34 सूरह सबा हिंदी में पेज 2

सूरह सबा हिंदी में | Surah Saba in Hindi

  1. व मा का-न लहू अ़लैहिम् मिन् सुल्तानिन् इल्ला लिनअ्-ल म मंय्युअ्मिनु बिल्-आख़िरति मिम्-मन् हु-व मिन्हा फ़ी शक्किन्, व रब्बु-क अ़ला कुल्लि शैइन् हफ़ीज़
    और शैतान का उन लोगों पर कुछ क़ाबू तो था नहीं मगर ये (मतलब था) कि हम उन लोगों को जो आख़ेरत का यक़ीन रखते हैं उन लोगों से अलग देख लें जो उसके बारे में शक में (पड़े) हैं और तुम्हारा परवरदिगार तो हर चीज़ का निगरा है।
  2. क़ुलिद् अुल्लज़ी-न ज़अ़म्तुम् मिन् दूनिल्लाहि ला यम्लिकू न मिस्का-ल ज़र्रतिन् फ़िस्समावाति व ला फ़िल्अर्ज़ि व मा लहुम् फ़ीहिमा मिन् शिर्-किंव्-व मा लहू मिन्हुम् मिन् ज़हीर
    (ऐ रसूल! इनसे) कह दो कि जिन लोगों को तुम खु़द अल्लाह के सिवा (माबूद) समझते हो पुकारो (तो मालूम हो जाएगा कि) वह लोग ज़र्रा बराबर न आसमानों में कुछ इख़तेयार रखते हैं और न ज़मीन में और न उनकी उन दोनों में शिरकत है और न उनमें से कोई अल्लाह का (किसी चीज़ में) मद्दगार है।
  3. व ला तन्फ़अुश्शफ़ा-अ़तु अिन्दहू इल्ला लिमन् अज़ि-न लहू, हत्ता इज़ा फुज़्ज़ि-अ़ अ़न् क़ुलूबिहिम् क़ालू माज़ा क़ा-ल रब्बुकुम्, क़ालुल्-हक़्-क़ व हुवल् अ़लिय्युल्-कबीर
    जिसके लिए वह खु़द इजाज़त अता फ़रमाए उसके सिवा कोई सिफारिश उसकी बारगाह में काम न आएगी (उसके दरबार की हैबत) यहाँ तक (है) कि जब (शिफ़ाअत का) हुक्म होता है तो शिफ़ाअत करने वाले बेहोश हो जाते हैं फिर तब उनके दिलों की घबराहट दूर कर दी जाती है तो पूछते हैं कि तुम्हारे परवरदिगार ने क्या हुक्म दिया।
  4. क़ुल् मंय्यर्-ज़ुक़ुकुम् मिनस्समावाति वल्अर्ज़ि, कुलिल्लाहु व इन्ना औ इय्याकुम् ल-अ़ला हुदन् औ फ़ी ज़लालिम् – मुबीन
    तो मुक़र्रिब फरिश्ते कहते हैं कि जो वाजिबी था (ऐ रसूल!) तुम (इनसे) पूछो तो कि भला तुमको सारे आसमान और ज़मीन से कौन रोज़ी देता है (वह क्या कहेंगे) तुम खु़द कह दो कि अल्लाह और मैं या तुम (दोनों में से एक तो) ज़रूर राहे रास्त पर है (और दूसरा गुमराह) या वह सरीही गुमराही में पड़ा है (और दूसरा राहे रास्त पर)।
  5. क़ुल् ला तुस् अलू-न अ़म्मा अज्-रम्ना व ला नुस्अलु अ़म्मा तअ्मलून
    (ऐ रसूल!) तुम (उनसे) कह दो न हमारे गुनाहों की तुमसे पूछ गछ होगी और न तुम्हारी कारस्तानियों की हम से बाज़ पुर्स।
  6. क़ुल् यज्-मअु बै-नना रब्बुना सुम्-म यफ़्तहु बै-नना बिल्हक़्क़ि, व हुवल् फ़त्ताहुल्- अ़लीम
    (ऐ रसूल!) तुम (उनसे) कह दो कि हमारा परवरदिगार (क़यामत में) हम सबको इकट्ठा करेगा फिर हमारे दरमियान (ठीक) फैसला कर देगा और वह तो ठीक-ठीक फैसला करने वाला वाकि़फकार है।
  7. क़ुल् अरूनियल्लज़ी-न अल्हक़्तुम् बिही शु-रका-अ कल्ला, बल् हुवल्लाहुल् अ़ज़ीज़ुल्-हकीम
    (ऐ रसूल! तुम कह दो कि जिनको तुम ने अल्लाह का शरीक बनाकर) अल्लाह के साथ मिलाया है ज़रा उन्हें मुझे भी तो दिखा दो हरगिज़ (कोई शरीक नहीं) बल्कि अल्लाह ग़ालिब हिकमत वाला है।
  8. व मा अर्सल्ना-क इल्ला काफ़्फ़-तल् लिन्नासि बशीरंव्-व नज़ीरंव्-व लाकिन्-न अक्स-रन्नासि ला यअ्लमून
    (ऐ रसूल!) हमने तुमको तमाम (दुनिया के) लोगों के लिए (नेकों को बेहश्त की) खु़शखबरी देने वाला और (बन्दों को अज़ाब से) डराने वाला (पैग़म्बर) बनाकर भेजा मगर बहुतेरे लोग (इतना भी) नहीं जानते।
  9. व यक़ूलू-न मता हाज़ल्-वअ्दु इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    और (उलटे) कहते हैं कि अगर तुम (अपने दावे में) सच्चे हो तो (आखि़र) ये क़यामत का वायदा कब पूरा होगा।
  10. क़ुल लकुम् मीआ़दु यौमिल्-ला तस्तअ्ख़िरू-न अ़न्हु सा – अ़तंव्-व ला तस्तक़्दिमून
    (ऐ रसूल!) तुम उनसे कह दो कि तुम लोगों के वास्ते एक ख़ास दिन की मीयाद मुक़र्रर है कि न तुम उससे एक घड़ी पीछे रह सकते हो और न आगे ही बड़ सकते हो।
  11. व क़ालल्लज़ी-न क-फ़रू लन्-नुअ्मि-न बिहाज़ल्-क़ुर्-आनि व ला बिल्लज़ी बै-न यदैहि, व लौ तरा इज़िज़्ज़ालिमू-न मौक़ूफ़ू-न अिन्- द रब्बिहिम् यर्जिअु बअ्ज़ुहुम् इला बअ्ज़ि-निल्क़ौ-ल यक़ूलुल्लज़ीनस्तुअिफ़ू लिल्लज़ीनस्तक्बरू लौ ला अन्तुम् लकुन्ना मुअ्मिनीन
    और जो लोग काफिर हों बैठे कहते हैं कि हम तो न इस क़ुरान पर हरगिज़ इमान लाएँगे और न उस (किताब) पर जो इससे पहले नाजि़ल हो चुकी और (ऐ रसूल तुमको बहुत ताज्जुब हो) अगर तुम देखो कि जब ये ज़ालिम क़यामत के दिन अपने परवरदिगार के सामने खड़े किए जायेंगे (और) उनमें का एक दूसरे की तरफ (अपनी) बात को फेरता होगा कि कमज़ोर अदना (दरजे के) लोग बड़े (सरकश) लोगों से कहते होगें कि अगर तुम (हमें) न (बहकाए) होते तो हम ज़रूर ईमानवाले होते (इस मुसीबत में न पड़ते)।
  12. क़ालल्लज़ीनस्तक्बरू लिल्लज़ीनस्तुज़्अिफ़ू अ-नह्नु सदद्नाकुम् अ़निल्हुदा बअ्-द इज़् जा-अकुम् बल् कुन्तुम् मुज्रिमीन
    तो सरकश लोग कमज़ोरों से (मुख़ातिब होकर) कहेंगे कि जब तुम्हारे पास (अल्लाह की तरफ़ से) हिदायत आयी तो थी तो क्या उसके आने के बाद हमने तुमको (ज़बरदस्ती अम्ल करने से) रोका था (हरगिज़ नहीं) बल्कि तुम तो खु़द मुजरिम थे।
  13. व क़ालल्लज़ीनस्तुज़्अिफू लिल्लज़ीनस्- तक्बरू बल् मक्रुल्लैलि वन्नहारि इज़् तअ्मुरू-नना अन् नक्फ़ु-र बिल्लाहि व नज्-अ़-ल लहू अन्दादन्, व असर्रुन्नदा-म त लम्मा र-अवुल् अ़ज़ा-ब, व जअ़ल्नल्-अग़्ला-ल फ़ी अअ्नाक़िल्लज़ी-न क-फ़रू, हल् युज्ज़ौ-न इल्ला मा कानू यअ्मलून
    और कमज़ोर लोग बड़े लोगों से कहेंगे (कि ज़बरदस्ती तो नहीं की मगर हम खु़द भी गुमराह नहीं हुए) बल्कि (तुम्हारी) रात-दिन की फरेबदेही ने (गुमराह किया कि) तुम लोग हमको अल्लाह न मानने और उसका शरीक ठहराने का बराबर हुक्म देते रहे (तो हम क्या करते) और जब ये लोग अज़ाब को (अपनी आँखों से) देख लेंगे तो दिल ही दिल में पछताएँगे और जो लोग काफिर हो बैठे हम उनकी गर्दनों में तौक़ डाल देंगे जो कारस्तानियां ये लोग (दुनिया में) करते थे उसी के मुवाफिक़ तो सज़ा दी जाएगी।
  14. व मा अर्सल्ना फ़ी क़र्यतिम्-मिन् नज़ीरिन् इल्ला क़ा-ल मुत्- रफ़ूहा इन्ना बिमा उर्सिल्तुम् बिही काफ़िरून
    और हमने किसी बस्ती में कोई डराने वाला पैग़म्बर नहीं भेजा मगर वहाँ के लोग ये ज़रूर बोल उठेंगे कि जो एहकाम देकर तुम भेजे गए हो हम उनको नहीं मानते।
  15. व क़ालू नह्नु अक्सरु अम्वालंव्-व औलादंव्-व मा नह्नु बिमु-अ़ज़्ज़बीन
    और ये भी कहने लगे कि हम तो (ईमानदारों से) माल और औलाद में कहीं ज़्यादा है और हम पर आख़ेरत में (अज़ाब) भी नहीं किया जाएगा।
  16. क़ुल् इन्-न रब्बी यब्सुतुर्-रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ व यक़्दिरु व लाकिन्-न अक्स-रन्नासि ला यअ्लमून*
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिऐ चाहता है) तंग करता है मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं।
  17. व मा अम्वालुकुम् व ला औलादुकुम् बिल्लती तुक़र्रिबुकुम् अिन्-दना ज़ुल्फ़ा इल्ला मन् आम-न व अ़मि-ल सालिहन् फ़-उलाइ-क लहुम् जज़ाउज़्-ज़िअ्फ़ि बिमा अ़मिलू व हुम् फ़िल्- गुरुफ़ाति आमिनून
    और (याद रखो) तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद की ये हस्ती नहीं कि तुम को हमारी बारगाह में मुक़र्रिब बना दें मगर (हाँ) जिसने ईमान कु़बूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए उन लोगों के लिए तो उनकी कारगुज़ारियों की दोहरी जज़ा है और वह लोग (बेहश्त के) झरोखों में इत्मेनान से रहेंगे।
  18. वल्लज़ी-न यस्औ-न फ़ी आयातिना मुआ़जिज़ी-न उलाइ-क फ़िल्- अ़ज़ाबि मुह्ज़रून
    और जो लोग हमारी आयतों (की तोड़) में मुक़ाबले की नीयत से दौड़ द्दूप करते हैं वही लोग (जहन्नुम के) अज़ाब में झोक दिए जाएंगे।
  19. क़ुल इन्-न रब्बी यब्सुतुर्रिज़्-क़ लिमंय्यशा-उ मिन् अिबादिही व यक़्दिरु लहू, व मा अन्फ़क़्तुम् मिन् शैइन् फ़हु-व युख़्लिफ़ुहू व हु-व ख़ैरुर्-राज़िक़ीन
    (ऐ रसूल!) तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार अपने बन्दों में से जिसके लिए चाहता है रोज़ी कुशादा कर देता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग कर देता है और जो कुछ भी तुम लोग (उसकी राह में) ख़र्च करते हो वह उसका ऐवज देगा और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देनेवाला है।
  20. व यौ-म यह्शुरुहुम् जमीअ़न् सुम्-म यक़ूलु लिल्मलाइ कति अ-हाउला-इ इय्याकुम् कानू यअ्बुदून
    और (वह दिन याद करो) जिस दिन सब लोगों को इकट्ठा करेगा फिर फरिश्तों से पूछेगा कि क्या ये लोग तुम्हारी परसतिश करते थे फरिश्ते अर्ज करेंगे (बारे इलाहा) तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है।

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