12 सूरह यूसुफ़ हिंदी में पेज 4

सूरह यूसुफ़ हिंदी में | Surat Yusuf in Hindi

  1. व क़ा-ल या बनिय्-य ला तद्ख़ुलू मिम्-बाबिंव्-वाहिदिंव् वद्ख़ुलू मिन् अब्वाबिम् मु-तफ़र्रि-क़तिन्, व मा उ़ग्-नी अ़न्कुम् मिनल्लाहि मिन् शैइन्, इनिल्हुक्मु इल्ला लिल्लाहि, अलैहि तवक्कल्तु, व अ़लैहि फ़ल्य-तवक्कलिल्-मु तवक्किलून
    और याक़ूब ने (नसीहतन चलते वक़्त बेटो से) कहा ऐ फरज़न्दों (देखो ख़बरदार) सब के सब एक ही दरवाजे़ से न दाखि़ल होना (कि कहीं नज़र न लग जाए) और मुताफरिक़ (अलग अलग) दरवाज़ों से दाखि़ल होना और मै तुमसे (उस बात को जो) अल्लाह की तरफ से (आए) कुछ टाल भी नहीं सकता हुक्म तो (और असली) अल्लाह ही के वास्ते है मैने उसी पर भरोसा किया है और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।
  2. व लम्मा-द-ख़लू मिन् हैसु अ-म-रहुम् अबूहुम्, मा का न युग़्-नि अ़न्हुम् मिनल्लाहि मिन् शैइन् इल्ला हा-जतन् फी नफ्सि यअ्क़ू-ब क़ज़ाहा, व इन्नहू लज़ू अिल्मिल्-लिमा अल्लम्-ना हु व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून *
    और जब ये सब भाई जिस तरह उनके वालिद ने हुक्म दिया था उसी तरह (मिस्र में) दाखि़ल हुए मगर जो हुक्म अल्लाह की तरफ से आने को था उसे याक़ूब कुछ भी टाल नहीं सकते थे मगर (हाँ) याक़ूब के दिल में एक तमन्ना थी जिसे उन्होंने भी यूं पूरा कर लिया क्योंकि इसमे तो शक नहीं कि उसे चूंकि हमने तालीम दी थी साहिबे इल्म ज़रुर था मगर बहुतेरे लोग (उससे भी) वाकि़फ नहीं।
  3. व लम्मा द-ख़लू अला यूसु-फ़ आवा इलैहि अख़ाहु क़ा-ल इन्नी अ-ना अख़ू-क फ़ला तब्तइस् बिमा कानू यअ्मलून
    और जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूसुफ ने अपने हक़ीक़ी (सगे) भाई को अपने पास (बग़ल में) जगह दी और (चुपके से) उस (इब्ने यामीन) से कह दिया कि मै तुम्हारा भाई (यूसुफ) हूँ तो जो कुछ (बदसुलूकियाँ) ये लोग तुम्हारे साथ करते रहे हैं उसका रंज न करो।
  4. फ़-लम्मा जह्ह ज़हुम् बि जहाज़िहिम् ज अ़लस्सिक़ाय-त फी रह्-लि अख़ीहि सुम्-म अज़्ज़-न मुअज़्ज़िनुन् अय्यतुहल् ईरू इन्नकुम् लसारिक़ून
    फिर जब यूसुफ ने उन का साज़ो सामान सफर ग़ल्ला (वग़ैरह) दुरुस्त करा दिया तो अपने भाई के असबाब में पानी पीने का कटोरा (यूसुफ के इशारे) से रखवा दिया फिर एक मुनादी ललकार के बोला कि ऐ काफ़िले वालों (हो न हो) यक़ीनन तुम्ही लोग ज़रुर चोर हो।
  5. क़ालू व अक़बलू अ़लैहिम् माज़ा तफ्क़िदून
    ये सुन कर ये लोग पुकारने वालों की तरफ भिड़ पड़े और कहने लगे (आखि़र) तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई है।
  6. क़ालू नफ्क़िदु सुवाअ़ल्- मलिकि व लिमन् जा-अ बिही हिम्लु बईरिंव्-व अ-ना बिही ज़ईम
    उन लोगों ने जवाब दिया कि हमें बादशाह का प्याला नहीं मिलता है और मै उसका ज़ामिन हूँ कि जो शख़्स उसको ला हाजिर करेगा उसको एक ऊँट के बोझ बराबर (ग़ल्ला इनाम) मिलेगा।
  7. क़ालू तल्लाहि ल-क़द् अ़लिम्तुम् मा जिअ्ना लिनुफ्सि-द फ़िल्अर्ज़ि व मा कुन्ना सारिक़ीन
    तब ये लेाग कहने लगे अल्लाह की क़सम तुम तो जानते हो कि (तुम्हारे) म़ुल्क में हम फसाद करने की ग़रज़ से नहीं आए थे और हम लोग तो कुछ चोर तो हैं नहीं।
  8. क़ालू फ़मा जज़ाउहू इन् कुन्तुम् काज़िबीन
    तब वह मुलाजिमों बोले कि अगर तुम झूठे निकले तो फिर चोर की क्या सज़ा होगी।
  9. क़ालू जज़ाउहू मंव्वुजि-द फी रह़्लिही फ़हु-व जज़ाउहू, कज़ालि-क नज्ज़िज़्ज़ालिमीन
    (वे धड़क) बोल उठे कि उसकी सज़ा ये है कि जिसके बोरे में वह (माल) निकले तो वही उसका बदला है (तो वह माल के बदले में ग़ुलाम बना लिया जाए)।
  10. फ़-ब-द-अ बिऔअि-यतिहिम् क़ब्-ल विआ़-इ अख़ीहि सुम्मस्तख़्-जहा मिंव्विआ़ इ अख़ीहि, कज़ालि-क किद्-ना लियूसु-फ, मा का-न लियअ्ख़ु-ज़ अख़ाहु फ़ी दीनिल्-मलिकि इल्ला अंय्यशाअल्लाहु, नरफ़अु द-रजातिम् मन्-नशा-उ, व फौ-क़ कुल्लि ज़ी अिल्मिन् अ़लीम
    हम लोग तो (अपने यहाँ) ज़ालिमों (चोरों) को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं ग़रज़ यूसुफ ने अपने भाई का थैला खोलने ने से क़ब्ल दूसरे भाइयों के थैलों से (तलाशी) शुरु की उसके बाद (आखि़र में) उस प्याले को यूसुफ ने अपने भाई के थैले से बरामद किया यूसुफ को भाई के रोकने की हमने यू तदबीर बताइ वरना (बादशाह मिस्र) के क़ानून के मुवाफिक़ अपने भाई को रोक नहीं सकते थे मगर हाँ जब अल्लाह चाहे हम जिसे चाहते हैं उसके दर्जे बुलन्द कर देते हैं और (दुनिया में) हर साहबे इल्म से बढ़कर एक और आलिम है।
  11. क़ालू इंय्यस् रिक़् फ़-क़द् स-र-क़ अख़ुल्लहू मिन् क़ब्लु, फ़-असर्रहा यूसुफु फ़ी नफ्सिही व लम् युब्दिहा लहुम्, क़ा-ल अन्तुम् शर्रूम्-मकानन्, वल्लाहु अअ्लमु बिमा तसिफून
    (ग़रज़) इब्ने यामीन रोक लिए गए तो ये लोग कहने लगे अगर उसने चोरी की तो (कौन ताज्जुब है) इसके पहले इसका भाई (यूसुफ) चोरी कर चुका है तो यूसुफ ने (उसका कुछ जवाब न दिया) उसको अपने दिल में पोशीदा (छुपाये) रखा और उन पर ज़ाहिर न होने दिया मगर ये कह दिया कि तुम लोग बड़े ख़ाना ख़राब (बुरे आदमी) हो।
  12. क़ालू या अय्युहल्-अज़ीज़ु इन्-न लहू अबन् शैख़न् कबीरन् फ़ख़ुज् अ-ह-दना मकानहू, इन्ना नरा-क मिनल् मुह्सिनीन
    और जो (उसके भाई की चोरी का हाल बयान करते हो अल्लाह खूब बवाकि़फ है (इस पर) उन लोगों ने कहा ऐ अज़ीज़ उस (इब्ने यामीन) के वालिद बहुत बूढ़े (आदमी) हैं (और इसको बहुत चाहते हैं) तो आप उसके ऐवज़ (बदले) हम में से किसी को ले लीजिए और उसको छोड़ दीजिए।
  13. क़ा-ल मआ़ज़ल्लाहि अन् नअ्ख़ु-ज़ इल्ला मंव्व-जद्-ना मता-अना अिन्दहू, इन्ना इज़ल्-लज़ालिमून *
    क्योंकि हम आपको बहुत नेको कार बुर्ज़ुग समझते हैं यूसुफ ने कहा माज़ अल्लाह (ये क्यों कर हो सकता है कि) हमने जिसकी पास अपनी चीज़ पाई है उसे छोड़कर दूसरे को पकड़ लें (अगर हम ऐसा करें) तो हम ज़रुर बड़े बेइन्साफ ठहरे।
  14. फ़लम्मस्तै-असू मिन्हु ख़-लसू नजिय्यन्, क़ा-ल कबीरूहुम् अलम् तअ्लमू अन्-न अबाकुम् क़द् अ-ख़-ज़ अ़लैकुम् मौसिक़म् मिनल्लाहि व मिन् क़ब्लु मा फर्रत्तुम् फी यू सु-फ़, फ़-लन् अब़्-र-हल्-अर्-ज़ हत्ता यअ्ज़-न ली अबी औ यह्कुमल्लाहु ली, व हु-व ख़ैरूल्-हाकिमीन
    फिर जब यूसुफ की तरफ से मायूस हुए तो बाहम मशवरा करने के लिए अलग खड़े हुए तो जो शख़्स उन सब में बड़ा था (यहूदा) कहने लगा (भाइयों) क्या तुम को मालूम नहीं कि तुम्हार वालिद ने तुम लोगों से अल्लाह का एहद करा लिया था और उससे तुम लोग यूसुफ के बारे में क्या कुछ ग़लती कर ही चुके हो तो (भाई) जब तक मेरे वालिद मुझे इजाज़त (न) दें या खुद अल्लाह मुझे कोई हुक्म (न) दे मै उस सर ज़मीन से हरगिज़ न हटूँगा और अल्लाह तो सब हुक्म देने वालो से कहीं बेहतर है।
  15. इर्जिअू इला अबीकुम् फ़क़ूलू या अबाना इन्नब्-न-क स-र-क़, वमा शहिद्-ना इल्ला बिमा अ़लिम्-ना वमा कुन्ना लिल्ग़ैबि हाफ़िज़ीन
    तुम लोग अपने वालिद के पास पलट के जाओ और उनसे जाकर अज्र करो ऐ अब्बा अपके साहबज़ादे ने चोरी की और हम लोगों ने तो अपनी समझ के मुताबिक़ (उसके ले आने का एहद किया था और हम कुछ (अज्र) ग़ैबी (आफत) के निगेहबान थे नहीं।
  16. वस्अलिल्-क़र्य-तल्लती कुन्ना फ़ीहा वल्ईरल्लती अक़्बल्ना फ़ीहा, व इन्ना लसादिक़ून
    और आप इस बस्ती (मिस्र) के लोगों से जिसमें हम लोग थे दरयाफ़्त कर लीजिए और इस क़ाफले से भी जिसमें आए हैं (पूछ लीजिए) और हम यक़ीनन बिल्कुल सच्चे हैं।
  17. क़ा-ल बल् सव्वलत् लकुम् अन्फुसुकुम् अम्रन्, फ़- सब्-रू-न् जमीलुन्, अंसल्लाहु अंय्यअ्ति-यनी बिहिम् जमीअ़न्, इन्नहू हुवल् अ़लीमुल्-हकीम
    (ग़रज़ जब उन लोगों ने जाकर बयान किया तो) याक़ूब न कहा (उसने चोरी नहीं की) बल्कि ये बात तुमने अपने दिल से गढ़ ली है तो (ख़ैर) सब्र (और अल्लाह का) शुक्र अल्लाह से तो (मुझे) उम्मीद है कि मेरे सब (लड़कों) को मेरे पास पहुँचा दे बेशक वह बड़ा वाकिफ़ कार हकीम है।
  18. व तवल्ला अ़न्हुम् व क़ा-ल या अ-सफा अ़ला यूसु-फ़ वब्यज़्ज़त् ऐनाहु मिनल्-हुज़्-नि फहु-व कज़ीम
    और याक़ूब ने उन लोगों की तरफ से मुँह फेर लिया और (रोकर) कहने लगे हाए अफसोस यूसुफ पर और (इस क़दर रोए कि) उनकी आँखें सदमे से सफेद हो गई वह तो बड़े रंज के ज़ाबित (झेलने वाले) थे।
  19. क़ालू तल्लाहि तफ़्तउ तज़्कुरू यूसु-फ़ हत्ता तकू-न ह-रज़न् औ तकू-न मिनल्-हालिकीन
    (ये देखकर उनके बेटे) कहने लगे कि आप तो हमेशा यूसुफ को याद ही करते रहिएगा यहाँ तक कि बीमार हो जाएगा या जान ही दे दीजिएगा।
  20. क़ा-ल इन्नमा अश्कू बस्सी व हुज़्नी इलल्लाहि व अअ्लमु मिनल्लाहि मा ला तअ्लमून
    याक़ूब ने कहा (मै तुमसे कुछ नहीं कहता) मैं तो अपनी बेक़रारी व रंज की शिकायत अल्लाह ही से करता हूँ और अल्लाह की तरफ से जो बातें मै जानता हूँ तुम नहीं जानते हो।
  21. या बनिय्यज़्हबू फ़-तहस्ससू मिंय्यूसु-फ़ व अख़ीहि वला तै-असु मिरौंहिल्लाहि, इन्नहू ला यै-असू मिरौंहिल्लाहि इल्लल् क़ौमुल्-काफिरून
    ऐ मेरी फरज़न्द (एक बार फिर मिस्र) जाओ और यूसुफ और उसके भाई को (जिस तरह बने) ढूँढ के ले आओ और अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद न हो क्योंकि अल्लाह की रहमत से काफिर लोगो के सिवा और कोई ना उम्मीद नहीं हुआ करता।
  22. फ़-लम्मा द-ख़लू अ़लैहि क़ालू या अय्युहल् अ़ज़ीजु मस्सना व अह़्ल-नज़्जुर्रु व जिअ्ना बिबिज़ा-अतिम्- मुज़्जातिन् फ़औफ़ि लनल्कै-ल व तसद्दक़् अ़लैना, इन्नल्ला-ह यज्ज़िल मु-तसद्दिक़ीन
    फिर जब ये लोग यूसुफ के पास गए तो (बहुत गिड़गिड़ाकर) अज्र की कि ऐ अज़ीज़ हमको और हमारे (सारे) कुनबे को कहत की वजह से बड़ी तकलीफ हो रही है और हम कुछ थोड़ी सी पूंजी लेकर आए हैं तो हम को (उसके ऐवज़ पर पूरा ग़ल्ला दिलवा दीजिए और (क़ीमत ही पर नहीं) हम को (अपना) सदक़ा खै़रात दीजिए इसमें तो शक नहीं कि अल्लाह सदक़ा ख़ैरात देने वालों को जजाए ख़ैर देता है।

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