24 सूरह नूर हिंदी में​ पेज 3

सूरह नूर का तर्जुमा

  1. व लिल्लाहि मुल्कुस्समावाति वल्अर्जि व इलल्लाहिल्-मसीर
    और सारे आसमान व ज़मीन की सल्तनत ख़ास अल्लाह ही की है और अल्लाह ही की तरफ (सब को) लौट कर जाना है।
  2. अलम् त-र अन्नल्ला-ह युज्जी सहाबन् सुम्-म युअल्लिफु बैनहू सुम्-म यज्-अ़लुहू रूकामन्-फ़-तरल्-वद्-क़ यख़्रूजु मिन् ख़िलालिही व युनज्जिलु मिनस्समा-इ मिन् जिबालिन् फीहा मिम्-ब रदिन् फयुसीबु बिही मंय्यशा-उ व यसरिफुहू अम्-मंय्यशा-उ, यकादु सना बरकिही यज़्हबु बिल्अब्सार 
    क्या तूने उस पर भी नज़र नहीं की कि यक़ीनन अल्लाह ही अब्र को चलाता है फिर वही बाहम उसे जोड़ता है-फिर वही उसे तह ब तह रखता है तब तू तो बारिश उसके दरमियान से निकलते हुए देखता है और आसमान में जो (जमे हुए बादलों के) पहाड़ है उनमें से वही उसे बरसाता है- फिर उन्हें जिस (के सर) पर चाहता है पहुँचा देता है- और जिस (के सर) से चाहता है टाल देता है- क़रीब है कि उसकी बिजली की कौन्द आखों की रौशनी उचके लिये जाती है।
  3. युक़ल्लिबुल्लाहुल्लै-ल वन्नहा-र, इन्-न फी ज़ालि-क लअिब्- रतल्-लिउलिल्-अब्सार
    अल्लाह ही रात और दिन को फेर बदल करता रहता है- बेशक इसमें ऑंख वालों के लिए बड़ी इबरत है।
  4. वल्लाहु ख़-ल-क कुल्-ल दाब्बतिम् मिम्-माइन् फ़-मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला बत्निही व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला रिज्लैनि व मिन्हुम् मंय्यम्शी अ़ला अर्-बअिन्, यख़्लुकुल्लाहु मा यशा-उ, इन्नल्ला-ह अला कुल्लि शैइन् क़दीर
    और अल्लाह ही ने तमाम ज़मीन पर चलने वाले (जानवरों) को पानी से पैदा किया उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जो अपने पेट के बल चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो दो पाँव पर चलते हैं और बाज़ उनमें से ऐसे हैं जो चार पावों पर चलते हैं- अल्लाह जो चाहता है पैदा करता है इसमें शक नहीं कि अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
  5. ल-क़द् अन्ज़ल्ना आयातिम्-मुबय्यिनातिन्, वल्लाहु यह्दी मंय्यशा-उ इला सिरातिम्-मुस्तकीम
    हम ही ने यक़ीनन वाजेए व रौशन आयतें नाज़िल की और अल्लाह ही जिसको चाहता है सीधी राह की हिदायत करता है।
  6. व यकूलू-न आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूलि व अ-तअ्ना सुम्-म य-तवल्ला फ़रीकुम्-मिन्हुम् मिम्-बअ्दि ज़ालि-क, व मा उलाइ-क बिल्-मुअ्मिनीन
    और (जो लोग ऐसे भी है जो) कहते हैं कि अल्लाह पर और रसूल पर ईमान लाए और हमने इताअत क़ुबूल की- फिर उसके बाद उन में से कुछ लोग (अल्लाह के हुक्म से) मुँह फेर लेते हैं और (सच यूँ है कि) ये लोग ईमानदार थे ही नहीं।
  7. व इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि-यह्कु-म बैनहुम् इज़ा फ़रीकुम्-मिन्हुम् मुअ्रिजून
    और जब वह लोग अल्लाह और उसके रसूल की तरफ बुलाए जाते हैं ताकि रसूल उनके आपस के झगड़े का फैसला कर दें तो उनमें का एक फरीक रदगिरदानी करता है।
  8. व इंय्यकुल्-लहुमुल्-हक़्कु यअ्तू इलैहि मुज्अ़िनीन
    और (असल ये है कि) अगर हक़ उनकी तरफ होता तो गर्दन झुकाए (चुपके) रसूल के पास दौड़े हुए आते।
  9. अ-फी कुलूबिहिम् म-रजुन अमिरताबू अम् यखा़फू-न अंय्यहीफ़ल्लाहु अ़लैहिम् व रसूलुहू, बल् उलाइ-क हुमुज्ज़ालिमून *
    क्या उन के दिल में (कुफ्र का) मर्ज़ (बाक़ी) है या शक में पड़े हैं या इस बात से डरते हैं कि (मुबादा) अल्लाह और उसका रसूल उन पर ज़ुल्म कर बैठेगा- (ये सब कुछ नहीं) बल्कि यही लोग ज़ालिम हैं।
  10. इन्नमा का-न कौ़लल-मुअ्मिनी-न इज़ा दुअू इलल्लाहि व रसूलिही लि-यह्कु-म बैनहुम् अंय्यकूलू समिअ्ना व अतअ्ना, व उलाइ-क हुमुल्-मुफ्लिहून
    ईमानदारों का क़ौल तो बस ये है कि जब उनको अल्लाह और उसके रसूल के पास बुलाया जाता है ताकि उनके बाहमी झगड़ों का फैसला करो तो कहते हैं कि हमने (हुक्म) सुना और (दिल से) मान लिया और यही लोग (आख़िरत में) कामयाब होने वाले हैं।
  11. व मंय्युतिअिल्ला-ह व रसूलहू व यख़्शल्ला-ह व यत्तक्हि फ़-उलाइ-क हुमुल्-फ़ाइजून
    और जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म माने और अल्लाह से डरे और उस (की नाफरमानी) से बचता रहेगा तो ऐसे ही लोग अपनी मुराद को पहुँचेगें।
  12. व अक़्समू बिल्लाहि जह्-द ऐमानिहिम् ल-इन् अमर्-तहुम् ल-यख़्रुजुन्-न , कुल्-ल तुक्सिमू ता-अ़तुम् मअ़्रू-फतुन्, इन्नल्ला-ह ख़बीरुम्-बिमा तअ्मलून
    और (ऐ रसूल!) उन (मुनाफेक़ीन) ने तुम्हारी इताअत की अल्लाह की सख्त से सख्त क़समें खाई कि अगर तुम उन्हें हुक्म दो तो बिला उज़्र (घर बार छोड़कर) निकल खडे हों- तुम कह दो कि क़समें न खाओ दस्तूर के मुवाफिक़ इताअत (इससे बेहतर) और बेशक तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उससे ख़बरदार है।
  13. कुल अतीअुल्ला-ह व अतीअुसुर्रसू-ल फ-इन् तवल्लौ फ़-इन्नमा अ़लैहि मा हुम्मि-ल व अ़लैकुम् मा हुम्मिल्तुम्, व इन् तुतीअूहु तह्तदू, व मा-अ़लर्रसूलि इल्लल्-बलागुल्-मुबीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो इस पर भी अगर तुम सरताबी करोगे तो बस रसूल पर इतना ही (तबलीग़) वाजिब है जिसके वह ज़िम्मेदार किए गए हैं और जिसके ज़िम्मेदार तुम बनाए गए हो तुम पर वाजिब है और अगर तुम उसकी इताअत करोगे तो हिदायत पाओगे और रसूल पर तो सिर्फ साफ तौर पर (एहकाम का) पहुँचाना फर्ज है।
  14. व-अ़दल्लाहुल्लज़ी-न आमनू मिन्कुम् व अमिलुस्सालिहाति ल-यस्तख़्लिफ़न्नहुम् फ़िल्अर्जि क-मस्तख़्ल-फ़ल्लज़ी-न मिन् क़ब्लिहिम् व ल-युमक्किनन्-न लहुम् दीनहुमुल्लज़िर्-तज़ा लहुम् व लयुबद्दिलन्नहुम् मिम्-बअ्दि ख़ौफ़िहिम् अम्नन् , यअ्बुदू-ननी ला युश्रिकू़-न बी शैअन्, व मन् क-फ-र बअ्-द ज़ालि-क फ-उलाइ-क हुमुल्-फ़ासिकून
    (ऐ ईमानदारों!) तुम में से जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन से अल्लाह ने वायदा किया कि उन को (एक न एक) दिन रुए ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नाएब बनाया जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसन्द फरमाया है (इस्लाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी क़ुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनकी हर आस को) अमन से ज़रुर बदल देगा कि वह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएँगे और जो शख्स इसके बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं।
  15. व अक़ीमुस्सला-त व आतुज़्ज़का-त व अतीअुर्रसू-ल लअ़ल्लकुम् तुर्-हमून
    और (ऐ ईमानदारों!) नमाज़ पाबन्दी से पढ़ा करो और ज़कात दिया करो और (दिल से) रसूल की इताअत करो ताकि तुम पर रहम किया जाए।
  16. ला तह्स-बन्नल्लज़ी-न क-फरू मुअ्जिज़ी-न फिलअर्जि व मअ् वाहुमुन्नारू, व ल-बिअ्सल्-मसीर*
    और (ऐ रसूल!) तुम ये ख्याल न करो कि कुफ्फार (इधर उधर) ज़मीन मे (फैल कर हमें) आजिज़ कर देगें (ये ख़ुद आजिज़ हो जाएगें) और उनका ठिकाना तो जहन्नुम है और क्या बुरा ठिकाना है।
  17. या अय्यु हल्लज़ी-न आमनू लि-यस्तअ्जिनकुमुल्लज़ी-न म-लकत् ऐमानुकुम् वल्लज़ी-न लम् यब्लुगुल-हुलु-म मिन्कुम् सला-स मर्रातिन् मिन् कब्लि सलातिल्-फ़ज्रि व ही-न त-ज़अ़ू-न सिया-बकुम् मिनज़्ज़ही-रति व मिम्-बअ्दि सलातिल्-अिशा-इ , सलासु औ़रातिल्-लकुम्, लै-स अ़लैकुम् व ला अ़लैहिम् जुनाहुम् बअ्-दहुन्-न , तव्वाफू-न अ़लैकुम् बअ्जुकुम् अ़ला बअ्ज़िन्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्-आयाति , वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
    ऐ ईमानदारों! तुम्हारी लौन्डी ग़ुलाम और वह लड़के जो अभी तक बुलूग़ की हद तक नहीं पहुँचे हैं उनको भी चाहिए कि (दिन रात में) तीन मरतबा (तुम्हारे पास आने की) तुमसे इजाज़त ले लिया करें तब आएँ (एक) नमाज़ सुबह से पहले और (दूसरे) जब तुम (गर्मी से) दोपहर को (सोने के लिए मामूलन) कपड़े उतार दिया करते हो (तीसरी) नमाजे इशा के बाद (ये) तीन (वक्त) तुम्हारे परदे के हैं इन अवक़ात के अलावा (बे अज़न आने मे) न तुम पर कोई इल्ज़ाम है-न उन पर (क्योंकि) उन अवक़ात के अलावा (ब ज़रुरत या बे ज़रुरत) लोग एक दूसरे के पास चक्कर लगाया करते हैं- यँ अल्लाह (अपने) एहकाम तुम से साफ साफ बयान करता है और अल्लाह तो बड़ा वाकिफ़कार हकीम है।
  18. व इज़ा ब-लगल्-अत् फालु मिन्कुमुल्-हुलु-म फ़ल्यस्तअ्ज़िनू कमस्तअ्-ज़नल्लज़ी-न मिन् कब्लिहिम्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुम् आयातिही, वल्लाहु अ़लीमुन् हकीम
    और (ऐ ईमानदारों!) जब तुम्हारे लड़के हदे बुलूग को पहुँचें तो जिस तरह उन के कब्ल (बड़ी उम्र) वाले (घर में आने की) इजाज़त ले लिया करते थे उसी तरह ये लोग भी इजाज़त ले लिया करें-यूँ अल्लाह अपने एहकाम साफ साफ बयान करता है और अल्लाह तो बड़ा वाकिफकार हकीम है।
  19. वल्क़वाअिदु मिनन्निसाइल्लाती ला यरजू-न निकाहन् फलै-स अ़लैहिन्-न जुनाहुन् अंय्य-ज़अ्-न सिया-बहुन्-न गै-र मु-तबर्रिजातिम्-बिज़ी-नतिन्, व अंय्यस्तअ्फ़िफ्-न खै़रुल लहुन्-न, वल्लाहु समीअुन् अलीम
    और बूढ़ी बूढ़ी औरतें जो (बुढ़ापे की वजह से) निकाह की ख्वाहिश नही रखती। वह अगर अपने कपड़े (दुपट्टे वगैराह) उतारकर (सर नंगा) कर डालें तो उसमें उन पर कुछ गुनाह नही है- बशर्ते कि उनको अपना बनाव सिंगार दिखाना मंज़ूर न हो और (इस से भी) बचें। तो उनके लिए और बेहतर है और अल्लाह तो (सबकी सब कुछ) सुनता और जानता है।
  20. लै-स अ़लल्-अअ्मा ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-अअ्रजि ह-रजुंव्-व ला अ़लल्-मरीज़ि ह-रजुंव्-व ला अ़ला अन्फुसिकुम् अन् तअ्कुलू मिम्-बुयूतिकुम् औ बुयूति आबाइकुम् औ बुयूति उम्महातिकुम् औ बुयूति इख़्वानिकुम् औ बुयूति अ-ख़वातिकुम् औ बुयूति अअ्मामिकुम् औ बुयूति अ़म्मातिकुम् औ बुयूति अख़्वालिकुम् औ बुयूति ख़ालातिकुम औ मा मलक्तुम् मफ़ाति-हहू औ सदीक़िकुम्, लै-स अ़लैकुम् जुनाहुन् अन् तअ्कुलू जमीअ़न् औ अश्तातन्, फ़-इज़ा दख़ल्तुम् बुयूतन् फ़-सल्लिमू अला अन्फुसिकुम् तहिय्य-तम् मिन् अिन्दिल्लाहि मुबार-कतन् तय्यि-बतन्, कज़ालि-क युबय्यिनुल्लाहु लकुमुल्आयाति लअ़ल्लकुम तअ्किलून*
    इस बात में न तो अंधे आदमी के लिए मज़ाएक़ा है और न लँगड़ें आदमी पर कुछ इल्ज़ाम है। और न बीमार पर कोई गुनाह है और न ख़ुद तुम लोगो पर कि अपने घरों से खाना खाओ या अपने बाप दादा नाना बग़ैरह के घरों से या अपनी माँ दादी नानी वगैरह के घरों से या अपने भाइयों के घरों से या अपनी बहनों के घरों से या अपने चचाओं के घरों से या अपनी फूफ़ियों के घरों से या अपने मामूओं के घरों से या अपनी खालाओं के घरों से। या उस घर से जिसकी कुन्जियाँ तुम्हारे हाथ में है या अपने दोस्तों (के घरों) से इस में भी तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं कि सब के सब मिलकर खाओ या अलग अलग फिर जब तुम घर वालों में जाने लगो। (और वहाँ किसी का न पाओ) तो ख़ुद अपने ही ऊपर सलाम कर लिया करो जो अल्लाह की तरफ से एक मुबारक पाक व पाकीज़ा तोहफा है- अल्लाह यूँ (अपने) एहकाम तुमसे साफ साफ बयान करता है ताकि तुम समझो।
  21. इन्नमल्-मुअ्मिनूनल्लज़ी-न आमनू बिल्लाहि व रसूलिही व इज़ा कानू म-अ़हू अ़ला अम्रिन् जामिअ़िल् लम् यज़्हबू हत्ता यस्तअ्ज़िनूहु , इन्नल्लज़ी-न यस्तअ्ज़िनू-न-क उलाइ-कल्लज़ी-न युअ्मिनू-न बिल्लाहि व रसूलिही फ़-इज़स्तअ्-ज़नू-क लिबअ्ज़ि शअ्निहिम् फ़अज़ल-लिमन् शिअ्-त मिन्हुम् वस्तग्फिर लहुमुल्ला-ह इन्नल्ला-ह ग़फूरुर्-रहीम 
    सच्चे ईमानदार तो सिर्फ वह लोग हैं जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए और जब किसी ऐसे काम के लिए जिसमें लोंगों के जमा होने की ज़रुरत है- रसूल के पास होते हैं जब तक उससे इजाज़त न ले ली न गए (ऐ रसूल) जो लोग तुम से (हर बात में) इजाज़त ले लेते हैं वे ही लोग (दिल से) अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए हैं तो जब ये लोग अपने किसी काम के लिए तुम से इजाज़त माँगें तो तुम उनमें से जिसको (मुनासिब ख्याल करके) चाहो इजाज़त दे दिया करो और अल्लाह उसे उसकी बख़्शिस की दुआ भी करो बेशक अल्लाह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।
  22. ला तज्अलू दुआ़अर्रसूलि बैनकुम् क-दुआ़-इ बअ्ज़िकुम् बअ्जन्, कद् यअ्लमुल्लाहुल्लज़ी-न य-तसल्ललू-न मिन्कुम् लिवाज़न् फ़ल्यह्ज़रिल्लज़ी-न युखालिफू-न अन् अम्रिही अन् तुसी-बहुम् फित्-नतुन् औ युसी-बहुम् अ़ज़ाबुन् अलीम
    (ऐ ईमानदारों!) जिस तरह तुम में से एक दूसरे को (नाम ले कर) बुलाया करते हैं उस तरह आपस में रसूल का बुलाना न समझो अल्लाह उन लोगों को खूब जानता है जो तुम में से ऑंख बचा के (पैग़म्बर के पास से) खिसक जाते हैं- तो जो लोग उसके हुक्म की मुख़ालफत करते हैं उनको इस बात से डरते रहना चाहिए कि (मुबादा) उन पर कोई मुसीबत आ पडे या उन पर कोई दर्दनाक अज़ाब नाज़िल हो।
  23. अला इन्-न लिल्लाहि मा फ़िस्समावाति वल्अर्जि, कद् यअ्लमु मा अन्तुम् अ़लैहि , व यौ-म युर्जअू-न इलैहि फ़युनब्बिउहुम् बिमा अ़मिलू , वल्लाहु बिकुल्लि शैइन् अलीम *
    ख़बरदार जो कुछ सारे आसमान व ज़मीन में है (सब) यक़ीनन अल्लाह ही का है जिस हालत पर तुम हो अल्लाह ख़ूब जानता है और जिस दिन उसके पास ये लोग लौटा कर लाएँ जाएँगें तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया है बता देगा और अल्लाह तो हर चीज़ से खूब वाकिफ है।

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