जीवनी पैगंबर मुहम्मद पेज 6

उत्बा से बातचीत

हुज़ूर पाक(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपनी ज़िम्मेदारी में लगे रहे। “मक्का” के लोग यूँ तो हुज़ूर को जान का नुक़सान नहीं पहुँचा सकते थे पर इसके अतिरिक्त किसी भी प्रकार की हानि पहुँचाने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते थे हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के रास्ते में कांटे बिछा देते। कभी हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)पर कूड़ा फेंक देते। कभी हुज़ूर नमाज़ पढ़ते होते तो उनपर जानवर का गन्दा गोश्त लाकर डाल देते। मज़ाक़ उड़ाना और ताने देना साधारण सी बात थी। 

जब हुज़ूर(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को देखते तो अपने साथियों के लोग व्यंग कसते हुए कहते ‘यह हैं वो लोग जिन्हें अल्लाह ने हमसे ऊपर रखा है।” एक रोज़ हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) नमाज़ पढ़ रहे थे तभी दो निर्दयी लोगों ने आपके गले में चादर का फंदा डाल के दोनों तरफ से खींचना शुरु कर दिया। फंदे पर इतना ज़ोर डाला कि हुज़ूर की आँखें बहार आने को हो गयीं। तभी “अबू बक्र” रज़िअल्लाह अन्हु आये और हुज़ूर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को वहाँ से छुड़ा कर ले गये। हुज़ूर अकरम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को “अबू बक्र” रज़िअल्लाह अन्हु ने छुड़ा तो लिया पर फिर मुश्रिकीन ने “अबू बक्र” रज़िअल्लाह अन्हु को पीटना शुरू कर दिया।

इतना ज़ुल्म करके सारे मुशरिक़ इस सोच में पड़ गए कि कोई इतना अत्याचार अकारण क्यों सहन करेगा। इसका कारण शायद मालो दौलत या अपनी अलग हुकूमत स्थापित करना हो। तो “मक्का” के सरदारों ने निर्णय किया कि “मुहम्मद” मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से इस बारे में खुल के बात कर ली जाये। बात करने के लिए बड़े सरदार “उत्बा बिन राबिआ” को चुना गया। जो लोगों की नज़र में बात को अच्छी तरह से कहना और समझाना जानता था।

क़ुरैश की तरफ़ से “उत्बा” पैग़म्बर ए इस्लाम” पैगम्बर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के पास आया और कहा“ ऐ “मुहम्मद!” क्या “मक्का” की हुकूमत चाहिये? या किसी बड़े घर में शादी करना चाहते हो? या ढे़र सारी दौलत की इच्छा है? हम ये सब कुछ तुम्हें ला कर देने को तैयार हैं। यहाँ तक कि अगर तुम चाहो तो सारा “मक्का” तुम्हारे अधीन कर दिया जाये। बस तुम ये बातें करना छोड़ दो। “उतबा” को भरोसा था जो प्रलोभन उसने ‘मुहम्मद’ रसूलल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को दिया है वो इस पर राज़ी हो जायेंगे। परन्तु इस प्रलोभन के उत्तर में प्यारी नबी ने क़ुरआन की ये आयतें पढ़ी

surah 41

(क़ुरान। सूरत 41 आयत 1-8 )

हा मीम! इस किताब का उतारा जाना उस हस्ती की तरफ़ से है जो बे-हद मेहरबान निहायत रहम करने वाला है। ये बराबर पढ़ी जाने वाली किताब है अरबी ज़बान में समझदार लोगों के लिए। इसमें सब बातें खुली-खुली दर्ज हैं जो लोग अल्लाह का हुक्म मानते हैं। उनके वास्ते इस फ़रमान में बशारत है और जो इंकार करते हैं उनको अल्लाह के अज़ाब से डराता है। मगर बहुत से लोगों ने इस से मुँह मोड़ लिया और कहते हैं कि इसका हमारे दिल पर कोई असर नहीं होता। हमारे कान बहरे हो गए हैं और हमारे और तुम्हारे बीच में एक तरह कर पर्दा पड़ा हुआ है। 

अर्थात मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यह एकेश्वरवाद की बात हमें समझ में नहीं आती। इस लिये आप हमें हमारे धर्म पर ही रहने दें।

तुम अपना काम करो हम अपना काम किये जाएंगे। ऐ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उन लोगों से कह दीजिये कि मैं भी तुम जैसा इंसान हूँ। मुझे वही(संदेश वाहक) के ज़रिये से बताया जाता है कि तुम्हारा अल्लाह बस एक ही है। अर्थात तुम सीधा उसी की तरफ़ रुख करो और उसी से अपने पापों की माफ़ी मांगो। तबाही उन लोगों के लिए है जो किसी और को अपने रब के बराबर समझते हैं। सदक़ा नहीं देते और आख़िरत (अन्तिम दिन)का इंकार करते हैं। रहे वो लोग जिन्होंने मान लिया और नेक कर्म किये। उनके लिए ऐसा बदला है जिसका सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होगा।

रसूल पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) क़ुरआन पढ़ रहे थे और “उत्बा” आश्चर्यचकित होकर बड़ी-बड़ी आँखों से हुज़ूर को देख रहा था जब रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) खामोश हुए तो वो चुप-चाप उठा और वापस चला गया। “उत्बा” को लोगों ने आते देखा तो कहा कि देखो “उत्बा” का चेहरा वो नहीं जो जाते समय था। उन्होंने पूछा “उत्बा” क्या हुआ? क्या कहा? क्या सुना? “उत्बा” बोला क़ुरैश! मैं ऐसी वाणी सुनकर आ रहा हूँ। न ही वो शायरी है। न ही कुछ और। मेरी मानो तो “मुहम्मद” मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अपने हाल पर छोड़ दो यही सब के लिए उचित होगा। लोग ये बात सुनकर हंसे और कहा “लो “उत्बा” पर भी ‘मुहमम्मद’ मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बातों का जादू चल गया।”

एक तो अल्लाह के कलाम में ही इतनी मिठास और रौब है। उसपर ये कि वो सब अरबी लोग थे। अरबी भाषा का ज्ञान रखते थे उसकी गहराई को समझते थे। आज हम हिंदी-उर्दू अनुवाद में क़ुरआन पढ़ते हैं तो वो जादू नहीं चल पाता जो एक अरबी समझने वाले पर होता था। साथ ही उन्हें अल्लाह का कलाम सुनाने वाले “मुहम्मद”मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) खुद हैं। आप तो कोई साधारण सी बात भी करते थे तो लोग अदब से खामोश हो जाते थे। जब भी बात करते तो बहुत साफ़, सटीक और अच्छी बात करते। भले ही लोग मुस्लमान नहीं होते लेकिन हुज़ूर अकरम(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)के अंदाज़ को पसंद करते थे।

जैसे एक बार की घटना है कि “क़ुरैश” के लोगों की बैठक हुई इस बात का निर्णय करने के लिए-जो लोग बाहर से आने वाले हैं उन्हें “मुहम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कैसे दूर रखा जाये। एक शख्स ने राय दी की हम लोगों से कहेंगे की यह भविष्य बताने वाले हैं। एक बूढ़ा सरदार “वलीद बिन मुग़ीरा” बोले “ मैंने बहुत से भविष्य बताने वाले देखे हैं। “मुहम्मद”(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उन जैसे नहीं हैं। कहाँ तो भविष्य बताने वालों की गोल-मोल चटकारे दार बातें और कहाँ “मुहमम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का साफ़ सीधा कलाम। कोई विश्वास नहीं करेगा। हमें कोई ऐसी बात नहीं करनी चाहिए जिससे लोग समझें कि अरब के लोग झूट बोलते हैं।” एक व्यक्ति ने सुझाव दिया हम इन्हें दीवाना बताएँगे। 

“वलीद” बोला “मुहम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का दीवानगी से क्या लेना देना। एक बोला हम कहेंगे वो शायर हैं। “वलीद” जानते हैं शेर क्या होता है। साहित्य किस तरह से लिखा जाता है हम सब इसके जानकार “मुहम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जो बात कहते वो शेरो- शायरी जैसी नहीं है। एक बोला हम ये कह दिया करेंगे की वो जादूगर हैं। “वलीद” ने कहा जितनी सफ़ाई और पवित्रता से “मुहम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रहते हैं वो जादूगरों में नहीं पायी जाती। जादूगरों की बदसूरत शक्ल और ख़राब आदतें होती हैं। 

अब सबने थक हार कर कहा चाचा तुम ही बताओ क्या कहें फिर?” “वलीद” ने गंभीर स्वर में कहा “ सच तो ये है कि “मुहम्मद”मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के कलाम में अजब मिठास है। उसके संवाद में बहुत आकर्षण है। सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। कहने को तो बस यही कह सकते है कि इनका कलाम ऐसा है जिस से बाप-बेटे, भाई-भाई, पति-पत्नी के बीच दरार आ जाती है। इसलिए इससे बच के रहना चाहिए। तमाम लोगों ने “वलीद” के इस मशिवरे को पसंद किया। अब उनमें से अक्सर का यही काम था कि वो “मक्का” के रास्तों पर बैठ जाते और आने-जाने वाले को रोक कर “मुहम्मद” मुस्तफ़ा(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से डराते।

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