जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 14
नबूवत के ग्यारह साल में हज के दिनों की बात है। हुजूर अकरम ने रात के अंधेरे में “मक्का” शहर से कुछ दूर पर एक जगह “उक़्बा” पर लोगों को बातें करते सुना। इस …
नबूवत के ग्यारह साल में हज के दिनों की बात है। हुजूर अकरम ने रात के अंधेरे में “मक्का” शहर से कुछ दूर पर एक जगह “उक़्बा” पर लोगों को बातें करते सुना। इस …
मक्का में वापस आकर नबी मुहम्मद मुस्तफ़ा ने अब ऐसा करना शुरू किया कि अलग-अलग क़बीलो़ के आवास में तशरीफ़ ले जाते। या “मक्का” से बाहर चले जाते और जो कोई…
इस्लाम जैसे-जैसे बढ़ रहा था वैसे-वैसे हालात और सख़्त होते जा रहे थे। ऐसे में नबूवत के दसवें साल हुज़ूर अकरम के चाचा “अबू तालिब” जो आपका मजबूत सहारा थे…
“मक्का” के काफ़िर देखते थे कि उनकी लाख कोशिशों के बावजूद इस्लाम हर दिन बढ़ता जा रहा था “उमर” और “हमज़ा” रज़िअल्लाह अन्हु जैसे लोग भी मुस्लमान हो चुके थे।
हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु की उम्र सत्ताईस(27) वर्ष थी हुजूर अकरम ने अपनी नबूवत का ऐलान किया। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के चाचा “ज़ैद” रज़िअल्लाह…
लम्बे अंतराल तक जुल्मो-सितम सहने के बाद अब वह समय आ गया था कि नबी करीम ने सहाबा को अनुमति दे दी कि जो चाहे अपनी जान और ईमान को बचाने के लिए “हबश” चला जाए।
क़ुरैश के लोगों ने जब देखा कि “मुहम्मद” हमारी बात नहीं मानेंगे तो उन्होंने उन ग़रीबों पर ग़ुस्सा उतारा जो उनके गुलाम वगैरह थे। जब दोपहर की गर्मी से अरब की …
“मक्का” के मुश्रिकों को एक के बाद एक नाकामी झेलनी पड़ रही थी। हर तरकीब हर बात खराब हो रही थी। इसके लिए उन सबने तय किया कि एक बार हम सब मिल कर एक साथ …
हुज़ूर पाक अपनी ज़िम्मेदारी में लगे रहे। “मक्का” के लोग यूँ तो हुज़ूर को जान का नुक़सान नहीं पहुँचा सकते थे पर इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाने…
अब जबकि मुस्लामानों को खुली तबलीग़ (प्रचार ) का आदेश आ चुका था तो इन सब को आगे की मंज़िल तय करनी थी। हुज़ूर अकरम अपने सभी साथियों को लेकर हरम में गए और…