- व का-ल या बनिय्-य ला तद्ख़ुलू मिम्-बाबिंव्-वाहिदिंव वद्खुलू मिन् अब्वाबिम् मु-तफ़र्रि-कतिन्, व मा उ़ग्नी अ़न्कुम् मिनल्लाहि मिन् शैइन्, इनिल्हुक्मु इल्ला लिल्लाहि, अलैहि तवक्कल्तु व अ़लैहि फ़ल्य-तवक्कलिल्-मु तवक्किलून
और याक़ूब ने (नसीहतन चलते वक़्त बेटो से) कहा ऐ फरज़न्दों (देखो ख़बरदार) सब के सब एक ही दरवाजे़ से न दाखि़ल होना (कि कहीं नज़र न लग जाए) और मुताफरिक़ (अलग अलग) दरवाज़ों से दाखि़ल होना और मै तुमसे (उस बात को जो) ख़ुदा की तरफ से (आए) कुछ टाल भी नहीं सकता हुक्म तो (और असली) ख़ुदा ही के वास्ते है मैने उसी पर भरोसा किया है और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए (67) - व लम्मा-द – ख़लू मिन् हैसु अ-म-रहुम् अबूहुम् मा का न युग्नी अ़न्हुम् मिनल्लाहि मिन् शैइन् इल्ला हा – जतन् फी नफ्सि यअ्कू – ब क़ज़ाहा, व इन्नहू लजू अिल्मिल् – लिमा अल्लम्नाहु व लाकिन् – न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून *
और जब ये सब भाई जिस तरह उनके वालिद ने हुक्म दिया था उसी तरह (मिस्र में) दाखि़ल हुए मगर जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से आने को था उसे याक़ूब कुछ भी टाल नहीं सकते थे मगर (हाँ) याक़ूब के दिल में एक तमन्ना थी जिसे उन्होंने भी यूं पूरा कर लिया क्योंकि इसमे तो शक नहीं कि उसे चूंकि हमने तालीम दी थी साहिबे इल्म ज़रुर था मगर बहुतेरे लोग (उससे भी) वाकि़फ नहीं (68) - व लम्मा द-ख़लू अला यूसु-फ़ आवा इलैहि अख़ाहु का-ल इन्नी अ-न अखू-क फ़ला तब्तइस् बिमा कानू यअ्मलून
और जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूसुफ ने अपने हक़ीक़ी (सगे) भाई को अपने पास (बग़ल में) जगह दी और (चुपके से) उस (इब्ने यामीन) से कह दिया कि मै तुम्हारा भाई (यूसुफ) हूँ तो जो कुछ (बदसुलूकियाँ) ये लोग तुम्हारे साथ करते रहे हैं उसका रंज न करो (69) - फ़-लम्मा जह्ह ज़हुम् बि जहाज़िहिम् ज अ़लस्सिकाय-त फी रहलि अख़ीहि सुम्-म अज़्ज़-न मुअज़्ज़िनुन् अय्यतुहल् ईरू इन्नकुम् लसारिकून
फिर जब यूसुफ ने उन का साज़ो सामान सफर ग़ल्ला (वग़ैरह) दुरुस्त करा दिया तो अपने भाई के असबाब में पानी पीने का कटोरा (यूसुफ के इशारे) से रखवा दिया फिर एक मुनादी ललकार के बोला कि ऐ क़ाफि़ले वालों (हो न हो) यक़ीनन तुम्ही लोग ज़रुर चोर हो (70) - कालू व अक़बलू अ़लैहिम् माज़ा तफ्किदून
ये सुन कर ये लोग पुकारने वालों की तरफ भिड़ पड़े और कहने लगे (आखि़र) तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई है (71) - क़ालू नफ्किदु सुवाअ़ल्- मलिकि व लिमन् जा-अ बिही हिम्लु बईरिंव्-व अ-न बिही ज़ईम
उन लोगों ने जवाब दिया कि हमें बादशाह का प्याला नहीं मिलता है और मै उसका ज़ामिन हूँ कि जो शख़्स उसको ला हाजि़र करेगा उसको एक ऊँट के बोझ बराबर (ग़ल्ला इनाम) मिलेगा (72) - कालू तल्लाहि ल – कद् अ़लिम्तुम् मा जिअ्ना लिनुफ्सि-द फ़िल्अर्जि व मा कुन्ना सारिक़ीन
तब ये लेाग कहने लगे ख़ुदा की क़सम तुम तो जानते हो कि (तुम्हारे) म़ुल्क में हम फसाद करने की ग़रज़ से नहीं आए थे और हम लोग तो कुछ चोर तो हैं नहीं (73) - कालू फ़मा जज़ाउहू इन् कुन्तुम् काज़िबीन
तब वह मुलाजि़मीन बोले कि अगर तुम झूठे निकले तो फिर चोर की क्या सज़ा होगी (74) - कालू जज़ाउहू मंव्वुजि-द फी रह़्लिही फ़हु-व जज़ाउहू, कज़ालि – क नज्ज़िज़्ज़ालिमीन
(वे धड़क) बोल उठे कि उसकी सज़ा ये है कि जिसके बोरे में वह (माल) निकले तो वही उसका बदला है (तो वह माल के बदले में ग़ुलाम बना लिया जाए) (75) - फ़-ब-द-अ बिऔअि – यतिहिम् कब् – ल विआ़-इ अख़ीहि सुम्मस्तख़ – जहा मिंव्विआ़ इ अख़ीहि, कज़ालि-क किद्ना लियूसु-फ, मा का-न लियअ्खु-ज़ अखाहु फ़ी दीनिल – मलिकि इल्ला अंय्यशाअल्लाहु, नरफ़अु द – रजातिम् मन् – नशा-उ व फौ-क कुल्लि जी अिल्मिन् अ़लीम
हम लोग तो (अपने यहाँ) ज़ालिमों (चोरों) को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं ग़रज़ यूसुफ ने अपने भाई का थैला खोलने ने से क़ब्ल दूसरे भाइयों के थैलों से (तलाषी) शुरु की उसके बाद (आखि़र में) उस प्याले को यूसुफ ने अपने भाई के थैले से बरामद किया यूसुफ को भाई के रोकने की हमने यू तदबीर बताइ वरना (बादशाह मिस्र) के क़ानून के मुवाफिक़ अपने भाई को रोक नहीं सकते थे मगर हाँ जब ख़ुदा चाहे हम जिसे चाहते हैं उसके दर्जे बुलन्द कर देते हैं और (दुनिया में) हर साहबे इल्म से बढ़कर एक और आलिम है (76) - कालू इंय्यस्रिक् फ़ – क़द् स-र-क़ अखुल्लहू मिन् क़ब्लु, फ़-असर्रहा यूसुफु फ़ी नफ्सिही व लम् युब्दिहा लहुम् का-ल अन्तुम् शर्रूम् – मकानन् वल्लाहु अअ्लमु बिमा तसिफून
(ग़रज़) इब्ने यामीन रोक लिए गए तो ये लोग कहने लगे अगर उसने चोरी की तो (कौन ताज्जुब है) इसके पहले इसका भाई (यूसुफ) चोरी कर चुका है तो यूसुफ ने (उसका कुछ जवाब न दिया) उसको अपने दिल में पोशीदा (छुपाये) रखा और उन पर ज़ाहिर न होने दिया मगर ये कह दिया कि तुम लोग बड़े ख़ाना ख़राब (बुरे आदमी) हो (77) - कालू या अय्युहल्-अज़ीजु इन्-न लहू अबन् शैखन् कबीरन् फ़खुज् अ-ह-दना मकानहू इन्ना नरा-क मिनल् मुह्सिनीन
और जो (उसके भाई की चोरी का हाल बयान करते हो ख़ुदा खूब बवाकि़फ है (इस पर) उन लोगों ने कहा ऐ अज़ीज़ उस (इब्ने यामीन) के वालिद बहुत बूढ़े (आदमी) हैं (और इसको बहुत चाहते हैं) तो आप उसके ऐवज़ (बदले) हम में से किसी को ले लीजिए और उसको छोड़ दीजिए (78) - का-ल मआ़ज़ल्लाहि अन् नअ्खु – ज़ इल्ला मंव्व – जद्ना मता – अना अिन्दहू इन्ना इज़ल- लज़ालिमून *
क्योंकि हम आपको बहुत नेको कार बुर्ज़ुग समझते हैं यूसुफ ने कहा माज़ अल्लाह (ये क्यों कर हो सकता है कि) हमने जिसकी पास अपनी चीज़ पाई है उसे छोड़कर दूसरे को पकड़ लें (अगर हम ऐसा करें) तो हम ज़रुर बड़े बेइन्साफ ठहरे (79) - फ़लम्मस्तै- असू मिन्हु ख – लसू नजिय्यन्, का-ल कबीरूहुम् अलम् तअ्लमू अन्-न अबाकुम् क़द् अ-ख-ज़ अ़लैकुम् मौसिकम् मिनल्लाहि व मिन् क़ब्लु मा फर्रत्तुम् फी यू सु-फ़ फ़-लन् अबर – हल्-अर्-ज़ हत्ता यअ्ज़-न ली अबी औ यह्कुमल्लाहु ली व हु-व खैरूल्-हाकिमीन
फिर जब यूसुफ की तरफ से मायूस हुए तो बाहम मशवरा करने के लिए अलग खड़े हुए तो जो शख़्स उन सब में बड़ा था (यहूदा) कहने लगा (भाइयों) क्या तुम को मालूम नहीं कि तुम्हार वालिद ने तुम लोगों से ख़ुदा का एहद करा लिया था और उससे तुम लोग यूसुफ के बारे में क्या कुछ ग़लती कर ही चुके हो तो (भाई) जब तक मेरे वालिद मुझे इजाज़त (न) दें या खुद ख़ुदा मुझे कोई हुक्म (न) दे मै उस सर ज़मीन से हरगिज़ न हटूँगा और ख़ुदा तो सब हुक्म देने वालो से कहीं बेहतर है (80) - इर्जिअू इला अबीकुम् फ़कूलू या अबाना इन्नब्न-क स-र-क़, वमा शहिद्ना इल्ला बिमा अ़लिम्ना वमा कुन्ना लिल्ग़ैबि हाफ़िज़ीन
तुम लोग अपने वालिद के पास पलट के जाओ और उनसे जाकर अज्र करो ऐ अब्बा अपके साहबज़ादे ने चोरी की और हम लोगों ने तो अपनी समझ के मुताबिक़ (उसके ले आने का एहद किया था और हम कुछ (अज्र) ग़ैबी (आफत) के निगेहबान थे नहीं (81) - वस्अलिल्-कर्य – तल्लती कुन्ना फ़ीहा वल्ईरल्लती अक़्बल्ना फ़ीहा, व इन्ना लसादिकून
और आप इस बस्ती (मिस्र) के लोगों से जिसमें हम लोग थे दरयाफ़्त कर लीजिए और इस क़ाफले से भी जिसमें आए हैं (पूछ लीजिए) और हम यक़ीनन बिल्कुल सच्चे हैं (82) - का-ल बल् सव्वलत् लकुम् अन्फुसुकुम् अम्रन्, फ़- सब्रुन् जमीलुन्, अंसल्लाहु अंय्यअ्ति – यनी बिहिम् जमीअ़न्, इन्नहू हुवल् अ़लीमुल्-हकीम
(ग़रज़ जब उन लोगों ने जाकर बयान किया तो) याक़ूब न कहा (उसने चोरी नहीं की) बल्कि ये बात तुमने अपने दिल से गढ़ ली है तो (ख़ैर) सब्र (और ख़ुदा का) शुक्र ख़ुदा से तो (मुझे) उम्मीद है कि मेरे सब (लड़कों) को मेरे पास पहुँचा दे बेशक वह बड़ा वाकिफ़ कार हकीम है (83) - व तवल्ला अ़न्हुम् व का-ल या अ-सफा अ़ला यूसु-फ़ वब्यज़्ज़त् अनाहु मिनल – हुज्नि फहु – व कज़ीम
और याक़ूब ने उन लोगों की तरफ से मुँह फेर लिया और (रोकर) कहने लगे हाए अफसोस यूसुफ पर और (इस क़दर रोए कि) उनकी आँखें सदमे से सफेद हो गई वह तो बड़े रंज के ज़ाबित (झेलने वाले) थे (84) - कालू तल्लाहि तफ़्तउ तज़्कुरू यूसु-फ़ हत्ता तकू-न ह-रजन् औ तकू – न मिनल्-हालिकीन
(ये देखकर उनके बेटे) कहने लगे कि आप तो हमेशा यूसुफ को याद ही करते रहिएगा यहाँ तक कि बीमार हो जाएगा या जान ही दे दीजिएगा (85) - का – ल इन्नमा अश्कू बस्सी व हुज़्नी इलल्लाहि व अअ्लमु मिनल्लाहि मा ला तअ्लमून
याक़ूब ने कहा (मै तुमसे कुछ नहीं कहता) मैं तो अपनी बेक़रारी व रंज की शिकायत ख़ुदा ही से करता हूँ और ख़ुदा की तरफ से जो बातें मै जानता हूँ तुम नहीं जानते हो (86) - या बनिय्यज़्हबू फ़-तहस्ससू मिंय्यूसु-फ़ व अखीहि वला तै- असु मिरौंहिल्लाहि, इन्नहू ला यै – असू मिरौंहिल्लाहि इल्लल् कौमुल् – काफिरून
ऐ मेरी फरज़न्द (एक बार फिर मिस्र) जाओ और यूसुफ और उसके भाई को (जिस तरह बने) ढूँढ के ले आओ और ख़ुदा की रहमत से ना उम्मीद न हो क्योंकि ख़ुदा की रहमत से काफिर लोगो के सिवा और कोई ना उम्मीद नहीं हुआ करता (87) - फ़- लम्मा द-ख़लू अ़लैहि कालू या अय्युहल अ़ज़ीजु मस्साना व अह़्ल -नज़्जुर्रु व जिअ्ना बिबिज़ा-अतिम्- मुज्जातिन् फ़औफ़ि लनल्कै-ल व तसद्दक् अ़लैना, इन्नल्ला-ह यज्ज़िल मु-
तसद्दिक़ीन
फिर जब ये लोग यूसुफ के पास गए तो (बहुत गिड़गिड़ाकर) अज्र की कि ऐ अज़ीज़ हमको और हमारे (सारे) कुनबे को कहत की वजह से बड़ी तकलीफ हो रही है और हम कुछ थोड़ी सी पूंजी लेकर आए हैं तो हम को (उसके ऐवज़ पर पूरा ग़ल्ला दिलवा दीजिए और (क़ीमत ही पर नहीं) हम को (अपना) सदक़ा खै़रात दीजिए इसमें तो शक नहीं कि ख़ुदा सदक़ा ख़ैरात देने वालों को जजाए ख़ैर देता है (88)
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