सुलतान रुकनुद्दीन बैबर्स – भाग 4

हलाकू खाँन बनाम बिर्काई खाँन । बैबर्स और बिर्काई खाँन की एकता

बिर्काई खाँन मुसलमान हो गया था इसलिए उसे मुसलमानों से सहानुभूति थी। उसने अपनी सहानुभूति का इज़हार पहली बार उस समय किया जब हलाकू ने बगदाद पर आक्रमण करके शहर को बर्बाद किया। तो हलाकू खाँन के नाम बिर्काई खाँन ने एक पत्र लिखा। इस पत्र में सख्त भाषा इस्तेमाल करते हुए अपने चाचा के लड़के हलाकू खाँन से कहा था तुमने एक पवित्र स्थान को नुकसान पहुंचाया है और इस मामले में अपने परिवार के दूसरे लोगों से भी नहीं पूछा। बिर्काई खाँन के इन शब्दों के जवाब में हलाकू खाँन और ज्यादा जंगलीपन पर उतर आया। वह मुस्लिमों के खिलाफ अपने खराब रवैये पर कायम रहा। 

उसने बिर्काई खाँन के शब्दों का कोई असर न लिया और साफ शब्दों में उसे ठुकरा दिया। वह मुस्लिमों के खिलाफ अपने खराब रवैये की परंपरा पर कायम रहा। जिन इलाकों को जीतता वहां के मुसलमानों पर बड़ी सख्तियाँ करता और ईसाइयों पर रहम करता तथा उनका सम्मान करता। अतः ईसाई हलाकू खाँन को अपना सहायक और संरक्षक समझने लगे थे। इस कारण अनगिनत ईसाई हलाकू खाँन की सेना में शामिल होना शुरू हो गए थे। इस तरह दिन ब दिन हलाकू खाँन की ताकत में वृद्धि हो रही थी। इस मौके पर प्रसिद्ध प्रस्तावक ‘हैरेल्डियम’ लिखता है जिधर – जिधर से हलाकू खाँन की सेना गुज़रती थी मस्जिदों को आग लगा दी जाती लेकिन गिरजाघरों को कोई हाथ न लगाता था। मुसलमानों पर हलाकू के अत्याचारों की यह खबरें वोल्गा नदी के किनारे मुसलमान मंगोल शासक बिर्काई खाँन को भी पहुंच रही थी। वह हलाकू खाँन की मुस्लिम दुश्मनी और सलीबियों के साथ दोस्ती पर बहुत गुस्सा हो रहा था। 

जब हलाकू खाँन का बड़ा भाई ‘मंगू खान’ मर गया। तो बिर्काई खाँन और हलाकू खाँन खुलकर एक दूसरे के सामने आ गए। चंगेज़ खाँन की औलाद में से मंगोलों के लिए ‘खाकान-ए-आज़म’ (मंगोलों का सबसे उच्च अधिकारी) चुनने के लिए झगड़े होने लगे। उनमें बिर्काई खाँन ने एक प‌‌क्ष का साथ दिया और हलाकू ने दूसरे का। इस तरह उनके बीच पहले से अंदर ही अंदर सर्द जंग चल रही थी वह अब गर्म जंग में बदलना शुरू हो गई। जब हलाकू और बिर्काई खाँन खुलकर एक दूसरे के सामने आ गए तो हलाकू खाँन की सेना में वह मंगोल जो बिर्काई खाँन की तरफ थे उनमें से कुछ तो हलाकू खाँन की सेना से निकलकर बिर्काई खाँन की तरफ आने लगे और कुछ सेना की टुकड़ी मिस्र की तरफ जाने लगीं। मिस्र में आकर उन्होंने बिर्काई खाँन की तरह इस्लाम कुबूल कर लिया वह सुल्तान बैबर्स के यहां ठहरे।

सुल्तान को इन्हीं ठहरने वाले मंगोलो ने बिर्काई खाँन और इसकी विशाल सल्तनत के बारे में विस्तार से बताया था। सुल्तान बैबर्स ने बिर्काई और उसकी विशाल सल्तनत के बारे में जानने के बाद तुरंत सोच लिया कि बिर्काई खाँन से दोस्ती करनी चाहिए। इससे मुसलमानों को फायदा ही फायदा है। अतः सुल्तान बैबर्स ने अपने राजदूतों को कुस्तुनतुनिया के रास्ते बिर्काई खाँन की सल्तनत में भेजा। बदकिस्मती से इन राजदूतों को कुस्तुनतुनिया के शहंशाह ने हलाकू खाँन की खुशी की वजह से रास्ते में ही रोक दिया इसलिए कि ईसाई दुनियां उस समय हलाकू खाँन का साथ दे रही थी। सुल्तान बैबर्स की खुशकिस्मती के उन्हीं दिनों बिर्काई खाँन की तरफ से कुछ राजदूत काहिरा पहुंचे। यह राजदूत सुल्तान बैबर्स की खिदमत में हाज़िर हुए और बिर्काई खान की तरफ से एक पत्र सुल्तान बैबर्स को सौंप दिया।

इस पत्र में बिर्काई ने एन-ए-जालूत के मुकाम पर हलाकू खाँन को हराने पर सुल्तान बैबर्स को बधाई दी। इन राजदूतों के पास एक और पत्र था जो बिर्काई खान की तरफ से था। सुल्तान बैबर्स के हवाले किया। इस पत्र में भी बिर्काई खाँन ने लिखा था हम मुसलमान हैं और हम अपने गैर मुसलमान रिश्तेदार हलाकू से लड़ रहे हैं। इसलिए मिस्र के सुल्तान को चाहिए कि वह फुराद नदी की घाटी में हलाकू खाँन की सेना पर चढ़ाई कर दे। सुल्तान बैबर्स के लिए चंगेज़ खाँन के मुसलमान पोते बिर्काई खाँन की तरफ से यह एक बहुत अधिक खुशी का पैगाम था। बिर्काई खाँन के पैगाम से सुल्तान बैबर्स समझ गया था कि मंगोलों के खिलाफ सबसे ताकतवर सहयोगी जो उसे मिल सकते हैं वह खुद मंगोल ही हैं। अतः उसने मुसलमान होने वाले मंगोल बिर्काई खाँन के राजदूतों का बहुत अच्छे से स्वागत किया। बिर्काई खाँन के राजदूतों को सुल्तान ने बहुत सारे उपहार दिए। और इसके अलावा सुल्तान बैबर्स ने बिर्काई खाँन के नाम एक लंबा पत्र लिखा। कहा जाता है कि यह पत्र 70 पृष्ठों पर लिखा गया था और सुल्तान ने इसको अपने हाथ से लिखा था। 

इस पत्र में सुल्तान ने युद्ध के बारे में कुरान की कुछ आयतों के हवाले भी दिए थे और हदीसें भी दी थी इसके अलावा सुल्तान बैबर्स ने बिर्काई खाँन कोयह भी लिखा कि सुल्तान खुद भी ‘दस्तेकेजाक’ का रहने वाला है और एक कमज़ोर मुसलमान की हैसियत से अपने नए मुस्लिम भाई को सलाम भेजता है। अपने पत्र में सुल्तान ने यह भी लिखा कि उसके लिए यह सबसे ज्यादा खुशी की बात है कि महान बिर्काई खाँन अपने चाचा के लड़के हलाकू खाँन के जोश को नफरत की निगाह से देखता है। हलाकू इस्लाम को बर्बाद करने पर तुला हुआ है और यह कमजोर बैबर्स इस्लाम को बचाने की कोशिश कर रहा है इसने खिलाफत को मिस्र में दुबारा शुरू कर दिया और अब यह हलाकू खाँन के खिलाफ युद्ध की तैयारियों में लगा हुआ है। सुल्तान ने यह भी लिखा कि यह कमजोर अपने भाई बिर्काई खाँन को यह बताने में भी खुशी महसूस करता है। कि काहिरा की जामा मस्जिद में अब्बासी खलीफा और मेरे नाम के साथ बिर्काई खाँन का नाम भी ख़ुत्बे में पढ़ा गया है। सुल्तान ने लिखा कि मैं और सारे मुसलमान आपके आभारी होंगे। कि अगर हलाकू हम पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़े तो आप उस पर पीछे से हमला कर दें। 

यह पत्र देकर सुल्तान ने बिर्काई खाँन के राजदूतों को बड़े सम्मान के साथ विदा किया। इसके अलावा अपने कुछ राजदूत भी उपहार देकर बिर्काई खाँन की तरफ रवाना किए। इन उपहार में जो सुल्तान बैबर्स ने बिर्काई खाँन को चीजें भिजवाई। उनमें कुरान शरीफ का श्रेष्ठ नुस्खा जिस पर खलीफा हजरत उस्मान बिन अफ्फान की मुहर लगी हुई थी, हाथी दांत, आबनूस (जंगली वृक्ष जिसकी लकड़ी काली अमल बहुत कठोर होती है), चंदन से बना हुआ एक सिंहासन, कई लिखे हुए चित्र, सोने के धागे से बनी हुई जा-नमाज़े, चांदी की प्लेटें, कीमती तलवारें, रेशम की डोरी वाली दमिश्क की कमाने, भाला, तीर, तीरदान, अलग-अलग रंगों के पर्दे, तकिए के खूबसूरत कवर, गांव तकिए, देगें, बंदर, अरबी घोड़े, गधे, जिराफ, तेज रफ्तार ऊंट, बहुत अच्छे तोते, हबशी गुलाम, प्रशिक्षित नौकरानी और बहुत से उपहार थे जिनको शामिल किया जा सकता था। 

रोम के बादशाह ने पहले राजपूतों को कुस्तुनतुनिया में रोक सका था इसलिए खतरा था कि वह इन राजदूतों को भी रोक लेगा। सुल्तान ने इस खतरे को खत्म करने के लिए रोम के बादशाह को धमकी दी कि अगर उसने मिस्र के राजदूतों को रोका, तो वह अपनी सल्तनत में बहुत से नसरानी व्यापारियों को गिरफ्तार कर लेगा और कुस्तुनतुनिया से अपने व्यापारिक संबंध खत्म कर देगा। इसके साथ ही उसने अपनी सल्तनत के ईसाई पादरियों से रोम के बादशाह को धमकी दिलवाई। कि वह उसको गिरजाघर का उच्च अधिकारी मानने से निकार कर देंगे। सुल्तान की इस कार्यवाही से रोम के बादशाह के होश ठिकाने आ गए और उसने जिन राजदूतों को पहले रोका हुआ था उन्हें भी रिहा कर दिया और बाद में आने वाले राजदूतों को भी अपनी मंजिल तक जाने दिया।

मिस्री राजदूत जब ‘सरा-ए-शहर’ में बिर्काई खाँन के पास पहुंचे तो उसने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। सुल्तान बैबर्स का पत्र और उपहार लेकर उसको बहुत खुशी हुई उसने सुल्तान को शुक्रिया का संदेश भेजा और पूरा सहयोग करने का यकीन दिलाया। इस तरह इन दोनों बड़े बादशाहो के बीच गहरी दोस्ती हो गई। बिर्काई खाँन की सल्तनत उस समय सिर्फ तंबुओं का शहर थी उसका नाम सरा-ए-बिर्काई था उसने सुल्तान बेवर्स को संदेश भेजा। कि वह मिस्र से कारीगर और शिल्पकार भेजे जो ईंटों और पत्थरों की इमारत उनके लिए बनाए। सुल्तान ने जल्द ही बहुत से कारीगर और शिल्पकार बिर्काई खाँन की तरफ भेज दिए। जिन्होंने कुछ वर्ष के अंदर ही तंबू के इस शहर में बहुत से मकान, मोहल्ले, मदरसे, मस्जिदें, यात्रियों के ठहरने की जगह बना दी। इस तरह सुल्तान बैबर्स की वजह से इधर से उधर घूमने वाले मंगोल एक जगह रहने लगे। 

बिर्काई खाँन के गद्दी पर बैठने के बाद समरकंद और बुखारा से भी बहुत से मुसलमान जिनमें कई उलमा भी शामिल थे बिर्काई खाँन के पास जाकर रहने लगे। बिर्काई खाँन के कहने पर इन उलमा ने मंगोलों के अंदर बहुत तेज़ इस्लाम फैलाना शुरू कर दिया। जिसका नतीजा यह हुआ कि वहां के घर – घर में इस्लाम का चर्चा होने लगा। बिर्काई खाँन के यहां इस्लाम इस कदर तेज़ी से फैला की बिर्काई खाँन के बहुत से सरदार, शहज़ादों और शहज़ादियों के यहां नमाज़ पढ़ाने के लिए एक -एक इमाम और अज़ान देने के लिए एक मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाला) तय था और सल्तनत के बहुत से शहरों में मदरसे बनाए गए थे जिनमें जनता के बच्चों को कुरान पाक पढ़ाया जाने लगा था जब सुल्तान बैबर्स और बिर्काई खाँन से दोस्ती हो गई तो सुल्तान के कहने पर बहुत से मिस्री और सीरियाई उलमा भी बिर्काई खाँन के पास पहुंचना शुरू हुए। और वहां इस्लाम फैलाने का प्रचार – प्रसार किया। 

दूसरी तरफ बहुत से मंगोल भी हलाकू खाँन के यहां से निकलकर मिस्र में आकर रहने लगे उन्होंने इस्लाम अपना लिया और अपने आपको अच्छा शहरी साबित करने लगे। चंगेज़ खाँन के पोते बिर्काई खाँन के साथ सुल्तान बैबर्स के दोस्ताना संबंध के बहुत अच्छे परिणाम साबित होने शुरू हुए। एन-ए-जालूत में मंगोलों की सेना की बेज़्ज़ती की हार ने हलाकू खान को गुस्से की मूर्ति बना दिया और वह मिस्र पर आक्रमण करने के लिए तैयार था और बहुत ही गुस्से में था दूसरे तरफ सुल्तान बैबर्स भी हलाकू के हालात से बेखबर ना था और उसको दुबारा हराने के लिए दिन – रात युद्ध की तैयारियों में व्यस्त था उसने एक बहादुर सेना तैयार की जो हर किस्म की परिस्थिति में युद्ध करने के लिए तैयार थी और इसको ऐसे तरीके से प्रशिक्षण दिया था। कि वह मंगोलों के हमलों से बहुत अच्छे से निपट सकें। इस  सेना में मंगोल मुसलमानों के अलावा तुर्क, खास तौर पर वह तुर्क थे जिन्हें गुलाम बनाकर रख लिया गया था और वह बिकते – बिताते मिस्र पहुंच गए थे इन तुर्कों को ममलूक कहकर पुकारा जाता था और यह ममलूक बहुत कसरत से भर्ती किए गए थे उनका दावा था कि वह मंगोलों को लोहे के चने चबवा कर रख देंगे। 

जिस समय हलाकू खाँन सुल्तान बैबर्स पर आक्रमण करने की तैयारियों में व्यस्त था उस समय सुल्तान बैबर्स भी सीरिया के अलग – अलग इलाकों में बिजली की रफ्तार से घूमता रहता। वह अपनी सेना के साथ जहाँ भी रुकता। रात को अपने तंबू में युद्ध के कपड़ों में सो जाता और एक रात से ज्यादा किसी भी जगह नहीं रुकता उसके तंबू पर हर समय एक तेज रफ्तार घोड़ा तैयार रहता था जिस पर ज़ीन कसी होती थी ताकि जिस समय भी मंगोलों के हमलों की खबर मिले। तो उनके मुकाबले में बिना रुके पहुंच जाए। उसने हलब शहर से लेकर फुराद की घाटी तक सारी घास जलवा दी, पेड़ कटवा दिए और सीमा के पास के गांव खाली करवा दिए ताकि मंगोलों को खाना न मिल सके और उनके घोड़े को चारा प्राप्त न हो सके। दूसरी तरफ से उसने अपने ताकतवर दोस्त बिर्काई खाँन को हलाकू खाँन की सेना पर हमला करने पर तैयार कर लिया था।

इन हालात में सन 1262 की सर्दियों में हलाकू खाँन अपनी सेना के साथ मिस्र और सीरिया पर आक्रमण करने के लिए हरकत में आया। दूसरी तरफ हलाकू खाँन के चाचा का लड़का बिर्काई खाँन इस्लाम कुबूल कर चुका था वह भी हलाकू खाँन पर गहरी नज़र रखा हुआ था उसने अपने मंगोल जासूस चारों तरफ फैला रखे थे। उसने जब देखा कि हलाकू खाँन अपनी सेना के साथ हरकत में आ रहा है ताकि मिस्र और सीरिया पर आक्रमण करे। तो उसने पीछे से हलाकू की सेना पर हमला कर दिया। अब हलाकू अजीब सी उलझन में पड़ गया। इसलिए कि अब मंगोलों की दो सेनाएं आपस में टकरा गई। हलाकू खाँन और बिर्काई खाँन के बीच लगातार झड़पें शुरू हो गई और इन झड़पों का लंबा सिलसिला शुरू हो गया। वैसे तो इस जंग किसी सल्तनत का कोई खास नुकसान नहीं हुआ। क्योंकि बिर्काई खाँन और हलाकू खाँन की सल्तनत के इलाके इस कदर बड़े थे कि एक के लिए दूसरे को पराजित करना नामुंकिन था फिर भी इसका इतना फायदा ज़रूर हुआ कि बिर्काई खाँन के पीछे से हमले करने की वजह से हलाकू खाँन मिस्र और सीरिया पर आक्रमण करने के काबिल न रहा। 

अब हलाकू खाँन के लिए डर पैदा हो गया था पहले उसके सामने सिर्फ एक ही मिस्र और सीरिया की चुनौती थी अब उसके सामने दो चुनौतियां थी एक मिस्र और सीरिया की दूसरी बिर्काई खाँन की। अब हलाकू खाँन बहर-ए-खुज्र (कैस्पियन सागर का वह भाग जो साइबेरिया के दक्षिण में चीन से लगा हुआ है) के पूरब और पश्चिम में दोनों तरफ अपने लिए खतरे महसूस करने लगा था और वह दोनों तरफ की सीमाओं की सुरक्षा करने पर मजबूर हो गया था। इसके अलावा बुखारा, समरकंद के पक्के मुसलमान योद्धाओं ने भी हलाकू के खिलाफ और बिर्काई की तरफ से युद्ध का ऐलान करके हलाकू खाँन की परेशानियों में इजाफा करना शुरू कर दिया था। सुल्तान बैबर्स और बिर्काई खाँन की एकता और सहयोग से हलाकू खाँन सटपटा कर रह गया था। उसे यकीन हो गया था कि किसी भी समय बिर्काई खाँन और बैबर्स ने उस पर हमला कर दिया तो उनके दो तरफा हमलों से उसे और उसकी सेना को खत्म करके रख दिया जाएगा। 

इस हाल को सामने रखते हुए हलाकू खाँन ने अपनी ताकत और शक्ति में इजाफा करते हुए ईसाई दुनियां की तरफ गया और अपने लिए सहयोगी तलाश करने की कोशिश की। सबसे पहले उसने कुस्तुनतुनिया के शहंशाह को पत्र लिखा जिसमें उसकी लड़की मारिया का रिश्ता अपने लड़के इबाका खाँन के लिए मांगा। इसके साथ ही उसने इंग्लैंड के बादशाह के अलावा रोम के पादरियों को भी पत्र लिखें। कि हमें मिस्र के खिलाफ एक हो जाना चाहिए। रोम के बादशाह ने किसी हिचकिचाहट के बगैर हलाकू का प्रस्ताव मंजूर कर लिया। लेकिन इंग्लैंड के बादशाह और रोम के पादरियों ने अपने अंदरूनी झगड़ों में शामिल होने की वजह से इस सिलसिले में हलाकू खाँन को कोई हौसला दिलाने वाला जवाब न दिया। दूसरी तरफ सुल्तान बैबर्स को जब खबर हुई कि हलाकू खाँन कुस्तुनतुनिया के बादशाह की बेटी का रिश्ता मांग रहा है इस तरह वह अपनी ताकत और शक्ति में इजाफा करना चाहता है। जब कुस्तुनतुनिया के बादशाह के साथ उसका रिश्ता कायम हो जाएगा तो निश्चित था कि कुस्तुनतुनिया वाले अपनी सेना हलाकू खाँन के लिए रवाना करेंगे। 

हलाकू खाँन के इस इरादे से सुल्तान बैबर्स को चिंता हुई। सुल्तान बैबर्स पहले ही हलाकू खाँन के सियासी दांव – पेच पर गहरी और कड़ी नजर रखे हुए था। इस नई स्थिति को सामने रखते हुए उसने तुरंत बिर्काई खाँन की तरफ तेज़ रफ्तार कासिद भिजवाए और उसे संदेश दिया कि हमारे खिलाफ पश्चिम की ईसाई दुनियां को अपने साथ मिलाने के लिए हलाकू खाँन ने कुस्तुनतुनिया के शहंशाह की बेटी का रिश्ता मांगा है। सुल्तान बैबर्स ने बिर्काई को यह भी राय दी। कि वह भी अपने भतीजे नौगाई के लिए कुस्तुनतुनिया के शहंशाह की दूसरी बेटी का रिश्ता मांगे। बिर्काई खाँन ने सुल्तान बैबर्स का संदेश मिलते ही तुरंत उस पर अमल करने का इरादा कर लिया उसने अपने कासिद कुस्तुनतुनिया के शहंशाह की तरफ भिजवाए और उसने अपने भतीजे के लिए उसकी बेटी का रिश्ता मांगा। कुस्तुनतुनिया के शहंशाह को बिर्काई खाँन की ताकत और शक्ति का एहसास था इसलिए उसने अपनी दूसरी लड़की का रिश्ता बिर्काई खाँन के भतीजे नौगाई को देने को मान गया। 

इसके साथ ही सुल्तान बैबर्स कुस्तुनतुनिया के शहंशाह से एक व्यापारिक समझौता कर लिया। जिसकी वजह से दोनों देशों के व्यापारी एक दूसरे के बंदरगाहों में आ जा सकते थे। इस तरह सुल्तान बैबर्स ने कुस्तुनतुनिया के शहंशाह को दुनिया की सियासत में ऐसा कर दिया कि वह किसी का साथ न दे सके। इस तरह हलाकू खाँन की बदकिस्मती कुछ इस तरह हुई कि उसकी बिर्काई खाँन के साथ जंग शुरू हुई। इस जंग में बिर्काई खाँन और उसके भतीजे नौगाई ने हलाकू खाँन को बहुत बुरी तरह से हराया। हारने के बाद हलाकू खाँन अपनी सेना के साथ भागा और मोज़ाम्बिक नदी के ऊपर से गुज़रते हुए उसके सैनिक मर गए। अपनी इस हार का हलाकू खाँन को इस कदर सदमा हुआ कि उस जंग के बाद वह मर गया। उसकी मौत के कुछ ही दिन बाद उसकी ईसाई पत्नी दखूज़ा खातून भी इस दुनिया से चली गई। हलाकू खाँन और उसकी पत्नी दखूज़ा के मरने का ईसाई दुनिया को बहुत दुख और सदमा हुआ और उन्होंने मुसलमानों पर आरोप लगाया कि इन दोनों को चालाक मुसलमानों ने ज़हर देकर मार दिया है क्योंकि यह दोनों इस्लामी दुनियां के लिए खतरा बने हुए थे‌।

कुछ पश्चिमी लोगों ने यहां तक कह दिया कि उन लोगों को जहर देने में सुल्तान बैबर्स का हाथ था। यह सोच कुछ पश्चिमी लोगों की है जबकि कुछ लोग कहते हैं कि हलाकू खाँन और उसकी पत्नी दोनों कुदरती मरे। सच कुछ भी हो ईसाईयों ने हलाकू खाँन और उसकी पत्नी के मरने का बड़ा शोक मनाया। उसकी मौत के बाद एक ईसाई ‘इब्नुलअबरा’, जो सुल्तान बैबर्स के विचार रखने वाला था। उसने हलाकू खाँन और उसकी पत्नी दखूज़ा की मौत पर अपने विचार इन शब्दों में कहे, सारी ईसाई दुनियां को ईसाई दुनियां के दोनों रक्षक और पथ-प्रदर्शकों की मौत का बड़ा सदमा हुआ। यह ईसाई इब्नुलअबरा हल्तिया शहर में पैदा हुआ और मरागा शहर में मरा। यह ईसाइयों के फिरके ‘याकूबिया’ से संबंध रखता था और अपने समय के प्रसिद्ध प्रस्तावक और चिकित्सकों में शामिल था उसने अरबी और सूर्यानी भाषा में 30 से ज्यादा किताबें लिखी थी। हलाकू और उसकी पत्नी दखूज़ा की मौत पर एक और ईसाई प्रस्तावक स्टीफन ने हलाकू का मातम करते हुए इन शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए, शहंशाह दुनियां का मालिक ईसाइयों का सहारा मर गया और उसके बाद उसकी पत्नी दखूज़ा खातून मर गई। नेकी में उनका दर्जा कुस्तुनतीन और उसकी मां हैलन से कम नहीं है। 

इस तरह हलाकू खाँन जो अपने आप को मुसलमानों के लिए तबाही का खुदा समझता था अपने अंजाम को जा पहुंचा। इन हालात में हलाकू खाँन अगर न मरता और कुछ समय और ज़िंदा रहता तो उसके ज़िंदा रहने से कोई फर्क न पड़ता इसलिए की सुल्तान बैबर्स ने उसका मुकाबला करने के लिए इस कदर ताकत और शक्ति हासिल कर ली थी कि वह किसी भी मोर्चे पर अकेला भी हलाकू खाँन को हराने के लिए तैयार था।

हलाकू खाँन के खात्मे के बाद सुल्तान बैबर्स आस-पास के ईसाईयों के तरफ ध्यान देने लगा। सुल्तान बहुत भरोसेमंद मुसलमान था लेकिन ईसाईयों और दूसरे धर्मों के खिलाफ उसके दिल में ज़र्रा बराबर भेदभाव न था। सुल्तान बैबर्स की सल्तनत में बहुत से ईसाई रहते थे जिनकी संख्या हजारों तक पहुंची थी। इन लोगों को सेना की सेवा से मना कर दिया गया और इसके बदले वे जज़िया की एक छोटी सी रकम हुकूमत को देते थे। इसके सिवा उन्हें नागरिक के सभी अधिकार हासिल थे और वह सुल्तान की सल्तनत के अंदर अपने धार्मिक काम बहुत आज़ादी से कर सकते थे।

सुल्तान बैबर्स की सल्तनत में ईसाइयों के बहुत सारे गिरजाघर और राहिबो की खानकाहें (रोमन कैथोलिक गिरजाघर) मौजूद थीं। सुल्तान बैबर्स और उसकी सल्तनत मस्जिदों की तरह इन इबादतगाहों की भी पूरी सुरक्षा करती थी। इन गिरजाघरों और राहिब-खानो में पादरियों ने अपने स्कूल खोले थे वहां उनको अपने धर्म के मुताबिक शिक्षा देने की पूरे तौर पर आज़ादी हासिल थी। सुल्तान बैबर्स की इस उदारता के बावजूद पूरब के सलीबी जिन्होंने लेबनान, सीरिया, फिलस्तीन के कई इलाकों खासतौर पर बहर-ए-रोम के तटीय बंदरगाहों पर कब्जे करके अपनी रियासतें बना रखी थी। वह सुल्तान को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे और यह ईसाई हर समय यूरोप के अलावा मंगोलों के साथ मिलकर इस्लाम के दुश्मन के तौर पर खड़े रहते थे सुल्तान ने इन सलीबियों के इरादों को समझ लिया और सीरिया, फिलस्तीन तथा लेबनान को उनके गलत इरादों से सही करने का फैसला कर लिया। 

इन सब सलीबियों को रोम के पादरियों, फ्रांस और इंग्लैंड के बादशाहों का विशेष संरक्षण और सहायता हासिल थी। इसलिए इन कट्टर बादशाहो से दोस्ताना संबंध का सवाल ही पैदा नहीं होता था। लेकिन कुस्तुनतुनियां के एक ईसाई बादशाह के व्यवहार में किसी तरह झुकाव था अतः सुल्तान ने अपनी रणनीति के ज़रिए उसे भेदभाव से दूर होने पर मजबूर कर दिया था। कुस्तुनतुनिया के बाद सुल्तान ने वैनिस और जेनेवा कि ईसाई सल्तनत के साथ भी संबंध बनाना शुरू किए। इसलिए कि इन लोगों को धर्म की लड़ाई में उलझने के बजाय अपने व्यापारिक लाभ ज्यादा पसंद थे। अतः सुल्तान ने उनसे व्यापारिक समझौते करके दोस्ताना संबंध बना लिए थे।

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