07 सूरह अल-आराफ़ हिंदी में पेज 8

सूरह अल-आराफ़ हिंदी में | Surat Al-Araf in Hindi

  1. व लौ शिअ्ना ल-रफ़अ्नाहु बिहा व लाकिन्नहू अख़्ल – द इलल् अर्जि वत्त- ब – अ हवाहु फ़-म-सलुहू क – म – सलिल्कल्बि इन तह़्मिल अ़लैहि यल्हस् औ तत्रूक्हु यल्हस्, ज़ालि- क म- सलुल – क़ौमिल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना फ़क्सुसिल् क -स –स लअ़ल्लहुम् य – तफ़क्करून
    और अगर हम चाहें तो हम उसे उन्हें आयतों की बदौलत बुलन्द मरतबा कर देते मगर वह तो ख़ुद ही पस्ती (नीचे) की तरफ झुक पड़ा और अपनी नफसानी ख़्वाहिश का ताबेदार बन बैठा तो उसकी मसल है कि अगर उसको धुत्कार दो तो भी ज़बान निकाले रहे और उसको छोड़ दो तो भी ज़बान निकले रहे ये मसल उन लोगों की है जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया तो (ऐ रसूल) ये कि़स्से उन लोगों से बयान कर दो ताकि ये लोग खुद भी ग़ौर करें (176)
  2. सा-अ म-स-ल –निल्कौमुल्लज़ी-न कज़्ज़बू बिआयातिना व अन्फु – सहुम् कानू यज्लिमून
    जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया है उनकी भी क्या बुरी मसल है और अपनी ही जानों पर सितम ढाते रहे (177)
  3. मंय्यह़्दिल्लाहु फ़हुवल् – मुह़्तदी व मंय्युज्लिल् फ़उलाइ – क हुमुल ख़ासिरून
    राह पर बस वही शख़्स है जिसकी ख़ुदा हिदायत करे और जिनको गुमराही में छोड़ दे तो वही लोग घाटे में हैं (178)
  4. वल – कद् ज़रअ्ना लि-जहन्न-म कसीरम् मिनल् – जिन्नि वल्इन्सि लहुम् कुलूबुल् ला यफ़्क़हू – न बिहा व लहुम् अअ्युनुल-ला युब्सिरू-न बिहा व लहुम् आज़ानुल् – ला यस्मअू – न बिहा, उलाइ – क कल्अन् आमि बल् हुम् अज़ल्लु, उलाइ-क हुमुल् गाफ़िलून
    और गोया हमने (ख़ुदा) बहुतेरे जिन्नात और आदमियों को जहन्नुम के वास्ते पैदा किया और उनके दिल तो हैं (मगर कसदन) उन से देखते ही नहीं और उनके कान भी है (मगर) उनसे सुनने का काम ही नहीं लेते (खुलासा) ये लोग गोया जानवर हैं बल्कि उनसे भी कहीं गए गुज़रे हुए यही लोग (अमूर हक़) से बिल्कुल बेख़बर हैं (179)
  5. व लिल्लाहिल्-अस्माउल-हुस्ना फ़द्अूहु बिहा व ज़रूल्लज़ी-न युल्हिदू -न फ़ी अस्माइही, सयुज्ज़ौ-न मा कानू यअ्मलून
    और अच्छे (अच्छे) नाम ख़ुदा ही के ख़ास हैं तो उसे उन्हीं नामों में पुकारो और जो लेाग उसके नामों में कुफ्र करते हैं उन्हें (उनके हाल पर) छोड़ दो और वह बहुत जल्द अपने करतूत की सज़ाए पाएगें (180)
  6. व मिम् – मन् ख़लक़्ना उम्मतुंय्यदू – न बिल्हक़्क़ि व बिही यअ्दिलून *
    और हमारी मख़लूक़ात से कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दीने हक़ की हिदायत करते हैं और हक़ से इन्साफ़ भी करते हैं (181)
  7. वल्लज़ी – न कज्जबू बिआयातिना सनस् तदरिजुहुम् मिन् हैसु ला यअ्लमून
    और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया हम उन्हें बहुत जल्द इस तरह आहिस्ता आहिस्ता (जहन्नुम में) ले जाएगें कि उन्हें ख़बर भी न होगी (182)
  8. व उम्ली लहुम् इन्-न कैदी मतीन
    और मैं उन्हें (दुनिया में) ढील दूगा बेशक मेरी तद्बीर (पुख़्ता और) मज़बूत है (183)
  9. अ – व लम् य – तफ़क्करू मा बिसाहिबिहिम् मिन् जिन्नतिन्, इन् हु – व इल्ला नज़ीरूम् – मुबीन
    क्या उन लोगों ने इतना भी ख़्याल न किया कि आखि़र उनके रफीक़ (मोहम्मद ) को कुछ जुनून तो नहीं वह तो बस खुल्लम खुल्ला (अज़ाबे ख़ुदा से) डराने वाले हैं (184)
  10. अ-व लम् यन्जुरू फ़ी म-लकूतिस्समावाति वल्अर्जि व मा ख़- लकल्लाहु मिन् शैइंव् – व अन् अ़सा अंय्यकू-न कदिक़्त-र-ब अ जलुहुम् फबिअय्यि हदीसिम् – बअ्दहू युअ्मिनून
    क्या उन लोगों ने आसमान व ज़मीन की हुकूमत और ख़ुदा की पैदा की हुयी चीज़ों में ग़ौर नहीं किया और न इस बात में कि शायद उनकी मौत क़रीब आ गई हो फिर इतना समझाने के बाद (भला) किस बात पर ईमान लाएगें (185)
  11. मंय्युज्लिलिल्लाहु फ़ला हादि-य लहू, व य-ज़रूहुम् फी तुग्यानिहिम् यअ्महून
    जिसे ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे फिर उसका कोई राहबर नहीं और उन्हीं की सरकशी (व शरारत) में छोड़ देगा कि सरगरदा रहें (186)
  12. यस् अलू न -क अनिस्सा-अति अय्या-न मुरसाहा, कुल इन्नमा अिल्मुहा अिन्- द रब्बी ला युजल्लीहा लिवक्तिहा इल्ला हु – व• सकुलत् फ़िस्समावाति वल्अर्जि, ला तअ्तीकुम् इल्ला बग्त – तन्, यस्अलून – क कअन्न – क हफ़िय्युन् अन्हा, कुल् इन्नमा अिल्मुहा अिन्दल्लाहि व लाकिन्-न अक्सरन्नासि ला यअ्लमून
    (ऐ रसूल) तुमसे लोग क़यामत के बारे में पूछा करते हैं कि कहीं उसका कोई वक़्त भी तय है तुम कह दो कि उसका इल्म बस फक़त पररवदिगार ही को है वही उसके वक़्त मुअय्युन पर उसको ज़ाहिर कर देगा। वह सारे आसमान व ज़मीन में एक कठिन वक़्त होगा वह तुम्हारे पास पस अचानक आ जाएगी तुमसे लोग इस तरह पूछते हैं गोया तुम उनसे बखूबी वाकि़फ हो तुम (साफ) कह दो कि उसका इल्म बस ख़ुदा ही को है मगर बहुतेरे लोग नहीं जानते (187)
  13. कुल् ला अम्लिकु लिनफ़्सी नफ्अंव – व ला ज़र्रन् इल्ला मा शाअल्लाहु, वलौ कुन्तु अअ्-लमुल-गै-ब लस् तक् सरतु मिनल् – खैरि, व मा मस्सनियस्-सू-उ इन् अ-न इल्ला नज़ीरूंव् – व बशीरूल – लिकौमिंय्युअ्मिनून *
    (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै ख़ुद अपना आप तो एख़तियार रखता ही नहीं न नफे़ का न ज़रर का मगर बस वही ख़ुदा जो चाहे और अगर (बग़ैर ख़ुदा के बताए) गै़ब को जानता होता तो यक़ीनन मै अपना बहुत सा फ़ायदा कर लेता और मुझे कभी कोई तकलीफ़ भी न पहुँचती मै तो सिर्फ ईमानदारों को (अज़ाब से डराने वाला) और वेहशत की खुशख़बरी देने वाला हूँ (188)
  14. हुवल्लज़ी ख-ल-क़कुम् मिन् नफ़्सिंव्वाहि- दतिंव-व ज-अ- ल मिन्हा ज़ौजहा लियस्कु – न इलैहा फ़ – लम्मा तगश्शाहा ह – मलत् हम्लन् ख़फ़ीफ़न फ़-मर्रत् बिही फ़-लम्मा अस् -कलद्द – अवल्ला – ह रब्बहुमा ल -इन् आतैतना सालिहल् ल -नकूनन् -न मिनश् -शाकिरीन
    वह ख़ुदा ही तो है जिसने तुमको एक शख़्स (आदम) से पैदा किया और उसकी बची हुयी मिट्टी से उसका जोड़ा भी बना डाला ताकि उसके साथ रहे सहे फिर जब इन्सान अपनी बीबी से हम बिस्तरी करता है तो बीबी एक हलके से हमल से हमला हो जाती है फिर उसे लिए चलती फिरती है फिर जब वह (ज़्यादा दिन होने से बोझल हो जाती है तो दोनो (मिया बीबी) अपने परवरदिगार ख़ुदा से दुआ करने लगे कि अगर तो हमें नेक फरज़न्द अता फरमा तो हम ज़रूर तेरे शुक्रगुज़ार होंगे (189)
  15. फ़- लम्मा आताहुमा सालिहन् ज- अला लहू शु-रका अ फ़ीमा आताहुमा क़-तआलल्लाहु अम्मा युश्रिकून
    फिर जब ख़़ुदा ने उनको नेक (फरज़न्द) अता फ़रमा दिया तो जो (औलाद) ख़ुदा ने उन्हें अता किया था लगे उसमें ख़़ुदा का शरीक बनाने तो ख़़ुदा (की शान) शिर्क से बहुत ऊँची है (190)
  16. अयुश्रिकू-न मा ला यख़लुकु शैअंव-व हुम् युख़्लकून
    क्या वह लोग ख़़ुदा का शरीक ऐसों को बनाते हैं जो कुछ भी पैदा नहीं कर सकते बल्कि वह ख़ुद (ख़़ुदा के) पैदा किए हुए हैं (191)
  17. व ला यस्ततीअू-न लहुम् नस्रंव् – व ला अन्फु -सहुम् यन्सुरून
    और न उनकी मदद की कुदरत रखते हैं और न आप अपनी मदद कर सकते हैं (192)
  18. व इन् तद्अूहुम् इलल्हुदा ला यत्तबिअूकुम्, सवाउन् अलैकुम् अ-दऔतुमूहम् अम् अन्तुम् सामितून
    और अगर तुम उन्हें हिदायत की तरफ बुलाओंगे भी तो ये तुम्हारी पैरवी नहीं करने के तुम्हारे वास्ते बराबर है ख़्वाह (चाहे) तुम उनको बुलाओ या तुम चुपचाप बैठे रहो (193)
  19. इन्नल्लज़ी-न तद्अू-न मिन् दूनिल्लाहि अिबादुन् अम्सालुकुम् फ़द्अूहुम् फ़ल्यस्तजीबू लकुम् इन् कुन्तुम् सादिक़ीन
    बेशक वह लोग जिनकी तुम ख़़ुदा को छोड़कर हाजत करते हो वह (भी) तुम्हारी तरह (ख़ुदा के) बन्दे हैं भला तुम उन्हें पुकार के देखो तो अगर तुम सच्चे हो तो वह तुम्हारी कुछ सुन लें (194)
  20. अ – लहुम् अर्जुलुंय्यम्शू – न बिहा अम् लहुम् ऐदिंय्यब्तिशू – न बिहा अम् लहुम् अअ्युनुंय्युब्सिरू-न बिहा, अम् लहुम् आजानुंय्यस्मअू-न बिहा कुलिद्अू शु-रका-अकुम् सुम्-म कीदूनि फ़ला तुन्ज़िरून
    क्या उनके ऐसे पाव भी हैं जिनसे चल सकें या उनके ऐसे हाथ भी हैं जिनसे (किसी चीज़ को) पकड़ सके या उनकी ऐसी आँखे भी है जिनसे देख सकें या उनके ऐसे कान हैं जिनसे सुन सकें (ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि तुम अपने बनाए हुए शरीको को बुलाओ फिर सब मिलकर मुझ पर दाव चले फिर (मुझे) मोहलत न दो (195)
  21. इन् – न वलिय्यि – यल्लाहुल्लज़ी नज़् ज़लल्- किता-ब व हु-व य – तवल्लस्सालिहीन
    (फिर देखो मेरा क्या बना सकते हो) बेशक मेरा मालिक व मुमताज़ तो बस ख़ुदा है जिस ने किताब क़ुरान को नाजि़ल फरमाया और वही (अपने) नेक बन्दों का हाली (मददगार) है (196)
  22. वल्लज़ी – न तद्अू – न मिन् दूनिही ला यस्ततीअू-न नस्रकुम् व ला अन्फु-सहुम् यन्सुरून
    और वह लोग (बुत) जिन्हें तुम ख़ुदा के सिवा (अपनी मदद को) पुकारते हो न तो वह तुम्हारी मदद की कुदरत रखते हैं और न ही अपनी मदद कर सकते हैं (197)
  23. व इन् तद्अूहुम् इलल्हुदा ला यस्मअू, व तराहुम् यन्जुरू – न इलै – क व हुम् ला युब्सिरून
    और अगर उन्हें हिदायत की तरफ बुलाएगा भी तो ये सुन ही नहीं सकते और तू तो समझता है कि वह तुझे (आँखें खोले) देख रहे हैं हालाकि वह देखते नहीं (198)
  24. खुज़िल्-अफ्-व वअ्मुर् बिल्अुर्फि व अअ्-रिज़ अ़निल जाहिलीन
    (ऐ रसूल) तुम दरगुज़र करना एख़्तियार करो और अच्छे काम का हुक्म दो और जाहिलों की तरफ से मुह फेर लो (199)
  25. व इम्मा यन्ज़गन्न -क मिनश्शैतानि नज्गुन फ़स्तअिजू बिल्लाहि, इन्नहू समीअुन् अलीम
    अगर शैतान की तरफ से तुम्हारी (उम्मत के) दिल में किसी तरह का (वसवसा (शक) पैदा हो तो ख़ुदा से पनाह मागों (क्यूंकि) उसमें तो शक ही नहीं कि वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है (200)
  26. इन्नल्लज़ीनत्तकौ इज़ा मस्सहुम् ताइ-फुम-मिनश्शैतानि तज़क्करू फ़-इज़ा हुम् मुब्सिरून
    बेशक लोग परहेज़गार हैं जब भी उन्हें शैतान का ख़्याल छू भी गया तो चैक पड़ते हैं फिर फौरन उनकी आँखें खुल जाती हैं (201)
  27. व इख्वानुहुम् यमुद्दूनहुम् फ़िल्-ग़य्यि सुम् -म ला युक्सिरून
    उन काफिरों के भाई बन्द शैतान उनको (धर पकड़) गुमराही के तरफ घसीटे जाते हैं फिर किसी तरह की कोताही (भी) नहीं करते (202)
  28. व इज़ा लम् तअ्तिहिम् बिआयतिन् कालू लौलज्तबै – तहा, कुल् इन्नमा अत्तबिअु मा यूहा इलय् – य मिर्रब्बी हाज़ा बसा – इरू मिर्रब्बिकुम् व हुदंव – व रह़्मतुल् – लिकौमिंय्युअ्मिनून
    और जब तुम उनके पास कोई (ख़ास) मौजिज़ा नहीं लाते तो कहते हैं कि तुमने उसे क्यों नहीं बना लिया (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मै तो बस इसी वही का पाबन्द हूँ जो मेरे परवरदिगार की तरफ से मेरे पास आती है ये (क़ुरान) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (हक़ीकत) की दलीलें हैं (203)
  29. व इज़ा कुरिअल् कुरआनु फस्तमिअु लहू व अन्सितू लअल्लकुम् तुर्हमून
    और इमानदार लोगों के वास्ते हिदायत और रहमत हैं (लोगों) जब क़ुरान पढ़ा जाए तो कान लगाकर सुनो और चुपचाप रहो ताकि (इसी बहाने) तुम पर रहम किया जाए (204)
  30. वज्कुर् रब्ब-क फी नफ्सि-क तज़र्रूअंव्-व ख़ी-फ़तंव् – व दूनल्जह़रि मिनल्कौलि बिलगुदुव्वि वल्-आसालि व ला तकुम् मिनल – ग़ाफ़िलीन
    और अपने परवरदिगार को अपने जी ही में गिड़गिड़ा के और डर के और बहुत चीख़ के नहीं (धीमी) आवाज़ से सुबह व श्याम याद किया करो और (उसकी याद से) ग़ाफिल बिल्कुल न हो जाओ (205)
  31. इन्नल्लज़ी न अिन्- द रब्बि-क ला यस्तक्बिरू – न अन् अिबा दतिही व युसब्बिहूनहू व लहू यस्जुदून • *
    बेशक जो लोग (फरिशते बग़ैरह) तुम्हारे परवरदिगार के पास मुक़र्रिब हैं और वह उसकी इबादत से सर कशी नही करते और उनकी तसबीह करते हैं और उसका सजदा करते हैं (206) सजदा

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