07 सूरह अल-आराफ़ हिंदी में पेज 7

सूरह अल-आराफ़ हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. क़ा-ल रब्बिग़्फ़िर ली व लि-अख़ी व अद्खिल्ना फी रह़्मति-क, व अन्-त अर्हमुर्-राहिमीन •
    तब मूसा ने कहा ऐ मेरे परवरदिगार! मुझे और मेरे भाई को बख़्श दे और हमें अपनी रहमत में दाखि़ल कर और तू सबसे बढ़के रहम करने वाला है।
  2. इन्नल्लज़ीनत्त-ख़ज़ुल्-अिज्-ल स-यनालुहुम् ग़-ज़बुम् मिर्रब्बिहिम् व ज़िल्लतुन् फ़िल्-हयातिद्दुन्या, व कज़ालि-क नजज़िल मुफ़्तरीन
    बेशक जिन लोगों ने बछड़े को (अपना माबूद) बना लिया उन पर अनक़रीब ही उनके परवरदिगार की तरफ से अज़ाब नाज़िल होगा और दुनियावी ज़िन्दगी में ज़िल्लत (उसके अलावा) और हम बोहतान बाधने वालों की ऐसी ही सज़ा करते हैं।
  3. वल्लज़ी-न अमिलुस्सय्यिआति सुम्-म ताबू मिम् – बअ्दिहा व आमनू, इन्-न रब्ब-क मिम्-बअ़दिहा ल-ग़फूरुर्रहीम
    और जिन लोगों ने बुरे काम किए फिर उसके बाद तौबा कर ली और इमान लाए तो बेशक तुम्हारा परवरदिगार तौबा के बाद ज़रूर बख़्शने वाला मेहरबान है।
  4. व लम्मा स-क-त अम्मूसल-ग़-ज़बु अ-ख़ज़ल्-अल्वा-ह, व फी नुस्ख़तिहा हुदंव्-व रहमतुल्लिल्लज़ी-न हुम् लिरब्बिहिम् यर्हबून
    और जब मूसा का गुस्सा ठण्डा हुआ तो (तौरैत) की तख़्तियों को (ज़मीन से) उठा लिया और तौरैत के नुस्खे में जो लोग अपने परवरदिगार से डरते है उनके लिए हिदायत और रहमत है।
  5. वख़्ता-र मूसा क़ौमहू सब्ई-न रजुलल् लिमीक़ातिना, फ़-लम्मा अ-ख़ज़त्हुमुर्रज्-फतु क़ा-ल रब्बि लौ शिअ्-त अह़्लक्तहुम् मिन् क़ब्लु व इय्या-य, अतुह़्लिकुना बिमा फ़-अलस्सु फ़हा-उ मिन्ना, इन् हि-य इल्ला फ़ित् नतु-क, तुज़िल्लु बिहा मन् तशा-उ व तह्दी मन् तशा-उ, अन्-त वलिय्युना फ़ग़्फ़िर लना वरहम्-ना व अन्-त खैरुल्ग़ाफ़िरीन
    और मूसा ने अपनी क़ौम से हमारा वायदा पूरा करने को (कोहतूर पर ले जाने के वास्ते) सत्तर आदमियों को चुना फिर जब उनको ज़लज़ले ने आ पकड़ा तो हज़रत मूसा ने अर्ज किया परवरदिगार अगर तू चाहता तो मुझको और उन सबको पहले ही हलाक़ कर डालता क्या हम में से चन्द बेवकूफों की करनी की सज़ा में हमको हलाक़ करता है ये तो सिर्फ तेरी आज़माइश थी तू जिसे चाहे उसे गुमराही में छोड़ दे और जिसको चाहे हिदायत दे तू ही हमारा मालिक है तू ही हमारे कुसूर को माफ कर और हम पर रहम कर और तू तो तमाम बख्शने वालों से कहीं बेहतर है।
  6. वक्तुब् लना फी हाज़िहिद्दुन्या ह-स नतंव्-व फिल्आख़ि-रति इन्ना हुद्-ना इलै-क, क़ा-ल अज़ाबी उसीबु बिही मन् अशा-उ, व रह़्मती वसि अ़त् कुल-ल शैइन्, फ़-सअक्तुबुहा लिल्लज़ी-न यत्तक़ू-न व युअ्तूनज़्ज़का-त वल्लज़ी-न हुम् बिआयातिना युअ्मिनून
    और तू ही इस दुनिया (फ़ानी) और आखि़रत में हमारे वास्ते भलाई के लिए लिख ले हम तेरी ही तरफ रूझू करते हैं ख़ुदा ने फरमाया जिसको मैं चाहता हूँ (मुस्तहक़ समझकर) अपना अज़ाब पहुँचा देता हूँ और मेरी रहमत हर चीज़ पर छाई हैं मै तो उसे बहुत जल्द ख़ास उन लोगों के लिए लिख दूँगा (जो बुरी बातों से) बचते रहेंगे और ज़कात दिया करेंगे और जो हमारी बातों पर ईमान रखा करेंगे।
  7. अल्लज़ी-न यत्तबिअूनर्रसूलन्नबिय्यल् उम्मिय्यल्लज़ी यजिदूनहू मक्तूबन् अिन्दहुम् फ़ित्तौराति वल्-इन्जीलि, यअ्मुरुहुम् बिल्-मअ्-रूफ़ि व यन्हाहुम् अनिल-मुन्करि व युहिल्लु लहुमुत्तय्यिबाति व युहर्रिमु अलैहिमुल् ख़बाइ-स व य-ज़अु अन्हुम् इस्रहुम् वल्अग़्लालल्लती कानत् अलैहिम्, फ़ल्लज़ी-न आमनू बिही व अ़ज़्ज़रूहु व न-सरूहु वत्त-बअुन्-नूरल्लज़ी उन्ज़ि-ल म-अहू, उलाइ-क हुमुल्-मुफ्लिहून *
    (यानि) जो लोग हमारे बनी उल उम्मी पैग़म्बर के क़दम बा क़दम चलते हैं जिस (की बशारत) को अपने हा तौरैत और इन्जील में लिखा हुआ पाते है (वह नबी) जो अच्छे काम का हुक्म देता है और बुरे काम से रोकता है और जो पाक व पाकीज़ा चीजे़ तो उन पर हलाल और नापाक गन्दी चीजे़ उन पर हराम कर देता है और (सख़्त एहकाम का) बोझ जो उनकी गर्दन पर था और वह फन्दे जो उन पर (पड़े हुए) थे उनसे हटा देता है पस (याद रखो कि) जो लोग (नबी मोहम्मद) पर इमान लाए और उसकी इज़्ज़त की और उसकी मदद की और उस नूर (क़ुरान) की पैरवी की जो उसके साथ नाजि़ल हुआ है तो यही लोग अपनी दिली मुरादे पाएगें।
  8. क़ुल या अय्युहन्नासु इन्नी रसूलुल्लाहि इलैकुम् जमी-अ़निल्लज़ी लहू मुल्कुस्समावाति वल्अर्ज़ि, ला इला-ह इल्ला हु-व युह़्यी व युमीतु, फ़आमिनू बिल्लाहि व रसूलिहिन्-नबिय्यिल् उम्मिय्यिल्लज़ी युअ्मिनु बिल्लाहि व कलिमातिही वत्तबिअुहु लअ़ल्लकुम् तह्तदून
    (ऐ रसूल!) तुम (उन लोगों से) कह दो कि लोगों में तुम सब लोगों के पास उस ख़ुदा का भेजा हुआ (पैग़म्बर) हूँ जिसके लिए ख़ास सारे आसमान व ज़मीन की बादशाहत (हुकूमत) है उसके सिवा और कोई माबूद नहीं वही जि़न्दा करता है वही मार डालता है पस (लोगों) ख़ुदा और उसके रसूल नबी उल उम्मी पर ईमान लाओ जो (ख़ुद भी) ख़़ुदा पर और उसकी बातों पर (दिल से) ईमान रखता है और उसी के क़दम बा क़दम चलो ताकि तुम हिदायत पाओ।
  9. व मिन् क़ौमि मूसा उम्मतुंय्यह़्दू-न बिल्हक़्क़ि व बिही यअ्दिलून
    और मूसा की क़ौम के कुछ लोग ऐसे भी है जो हक़ बात की हिदायत भी करते हैं और हक़ के (मामलात में) इन्साफ़ भी करते हैं।
  10. व क़त्तअ्नाहुमुस् नती अश्र-त अस्बातन् उ-ममन्, व औहैना इला मूसा इज़िस्तस्क़ाहु क़ौमुहू अनिज़्-रिब बिअ़साकल् ह-ज-र, फम्ब-जसत् मिन्हुस्नता अश्र-त ऐनन्, क़द् अलि-म कुल्लु उनासिम् मश्र-बहुम्, व ज़ल्लल्ना अलैहिमुल् ग़मा-म व अन्ज़ल्ना अलैहिमुल मन्-न वस्सल्वा, कुलू मिन् तय्यिबाति मा रज़क़्नाकुम्, व मा ज़-लमूना व लाकिन् कानू अन्फु-सहुम् यज़्लिमून
    और हमने बनी ईसराइल के एक एक दादा की औलाद को जुदा जुदा बारह गिरोह बना दिए और जब मूसा की क़ौम ने उनसे पानी मागा तो हमने उनके पास वही भेजी कि तुम अपनी छड़ी पत्थर पर मारो (छड़ी मारना था) कि उस पत्थर से पानी के बारह चश्मे फूट निकले और ऐसे साफ साफ अलग अलग कि हर क़बीले ने अपना अपना घाट मालूम कर लिया और हमने बनी ईसराइल पर अब्र (बादल) का साया किया और उन पर मन व सलवा (सी नेअमत) नाजि़ल की (लोगों) जो पाक (पाकीज़ा) चीज़े तुम्हें दी हैं उन्हें (शौक से खाओ पियो) और उन लोगों ने (नाफरमानी करके) कुछ हमारा नहीं बिगाड़ा बल्कि अपना आप ही बिगाड़ते हैं।
  11. व इज़् क़ी-ल लहु मुस्कुनू हाज़िहिल्क़र्य-त व कुलू मिन्हा हैसु शिअ्तुम् व क़ूलू हित्ततुंव्-वद्ख़ुलुल्-बा-ब सुज्जदन् नग़्फ़िर् लकुम् ख़तिआतिकुम्, स-नज़ीदुल् मुह़्सिनीन
    और जब उनसे कहा गया कि उस गाँव में जाकर रहो सहो और उसके मेवों से जहाँ तुम्हारा जी चाहे (शौक से) खाओ (पियो) और मुँह से हुतमा कहते और सजदा करते हुए दरवाजे़ में दाखिल हो तो हम तुम्हारी ख़ताए बख़्श देगें और नेकी करने वालों को हम कुछ ज़्यादा ही देगें।
  12. फ़-बद्दलल्लज़ी-न ज़-लमू मिन्हुम् क़ौलन् ग़ैरल्लज़ी क़ी-ल लहुम् फ-अर्सल्ना अलैहिम् रिज्ज़म्-मिनस्-समा-इ बिमा कानू यज़्लिमून *
    तो ज़ालिमों ने जो बात उनसे कही गई थी उसे बदल कर कुछ और कहना शुरू किया तो हमने उनकी शरारतों की बदौलत उन पर आसमान से अज़ाब भेज दिया।
  13. वस्अल्हुम् अनिल्क़र्यतिल्लती कानत् हाज़ि-रतल्-बहरि • इज़् यअ्दू-न फिस्सब्ति इज़् तअ्तीहिम् हीतानुहुम् यौ-म सब्तिहिम् शुर्रअंव्-व यौ-म ला यस्बितू-न, ला तअ्तीहिम् कज़ालि-क, नब्लूहुम् बिमा कानू यफ्सुक़ून •
    और (ऐ रसूल!) उनसे ज़रा उस गाँव का हाल तो पूछो जो दरिया के किनारे वाक़ऐ था जब ये लोग उनके बुज़र्ग शुम्बे (सनीचर) के दिन ज़्यादती करने लगे कि जब उनका शुम्बा (वाला इबादत का) दिन होता तब तो मछलियाँ सिमट कर उनके सामने पानी पर उभर के आ जाती और जब उनका शुम्बा (वाला इबादत का) दिन न होता तो मछलिया उनके पास ही न फटकतीं और चॅूकि ये लोग बदचलन थे उस दरजे से हम भी उनकी यूही आज़माइश किया करते थे।
  14. व इज़् क़ालत् उम्मतुम्-मिन्हुम् लि-म तअिज़ू-न क़ौ- मनिल्लाहु मुह़्लिकुहुम् औ मुअ़ज़्ज़िबुहुम् अ़ज़ाबन् शदीदन्, क़ालू मअ्ज़ि-रतन् इला रब्बिकुम् व लअ़ल्लहुम् यत्तक़ून
    और जब उनमें से एक जमाअत ने (उन लोगों में से जो शुम्बे के दिन शिकार को मना करते थे) कहा कि जिन्हें ख़ुदा हलाक़ करना या सख़्त अज़ाब में मुब्तिला करना चाहता है उन्हें (बेफायदे) क्यो नसीहत करते हो तो वह कहने लगे कि फक़त तुम्हारे परवरदिगार में (अपने को) इल्ज़ाम से बचाने के लिए शायद इसलिए कि ये लोग परहेज़गारी एखि़्तयार करें।
  15. फ़-लम्मा नसू मा ज़ुक्किरू बिही अन्जैनल्लज़ी-न यन्हौ-न अनिस्सू-इ व अख़ज़्नल्लज़ी-न ज़-लमू बिअज़ाबिम् बईसिम्-बिमा कानू यफ़्सुक़ून
    फिर जब वह लोग जिस चीज़ की उन्हें नसीहत की गई थी उसे भूल गए तो हमने उनको तो तजावीज़ (नजात) दे दी जो बुरे काम से लोगों को रोकते थे और जो लोग ज़ालिम थे उनको उनकी बद चलनी की वजह से बड़े अज़ाब में गिरफ्तार किया।
  16. फ़-लम्मा अ़तौ अम्मा नुहू अन्हु क़ुल्ना लहुम् कूनू क़ि-र-दतन् ख़ासिईन
    फिर जिस बात की उन्हें मुमानिअत (रोक) की गई थी जब उन लोगों ने उसमें सरकशी की तो हमने हुक्म दिया कि तुम ज़लील और राएन्दे (धुत्कारे) हुए बन्दर बन जाओ (और वह बन गए)।
  17. व इज़् त-अज़्ज़-न रब्बु-क लयब्अ-सन्-न अलैहिम् इला यौमिल्-क़ियामति मंय्यसूमुहुम् सूअल्-अ़ज़ाबि, इन्-न रब्ब-क ल-सरीअुल-अिक़ाबि, व इन्नहू ल-ग़फूरुर्रहीम
    (ऐ रसूल! वह वक़्त याद दिलाओ) जब तुम्हारे परवरदिगार ने पुकार पुकार के (बनी ईसराइल से कह दिया था कि वह क़यामत तक उन पर ऐसे हाकि़म को मुसल्लत देखेगा जो उन्हें बुरी बुरी तकलीफें देता रहे क्योंकि) इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार बहुत जल्द अज़ाब करने वाला है और इसमें भी शक नहीं कि वह बड़ा बख़्शने वाला (मेहरबान) भी है।
  18. व क़त्तअ्नाहुम् फ़िल्अर्ज़ि उ-ममन् मिन्हुमुस्सालिहू-न व मिन्हुम् दू-न जालि-क, व बलौनाहुम् बिल्ह-सनाति वस्सय्यिआति लअ़ल्लहुम् यर्जिअून
    और हमने उनको रूए ज़मीन में गिरोह-गिरोह तितिर- बितिर कर दिया उनमें के कुछ लोग तो नेक हैं और कुछ लोग और तरह के (बदकार) हैं और हमने उन्हें सुख और दुख (दोनो तरह) से आज़माया ताकि वह (शरारत से) बाज़ आए।
  19. फ़-ख़-ल-फ़ मिम्-बअ्दिहिम् ख़ल्फुंव्वरिसुल-किता-ब यअ्ख़ुज़ू-न अ-र-ज़ हाज़ल्-अद्-ना व यक़ूलू-न सयुग़्फ़रू लना, व इंय्यअ्तिहिम् अ-रज़ुम् मिस्लुहू यअ्ख़ुज़ूहु, अलम् युअ्ख़ज़् अलैहिम् मीसाक़ुल-किताबि अल्ला यक़ूलू अलल्लाहि इल्लल्हक़्क़ व द-रसू मा फ़ीहि, वद्दारूल् आख़िरतु ख़ैरुलल्लिल्लज़ी-न यत्तक़ू-न, अ-फला तअ्क़िलून
    फिर उनके बाद कुछ जानशीन हुए जो किताब (ख़़ुदा तौरैत) के तो वारिस बने (मगर लोगों के कहने से एहकामे ख़ुदा को बदलकर (उसके ऐवज़) नापाक कमीनी दुनिया के सामान ले लेते हैं (और लुत्फ तो ये है) कहते हैं कि हम तो अनक़रीब बख़्श दिए जाएगें (और जो लोग उन पर तान करते हैं) अगर उनके पास भी वैसा ही (दूसरा सामान आ जाए तो उसे ये भी न छोड़े और) ले ही लें क्या उनसे किताब (ख़ुदा तौरैत) का एहदो पैमान नहीं लिया गया था कि ख़ुदा पर सच के सिवा (झूठ कभी) नहीं कहेगें और जो कुछ उस किताब में है उन्होंने (अच्छी तरह) पढ़ लिया है और आखि़र का घर तो उन्हीं लोगों के वास्ते ख़ास है जो परहेज़गार हैं तो क्या तुम (इतना भी नहीं समझते)।
  20. वल्लज़ी-न युमस्सिकू-न बिल्किताबि व अक़ामुस्सला-त, इन्ना ला नुज़ीअु अज्रल् मुस्लिहीन
    और जो लोग किताब (ख़़ुदा) को मज़बूती से पकड़े हुए हैं और पाबन्दी से नमाज़ अदा करते हैं (उन्हें उसका सवाब ज़रूर मिलेगा क्योंकि) हम हरगिज़ नेकोकारो का सवाब बरबाद नहीं करते।
  21. व इज़् न-तक़्नल् ज-ब-ल फौक़हुम् क-अन्नहू ज़ुल्लतुंव् -व ज़न्नू अन्नहू वाक़िअुम् बिहिम्, ख़ुज़ू मा आतैनाकुम् बिक़ुव्वतिंव्वज़्कुरू मा फ़ीहि लअ़ल्लकुम् तत्तक़ून *
    तो (ऐ रसूल! यहूद को याद दिलाओ) जब हम ने उन (के सरों) पर पहाड़ को इस तरह लटका दिया कि गोया साएबान (छप्पर) था और वह लोग समझ चुके थे कि उन पर अब गिरा और हमने उनको हुक्म दिया कि जो कुछ हमने तुम्हें अता किया है उसे मज़बूती से पकड़ लो और जो कुछ उसमें लिखा है याद रखो ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ।
  22. व इज़् अ-ख़-ज़ रब्बु-क मिम्-बनी आद-म मिन् ज़ुहूरिहिम् ज़ुर्रिय्य-तहुम् व अश्ह-दहुम् अला अन्फुसिहिम्, अलस्तु बिरब्बिकुम्, क़ालू बला, शहिद्-ना, अन् तक़ूलू यौमल्-क़ियामति इन्ना कुन्ना अन् हाज़ा ग़ाफ़िलीन
    और उसे रसूल वह वक़्त भी याद (दिलाओ) जब तुम्हारे परवरदिगार ने आदम की औलाद से बस्तियों से (बाहर निकाल कर) उनकी औलाद से खुद उनके मुक़ाबले में एक़रार कर लिया (पूछा) कि क्या मैं तुम्हारा परवरदिगार नहीं हूँ तो सब के सब बोले हाँ हम उसके गवाह हैं ये हमने इसलिए कहा कि ऐसा न हो कहीं तुम क़यामत के दिन बोल उठो कि हम तो उससे बिल्कुल बे ख़बर थे।
  23. औ तक़ूलू इन्नमा अश्र-क आबाउना मिन् क़ब्लु व कुन्ना जुर्रिय्यतम्-मिम्-बअ्दिहिम्, अ-फ़तुह् लिकुना बिमा फ़-अलल् मुब्तिलून
    या ये कह बैठो कि (हम क्या करें) हमारे तो बाप दादाओं ही ने पहले शिर्क किया था और हम तो उनकी औलाद थे (कि) उनके बाद दुनिया में आए तो क्या हमें उन लेागों के ज़ुर्म की सज़ा में हलाक करेगा जो पहले ही बातिल कर चुके।
  24. व कज़ालि-क नुफस्सिलुल आयाति व लअ़ल्लहुम् यर्ज़िअून
    और हम यूँ अपनी आयतों को तफसीलदार बयान करते हैं और ताकि वह लोग (अपनी ग़लती से) बाज़ आए।
  25. वत्लु अलैहिम् न-बअल्लज़ी आतैनाहु आयातिना फन्स -ल-ख़ मिन्हा फ़-अत्ब-अहुश्शैतानु फ़का-न मिनल् -ग़ावीन
    और (ऐ रसूल!) तुम उन लोगों को उस शख़्स का हाल पढ़ कर सुना दो जिसे हमने अपनी आयतें अता की थी फिर वह उनसे निकल भागा तो शैतान ने उसका पीछा पकड़ा और आखि़रकार वह गुमराह हो गया।

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