12 सूरह यूसुफ़ हिंदी में पेज 3

सूरह यूसुफ़ हिंदी में | Surat Yusuf in Hindi

  1. व क़ालल्लज़ी नजा मिन्हुमा वद्द-क-र बअ्-द उम्मतिन् अ-ना उनब्बिउकुम् बितअ्वीलिही फ़-अर्सिलून
    और जिसने उन दोनों में से रिहाई पाई थी (साकी) और उसको एक ज़माने के बाद (यूसुफ का कि़स्सा) याद आया बोल उठा कि मुझे (क़ैद ख़ाने तक) जाने दीजिए तो मैं उसकी ताबीर बताए देता हूँ।
  2. यूसुफु अय्युहस्-सिद्दीक़ु अफ्तिना फ़ी सब्अिब- क़रातिन् सिमानिंय्यअ्कुलुहुन्-न सब्अुन् अिजाफुंव् – व सब्अि सुम्बुलातिन् खुज्रिंव्-व उ-ख़-र याबिसातिल्-लअल्ली अर्जिअु इलन्नासि लअ़ल्लहुम् यअ्लमून
    (ग़रज़ वह गया और यूसुफ से कहने लगा) ऐ यूसुफ ऐ बड़े सच्चे (यूसुफ) ज़रा हमें ये तो बताइए कि सात मोटी ताज़ी गायों को सात पतली गाय खाए जाती है और सात बालियां हैं हरी कचवा और फिर (सात) सूखी मुरझाई (इसकी ताबीर क्या है) तो मैं लोगों के पास पलट कर जाऊँ (और बयान करुँ)।
  3. क़ा-ल तज़्-रअू-न सब्-अ सिनी-न द-अबन् फ़मा हसत्तुम् फ़ ज़रूहु फ़ी सुम्बुलिही इल्ला क़लीलम्-मिम्मा तअ्कुलून
    ताकि उनको भी (तुम्हारी क़दर) मालूम हो जाए यूसुफ ने कहा (इसकी ताबीर ये है) कि तुम लोग लगातार सात बरस काकारी करते रहोगे तो जो (फसल) तुम काटो उस (के दाने) को बालियों में रहने देना (छुड़ाना नहीं) मगर थोड़ा (बहुत) जो तुम खुद खाओ।
  4. सुम्-म यअ्ती मिम्-बअ्दि ज़ालि-क सब्अुन् शिदादुंय्यअ्कुल्-न मा क़द्दम्तुम् लहुन्-न इल्ला क़लीलम् मिम्मा तुह़्सिनून
    उसके बाद बड़े सख़्त (खुष्क साली (सूखे) के) सात बरस आयेंगे कि जो कुछ तुम लोगों ने उन सातों साल के वास्ते पहले जमा कर रखा होगा सब खा जायंगें मगर बहुत थोड़ा सा जो तुम (बीज के वास्ते) बचा रखोगे।
  5. सुम्-म यअ्ती मिम्-बअ्दि ज़ालि-क आमुन् फ़ीहि युग़ासुन्नासु व फ़ीहि यअ्सिरून*
    (बस) फिर उसके बाद एक साल आएगा जिसमें लोगों के लिए खूब मेंह बरसेगी (और अंगूर भी खूब फलेगा) और लोग उस साल (उन्हें) शराब के लिए निचोड़ेगें।
  6. व क़ालल् मलिकुअ्तूनी बिही, फ़-लम्मा जा-अहुर्रसूलु क़ालर्जिअ् इला रब्बि-क फ़स् अल्हु मा बालुन-निस्वतिल्लाती कत्तअ्-न ऐदि यहुन्-न, इन्-न रब्बी बिकैदिहिन-न अलीम
    (ये ताबीर सुनते ही) बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे हुज़ूर में तो ले आओ फिर जब (शाही) चैबदार (ये हुक्म लेकर) यूसुफ के पास आया तो युसूफ ने कहा कि तुम अपनी सरकार के पास पलट जाओ और उनसे पूछो कि (आप को) कुछ उन औरतों का हाल भी मालूम है जिन्होने (मुझे देख कर) अपने अपने हाथ काट डाले थे कि या मैं उनका तालिब था।
  7. क़ा-ल मा ख़त्बुकुन्-न इज़् रावत्तुन्-न यूसु-फ़ अन् नफ्सिही, क़ुल-न हा-श लिल्लाहि मा अ़लिम्-ना अलैहि मिन् सूइन्, क़ालतिम्र-अतुल् अ़ज़ीज़िल्-आ-न हस्ह-ल्हक़्क़ु, अ-ना रावत्तुहू अन् नफ्सिही व इन्नहू लमिनस्सादिक़ीन
    या वह (मेरी) इसमें तो शक ही नहीं कि मेरा परवरदिगार ही उनके मक्र से खू़ब वाकि़फ है चुनान्चे बादशाह ने (उन औरतों को तलब किया) और पूछा कि जिस वक़्त तुम लोगों ने यूसुफ से अपना मतलब हासिल करने की खुद उन से तमन्ना की थी तो हमें क्या मामला पेश आया था वह सब की सब अर्ज़ करने लगी हाशा अल्लाह हमने यूसुफ में तो किसी तरह की बुराई नहीं देखी (तब) अज़ीज़ मिस्र की बीबी (ज़ुलेख़ा) बोल उठी अब तू ठीक ठीक हाल सब पर ज़ाहिर हो ही गया (असल बात ये है कि) मैने खुद उससे अपना मतलब हासिल करने की तमन्ना की थी और बेशक वह यक़ीनन सच्चा है।
  8. ज़ालि-क लि-यअ्ल-म अन्नी लम् अख़ुन्हु बिल्ग़ैबि व अन्नल्ला ह ला यह्दी कैदल्-ख़ाइनीन
    (ये वाक़िया चैबदार ने यूसुफ से बयान किया (यूसुफ ने कहा) ये किस्से मैने इसलिए छेड़ा) ताकि तुम्हारे बादशाह को मालूम हो जाए कि मैने अज़ीज़ की ग़ैबत में उसकी (अमानत में ख़यानत नहीं की) और ख़़ुदा ख़यानत करने वालों की मक्कारी हरगिज़ चलने नहीं देता। (पारा 12 समाप्त)

पारा 13 शुरू

  1. व मा उबर्रिउ नफ़्सी, इन्नन्नफ्-स ल-अम्मा-रतुम्-बिस्सू-इ इल्ला मा रहि-म रब्बी, इन्-न रब्बी ग़फूरुर्रहीम
    और (यूं तो) मै भी अपने नफ्स को गुनाहो से बे लौस नहीं कहता हूँ क्योंकि (मैं भी बशर हूँ और नफ्स बराबर बुराई की तरफ उभारता ही है मगर जिस पर मेरा परवरदिगार रहम फरमाए (और गुनाह से बचाए)।
  2. व क़ालल्-मलिकुअ्तूनी बिही अस्तख़्लिस्हु लिनफ़्सी, फ़-लम्मा कल्ल-महू क़ा-ल इन्नकल्-यौ-म लदैना मकीनुन् अमीन
    इसमें शक नहीं कि मेरा परवरदिगार बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे पास ले आओ तो मैं उनको अपने ज़ाती काम के लिए ख़ास कर लूंगा फिर उसने यूसुफ से बातें की तो यूसुफ की आला क़ाबलियत साबित हुयी (और) उसने हुक्म दिया कि तुम आज (से) हमारे सरकार में यक़ीन बावक़ार (और) मुअतबर हो।
  3. क़ालज्अ़ल्नी अ़ला ख़ज़ाइनिल्-अर्ज़ि, इन्नी हफ़ीजुन अलीम
    यूसुफ ने कहा (जब अपने मेरी क़दर की है तो) मुझे मुल्की ख़ज़ानों पर मुक़र्रर कीजिए क्योंकि मैं (उसका) अमानतदार ख़ज़ान्ची (और) उसके हिसाब व किताब से भी वाकि़फ हूँ।
  4. व कज़ालि-क मक्कन्ना लियूसु-फ़ फ़िलअर्ज़ि य-तबव्वउ मिन्हा हैसु यशा-उ, नुसीबु बिरह् मतिना मन्-नशा-उ वला नुज़ीअु अज्रल्-मुह़्सिनीन
    (ग़रज़ यूसुफ शाही ख़ज़ानो के अफसर मुक़र्रर हुए) और हमने यूसुफ को यूं मुल्क (मिस्र) पर क़ाबिज़ बना दिया कि उसमें जहाँ चाहें रहें हम जिस पर चाहते हैं अपना फज़ल करते हैं और हमने नेको कारो के अज्र को अकारत नहीं करते।
  5. व ल अज्रुल्-आखिरति खैरूल्-लिल्लज़ी-न आमनू व कानू यत्तक़ून *
    और जो लोग इमान लाए और परहेज़गारी करते रहे उनके लिए आख़िरत का अज्र उसी से कही बेहतर है।
  6. व जा-अ इख़्वतु यूसु-फ़ फ़-द-ख़लू अ़लैहि फ़-अ-र-फहुम् व हुम् लहू मुन्किरून
    (और चूंकि कनआन में भी कहत (सूखा) था इस वजह से) यूसुफ के (सौतेले भाई ग़ल्ला ख़रीदने को मिस्र में) आए और यूसुफ के पास गए तो उनको फौरन ही पहचान लिया और वह लोग उनको न पहचान सके।
  7. व लम्मा जह्ह-ज़हुम् बि-जहाज़िहिम् क़ालअ्तूनी बि- अख़िल्-लकुम् मिन अबीकुम्, अला तरौ-न अन्नी ऊफ़िल्-कै-ल व अ-ना ख़ैरूल्-मुन्ज़िलीन
    और जब यूसुफ ने उनके (ग़ल्ले का) सामान दुरूस्त कर दिया और वह जाने लगे तो यूसुफ़ ने (उनसे कहा) कि (अबकी आना तो) अपने सौतेले भाई को (जिसे घर छोड़ आए हो) मेरे पास लेते आना क्या तुम नहीं देखते कि मै यक़ीनन नाप भी पूरी देता हूँ और बहुत अच्छा मेहमान नवाज़ भी हूँ।
  8. फ़-इल्लम् तअ्तूनी बिही फ़ला कै-ल लकुम् अिन्दी वला तक़् रबून
    पस अगर तुम उसको मेरे पास न लाओगे तो तुम्हारे लिए न मेरे पास कुछ न कुछ (ग़ल्ला वग़ैरह) होगा।
  9. क़ालू सनुराविदु अन्हु अबाहु व इन्ना लफ़ाअिलून
    न तुम लोग मेरे क़रीब ही चढ़ने पाओगे वह लोग कहने लगे हम उसके वालिद से उसके बारे में जाते ही दरख़्वास्त करेंगे।
  10. व क़ा-ल लिफ़ित्यानिहिज्-अ़लू बिज़ा-अ़ तहुम् फी रिहालिहिम् लअ़ल्लहुम् यअ्-रिफूनहा इज़न्क़-लबू इला अह़्लिहिम् लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
    और हम ज़रुर इस काम को पूरा करेंगें और यूसुफ ने अपने मुलाजि़मों (नौकरों) को हुक्म दिया कि उनकी (जमा) पूंजी उनके बोरो में (चूपके से) रख दो ताकि जब ये लोग अपने एहलो (अयाल) के पास लौट कर जाएं तो अपनी पूंजी को पहचान ले।
  11. फ़-लम्मा र-जअू इला अबीहिम् क़ालू या अबाना मुनि -अ़ मिन्नल्कैलु फ़-अर्सिल् म अ़ना अख़ाना नक्तल् व इन्ना लहू लहाफ़िज़ून
    (और इस लालच में) शायद फिर पलट के आयें ग़रज़ जब ये लोग अपने वालिद के पास पलट के आए तो सब ने मिलकर अज्र की ऐ अब्बा हमें (आइन्दा) गल्ले मिलने की मुमानिअत (मना) कर दी गई है तो आप हमारे साथ हमारे भाई (बिन यामीन) को भेज दीजिए।
  12. क़ा-ल हल् आमनुकुम् अ़लैहि इल्ला कमा अमिन्तुकुम् अ़ला अ़ख़ीहि मिन क़ब्लु, फ़ल्लाहु ख़ैरून् हाफ़िज़ंव्-व हु-व अर्हमुर्-राहिमीन
    ताकि हम (फिर) गल्ला लाए और हम उसकी पूरी हिफाज़त करेगें याक़ूब ने कहा मै उसके बारे में तुम्हारा ऐतबार नहीं करता मगर वैसा ही जैसा कि उससे पहले उसके मांजाए (भाई) के बारे में किया था तो ख़ुद उसका सबसे बेहतर हिफाज़त करने वाला है और वही सब से ज़्यादा रहम करने वाला है।
  13. व लम्मा फ़-तहू मता अहुम् व जदू बिज़ाअ तहुम् रूद्दत इलैहिम्, क़ालू या अबाना मा नब़्ग़ी, हाज़िही बिज़ा-अतुना रूद्दत इलैना, व नमीरू अह़्लना व नह़्फ़ज़ु अख़ाना व नज़्दादु कै-ल बईरिन्, ज़ालि-क कैलुंय्यसीर
    और जब उन लोगों ने अपने अपने असबाब खोले तो अपनी अपनी पूंजी को देखा कि (वैसे ही) वापस कर दी गई है तो (अपने बाप से) कहने लगे ऐ अब्बा हमें (और) क्या चाहिए (देखिए) यह हमारी जमा पूंजी हमें वापस दे दी गयी है और (ग़ल्ला मुफ्त मिला अब इब्ने यामीन को जाने दीजिए तो) हम अपने एहलो अयाल के वास्ते ग़ल्ला लादें और अपने भाई की पूरी हिफाज़त करेगें और एक बार शतर ग़ल्ला और बढ़वा लायंगे।
  14. क़ा-ल लन् उर्सि-लहू म-अ़कुम् हत्ता तुअ्तूनि मौसिक़म्-मिनल्लाहि ल-तअ्तुन्ननी बिही इल्ला अंय्युहा-त बिकुम्, फ़ लम्मा आतौहु मौसि-कहुम् क़ालल्लाहु अ़ला मा नक़ूलु वकील
    ये जो अबकी दफा लाए थे थोड़ा सा ग़ल्ला है याकूब ने कहा जब तक तुम लोग मेरे सामने खुदा से एहद न कर लोगे कि तुम उसको ज़रुर मुझ तक (सही व सालिम) ले आओगे मगर हाँ जब तुम खुद घिर जाओ तो मजबूरी है वरना मै तुम्हारे साथ हरगिज़ उसको न भेजूंगा फिर जब उन लोगों ने उनके सामने एहद कर लिया तो याक़ूब ने कहा कि हम लोग जो कह रहे हैं ख़ुदा उसका ज़ामिन है।

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