सुल्तान रुकनुद्दीन बैबर्स : मंगोल बनाम मुसलमान
अब रुकनुद्दीन बैबर्स अपनी सेना के साथ हरकत में आया। एक तूफानी आक्रमण में, वह सीरिया के अलग-अलग शहरों में जो मंगोल थे उन पर आक्रमण किया। उन्हें लगातार पराजित किया और भागने पर मजबूर कर दिया। अपनी इस तूफानी मुहिम में रुकनुद्दीन बैबर्स ने उन सभी गद्दर मुसलमानों का भी खात्मा कर दिया जिन्होंने मुसलमानों के खिलाफ हमलावर हलाकू खाँन का साथ दिया था। और उसकी कामयाबियों में उसके सहायक साबित हुए थे। इस तरह कुछ दिनों के अंदर-अंदर रुकनुद्दीन बैबर्स ने सीरिया के कई शहरों से मंगोलों का सफाया कर दिया।
वह यह भी जानता था कि जल्द ही हलाकू खाँन लौटेगा और मुसलमानों से बदला लेगा। इसलिए वह भी अपनी सेना की तादाद बढ़ाना चाहता था। सेना को मज़बूत करना चाहता था। इसलिए अपने कुछ सरदारो और सेना को उसने सीरिया में ही छोड़ा। और खुद वापस काहिरा की तरफ चला गया। काहिरा में उन दिनों एक बुरा वाक्या पेश आया। वह यह कि जिस वक्त सेनापति रुकनुद्दीन बैबर्स सीरिया और फिलस्तीन से मंगोलों को मार के उनको बाहर निकाल रहे थे। तब मिस्र के सुल्तान मलिक मुजफ्फर ने एक व्यक्ति ‘बदरुद्दीन रूहलू’ के बेटे ‘अलाउद्दीन’ को ‘हलब’ का हाकिम नियुक्त कर दिया। क्योंकि बगदाद पर हमले के समय बदरुद्दीन रूहलू ने हलाकू का साथ दिया था यह देखते हुए बहुत से सरदार मलिक मुजफ्फर के खिलाफ हो गए इसलिए इन्होंने उसको मार दिया। और उसकी जगह रुकनुद्दीन बैबर्स को अपना सुल्तान बना दिया। इस तरह सन् 1260 ई. को रुकनुद्दीन बैबर्स मिस्र का सुल्तान बना।
उसके गद्दी पर बैठने के ऐलान पर मिस्र के निवासियों ने बहुत खुशी का इज़हार किया। इसलिए रुकनुद्दीन बैबर्स ने पहले मंसूरा और गज़ा में फ्राँनसीसियों के खिलाफ कामयाबी हासिल करते हुए मिस्र की सियासत में बड़ा पद हासिल कर लिया था। और अब एन-ए-जालूत में मंगोलों को शानदार तरीके से हराकर वह पूरे इस्लामी दुनियां, खासतौर पर मिस्र के निवासियों की आंख का तारा बन चुका था अतः जब उसे सुल्तान बनाया गया। तो मिस्र के निवासियों ने बहुत ही खुशी से न सिर्फ उसका स्वागत किया बल्कि उसकी लंबी उम्र की दुआएं मांगी।
वास्तव में एन-ए-जालूत की जीत से मिस्र और सीरिया में रुकनुद्दीन बैबर्स को बहुत ऊंचा मुकाम हासिल हो गया था। मिस्र के लोग समझते थे कि बैबर्स की बहादुरी, वीरता और ऊंचे पद की वजह से उन्हें कामयाबी हासिल हुई है। और वह यह भी समझते थे कि सुल्तान बैबर्स ही मंगोलो और सलीबियों से लड़ने और लोगों की उम्मीदों को पूरा करने की हिम्मत रखता है। सुल्तान बैबर्स जो कि पहले गुलाम था। इसलिए वह खुद और उसके बाद जो उसके उत्तराधिकारी हुए उन्हें गुलाम या ममलूक शासक कहकर पुकारा जाता है । मिस्र का सुल्तान बनने के बाद बैबर्स ने अपना नाम ‘अलमुल्कुज़्ज़ाहिर’ रखा। अतः इतिहास में सुल्तान को ज्यादातर ‘अलमुल्कुज़्ज़ाहिर’ के नाम से ही याद रखा गया है।
मिस्र का सुल्तान बनते ही रुकनुद्दीन बैबर्स ने सल्तनत के अंदर तमाम बुराइयों को खत्म करके रख दिया जो इससे पहले पैदा हो चुकीं थीं। खासतौर पर मलिक मुजफ्फर की हुकूमत में पैदा हुई थीं। अतः उसने किसी चेतावनी के बगैर हर किस्म के नाजायज़ टैक्सों और टोल टैक्स को खत्म कर दिया तथा कई शराब की दुकानों और जुए के अड्डों को सख्ती के साथ बंद करवा दिया। गद्दी पर बैठने के बाद सुल्तान बैबर्स के सामने अहम मसला सीरिया को मंगोलों के खतरों से सुरक्षित रखना था।
क्योंकि खतरा था कि वह एन-ए-जालूत की हार का बदला लेने के लिए किसी भी समय सीरिया पर आक्रमण कर सकते हैं। इसके साथ ही वह यह भी महसूस करता था कि सीरिया की सुरक्षा करना मिस्र की ज़िम्मेदारी है और जब तक वह सब हुक्मरान जो सीरिया में छोटी – छोटी जायदाद और रियासतों पर बैठे थे मिस्र का अधिकार नहीं मान लेते। उस समय तक सीरिया हमेशा मंगोलों और सलीबियों के हमलों की चपेट में रहेगा। अतः इन समस्याओं से निकलने के लिए अपनी गद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद वह एक ताकतवर सेना लेकर रवाना हुआ। फिर सीरिया में दाखिल हुआ और दमिश्क में एक सभा आयोजित करके सीरिया के प्रभावशाली लोगों से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा। मुसलमानों की खुशकिस्मती की सीरिया के लोग बहुत समझदार साबित हुए उन्होंने बेझिझक उसकी अधीनता स्वीकार कर ली और इस तरह सुल्तान सिर्फ मिस्र ही का नहीं सीरिया का भी सुल्तान बन गया। a
सीरिया को अपने साथ मिलाने के बाद सुल्तान बैबर्स ने सीरिया के निवासियों को, मिस्र के निवासियों के बराबर अधिकार दिए और ऐलान किया कि सीरिया मिस्र की इस्लामी सल्तनत की दूसरी शाखा है और दमिश्क इस सल्तनत का दूसरा केंद्र होगा। सुल्तान बैबर्स ने सीरिया के कुछ शहरों और रियासतों में पुराने परिवारों की हुकूमत बरकरार रखी लेकिन उन पर यह शर्त लगा दी। कि वह सल्तनत के आदेश और मदद के पाबंद होंगे। इस तरह सीरिया भी सुल्तान बैबर्स की सल्तनत का एक हिस्सा बन गया। उन दिनों सीरिया बड़ी सल्तनत थी इसलिए क्योंकि सीरिया में उस समय लेबनान, उर्दन, फिलिस्तीन और इज़राइल के सारे इलाके शामिल हुआ करते थे। सिर्फ रोम के किनारे – किनारे नसरानियों के कब्जे़ में कुछ किले थे। यह सारे काम करने के बाद सुल्तान बैबर्स ने हलाकू खाँन का मुकाबला करने की तैयारी शुरू कर दी।
उसने जहाँ अपने सैन्य विभाग को मज़बूत किया वहाँ उसने अपनी सेना की तादाद बढ़ाई। उसने हलब शहर से लेकर ईराक तक सभी जंगलों और घास के इलाकों में आग लगवा दी। ताकि आक्रमण करने वाले मंगोल आसानी से आगे ना आ सकें। यह सब काम करने के बाद एक बार फिर सुल्तान बैबर्स सीरिया से मिस्र की तरफ चला गया। सीरिया से वापस मिस्र जाने के बाद सुल्तान बैबर्स ने सबसे पहले ‘अब्बासी खिलाफत’ को दुबारा शुरू किया। हलाकू खाँन के हाथों बगदाद की तबाही के साथ ही अब्बासी खिलाफत का खात्मा हो गया था। खिलाफत जैसी भी थी हर सूरत में वह इस्लामी दुनियां के नज़दीक सार्वजनिक तौर पर धर्म केंद्र का दर्जा रखती थी। इसके खत्म हो जाने से मुसलमान अपनी दीनी और सियासी ज़िंदगी के अंदर बहुत खाली जगह महसूस कर रहे थे। सुल्तान बैबर्स भी इस मामले में लोगों की भावनाओं से पूरी तरह अवगत था।
अतः मिस्र आने के बाद उसने पक्का इरादा कर लिया था कि अब्बासी खिलाफत दुबारा शुरू करी जाएगी और जल्द ही इसका केंद्र काहिरा ही में स्थापित किया जाएगा। मंगोलों के हाथों बगदाद की तबाही के समय एक अब्बासी शहज़ादा जिसका नाम ‘अबुल कासिम’ था कैद में था। बाद में हंगामे के दौरान जब बगदाद के कैदखानों से बहुत से कैदी भाग निकले तो वह शहज़ादा भी उन कैदियों के साथ भाग निकला और साढे़ तीन साल तक गुमनामी में पढ़ा रहा। अचानक सुल्तान बैबर्स को उसके रहने का स्थान पता चल गया। अतः उसने दस सरदारों को भेजा और अबुल कासिम को मिस्र आने की दावत दी।
अबुल कासिम ने दावत कुबूल कर ली और अपने कुछ साथियों के साथ मिस्र में दाखिल हुआ। मिस्र में उसका शानदार तरीके से स्वागत किया गया। शहर को आलीशान अंदाज़ में सजाया गया। इसके बाद सुल्तान बैबर्स के न्यायाधीशों के अलावा दूसरे सरदारों और मनसबदारों ने भी अबुल कासिम के हाथ पर बैअत (अधीनता स्वीकार) की। इस तरह फिर अब्बासी खिलाफत शुरु हो गई। मिस्र के अंदर सुल्तान बैबर्स ने सिक्कों पर अब्बासी खलीफा अबुल कासिम का नाम जारी किया। दूसरी तरफ हलाकू खाँन भी अपने इलाके गोबी के रेगिस्तान से लौट आया था और अब वह मुसलमानों से अपने सेनापति की हार का बदला लेने के बारे में कुछ सोचने लगा।
हलाकू खाँन को सुल्तान बैबर्स पर बहुत तेज़ गुस्सा आ रहा था। इसलिए की सुल्तान बैबर्स ने मंगोलों की भयंकर ताकत को ढेर करके रख दिया था। सुल्तान बैबर्स अपनी बहादुरी और वीरता से पूरी दुनिया में मशहूर हो गया था। अब सुल्तान बैबर्स ही की वजह से इस्लामी दुनियां में मिस्र और सीरिया की रियासतों को केंद्रीय महत्व हासिल हो गया था। दूसरी तरफ हलाकू खाँन सुल्तान बैबर्स के सामने एक नई ताकत खड़ी करना चाहता था सुल्तान बैबर्स का मुकाबला करने के लिए मंगोल और पूर्वी यूरोप के सलीबी आपस में दोस्ती करने लगे। और उन्होंने मिस्र और सीरिया की हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए संबंध बनाने शुरू कर दिए थे।
सुल्तान बैबर्स ने देखा कि उस पर आक्रमण करने के लिए मंगोल, पूर्वी यूरोप के देशों से संबंध बना रहे हैं तो वह भी बेकार नहीं बैठा। सुल्तान बैबर्स की खुशकिस्मती की उसने अपनी अक्लमंदी से मंगोलों की ताकत को दो हिस्सों में तक्सीम कर दिया। वास्तव में चंगेज़ खाँन के चार बेटे थे जोची खाँन, चुगताई खाँन, उगदाई खाँन और तुलाई खाँन। जोची खाँन को उन इलाकों का हाकिम बनाया गया था जिसे आजकल पश्चिमी एशिया कहते हैं। जोची खाँन के दो बेटे थे बड़े का नाम बातों खाँन और उससे छोटे का नाम बिर्काई खान था। जोची खाँन के बाद उसका बेटा बातों खान उन इलाकों का हाकिम बना और बातों के बाद उसका छोटा भाई बिर्काई खाँन वोल्गा नदी के आस-पास के इलाकों का हाकिम बन गया था।
मुसलमानों और सुल्तान बैबर्स की खुशकिस्मती कि चंगेज़ खाँन के पोते बिर्काई खाँन ने इस्लाम कुबूल कर लिया। इसकी वजह से बहुत से मंगोल इस्लाम में आने लगे। अब चंगेज़ खाँन के दो पोते हरक़त में थे एक हलाकू खाँन जो मुसलमानों के खिलाफ युद्ध के लिए तैयार था और दूसरा बिर्काई खाँन जो बड़ी सल्तनत का हुक्मरान था। इन हालात में सुल्तान बैबर्स ने हलाकू खाँन का मुकाबला करने के लिए चंगेज़ खाँन के नए मुस्लिम पोते बिर्काई खाँन से दोस्ती करने का संकल्प कर लिया।
मंगू खाँन के ज़माने में जो हलाकू खाँन का बड़ा भाई था बिर्काई खाँन और हलाकू खाँन में मेल-जोल रहा। लेकिन बाद मे अत्याधिक मतभेद पैदा हो गए थे। बिर्काई खाँन मुसलमान हो चुका था और कुदरती तौर पर उसे मुसलमानों से सहानुभूति थी। दूसरी तरफ हलाकू खाँन अपने पैतृक धर्म पर कायम था। जबकि उसकी पत्नी ‘दखूज़ा’ की वजह से यूरोप के ईसाई देश भी उसके सहायक हो गए थे और उसकी ईसाई पत्नी तुर्कों के कबीला ‘करेत’ के खाकान की बेटी थी जो नस्तूरी ईसाई था।