जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 10

हज़रत उमर का इस्लाम

हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु की उम्र सत्ताईस(27) वर्ष थी हुजूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने अपनी नबूवत का ऐलान किया। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के चाचा “ज़ैद” रज़िअल्लाह अन्हु बहुत पहले से एकेश्वरवाद के पक्षधर थे। इसकी वजह से हज़रत “ज़ैद” रज़िअल्लाह अन्हु को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। परंतु ज़ैद की वजह से ही उनके घर में एकेश्वरवाद की बात हो रही थी। जब हजूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस्लाम की दावत देनी शुरू की तो सबसे पहले “ज़ैद” रज़िअल्लाह अन्हु के बेटे “शहीद” रज़िअल्लाह अन्हु मुस्लमान हुए। “शहीद” रज़िअल्लाह अन्हु का निकाह हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु की बहन “फ़ातिमा” रज़िअल्लाह अन्हा से हुआ था। इसी ताल्लुक़ से हज़रत फ़ातिमा रज़िअल्लाह अन्हा भी मुस्लमान हो गई थी। इसी ख़ानदान में एक और बुजुर्ग “नुऐम बिन अब्दुल्लाह” रज़िअल्लाह अन्हु ने भी इस्लाम क़ुबूल कर लिया था। लेकिन हज़रत “उमर”रज़िअल्लाह अन्हु अभी तक इस्लाम में दाख़िल नहीं हुए थे। 

जैसे ही उन्हें इस्लाम के बारे में ख़बर हुई आप बेहद गुस्से में आ गए। यहाँ तक कि जो लोग मक्का में मुस्लमान हो चुके थे उनके जानी दुश्मन बन गए। “लुबैना” रज़िअल्लाह अन्हा नाम की एक दासी का ताल्लुक हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के क़बीले से था। उसको बेइंतहा मारते और मारते-मारते थक जाते तो उससे कहते कि जरा सांस ले लूँ फिर मारुँगा। न सिर्फ़ “लुबैना” रज़िअल्लाह अन्हा बल्कि जिसपर भी क़ाबू पाते उसी पर ज़ुल्म करते। लेकिन इस्लाम का रंग ऐसा था कि जिस पर चढ़ जाता था उतारे ना उतरता। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हा की लाख कोशिशों के बाद एक व्यक्ति भी इस्लाम से न फ़िरा। आख़िर मजबूर होकर क़सम उठा ली कि इस्लाम के पैगंबर हज़रत “मुहम्मद” मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का क़त्ल कर दूँगा। इस इरादे के साथ तलवार को कमर से लगाया और सीधे रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तरफ़ चल पड़े।

संयोग से राह में “नुऐम बिन अब्दुल्लाह” रज़िअल्लाह अन्हु मिल गए। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के हाव-भाव देखे तो पूछा ख़ैर तो है? उन्होंने जवाब दिया कि आज “मुहम्मद” मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)का फ़ैसला करने जा रहा हूँ। हज़रत “नुऐम” रज़िअल्लाह अन्हु घबरा गए और कहा कि पहले अपने घर की ख़बर लो। तुम्हारी बहन और बहनोई इस्लाम ला चुके हैं। यह सुनकर हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु का गुस्सा सातवें आसमान पर था।

हज़रत उमर ने फ़ौरन अपनी बहन के घर का रुख किया। हज़रत उमर  की बहन उस वक़्त कुरआन पढ़ रही थीं। उनकी आहट सुनी तो चुप हो गई और पन्ने छिपा दिए। लेकिन हज़रत “उमर”रज़िअल्लाह अन्हु ने आवाज़ सुन ली थी। बहन से पूछा कि क्या आवाज़ थी। बोलीं, कुछ भी तो नहीं। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु बोले कि “मुझे पता चल गया है कि तुम दोनों हमारे बाप-दादा के दीन से फिर गए हो”। इतना कहा और बहनोई पर हाथ उठा दिया जब उनकी बहन बचाने को आई तो उन्हें भी खूब मारा। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु ने दोनों को इतना मारा कि लहू-लुहान कर दिया लेकिन इस्लाम छोड़ने पर राज़ी न कर सके। दोनों ने हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु से कहा “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु जो चाहे कर लो लेकिन इस्लाम अब दिल से नहीं निकल सकता। यह बात सुनकर हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु पर गहरा असर हुआ। 

बहन की तरफ़ मोहब्बत की नज़र से देखा, काफ़ी खून बह चुका था और दोनों कराह रहे थे।”उमर” रज़िअल्लाह अन्हु ने बहन से कहा कि। “जो किताब तुम पढ़ रही थीं मुझे भी दिखाओ”। बहन ने कहा “मुझे ख़तरा है कहीं तुम उस किताब की बेअदबी न कर दो”। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा कि, “डरो नहीं और अपने माबूदों(वो देवता जिन्हें वो अब तक पूजते रहे थे) की क़सम खाई कि पढ़कर ज़रुर वापस कर देंगे। उनकी यह बात सुनकर उनकी बहन को कुछ उम्मीद हुई कि शायद हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु की हिदायत का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि तुम अभी अपवित्र हो और इसको सिर्फ़ पाक आदमी ही छू सकता है। यह बात सुनकर हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु उठे और पहले जाकर स्नान किया मैंने उनको कुरआन मजीद के कुछ पन्ने दिए। जिसपर कुछ आयत लिखी थी उसका शुरुआती हिस्सा पढ़ा और कहा कि कलाम कितना भव्य है। यह वाक़ई अल्लाह की कही बात है। 

हज़रत “ख़ब्बाब” रज़िअल्लाह अन्हु जो अभी तक छुपे हुए थे यह सुनकर बाहर निकल आए और उनसे कहा कि “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु मुझे उम्मीद है कि अब अल्लाह ने अपने नबी की दुआ कुबूल कर ली मैंने कल ही हुज़ूर को यह दुआ करते हुए सुना कि या रब “अबू जहल” या उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के ज़रिए से इस दीन की मदद फ़रमा। “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु इस नेमत की क़दर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का पता बतला दिया। ये वो ज़माना था कि रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हज़रत अरकम के मकान में लोगों को इस्लाम सिखाते थे। हज़रत अरकम का घर एक घाटी में था जो की आबादी से ज़रा दूर थी। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु ने वहाँ पहुँचकर दस्तक दी। क्योंकि जब “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु की कमर से तलवार बंधी थी तो सहाबा को ख़तरा हुआ कि कहीं “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु नुक़सान पहुँचाने तो नहीं आए। लेकिन हज़रत “अमीर “हमज़ा” रज़िअस्लाह अन्हु ने कहा आने दो, अगर शराफ़त से आया है तो बेहतर, वरना उसकी तलवार से उसका सर कलम कर दूँगा। हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु अंदर दाख़िल हुए तो रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)खुद आगे बढ़े और उनसे पूछा क्यों “उमर” किस इरादे से आए हो? 

नबूवत की रौबदार आवाज़ सुनकर”उमर” रज़िअल्लाह अन्हु को किसी ग़ैबी(अदृश) ताक़त ने ख़ामोश कर दिया। बहुत ही अदब से कहा ईमान लाने के लिए आया हूँ। यह सुनकर वहाँ मौजूद सभी लोग अल्लाह हू अकबर, अल्लाह हू अकबर की आवाज़ से “मक्का” की पहाड़ियाँ गूँज उठीं। 

हज़रत “उमर” रज़िअल्लाह अन्हु का मुस्लमान होना इस्लाम के इतिहास का एक नये दौर का शुरु होना था उस वक्त तक लगभग चालीस-पचास आदमी मुस्लमान हो चुके थे अरब के बेहद मशहूर बहादुर शख्स हज़रत “हमजा” रज़िअस्लाह अन्हु भी इस्लाम क़ुबूल कर चुके थे लेकिन फिर भी मुस्लमान खुले आम इबादत नहीं कर सकते थे। लेकिन हज़रत”उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के मुस्लमान होने के बाद यह हालत बदल गई उन्होंने सबके सामने ऐलान के साथ अपना इस्लाम लाना ज़ाहिर किया। लोग ग़ुस्सा तो बहुत हुए लेकिन”उमर” रज़िअल्लाह अन्हु के आगे क्या कह सकते थे।

साथ ही “हबश” में लगभग तिरासी से ज़्यादा लोग मुस्लमान हो गए थे। सब ठीक था कि ख़बर मशहूर हुई कि “मक्का” के लोगों ने इस्लाम कुबूल कर लिया। खुशी के मारे यह लोग वापस पहुँचे। शहर के क़रीब आए तो मालूम हुआ कि ग़लत ख़बर है इसलिए कुछ लोग वापस चले गए और अक्सर छुप-छुपा कर “मक्का” में वापस आ गए।

इस ग़लत ख़बर को सुनकर “मक्का” वापस आने वाले लोगों में हज़रत”उस्मान” बिन मज़ऊन रज़िअल्लाह अन्हु भी थे। यह “मक्का” लौटे तो इनको “वलीद” बिन मुग़ीरा ने पनाह दी। हज़रत”उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने जब देखा कि दूसरे मुस्लमान जिनको किसी कुरैशी सरदार की पनाह हासिल नहीं है और वो यातनाऐं झेल रहे हैं तो यह गवारा न किया कि खुद भी किसी की पनाह में रहें। उन्होंने कहा कि मेरे साथी “क़ुरैश” लोगों के ज़ुल्म का शिकार बने हुए हैं और मैं किसी दूसरे की पनाह में महफूज़ हूँ और अपने साथियों के साथ नहीं हूँ यह मेरी बहुत बड़ी कमज़ोरी और मेरे लिए बुज़दिली की बात है। वो “बलिद” के पास तुरंत गए और कहा कि आपने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी कर दी मैं आपकी पनाह से अब बाहर हूँ अब आप पर मेरी कोई ज़िम्मेदारी नहीं। “वलीद” ने कहा मेरे अज़ीज़ दोस्त क्या मेरी क़ौम में से किसी ने तुमको कुछ तकलीफ़ पहुँचाई। हज़रत “उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा “नहीं लेकिन अब मुझे अल्लाह की पनाह के सिवा कोई और पनाह गवारा नहीं” “वलीद” ने कहा कि अच्छा बैतुल्लाह के पास जाकर ऐलान कर दो कि तुम अब मेरी पनाह में नहीं हो और अब मैं तुम्हारी हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी से बरी(आज़ाद) हूँ। परिणाम स्वरुप यह दोनों बैतुल्लाह की तरफ़ गए।

“वलीद” ने कहा लोगों “उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु अब मेरी पनाह से बाहर हैं।  हज़रत “उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने बात को बढ़ाते  हुए कहा कि यह मुझे शोभा नहीं देता कि मैं अल्लाह के सिवा किसी और की हिमायत हासिल करूँ।  यह बात कहकर हज़रत”उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु वहाँ से निकले। कुछ ही दूर एक महफ़िल सजी हुई थी। उसमें अरब का एक मशहूर शायर”लुबैद”अपना एक क़सीदा सुना रहा था उसका एक शेर का पहला मिसरा(पंक्ति) था यानी अल्लाह के सिवा हर चीज़ बे हक़ीक़त है हज़रत “उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा सच है “लुबैद” ने दूसरा मिसरा पढ़ा और हर ऐश ( आराम) एक न एक दिन फ़ना होने वाला है हज़रत “उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा कि यह ग़लत है जन्नत का ऐश फ़ना होने वाला नहीं। वहाँ बैठे लोगों को इस बात का कटना गवारा नहीं हुआ। 

सब हैरान थे कि यह कौन पैदा हो गया जो बेबुनियाद बात से शेर काट रहा है। वहाँ बैठे लोगों में से एक व्यक्ति ने कहा कि कुछ दिनों से हमारे यहाँ कम समझ लोगों की एक गिरोह पैदा हो गया है जिन्होंने हमारे बाप-दादा के धर्म को छोड़ दिया है आप कुछ ध्यान न दीजिए हज़रत “उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने इस पर कुछ कहना चाहा तो एक शख्स ने उनके मुँह पर एक ज़ोरदार तमाचा मारा जिससे उनकी एक आँख ज़ख्मी हो गई। “वलीद” यह सब बैठा देख रहा था उसने कहा मेरे अज़ीज़ दोस्त तुमने बेवजह अपनी आँख ख़राब करवा ली अगर तुम मेरी हिमायत में रहते तो क्यों इसकी नौबत आती। हज़रत”उस्मान” रज़िअल्लाह अन्हु ने कहा कि मेरी दूसरी आँख को भी इस आँख से जलन हो रही है और इसकी भी तमन्ना है कि ये भी शहीद हो जाए। “वलीद” ने हज़रत “उस्मान”रज़िअल्लाह अन्हु की इस बात पर कहा कि अब भी मौक़ा है अगर चाहो तो मेरी पनाह में आ जाओ।

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