्लज़ी – न ला यरजू – न लिका – अना फी तुग्यानिहिम् यअ्महून
    और जिस तरह लोग अपनी भलाई के लिए जल्दी कर बैठे हैं उसी तरह अगर ख़ुदा उनकी शरारतों की सज़ा में बुराई में जल्दी कर बैठता है तो उनकी मौत उनके पास कब की आ चुकी होती मगर हम तो उन लोगों को जिन्हें (मरने के बाद) हमारी हुज़ूरी का खटका नहीं छोड़ देते हैं कि वह अपनी सरकशी में आप सरगि़रदा रहें। 
  12. व इज़ा मस्सल् इन्सान्ज् – जुर्रू दआ़ना लिजम्बिही औ क़ाअिदन् औ काइमन् फ़-लम्मा कशफ़्ना अन्हु जुर् -रहू मर् -र क -अल्लम् यद्अुना इला जुर्रिंम् – मस्सहू, कज़ालि क जुय्यि – न लिल्मुस्रिफ़ी-न मा कानू यअ्मलून
    और इन्सान को जब कोई नुकसान छू भी गया तो अपने पहलू पर (लेटा हो) या बैठा हो या ख़ड़ा (गरज़ हर हालत में) हम को पुकारता है फिर जब हम उससे उसकी तकलीफ को दूर कर देते है तो ऐसा खिसक जाता है जैसे उसने तकलीफ के (दफा करने के) लिए जो उसको पहुँचती थी हमको पुकारा ही न था जो लोग ज़्यादती करते हैं उनकी कारस्तानियाँ यूँ ही उन्हें अच्छी कर दिखाई गई हैं।
  13. व ल – कद् अह़्लक्नल-कुरू-न मिन् क़ब्लिकुम् लम्मा ज़-लमू व जाअत्हुम् रूसुलुहुम् बिल्बय्यिनाति व मा कानू लियुअ्मिनू, कज़ालि-क नज्ज़िल कौमल्-मुज्रिमीन
    और तुमसे पहली उम्मत वालों को जब उन्होंने शरारत की तो हम ने उन्हें ज़रुर हलाक कर डाला हालाकि उनके (वक़्त के) रसूल वाजेए व रौशन मोजि़ज़ात लेकर आ चुके थे और वह लोग ईमान (न लाना था) न लाए हम गुनेहगार लोगों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं। 
  14. सुम्-म जअल्नाकुम् ख़लाइ-फ़ फ़िल्अर्ज़ि मिम्-बअ्दिहिम् लिनन्जु-र कै-फ़ तअ्मलून
    फिर हमने उनके बाद तुमको ज़मीन में (उनका) जानषीन बनाया ताकि हम (भी) देखें कि तुम किस तरह काम करते हो। 
  15. व इज़ा तुत्ला अ़लैहिम् आयातुना बय्यिनातिन् कालल्लज़ी – न ला यरजू न लिका – अनअ्ति बिकुर आनिन् गैरि हाज़ा औ बद्दिल्हु, कुल् मा यकूनु ली अन् उबद्दि – लहू मिन् तिल्का – इ नफ्सी इन् अत्तबिअु इल्ला मा यूहा इलय्-य इन्नी अख़ाफु इन् अ़सैतु रब्बी अ़ज़ा-ब यौमिन् अ़ज़ीम
    और जब उन लोगों के सामने हमारी रौशन आयते पढ़ीं जाती हैं तो जिन लोगों को (मरने के बाद) हमारी हुजूरी का खटका नहीं है वह कहते है कि हमारे सामने इसके अलावा कोई दूसरा (कुरान लाओ या उसका रद्दो बदल कर डालो (ऐ रसूल तुम कह दो कि मुझे ये एख़्तेयार नहीं कि मै उसे अपने जी से बदल डालूँ मै तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरी तरफ वही की गई है मै तो अगर अपने परवरदिगार की नाफरमानी करु तो बड़े (कठिन) दिन के अज़ाब से डरता हूँ। 
  16. कुल् लौ शा – अल्लाहु मा तलौतुहू अलैकुम् व ला अद्राकुम बिही फ़-कद् लबिस्तु फ़ीकुम् अुमुरम् – मिन् कब्लिही, अ- फ़ला तअ्किलून
    (ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा चाहता तो मै न तुम्हारे सामने इसको पढ़ता और न वह तुम्हें इससे आगाह करता क्योंकि मै तो (आखि़र) तुमने इससे पहले मुद्दतों रह चुका हूँ (और कभी ‘वही’ का नाम भी न लिया) तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते।
  17. फ़- मन् अज़्लमु मिम् मनिफ्तरा अ़लल्लाहि कज़िबन् औ कज़्ज़ – ब बिआयातिही, इन्नहू ला युफ्लिहुल मुज्रिमून
    तो जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बाधे या उसकी आयतो को झुठलाए उससे बढ़ कर और ज़ालिम कौन होगा इसमें शक नहीं कि (ऐसे) गुनाहगार कामयाब नहीं हुआ करते। 
  18. व यअ्बुदू – न मिन् दूनिल्लाहि मा ला यजुर्रूहुम् व ला यन्फ़अुहुम् व यकूलू-न हा-उला-इ शु-फ़आ़उना अिन्दल्लाहि, कुल अतुनब्बिऊनल्ला-ह बिमा ला यअ्लमु फिस्समावाति व ला फ़िल्अर्जि, सुब्हानहू व तआला अम्मा युश्रिकून
    या लोग ख़ुदा को छोड़ कर ऐसी चीज़ की परसतिश करते है जो न उनको नुकसान ही पहुँचा सकती है न नफा और कहते हैं कि ख़ुदा के यहाँ यही लोग हमारे सिफारिषी होगे (ऐ रसूल) तुम (इनसे) कहो तो क्या तुम ख़़ुदा को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो जिसको वह न तो आसमानों में (कहीं) पाता है और न ज़मीन में ये लोग जिस चीज़ को उसका शरीक बनाते है। उससे वह पाक साफ और बरतर है।
  19. व मा कानन्नासु इल्ला उम्मतंव्वाहि – दतन् फ़ख़्त -लफु, व लौ ला कलि- मतुन् स – बक़त् मिर्रब्बि – क लकुज़ि – य बैनहुम् फ़ीमा
    फ़ीहि यख़्तलिफून
    और सब लोग तो (पहले) एक ही उम्मत थे और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात (क़यामत का वायदा) पहले न हो चुकी होती जिसमें ये लोग एख़्तिलाफ कर रहे हैं उसका फैसला उनके दरम्यिान (कब न कब) कर दिया गया होता।

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