24 सूरह नूर हिंदी में​ पेज 2

सूरह नूर का तर्जुमा

  1. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तत्तबिअू खु़तुवातिश्शैतानि , व मंय्यत्तबिअ् खुतुवातिश्शैतानि फ़-इन्नहू यअ्मुरु बिल्फ़हशा-इ वल्मुन्करि , व लौ ला फ़ज़्लुल्लाहि अ़लैकुम् व रह़्मतुहू मा ज़का मिन्कुम् मिन् अ-हदिन् अ-बदंव्-व लाकिन्नल्ला-ह युज़क्की मंय्यशा-उ , वल्लाहु समीअुन् अ़लीम
    (तो तुम देखते क्या होता) ऐ ईमानदारों शैतान के क़दम ब क़दम न चलो और जो शख्स शैतान के क़दम ब क़दम चलेगा तो वह यक़ीनन उसे बदकारी और बुरी बात (करने) का हुक्म देगा और अगर तुम पर अल्लाह का फ़ज़ल (व करम) और उसकी रहमत न होती तो तुममें से कोई भी कभी पाक साफ न होता मगर अल्लाह तो जिसे चहता है पाक साफ कर देता है और अल्लाह बड़ा सुनने वाला वाकिफकार है।
  2. व ला यअ्तलि उलुल्-फ़ज्लि मिन्कुम् वस्स-अ़ति अंय्युअतू उलिल्-कुरबा वल्मसाकी-न वल्मुहाजिरी-न फ़ी सबीलिल्लाहि वल्-यअ्फू वल्-यस्फ़हू , अला तुहिब्बू-न अंय्यग़्फिरल्लाहु लकुम् , वल्लाहु ग़फूरूर्रहीम 
    और तुममें से जो लोग ज्यादा दौलत और मुक़द्दर वालें है क़राबतदारों और मोहताजों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों को कुछ देने (लेने) से क़सम न खा बैठें बल्कि उन्हें चाहिए कि (उनकी ख़ता) माफ कर दें और दरगुज़र करें क्या तुम ये नहीं चाहते हो कि अल्लाह तुम्हारी ख़ता माफ करे और अल्लाह तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  3. इन्नल्लज़ी-न यरमूनल-मुह्सनातिल् ग़ाफ़िलातिल्-मुअ्मिनाति लुअिनू फिद्दुन्या वल-आख़िरति व लहुम् अ़ज़ाबुन् अ़ज़ीम
    बेशक जो लोग पाक दामन बेख़बर और ईमानदार औरतों पर (ज़िना की) तोहमत लगाते हैं उन पर दुनिया और आख़िरत में (अल्लाह की) लानत है और उन पर बड़ा (सख्त) अज़ाब होगा।
  4. यौ-म तश्-हदु अ़लैहिम् अल्सि-नतुहुम् व ऐदीहिम् व अरजुलूहुम् बिमा कानू यअ्मलून
    जिस दिन उनके ख़िलाफ उनकी ज़बानें और उनके हाथ उनके पावँ उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें।
  5. यौ मइज़िंय्-युवफ़्फ़ीहिमुल्लाहु दीनहुमुल्-हक्-क़ व यअ्लमू-न अन्नल्ला-ह हुवल्-हक़्कुल-मुबीन
    उस दिन अल्लाह उनको ठीक उनका पूरा पूरा बदला देगा और जान जाएँगें कि अल्लाह बिल्कुल बरहक़ और (हक़ का) ज़ाहिर करने वाला है।
  6. अल्ख़बीसातु लिल्ख़बीसी-न वल्ख़बीसू-न लिल्ख़बीसाति वत्तय्यिबातु लित्तय्यिबी-न वत्तय्यिबू-न लित्तय्यिबाति उलाइ-क मुबर्रऊ-न मिम्मा यकूलू-न , लहुम् मग्फि-रतुंव्-व रिज़्कुन् करीम*
    गन्दी औरते गन्दें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतो के लिए और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौज़ूँ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे ये लोग बुरी उल ज़िम्मा हैं उन ही (पाक लोगों) के लिए (आख़िरत में) बख़्शिस है।
  7. या अय्युहल्लज़ी-न आमनू ला तद्खुलू बुयूतन् गै़-र बुयूतिकुम् हत्ता तस्तअ्निसू व तुसल्लिमू अ़ला अह़्लिहा , ज़ालिकुम् खै़रुल्-लकुम् लअ़ल्लकुम् तज़क्करून
    और इज्ज़त की रोज़ी ऐ ईमानदारों अपने घरों के सिवा दूसरे घरों में (दर्राना) न चले जाओ यहाँ तक कि उनसे इजाज़त ले लो और उन घरों के रहने वालों से साहब सलामत कर लो यही तुम्हारे हक़ में बेहतर है।
  8. फ़-इल्लम् तजिदू फ़ीहा अ-हदन् फ़ला तद्ख़ुलूहा हत्ता युअ्-ज़-न लकुम् व इन् की-ल लकुमुर्जिअू फ़रजिअू हु-व अज़्का लकुम् , वल्लाहु बिमा तअ्मलू-न अलीम
    (ये नसीहत इसलिए है) ताकि तुम याद रखो पस अगर तुम उन घरों में किसी को न पाओ तो तावाक़फियत कि तुम को (ख़ास तौर पर) इजाज़त न हासिल हो जाए उन में न जाओ और अगर तुम से कहा जाए कि फिर जाओ तो तुम (बे ताम्मुल) फिर जाओ यही तुम्हारे वास्ते ज्यादा सफाई की बात है और तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उससे खूब वाकिफ़ है।
  9. लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तद्खुलू बुयूतन् गै़-र मस्कूनतिन् फ़ीहा मताअुल्-लकुम् , वल्लाहु यअ्लमु मा तुब्दू-न व मा तक्तुमून 
    इसमें अलबत्ता तुम पर इल्ज़ाम नहीं कि ग़ैर आबाद मकानात में जिसमें तुम्हारा कोई असबाब हो (बे इजाज़त) चले जाओ और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हो और जो कुछ छिपाकर करते हो अल्लाह (सब कुछ) जानता है।
  10. कुल लिल्-मुअ्मिनी-न यगुज़्जू मिन् अब्सारिहिम् व यह्फ़जू फुरू-जहुम् , ज़ालि-क अज़्का लहुम् , इन्नल्ला-ह ख़बीरूम्-बिमा यस्नअून 
    (ऐ रसूल!) ईमानदारों से कह दो कि अपनी नज़रों को नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें यही उनके वास्ते ज्यादा सफाई की बात है ये लोग जो कुछ करते हैं अल्लाह उससे यक़ीनन ख़ूब वाक़िफ है।
  11. व कुल लिल्-मुअ्मिनाति यग्जुज्-न मिन् अब्सारिहिन्-न व यह्फ़ज्-न फुरू-जहुन्-न व ला युब्दी-न ज़ीन-तहुन्-न इल्ला मा ज़-ह-र मिन्हा वल्यज्रिब्-न बिखुमुरिहिन्-न अ़ला जुयूबिहिन्-न व ला युब्दी-न जीन-तहुन्-न इल्ला लिबुअ़ू-लतिहिन्-न औ आबाइ-हिन्-न औ आबाइ-बुअू-लतिहिन्-न औ अब्नाइ-हिन्-न औ अब्ना-इ बुअू-लतिहिन्-न औ इख़्वानिहिन्-न औ बनी इख़्वानिहिन्-न औ बनी अ-ख़वातिहिन्-न औ निसाइ-हिन्-न औ मा म-लकत् ऐमानुहुन्-न अवित्ताबिअ़ी-न गै़रि उलिल्-इरबति मिनर्-रिजालि अवित्-तिफ़्लिल्लज़ी-न लम् यज़्हरू अ़ला औरातिन्निसा-इ व ला यज्रिब्-न बि-अर्जुलिहिन्-न लियुअ्-ल-म मा युख्फी-न मिन् ज़ीनतिहिन्-न , व तूबू इलल्लाहि जमीअ़न् अय्युहल-मुअ्मिनू-न लअ़ल्लकुम् तुफ्लिहून
    और (ऐ रसूल!) ईमानदार औरतों से भी कह दो कि वह भी अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें और अपने बनाव सिंगार (के मक़ामात) को (किसी पर) ज़ाहिर न होने दें मगर जो खुद ब खुद ज़ाहिर हो जाता हो (छुप न सकता हो) (उसका गुनाह नही) और अपनी ओढ़नियों को (घूँघट मारके) अपने गरेबानों (सीनों) पर डाले रहें और अपने शौहर या अपने बाप दादाओं या आपने शौहर के बाप दादाओं या अपने बेटों या अपने शौहर के बेटों या अपने भाइयों या अपने भतीजों या अपने भांजों या अपने (क़िस्म की) औरतों या अपनी या अपनी लौंडियों या (घर के) नौकर चाकर जो मर्द सूरत हैं मगर (बहुत बूढे होने की वजह से) औरतों से कुछ मतलब नहीं रखते या वह कमसिन लड़के जो औरतों के पर्दे की बात से आगाह नहीं हैं उनके सिवा (किसी पर) अपना बनाव सिंगार ज़ाहिर न होने दिया करें और चलने में अपने पाँव ज़मीन पर इस तरह न रखें कि लोगों को उनके पोशीदा बनाव सिंगार (झंकार वग़ैरह) की ख़बर हो जाए और ऐ ईमानदारों तुम सबके सब अल्लाह की बारगाह में तौबा करो ताकि तुम फलाह पाओ।
  12. व अन्किहुल-अयामा मिन्कुम् वस्सालिही-न मिन् अिबादिकुम व इमा-इकुम् , इंय्यकूनू फु-करा-अ युग्निहिमुल्लाहु मिन् फ़ज्लिही , वल्लाहु वासिअुन् अ़लीम
    और अपनी (क़ौम की) बेशौहर औरतों और अपने नेक बख्त गुलामों और लौंडियों का निकाह कर दिया करो अगर ये लोग मोहताज होंगे तो अल्लाह अपने फज़ल व (करम) से उन्हें मालदार बना देगा और अल्लाह तो बड़ी गुन्जाइश वाला वाक़िफ कार है।
  13. वल्-यस्तअ्फिफ़िल्लज़ी-न ला यजिदू-न निकाहन हत्ता युग्नि-यहुमुल्लाहु मिन् फ़ज़्लिही, वल्लज़ी-न यब्तगूनल-किता-ब मिम्मा म-लकत् ऐमानुकुम् फ़कातिबूहुम् इन् अ़लिम्तुम् फ़ीहिम् खैरंव्-व आतूहुम् मिम्-मालिल्लाहिल्लज़ी आताकुम, व ला तुकरिहू फ़-तयातिकुम अलल्बिगा-इ इन् अरद्-न त-हस्सुनल्-लितब्तगू अ़-रज़ल-हयातिद्दुन्या , व मंय्युकरिह्हुन्-न फ़-इन्नल्ला-ह मिम्-बअ्दि इक्राहिहिन्-न गफूरूर्-रहीम 
    और जो लोग निकाह करने का मक़दूर नहीं रखते उनको चाहिए कि पाक दामिनी एख्तियार करें यहाँ तक कि अल्लाह उनको अपने फज़ल व (करम) से मालदार बना दे और तुम्हारी लौन्डी ग़ुलामों में से जो मकातबत होने (कुछ रुपए की शर्त पर आज़ादी का सरख़त लेने) की ख्वाहिश करें तो तुम अगर उनमें कुछ सलाहियत देखो तो उनको मकातिब कर दो और अल्लाह के माल से जो उसने तुम्हें अता किया है उनका भी दो और तुम्हारी लौन्डियाँ जो पाक दामन ही रहना चाहती हैं उनको दुनियावी ज़िन्दगी के फायदे हासिल करने की ग़रज़ से हराम कारी पर मजबूर न करो और जो शख्स उनको मजबूर करेगा तो इसमें शक नहीं कि अल्लाह उसकी बेबसी के बाद बड़ा बख्शने वाले मेहरबान है।
  14. व ल-कद् अन्ज़ल्ना इलैकुम् आयातिम्-मुबय्यिनातिंव्-व म-सलम्-मिनल्लज़ी-न ख़लौ मिन् क़ब्लिकुम् व मौअि-ज़तल्-लिल्मुत्तक़ीन*
    और (ईमानदारों) हमने तो तुम्हारे पास (अपनी) वाज़ेए व रौशन आयतें और जो लोग तुमसे पहले गुज़र चुके हैं उनकी हालतें और परहेज़गारों के लिए नसीहत (की बाते) नाज़िल की।
  15. अल्लाहु नूरूस्समावाति वल्अर्जि , म-सलु नूरिही कमिश्कातिन् फीहा मिस्बाहुन् , अल-मिस्बाहु फ़ी जुजाजतिन् , अज़्जु़जा-जतु क-अन्नहा कौकबुन् दुर्रिय्-युंय्यू-कदु मिन् श-ज-रतिम् मुबार-कतिन् जै़तूनतिल्-ला शर्किय्यतिंव् व ला ग़रबिय्यतिंय्-यकादु जै़तुहा युज़ी-उ व लौ लम् तम्सस्हु नारुन् , नूरुन् अला नूरिन् , यह्दिल्लाहु लिनूरिही मंय्यशा-उ , व यज़्रिबुल्लाहुल्-अम्सा-ल लिन्नासि , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अ़लीम
    अल्लाह तो सारे आसमान और ज़मीन का नूर है उसके नूर की मिसल (ऐसी) है जैसे एक ताक़ (सीना) है जिसमे एक रौशन चिराग़ (इल्मे शरीयत) हो और चिराग़ एक शीशे की क़न्दील (दिल) में हो (और) क़न्दील (अपनी तड़प में) गोया एक जगमगाता हुआ रौशन सितारा (वह चिराग़) जैतून के मुबारक दरख्त (के तेल) से रौशन किया जाए जो न पूरब की तरफ हो और न पश्चिम की तरफ (बल्कि बीचों बीच मैदान में) उसका तेल (ऐसा) शफ्फाफ हो कि अगरचे आग उसे छुए भी नही ताहम ऐसा मालूम हो कि आप ही आप रौशन हो जाएगा (ग़रज़ एक नूर नहीं बल्कि) नूर आला नूर (नूर की नूर पर जोत पड़ रही है) अल्लाह अपने नूर की तरफ जिसे चाहता है हिदायत करता है और अल्लाह तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है।
  16. फ़ी बुयूतिन् अज़िनल्लाहु अन् तुर्-फ़-अ़ व युज़्क-र फ़ीहस्मुहू युसब्बिहु लहू फ़ीहा बिल्-गुदुव्वि वल्-आसाल
    (वह क़न्दील) उन घरों में रौशन है जिनकी निस्बत अल्लाह ने हुक्म दिया कि उनकी ताज़ीम की जाए और उनमें उसका नाम लिया जाए जिनमें सुबह व शाम वह लोग उसकी तस्बीह किया करते हैं।
  17. रिजालुल् ला तुल्हीहिम् तिजा-रतुंव्-व ला बैअुन् अ़न् जिक्रिल्लाहि व इकामिस्सलाति व ईताइज़्ज़काति यखा़फू-न यौमन् त-तक़ल्लबु फीहिल्-कुलूबु वल्-अब्सार
    ऐसे लोग जिनको अल्लाह के ज़िक्र और नमाज़ पढ़ने और ज़कात अदा करने से न तो तिजारत ही ग़ाफिल कर सकती है न (ख़रीद फरोख्त) (का मामला क्योंकि) वह लोग उस दिन से डरते हैं जिसमें ख़ौफ के मारे दिल और ऑंखें उलट जाएँगी।
  18. लियज्ज़ि-यहुमुल्लाहु अह्स-न मा अ़मिलू व यज़ी-दहुम् मिन् फ़ज्लिही, वल्लाहु यर्जुकु मंय्यशा-उ बिगै़रि हिसाब 
    (उसकी इबादत इसलिए करते हैं) ताकि अल्लाह उन्हें उनके आमाल का बेहतर से बेहतर बदला अता फरमाए और अपने फज़ल व करम से कुछ और ज्यादा भी दे और अल्लाह तो जिसे चाहता है बेहिसाब रोज़ी देता है।
  19. वल्लज़ी-न क-फरू अअ्मालुहुम् क-सराबिम् बिकी-अतिंय् यह्सबुहुज-ज़म्आनु मा-अन्-हत्ता , इजा़ जा-अहू लम् यजिद्हू शैअंव्-व व-जदल्ला-ह अिन्दहू फ़-वफ़्फा़हु हिसा-बहू, वल्लाहु सरीअुल-हिसाब
    और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उनकी कारस्तानियाँ (ऐसी है) जैसे एक चटियल मैदान का चमकता हुआ बालू कि प्यासा उस को दूर से देखे तो पानी ख्याल करता है यहाँ तक कि जब उसके पास आया तो उसको कुछ भी न पाया (और प्यास से तड़प कर मर गया) और अल्लाह को अपने पास मौजूद पाया तो उसने उसका हिसाब (किताब) पूरा पूरा चुका दिया और अल्लाह तो बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है।
  20. औ क-जुलुमातिन् फ़ी बहरिल लुज्जिय्यिंय्-यग्शाहु मौजुम्-मिन् फौकिही मौजुम्-मिन् फौकिही सहाबुन , जुलुमातुम्-बअजुहा फ़ौ-क बअ्ज़िन् , इज़ा अख़र-ज य-दहू लम् य-कद् यराहा , व मल्लम् यज्अ़लिल्लाहु लहू नूरन् फ़मा लहू मिन्-नूर*
    (या काफिरों के आमाल की मिसाल) उस बड़े गहरे दरिया की तारिकियों की सी है- जैसे एक लहर उसके ऊपर दूसरी लहर उसके ऊपर अब्र (तह ब तह) ढॉके हुए हो (ग़रज़) तारिकियाँ है कि एक से ऊपर एक (उमड़ी) चली आती हैं (इसी तरह से) कि अगर कोइ शख्स अपना हाथ निकाले तो (शिद्दत तारीकी से) उसे देख न सके और जिसे खुद अल्लाह ही ने (हिदायत की) रौशनी न दी हो तो (समझ लो कि) उसके लिए कहीं कोई रौशनी नहीं है।
  21. अलम् त-र अन्नल्ला-ह युसब्बिहु लहू मन् फ़िस्समावाति वल्अर्ज़ि वत्तैरु साफ्फातिन् , कुल्लुन् क़द् अ़लि-म सला-तहू व तस्बी-हहू , वल्लाहु अ़लीमुम् बिमा यफ्अ़लून
    (ऐ शख्स!) क्या तूने इतना भी नहीं देखा कि जितनी मख़लूक़ात सारे आसमान और ज़मीन में हैं और परिन्दें पर फैलाए (ग़रज़ सब) उसी को तस्बीह किया करते हैं सब के सब अपनी नमाज़ और अपनी तस्बीह का तरीक़ा खूब जानते हैं और जो कुछ ये किया करते हैं अल्लाह उससे खूब वाक़िफ है।

सूरह नूर वीडियो

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